• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

एक छोटा शहर क्‍यों नाराज है दिल्‍ली के प्रदूषण से

    • विकास कुमार
    • Updated: 06 नवम्बर, 2018 04:02 PM
  • 06 नवम्बर, 2018 04:02 PM
offline
देश की राजधानी दिल्ली में बढ़े हुए प्रदूषण ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है ऐसे में माना यही जा रहा है कि अब ये शहर रहने योग्य नहीं रह गया है.

प्यारे दिल्ली,

कैसे हो? दुआ तो यही है कि तुम ठीक रहो, स्वस्थ्य रहो और सुखी रहो. लेकिन दुःख है कि आजकल तुम सांस नहीं ले पा रहे हो. ये कितना बड़ा संकट है कि तुम्हारे यहां प्राणवायु भी साफ नहीं है. तुम साफ  हवा भी नहीं ले पा रहे हो. साफ पानी और सही खाने की बात तो छोड़ ही दो. तुम्हारी ऐसी स्थिति देखकर बहुत दुःख होता है. इतना कि मैं अपना दुःख भूल जाता हूं. तुम्हारे दुःख से ही दुखी हो जाता हूं. ऐसा लगता है कि तुम्हारे दुःख मेरे हैं. मुझी पर संकट आया है. मेरा ही दम घुट रहा है. मैं ही जहर अपने भीतर ले रहा हूं.

अरे, देखो न. इस बात में मैं इतना पैठ गया कि अपना परिचय ही देना भूल गया. सामान्य शिष्टाचार निभाए बिना बकर-बकर किए ही जा रहा हूं. मैं हूं इस देश का छोटा शहर. जैसे पटना, रांची, गया, प्रयागराज, दिलदयाल उपाधाय नगर या फिर कानपुर. कोई भी नाम दे दो. वैसे भी मेरे सौ से ज़्यादा नाम हैं. लेकिन पहचान एक ही है-छोटा शहर.

दिल्ली में प्रदूषण के चलते लोगों का जीना मुहाल है

तो दिल्ली, मैं इस देश का छोटा शहर हूं. वो शहर जो तुम्हारे जितना अमीर नहीं है. जिसे नियम-क़ायदे नहीं आते, फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी नहीं आती, जहां शासन नहीं बसता, जहां संसद और इंडिया गेट नहीं हैं. लेकिन जीवन मेरे यहां भी है. संकट हम भी झेलते हैं. मेहनत हम भी करते हैं. ईमनादारी से कहूं तो विकासकी गाड़ी को खींचने वाले बैल हम ही हैं. हमही तुम्हारे यहां गार्ड हैं. हम ही तुम्हारी सड़कों पर ऑटो चलाते हैं और हम ही तुम्हारे यहां के बड़े-बड़े दफ़्तरों में बैठते हैं. बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं.

लेकिन फिर भी हम, हम ही रह जाते हैं और तुम दिल्ली कहलाते हो. दिल्ली मतलब देश. दिल्ली मतलब उन्नति, दिल्ली मतलब रोज़गार, दिल्ली मतलब सबकुछ. सबकुछ.

अगर तुम्हें लग रहा है...

प्यारे दिल्ली,

कैसे हो? दुआ तो यही है कि तुम ठीक रहो, स्वस्थ्य रहो और सुखी रहो. लेकिन दुःख है कि आजकल तुम सांस नहीं ले पा रहे हो. ये कितना बड़ा संकट है कि तुम्हारे यहां प्राणवायु भी साफ नहीं है. तुम साफ  हवा भी नहीं ले पा रहे हो. साफ पानी और सही खाने की बात तो छोड़ ही दो. तुम्हारी ऐसी स्थिति देखकर बहुत दुःख होता है. इतना कि मैं अपना दुःख भूल जाता हूं. तुम्हारे दुःख से ही दुखी हो जाता हूं. ऐसा लगता है कि तुम्हारे दुःख मेरे हैं. मुझी पर संकट आया है. मेरा ही दम घुट रहा है. मैं ही जहर अपने भीतर ले रहा हूं.

अरे, देखो न. इस बात में मैं इतना पैठ गया कि अपना परिचय ही देना भूल गया. सामान्य शिष्टाचार निभाए बिना बकर-बकर किए ही जा रहा हूं. मैं हूं इस देश का छोटा शहर. जैसे पटना, रांची, गया, प्रयागराज, दिलदयाल उपाधाय नगर या फिर कानपुर. कोई भी नाम दे दो. वैसे भी मेरे सौ से ज़्यादा नाम हैं. लेकिन पहचान एक ही है-छोटा शहर.

दिल्ली में प्रदूषण के चलते लोगों का जीना मुहाल है

तो दिल्ली, मैं इस देश का छोटा शहर हूं. वो शहर जो तुम्हारे जितना अमीर नहीं है. जिसे नियम-क़ायदे नहीं आते, फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी नहीं आती, जहां शासन नहीं बसता, जहां संसद और इंडिया गेट नहीं हैं. लेकिन जीवन मेरे यहां भी है. संकट हम भी झेलते हैं. मेहनत हम भी करते हैं. ईमनादारी से कहूं तो विकासकी गाड़ी को खींचने वाले बैल हम ही हैं. हमही तुम्हारे यहां गार्ड हैं. हम ही तुम्हारी सड़कों पर ऑटो चलाते हैं और हम ही तुम्हारे यहां के बड़े-बड़े दफ़्तरों में बैठते हैं. बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं.

लेकिन फिर भी हम, हम ही रह जाते हैं और तुम दिल्ली कहलाते हो. दिल्ली मतलब देश. दिल्ली मतलब उन्नति, दिल्ली मतलब रोज़गार, दिल्ली मतलब सबकुछ. सबकुछ.

अगर तुम्हें लग रहा है कि मैं बेवजह की शिकायतें कर रहा हूं तो तुम गलत  हो. एक तो हमारी इतनी हैसियत ही नहीं कि तुमसे मतलब दिल्ली से शिकायत करें. तुम्हें पलट कर जवाब दें. लेकिन क्या करूं? माहौल दमघोटू हो गया है. बिना बोले फटने का डर है और मैं अभी मरना नहीं चाहता क्यों अभी तो मैं क़ायदेआबाद भी नहीं हुआ हूं.  मुझे अभी जीना है, दिल्ली. इसलिए मैं बोलूंगा और तुम सुनोगे. ठीक है?

आजकल तुमने फिर से पूरे देश को सर पर उठा रखा है. फिर से इसलिए कह रहा हूं क्योंकि तुम तो तब भी पूरे देश में बवाल मचा देते हो जब तुम्हारे यहां पांच मिनट की बारिश होती है या मर चुकी यमुना में थोड़ा पानी आ जाता है. फ़िलाहल तो हालात ख़राब है.

मीडिया हो या सोशल मीडिया हर जगह यह ख़बर नुमाया है कि तुम्हारे यहां की हवा में ज़हर घुल गया है. अभी तो दिवाली आने ही वाली है.  डॉक्टर दिल्ली छोड़ने की सलाह दे रहे हैं. अदालतें सरकार को फटकार लगा रही हैं. सरकारें कुछ ना करते हुए भी कुछ करने का माहौल बना रहे हैं.  मैंने वो वीडियो भी देखा जिसमें जल बोर्ड के लोग गाड़ी में पानी भरकर पेड़ों के पत्ते पर छिड़क रहे हैं. मैंने सुना कि किसी पार्टी के किसी अध्यक्ष ने मुफ़्त में मास्क बांटे हैं? सही है क्या? अगर सही है तो बड़ा मज़ाक़िया है. है की नहीं तुम ही बताओ?

अच्छा एक बात बताओ. तुमने WHO की वो रिपोर्ट देखी जिसमें दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों के नाम दिए गए है? अगर नहीं देख पाए तो कोई बात नहीं. मैं इस मेल में अटैच करके भेज दूंगा.

इस लिस्ट में हमारे देश के कई शहरों के नाम हैं. पता है, सबसे ऊपर कौन सा शहर है? नाम जानोगे तो हिल जाओगे. क्योंकि वो शहर है तो हमारे देश का ही लेकिन तुम नहीं हो. मज़ाक़ नहीं कर रहा, सही कह रहा हूं. तुम इस लिस्ट में छठे नम्बर पर पर हो. पहले नम्बर पर मैं हूं.  नाम है-कानपुर. एक और बात, पहले और छठे के बीच में भी कई नाम हैं और वो सब भी मैं ही हूं.  लेकिन तुमने सुना है कि वहां इसके बचाव के लिए क्या हो रहा है?

नहीं सुना होगा. तुमने क्या, मैने ही नहीं सुना है। इससे भी मज़ेदार बात बताऊं? कानपुर, मुज़फ़्फ़रपुर, पटना या फिर गया को तो यही मालूम है कि दिल्ली को सांस लेने में कष्ट है. दिल्ली संकट में है. हम तो अपने संकट को जानते ही नहीं और तुम्हारे लिए परेशान हैं. दिन-रात दुआ करते हैं कि तुम्हारी दशा में सुधार हो.

और ये केवल इस मामले में नहीं हो रहा है. ज़्यादा ठंड पड़े तो तुम्हारी फ़िक्र. गरमी ज़्यादा हो तो तुम्हारी चिंता. हम भले कमर तक पानी में डूबे हों लेकिन अगर तुम और मुम्बई में सात मिनट भी बारिश हो जाए तो हम चिंतित. शायद हमारी क़िस्मत में ही चिंता करना लिखा है.

असल में तुमने खुद को देश जो मान लिया है. विकास का पालो हम उठाते हैं और विकास पैदा हो तो हक तुम जमाते हो. मेहनत हम करें, मेहनताने का एक बड़ा हिंसा तुम अपनी सुख-सुविधा पर उड़ाते हो. हमारे दिन तो आज भी अभाव में ही कट रहे हैं. तुमने अकबर-बीरबल का वो किस्सा सुना है ना जिसमें बीरबल पानी में खड़ा होता है और दूर राजमहल में जल रहे एक दीप को देखते हुए ठंड की रात पानी में बिता देता है. तुम हमारे लिए वही दीप हो गए हो! हम तुम्हें देखते हुए, तुम्हें सुनते हुए ही अपना जीवन जी रहे हैं. लेकिन ऐसा कबतक चेलेगा दिल्ली?

कबतक हम अपना दुःख भूलकर तुम्हारे लिए दुखी होते रहेंगे? कबतक ख़ुद बाढ़ में बहते हुए तुम्हारे घुटनों के पानी में डूबने की चिंता करें? कबतक अपने खेतों के ख़त्म होने का शोक मनाने की जगह तुम्हारी थाली में परोसे जाने वाले विषाक्त भोजने के लिए रोएँ? कब तक दिल्ली? कबतक?

सुनो तुम आपना ये मुगलिया ठाठ छोड़ो. देश में कहने मात्र को ही सही लेकिन लोकतंत्र है. सत्तर साल से है. एक दो दिन की बात नहीं. ये अलग बात है कि लोकतंत्र की गंगोत्री भी तुम ही हो और गंगा वहीं से निकलती है. वैसे, होना तो ये था कि ग्रामतंत्र से धारा निकलनी थी और तुम्हारे यहां पहुंचनी थी. लेकिन हुआ वही जो राम रची राखा.

ख़ैर, इनसब के बाद भी मैं आग्रह करना चाहूंगा कि तुम अपने आप में थोड़ा बदलाव करो. अपने को मिलनसार बनाओ. आओ, हमारे साथ भी बैठो. हमारी भी सुनो. हमारी व्यथा भी तो जानो. दिल्ली,खुद को देश न समझो. खुद को खुदा समझना अच्छी बात नहीं, प्यारे दिल्ली. बाकी अपना ख्याल रखना. इससंकट की घड़ी में हम सब शहर तुम्हारे साथ हैं लेकिन तुमसे अनुरोध है कि हमारे संकट में तुम भी शामिल हो. रिश्ता बराबरी का ही होना चाहिए. हम छोटे ना तुम बड़े. न तुम देश, ना हम. सब साथ मिले तो बना देश. याद रखना इसे.

ये भी पढ़ें -

कृत्रिम बारिश के नाम पर दिल्ली के जख्म पर नमक छिड़का जाएगा

ये भारतीय हैं सरकार साहिब, फाइन लगने से ही सुधरेंगे..

प्रदूषण के मामले में चीन से सबक ले दिल्ली


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲