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किसी के मोटापे का मजाक उड़ाने वाले संवेदनशीलता के स्तर पर निल्ल बटे सन्नाटा हैं!

    • नाज़िश अंसारी
    • Updated: 28 सितम्बर, 2022 07:35 PM
  • 28 सितम्बर, 2022 07:26 PM
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चिरकाल से बॉडी शेमिंग का आउट ऑफ़ ट्रेंड ना होना यह भी दर्शाता है कि टेक्नोलाजी, लाइफ स्टाइल, एजुकेशन में इंसानों ने कितनी भी तरक़्क़ी क्यों ना कर ली हो, संवेदनशीलता के स्तर पर निल्ल बटे सन्नाटा हैं. जब दुनिया तीसरे विश्व यद्ध के मुहाने पर खड़ी है, नहीं लगता हमें स्मार्टनेस से ज़्यादा हर स्तर पर संवेदनशील बनने की ज़रूरत है?

वॉव लुकिंग वेरी प्रिटी... हैव यू लॉस्ट सम वेट? कॉम्पलिमेंट की तरह लिये गये इस वाक्य के रिस्पांस में सामने वाला 'ओ रियली!' वाला एटीट्यूड दिखाते हुए थोड़ा ही सही आत्मविश्वास से भर जाता है. अरे वो देखो, छोटा हाथी! सी दैट मोटी हथिनी! साइड देते रहना बुलडोज़र को! कैसी भैसी हो रखी है! ज़रा फ्रेंडली हुए तो कह दिया, वाई डोंट यू जॉइन जिम. मतलब इंसान का वेट अगर बीएमआई (बॉडी, मास, इंडेक्स) से ज़्यादा है तो आपको जन्मजात अधिकार हासिल है रिमार्क पास करने का. यह सिर्फ मोटे लोगों तक ही सीमित नहीं. काला है तो तवा और रीछ. चपठी नाक या छोटी आंख है तो चाईनीज़. मोटे होंठऔर बड़ी आंख है तो नीग्रो. दुबला यानी पतला है तो पापड़... मतलब जो परफ़ेक्ट नहीं, वह कुछ हो ना हो, चुटकुला तो है ही.

रिसर्च कहती है दो लोग जब भी बैठते हैं, बात किसी तीसरे के बारे में होती है. यह 'तीसरी बात' मज़ेदार हो साथ में चाय हो, बाय गॉड दिन भर की थकन उतर जाती है. अब यह भी सही है सभी 'आओ बहन चुगली करें टाइप' नहीं होते. आप बुद्धू बक्से पे कॉमेडी शोज़ देखते हैं. फिल्म प्रोमोशन के लिये आये हुए सेलेब्रिटीज को एक मोटी औरत बहाने बहाने से चूमने के लिये मरी जा रही है. वह पाउट लिए हुए उसे दौड़ा रही है. लोग हंस हंस के दोहरे हुए जा रहे.

अपनी आने वाली फिल्म में हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा ने मोटे लोगों का मजाक उड़ाने वालों पर जबरदस्त कटाक्ष किया है

90 की फ़िल्मों में भी वही है. हिरोइन की चार सहेलियों में एक मोटी लड़की हमेशा कुछ ना कुछ खाती, लड़कों के पीछे भागती, जबरदस्ती चूमने की कोशिश करते दिखाई जाती है. यह एक तरह से अत्यधिक वज़न वाली स्त्रियों को सेक्सुअली फ्रस्ट्रेटेड घोषित करता है.

बाज़ार, सिनेमा के मानक धारणा विकसित करते हैं कि मोटे लोग हमेशा खाने या सेक्स के बारे में सोचते हैं. क्या...

वॉव लुकिंग वेरी प्रिटी... हैव यू लॉस्ट सम वेट? कॉम्पलिमेंट की तरह लिये गये इस वाक्य के रिस्पांस में सामने वाला 'ओ रियली!' वाला एटीट्यूड दिखाते हुए थोड़ा ही सही आत्मविश्वास से भर जाता है. अरे वो देखो, छोटा हाथी! सी दैट मोटी हथिनी! साइड देते रहना बुलडोज़र को! कैसी भैसी हो रखी है! ज़रा फ्रेंडली हुए तो कह दिया, वाई डोंट यू जॉइन जिम. मतलब इंसान का वेट अगर बीएमआई (बॉडी, मास, इंडेक्स) से ज़्यादा है तो आपको जन्मजात अधिकार हासिल है रिमार्क पास करने का. यह सिर्फ मोटे लोगों तक ही सीमित नहीं. काला है तो तवा और रीछ. चपठी नाक या छोटी आंख है तो चाईनीज़. मोटे होंठऔर बड़ी आंख है तो नीग्रो. दुबला यानी पतला है तो पापड़... मतलब जो परफ़ेक्ट नहीं, वह कुछ हो ना हो, चुटकुला तो है ही.

रिसर्च कहती है दो लोग जब भी बैठते हैं, बात किसी तीसरे के बारे में होती है. यह 'तीसरी बात' मज़ेदार हो साथ में चाय हो, बाय गॉड दिन भर की थकन उतर जाती है. अब यह भी सही है सभी 'आओ बहन चुगली करें टाइप' नहीं होते. आप बुद्धू बक्से पे कॉमेडी शोज़ देखते हैं. फिल्म प्रोमोशन के लिये आये हुए सेलेब्रिटीज को एक मोटी औरत बहाने बहाने से चूमने के लिये मरी जा रही है. वह पाउट लिए हुए उसे दौड़ा रही है. लोग हंस हंस के दोहरे हुए जा रहे.

अपनी आने वाली फिल्म में हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा ने मोटे लोगों का मजाक उड़ाने वालों पर जबरदस्त कटाक्ष किया है

90 की फ़िल्मों में भी वही है. हिरोइन की चार सहेलियों में एक मोटी लड़की हमेशा कुछ ना कुछ खाती, लड़कों के पीछे भागती, जबरदस्ती चूमने की कोशिश करते दिखाई जाती है. यह एक तरह से अत्यधिक वज़न वाली स्त्रियों को सेक्सुअली फ्रस्ट्रेटेड घोषित करता है.

बाज़ार, सिनेमा के मानक धारणा विकसित करते हैं कि मोटे लोग हमेशा खाने या सेक्स के बारे में सोचते हैं. क्या उन्होनें ऐसे मानक निर्धारित करने से पहले कोई सर्वे की है? फिर किस आधार पर बीएमआई से अधिक वज़न वालों को डम्बो, बाबरी बकरा, सेक्सुअली फ्रस्ट्रेटेड बताया जाता रहा है.

हर बढ़े वज़न वाले शख्स की खुराक़ ज़्यादा हो ज़रूरी नहीं होता. बाज़ दफा इर्रेगुलर हार्मोंस, स्लो मेटाबोलिस्म वजह होती है. कभी अनुवांशिकता भी. औरतों में डिलीवरी के बाद शरीर, ढीली पड़ी जगह में फैट स्टोर कर लेता है. सभी स्त्रियों को जिम/एक्सरसाइज की लग्जरी हासिल नहीं होती. कई बार यूट्रस सम्बंधित परेशानियां भी इसका कारण बनती हैं.

अच्छा, बाज़ार का यह मानक सिर्फ शारीरिक बनावट तक ही सीमित नहीं. अब रंग को ही लीजिये. फेयर... सॉरी जो ग्लो है वही लवली है की अवधारणा से भारत का सालाना कॉस्मेटिक टर्नओवर 20-25 बिलियन डॉलर तक पहुंचता है. जो लीपा-पोती पर खर्च कर सुन्दर दिख सकते हैं. दिखते हैं.

बिना मेकअप के बाहर नहीं निकलने वाले लोग (हां लोग... क्योंकि  अब लड़के भी भरपूर सजते संवरते हैं) अपने एक्चुअल रूप को लेकर इतने अनहैबिचुअल और इनसिक्योर हैं कि यह रूप गलती से भी सार्वजनिक हो जाए तो एंग्जायटी के मरीज़ हो जाएं. अमीर सर्जरी करा लेते हैं. बाक़ी बचे लोग तो मीम्स, रील्स और चुटकुलों के लिये हैं ही.

रंग-रूप के अलावा टैलेंट में भी एक विषय का ज्ञाता होना काफ़ी नहीं. सुर सही लग रहें तो क्या, थोड़े लटके झटके दिखाईये. साथ थोड़ी कॉमेडी, थोड़ी मिमिक्री का भी छौंक लगाईये. कुकरमुत्ते की तरह उगे टैलेंट की भरमार वाले देश में मल्टी टैलेंटेड हो तो ही उद्धार समझिये.

कम सुन्दर, आ- सुंदर, नाटे, मोटे, भद्दे, दुनियावी/बाज़ार के मानकों पर रिजेक्टेड लोग आखिर जाएं तो जाएं कहां. मैं एक 'कम मशहूर' कवि ('राष्ट्रवादी' मनोज मुन्तशिर होना सबकी क़िस्मत में कहां...) विनोद विट्ठल के शब्दों में सोचती हूं कम रख रखाव, सादगी की क्या कोई क़ीमत नहीं. कोई तो यूनिवर्सिटी हों जहां रफ कॉपी के भी नम्बर मिले.

फ़ैशन, ट्रेंड शैतान के पेट की आग हैं. ता क़यामत धधकते रहेंगे. आप महज़ एक उपभोक्ता जो हर समय मोडर्निटी के नाम पर ट्रेन्डिंग, फेशनेबल, स्मार्ट, गुडलुकिंग दिखने/बनने को अभिशप्त हैं. शॉपिंग एप में प्लस साइज़ की मॉडल का होना दर्शाता है मार्केट मोटापे को सहजता से ऐक्सेप्ट कर रहा है/करता है. लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर थुलथुले शरीर के लोग जनता की तिरछी नज़र और हंसने का सामान हो ही जाते हैं. हालांकि उनकी ग्रोसरी का बिल किसी और के पप्पा के अकाउंट से नहीं कटता. फिर भी.

वैसे चिरकाल से बॉडी शेमिंग का आउट ऑफ़ ट्रेंड ना होना यह भी दर्शाता है कि टेक्नोलाजी, लाइफ स्टाइल, एजुकेशन में इंसानों ने कितनी भी तरक़्क़ी क्यों ना कर ली हो, संवेदनशीलता के स्तर पर निल्ल बटे सन्नाटा हैं. जब दुनिया तीसरे विश्व यद्ध के मुहाने पर खड़ी है, नहीं लगता हमें स्मार्टनेस से ज़्यादा हर स्तर पर संवेदनशील बनने की ज़रूरत है?

और हां ये बातें सिर्फ इसलिए क्योंकि अभी अगले कुछ दिनों में एक फिल्म आ रही है. नाम है डबल एक्सएल. फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी हैं.जिन्होंने फिल्म में मोटापे से ग्रसित महिलाओं का रोल किया है. और बावजूद इसके उन लोगों पर कटाक्ष किया है जो लोगों का सिर्फ इसलिए मजाक उड़ाते हैं क्योंकि वो मोटे होते हैं. फिल्म हिट होती है या फ्लॉप इसपर अभी से कुछ कहना जल्दबाजी है लेकिन जिस मुद्दे को फिल्म में उठाया गया है वो आज के लिहाज से बहुत जरूरी है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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