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खेल या रेप के मामले में भी प्रतिक्रिया जाति, धर्म, और राज्य देखकर दी जाएगी!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 04 अगस्त, 2021 07:10 PM
  • 04 अगस्त, 2021 07:10 PM
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लड़कियों को जाति-धर्म और राज्य में मत बांटिए, बेटियों के साथ दुष्कर्म जैसे घिनौने कृत्य करने वाले अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए. चाहें लड़कियां किसी भी समुदाय से हों या फिर किसी भी जाति की हो या फिर किसी भी राज्य की हों. अपराधियों का सिर्फ एक ही धर्म है अपराध...बेटियों की सहायता कीजिए लेकिन अपनी राजनीति मत चमकाइए…लड़कियों का दर्द एक समान होता है.

लड़कियों को जाति-धर्म और राज्य में मत बांटिए, बेटियों के साथ दुष्कर्म जैसे घिनौने कृत्य करने वाले अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए. चाहें लड़कियां किसी भी समुदाय से हों या फिर किसी भी जाति की हो या फिर किसी भी राज्य की हों. अपराधियों का सिर्फ एक ही धर्म है और वह है अपराध...बेटियों की सहायता कीजिए, लेकिन अपनी राजनीति मत चमकाइए…लड़कियों का दर्द एक समान होता है.

कुछ करना है तो ऐसा कीजिए कि यह अपराध होना बंद हो जाए. आज दलित है कल कोई और भी हो सकती है. वह किसी जाति और किसी राज्य की बेटी होने से पहले उस देश की बेटी है जहां लड़कियों को पूजा जाता है. लोगों ने तो देश के लिए मेडल लाने वाली बेटियों को भी जाति और राज्य का नाम पर बांट दिया...देखने में आ रहा है कि, महिला एथलीट को लेकर एक ट्रैप (जाल) तैयार हो गया है. उनको बांटने की कोशिश की जा रही है. कभी पंजाब तो कभी नार्थईस्ट...वैसे तो चुनाव में जातिय जनगणना को लेकर सियासत तेज है, क्योंकि सब मामला वोट ठगिंग एंड टेकिंग का है. 

ओलंपिक महिला खिलाड़ियों को राज्य और जाति के नाम बांट दिया

ओलंपिक में भारत का मान बढ़ाती बेटियों को जाति और राज्य में बांटने वाले लोग आज रेप पीड़िता को भी जाति और राज्य में बांट रहे हैं. क्या आपको नहीं पता कि बेटियों की तकलीफ एक समान ही होती है चाहें वे देश के किसी भी कोने से आती हों उनका दर्द एक है. जब किसी बच्ची का दुष्कर्म कर उसे मार दिया जाता है, इससे ज्यादा तकलीफ दुनियां में शायद कुछ नहीं होगा. जब कोई बेटी दूर विदेश में मेडल के लिए सारी ताकत लगा रही होती है तब वह अपने देश के लिए खेल रही होती है अपनी जाति के लिए नहीं. किसी खिलाड़ी को ओलंपिक में भारत (इंडिया) से पहचाना जाता है. वह अगर जीतती है तो देश जीतता है और हारती है तो देश हारता है....

लड़कियों को जाति-धर्म और राज्य में मत बांटिए, बेटियों के साथ दुष्कर्म जैसे घिनौने कृत्य करने वाले अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए. चाहें लड़कियां किसी भी समुदाय से हों या फिर किसी भी जाति की हो या फिर किसी भी राज्य की हों. अपराधियों का सिर्फ एक ही धर्म है और वह है अपराध...बेटियों की सहायता कीजिए, लेकिन अपनी राजनीति मत चमकाइए…लड़कियों का दर्द एक समान होता है.

कुछ करना है तो ऐसा कीजिए कि यह अपराध होना बंद हो जाए. आज दलित है कल कोई और भी हो सकती है. वह किसी जाति और किसी राज्य की बेटी होने से पहले उस देश की बेटी है जहां लड़कियों को पूजा जाता है. लोगों ने तो देश के लिए मेडल लाने वाली बेटियों को भी जाति और राज्य का नाम पर बांट दिया...देखने में आ रहा है कि, महिला एथलीट को लेकर एक ट्रैप (जाल) तैयार हो गया है. उनको बांटने की कोशिश की जा रही है. कभी पंजाब तो कभी नार्थईस्ट...वैसे तो चुनाव में जातिय जनगणना को लेकर सियासत तेज है, क्योंकि सब मामला वोट ठगिंग एंड टेकिंग का है. 

ओलंपिक महिला खिलाड़ियों को राज्य और जाति के नाम बांट दिया

ओलंपिक में भारत का मान बढ़ाती बेटियों को जाति और राज्य में बांटने वाले लोग आज रेप पीड़िता को भी जाति और राज्य में बांट रहे हैं. क्या आपको नहीं पता कि बेटियों की तकलीफ एक समान ही होती है चाहें वे देश के किसी भी कोने से आती हों उनका दर्द एक है. जब किसी बच्ची का दुष्कर्म कर उसे मार दिया जाता है, इससे ज्यादा तकलीफ दुनियां में शायद कुछ नहीं होगा. जब कोई बेटी दूर विदेश में मेडल के लिए सारी ताकत लगा रही होती है तब वह अपने देश के लिए खेल रही होती है अपनी जाति के लिए नहीं. किसी खिलाड़ी को ओलंपिक में भारत (इंडिया) से पहचाना जाता है. वह अगर जीतती है तो देश जीतता है और हारती है तो देश हारता है. पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश या आसाम नहीं.

लोगों ने पीवी सिंधु और साक्षी मलिक की जाति खोजी. कई लोगों ने मीराबाई चानू को नार्थ इंस्ट का बताकर कहा कि लोग यहां से आने वाली बेटियों को चिंकी-मिंकी कहते हैं. क्या सभी लोग नार्थ-ईस्ट की बेटियों के लिए ऐसा कहते हैं... कई ऐसे नेता हैं जो इस बात को भुनाने से पीछे नहीं हट रहे. जब देश की पुरुष और महिला भारतीय हॉकी टीम ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए ओलंपिक सेमीफाइनल में जगह बनाई तब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को सिर्फ पंजाब के खिलाड़ी ही दिखे.

ये वही सरकार है जो खुद मेडल लाने वाले पुराने खिलाड़ियों को नौकरी देने का वादा नहीं निभा रही. भारत की जीत पर मुख्यमंत्री यह बताना नहीं भूले कि गोल पंजाब के खिलाड़ियों ने किया है. कैप्टन ने कहा कि भारत के लिए क्‍वार्टर फाइनल में हुए तीनों गोल पंजाब के खिलाड़ियों दिलप्रीत सिंह, गुरजंत सिंह और हार्दिक सिंह ने किए हैं. इसके बाद जैसे ही महिला हॉकी टीम ने जीत हासिल की तो इन्होंने अपने ट्वीट में अमृतसर की गुरजीत कौर का खास नाम लेते हुए कहा कि इन्होंने ही वो इकलौता गोल किया है, जिससे भारत जीता है. क्या ऐसे बांटने से जीतेगा इंडिया?

इसके बाग लोगों ने अमरिंदर को ट्रोल करते हुए कहा कि जब वे हॉकी मैच देखते हैं तो एक भारतीय की तरह देखते हैं. ना की पंजाबी, हिमाचली, मराठी, हरियाणवी, गुजराती या आसामी आदि की तरह. सिर्फ इतना ही नहीं, बेटियों के जीतने पर अगर यह बोला जा रहा है कि लड़कियों ने बाजी मारी तो इसे पुरुषों के खिलाफ लिया जा रहा है. जबकि ऐसा नहीं है...क्या पुरुष खिलाड़ी के जीतने पर 'लहराया परचम' नहीं बोला जा रहा है. 

अगर बेटियां बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं तो बोलने में हर्ज क्या है. वो आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन रही हैं. उनके पास बचपन से करो या मरो वाली हालत होती है. स्कूल या कॉलेज में क्यों लड़कियों के नोट्स, असाइमेंट पूरे होते हैं. लड़कियां हर बात को लेकर सेंस्टिव होती हैं, सीरियस होती हैं, फोकस होती हैं. दिमाग भटकाने के लिए उनके पास इतने मौके नहीं होते.

खिलाड़ी अगर मेडल जीतता है तो वह देश की शान होता है चाहें वह किसी राज्य से हो, चाहें वह महिला हो या पुरुष. उसका नाम पूरे देश में लिया जाता है, राज्य में इन खिलाड़ियों के बड़े-बड़े पोस्टर लगाकर चुनाव में भुनाकर उसे आप सिर्फ अपने राज्य तक सीमित नहीं कर सकते. 

आप चक दे इंडिया का वो सीन ही याद कर लेते जब कोच बने शाहरूख खान लड़कियों से पूछते हैं कि तुम कहां से आई हो...लड़कियां अपने राज्य का नाम बताती हैं...इस पर वे कहते हैं 'मुझे स्‍टेट्स के नाम न सुनाई देते हैं न दिखाई देते हैं सिर्फ एक मुल्‍क का नाम सुनाई देता है इंडिया.' हम वही गलती कर रहे हैं जो अंग्रेजों ने किया...क्योंकि हमें अपनी राजनीति चमकानी है. उस मुद्दे को चुनाव में भूनाना है.

नेताओं के लिए तो जातिवाद चुनाव जीतने की सबसे बड़ी सीढ़ी है और अब तो राज्यवाद भी आ गया है. किसी बच्ची का रेप हुआ है, उसके परिवार वालों को संबल देना चाहिए, अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवानी चाहिए, लेकिन अपने फायदे के लिए उसके राज्य और जाति को उछाला जाना जरूरी क्या है. हमारे देशवासियों के अंदर एक कीड़ा है. हम जैसे ही किसी का नाम पूछते हैं तो उसकी जाति भी जानना चाहते हैं. किसी ने अपना नाम बताया और जाति नहीं बताई तो हम उसका सरनेम बड़े आराम और हक से पूछ लेते हैं. किसी ने कुछ अच्छा किया तो लोगों को उसकी जाति के बारे में जाने की आदत तो वर्षों पुरानी है. ये उत्सुकता पढ़े-लिखे राज्यों में अधिक देखने को मिली है.

बेटियों की सहायता कीजिए लेकिन अपनी राजनीति मत चमकाइए…लड़कियों का दर्द एक समान होता है. कुछ करना है तो ऐसा कीजिए कि यह रेप जैसे अपराध होना बंद हो जाएं. आज दलित बच्ची है तो कल किसी और जाति की भी हो सकती है, क्योंकि दुष्कर्म की घटनाएं कौन सी रूकने वाली हैं...

दिल्ली में बच्ची के साथ रेप के बाद राजनीति गर्म

दिल्ली में नौ साल की बच्ची का सामूहिक दुष्कर्म और फिर हत्या करने के बाद उसका जबरन जैसे-तैसे अंतिम संस्कार के मामले में राजनीति गरमा गई है. मां का कहना है कि बच्ची का सबकुछ जल गया था बस पैर का टुकड़ा बचा था. इस घटना के बाद पीड़ित परिवार से मिलने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे तो भाजपा ने उन पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया. सोशल मीडिया पर भी कई जगह उस बच्ची को दलित के नाम से संबोधित किया जा रहा है.

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि कांग्रेस को दिल्ली में दलित की बच्ची से दुष्कर्म दिखाई देता है लेकिन राजस्थान के रेप पर वह चुप क्यों हो जाते हैं. संबित पात्रा ने कहा, राहुल गांधी से पूछा कि दलित की बेटी हिंदुस्तान की बेटी है. इसमें कोई दो मत नहीं है. उसे न्याय मिलना ही चाहिए लेकिन क्या राजस्थान की दलित बेटी, छत्तीसगढ़ की दलित बेटी और पंजाब की दलित बेटी, जिसके साथ जघन्य अपराध होता है, क्या ये हिंदुस्तान की बेटियां नहीं हैं?

लड़कियां किसी भी जाति या राज्य की हों इनका दर्द एक है

नेता कोई भी हों या किसी भी पार्टी के हों, सबको अपनी राजनीति की पड़ी है, बेटियों की सुरक्षा गई चूल्हे में. अरे करना ही है तो कुछ ऐसा करो ना कि ऐसी घटनाएं ना हों. आरोपियों को सजा दिलाने भर से क्या उस परिवार की बच्ची लौटेगी, क्या उस बच्ची की जिंदगी उसे मिल जाएगी...

बेटियों को इंसाफ मिलना चाहिए लेकिन उन्हें पंजाबी, हिमाचली, मराठी, हरियाणवी, गुजराती या बिहारी के रूप में बांटकर आप क्या साबित करना चाहते हैं. क्या ऐसा करने से उनकी तकलीफ कम हो जाएगी...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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