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दिल्ली के नेताओं को सड़कछाप राजनीति से हट कर इस खतरे की ओर भी ध्यान देना चाहिए !

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 18 जून, 2018 05:43 PM
  • 18 जून, 2018 05:43 PM
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पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि आम तौर पर दिल्ली की हवा सर्दियों में बदत्तर हो जाती है. मगर सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पिछले कुछ महीनों के आकंड़े बताते हैं कि दिल्ली के लिए स्थिति अब और भी भयावह होती जा रही है.

दिल्ली के हुक्मरान धरने में व्यस्त हैं. उनकी मांग है कि दिल्ली कि कमान पूरी तरह से उनके हाथ में दे दी जाय और इस तरह वो खुद में भी सुपरबॉस होने की फील ले सकें. हालांकि इसके दूसरी ओर दिल्ली की आम जनता बिजली, पानी की बुनियादी जरूरतों के साथ ही जीने के लिए जरूरी प्राणवायु को लेकर भी जद्दोजेहद कर रही है. पिछले कई दिनों से दिल्ली की आम जनता को ऐसी दमघोंटू हवा में सांस लेना पड़ रहा है, जिसमें सांस लेने के बाद सामान्य व्यक्ति भी कई तरह के परेशानियों के घेरे में आ जाये. वैसे पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि आम तौर पर दिल्ली की हवा सर्दियों में कुछ ज्यादा ही बदत्तर हो जाती है. मगर सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के पिछले कुछ महीनों के आकंड़े बताते हैं कि दिल्ली के लिए स्थिति अब और भी भयावह होती जा रही है.

सीपीसीबी के मार्च, अप्रैल और मई 2018 के आकड़ों के अनुसार, पिछले तीन महीनों में दिल्ली में ऐसा एक भी दिन नहीं रहा, जिस दिन दिल्ली की हवा को सामान्य कहा जाय या सांस लेने के बेहतर कहा जा सके. इन तीन महीनों में 223 मौकों पर दिल्ली की हवा को 'पूअर' केटेगरी, जबकि 87 मौकों पर 'वेरी पूअर केटेगरी' रिकॉर्ड किया गया. यह आकंड़े शहर के सात विभिन्न स्थानों पर लगाए गए मॉनिटरिंग स्टेशन के आधार पर बताये गए हैं. यानि पहले जो वायु प्रदुषण की अधिकता सर्दियों के मौसम में ही ज्यादा दिखती थी वो अब पूरे साल ही देखने को मिल रही है. कह सकते हैं कि दिल्ली कि स्थिति वाकई में बहुत विकट है.

हालांकि, दिल्ली के लिए जो बड़ी त्रासदी रही है वो यह कि भले ही पिछले कुछ सालों से दिल्ली के प्रदूषण का मुद्दा बार-बार उठता है मगर बावजूद इसके ना ही राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ विशेष करते दिखे हों. हां इतना जरूर है कि जब स्थिति असहनीय हो जाती है तो सरकारें फौरी...

दिल्ली के हुक्मरान धरने में व्यस्त हैं. उनकी मांग है कि दिल्ली कि कमान पूरी तरह से उनके हाथ में दे दी जाय और इस तरह वो खुद में भी सुपरबॉस होने की फील ले सकें. हालांकि इसके दूसरी ओर दिल्ली की आम जनता बिजली, पानी की बुनियादी जरूरतों के साथ ही जीने के लिए जरूरी प्राणवायु को लेकर भी जद्दोजेहद कर रही है. पिछले कई दिनों से दिल्ली की आम जनता को ऐसी दमघोंटू हवा में सांस लेना पड़ रहा है, जिसमें सांस लेने के बाद सामान्य व्यक्ति भी कई तरह के परेशानियों के घेरे में आ जाये. वैसे पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि आम तौर पर दिल्ली की हवा सर्दियों में कुछ ज्यादा ही बदत्तर हो जाती है. मगर सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के पिछले कुछ महीनों के आकंड़े बताते हैं कि दिल्ली के लिए स्थिति अब और भी भयावह होती जा रही है.

सीपीसीबी के मार्च, अप्रैल और मई 2018 के आकड़ों के अनुसार, पिछले तीन महीनों में दिल्ली में ऐसा एक भी दिन नहीं रहा, जिस दिन दिल्ली की हवा को सामान्य कहा जाय या सांस लेने के बेहतर कहा जा सके. इन तीन महीनों में 223 मौकों पर दिल्ली की हवा को 'पूअर' केटेगरी, जबकि 87 मौकों पर 'वेरी पूअर केटेगरी' रिकॉर्ड किया गया. यह आकंड़े शहर के सात विभिन्न स्थानों पर लगाए गए मॉनिटरिंग स्टेशन के आधार पर बताये गए हैं. यानि पहले जो वायु प्रदुषण की अधिकता सर्दियों के मौसम में ही ज्यादा दिखती थी वो अब पूरे साल ही देखने को मिल रही है. कह सकते हैं कि दिल्ली कि स्थिति वाकई में बहुत विकट है.

हालांकि, दिल्ली के लिए जो बड़ी त्रासदी रही है वो यह कि भले ही पिछले कुछ सालों से दिल्ली के प्रदूषण का मुद्दा बार-बार उठता है मगर बावजूद इसके ना ही राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ विशेष करते दिखे हों. हां इतना जरूर है कि जब स्थिति असहनीय हो जाती है तो सरकारें फौरी तौर पर राहत के लिए कुछ एक कदम उठाते दिख जाती हैं. मगर इस विकराल समस्या से निपटने को कोई ठोस समाधान लाने का माद्दा अब तक हुक्मरानों ने नहीं दिखाया है.

पिछले साल नवंबर में ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिल्ली की हवा को लेकर हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया था, तब दिल्ली की हवा में सांस लेने को 50 सिगरेट पीने के बराबर बताया गया था. हालांकि, समस्या इतनी विकराल होने के बाद भी सत्तासीन लोगों की नींद नहीं खुली, जिसका नतीजा आज दिल्ली की आम जनता को सबसे अधिक भुगतना पड़ रहा है. यह वही आम जनता है, जिनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ऐसी कमरे में सोफे पर धरना दिए बैठे हैं. अभी जरूरत तो यह है कि केंद्र और राज्य सरकार सड़कछाप राजनीति से ऊपर उठ कर दिल्ली की जनता को इस समस्या से निजात दिलाने की दिशा में काम करें, जिससे कि हर आम नागरिक साफ़ हवा में सांस तो ले सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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