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कृत्रिम बारिश के नाम पर दिल्ली के जख्म पर नमक छिड़का जाएगा

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 06 नवम्बर, 2018 02:17 PM
  • 06 नवम्बर, 2018 02:17 PM
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एक महीने से दिल्ली सांसों के साथ हवा में घुला जहर फेफडों में भर रही थी. धुंआ पंजाब-हरियाणा से आ रहा है, ये भी पता था. दिवाली के दो-तीन दिन बाद से जब हवा खुद साफ हो जाएगी तो ये नौटंकी किस लिए?

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ चुका है. प्रदूषण का लेवल 600 AQI को भी पार कर चुका है. हालात ऐसे हो गए हैं कि इसमें सांस लेना उतना खतरनाक है, जितना 50 सिगरेट रोज पीना. लेकिन अगर आपको लगता है कि सरकार को आपके सेहत की जरा भी परवाह नहीं तो आप गलत सोचते हैं. सरकार तो आपके बारे में इतना सोच रही है कि वह बादलों को वश में करने की तरकीबें निकाल रही है और उनसे अपनी मर्जी के मुताबिक बारिश भी करवाएगी. हां वो अलग बात है कि सरकार ना तो पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने पर रोक लगा पाएगी, ना ही कूड़ों के ढेर में लगी आग से उठते धुएं को रोकेगी और ना ही सड़कों पर दौड़ रही प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को हटाएगी. खबर है कि 10 नवंबर के बाद एक कृत्रिम बारिश कराई जाएगी, ताकि हवा में फैला प्रदूषण कम किया जा सके. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के एयरक्राफ्ट की मदद से सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) और आईआईटी कानपुर के रिसर्चर्स क्लाउड सीडिंग कर के कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रहे हैं.

खबर है कि 10 नवंबर के बाद एक कृत्रिम बारिश कराई जाएगी.

कृत्रिम बारिश नहीं, ये जख्मों पर नकम छिड़का जा रहा है

ऐसा नहीं है कि सरकार को पता नहीं था कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, लेकिन अभी तक इस प्रदूषण को रोकने के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए. पंजाब-हरियाणा में पराली जलती रही, धुआं उड़कर दिल्ली की आबोहवा खराब करता रहा और अभी 7 नवंबर को दिवाली पर भी हवा में जहर घुलेगा. ये हर साल होता है. लेकिन सरकार की तैयारी 10 नवंबर के बाद कृत्रिम बारिश कराने की है. अब इसे कृत्रिम बारिश की जगह जख्मों पर नमक छिड़कना क्यों नहीं कहें? दिवाली के बाद तो हवा का प्रदूषण धीरे-धीरे कम होने शुरू ही हो जाता है. सबसे अधिक दिक्कत...

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ चुका है. प्रदूषण का लेवल 600 AQI को भी पार कर चुका है. हालात ऐसे हो गए हैं कि इसमें सांस लेना उतना खतरनाक है, जितना 50 सिगरेट रोज पीना. लेकिन अगर आपको लगता है कि सरकार को आपके सेहत की जरा भी परवाह नहीं तो आप गलत सोचते हैं. सरकार तो आपके बारे में इतना सोच रही है कि वह बादलों को वश में करने की तरकीबें निकाल रही है और उनसे अपनी मर्जी के मुताबिक बारिश भी करवाएगी. हां वो अलग बात है कि सरकार ना तो पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने पर रोक लगा पाएगी, ना ही कूड़ों के ढेर में लगी आग से उठते धुएं को रोकेगी और ना ही सड़कों पर दौड़ रही प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को हटाएगी. खबर है कि 10 नवंबर के बाद एक कृत्रिम बारिश कराई जाएगी, ताकि हवा में फैला प्रदूषण कम किया जा सके. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के एयरक्राफ्ट की मदद से सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) और आईआईटी कानपुर के रिसर्चर्स क्लाउड सीडिंग कर के कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रहे हैं.

खबर है कि 10 नवंबर के बाद एक कृत्रिम बारिश कराई जाएगी.

कृत्रिम बारिश नहीं, ये जख्मों पर नकम छिड़का जा रहा है

ऐसा नहीं है कि सरकार को पता नहीं था कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, लेकिन अभी तक इस प्रदूषण को रोकने के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए. पंजाब-हरियाणा में पराली जलती रही, धुआं उड़कर दिल्ली की आबोहवा खराब करता रहा और अभी 7 नवंबर को दिवाली पर भी हवा में जहर घुलेगा. ये हर साल होता है. लेकिन सरकार की तैयारी 10 नवंबर के बाद कृत्रिम बारिश कराने की है. अब इसे कृत्रिम बारिश की जगह जख्मों पर नमक छिड़कना क्यों नहीं कहें? दिवाली के बाद तो हवा का प्रदूषण धीरे-धीरे कम होने शुरू ही हो जाता है. सबसे अधिक दिक्कत दिवाली के आसपास होती है, लेकिन सरकार उसी दौरान बारिश नहीं करा पा रही है.

कृत्रिम बारिश है समस्या का अस्थाई समाधान

भले ही सरकार कृत्रिम बारिश कराकर अपनी पीठ थपथपाने का सोच रही है, लेकिन ये समस्या का सिर्फ एक अस्थाई समाधान है. दिल्ली में फैला प्रदूषण थोड़ी सी बारिश से साफ तो हो जाएगा, लेकिन उस प्रदूषण का क्या जो दोबारा हवा में फैल जाएगा. अभी जरूरत है हवा में प्रदूषण फैलने से रोकने की, ना कि हवा प्रदूषित होने के बाद कृत्रिम बारिश करवाने की. लगता है सरकार ये बात नहीं समझ पा रही कि 'इलाज से बेहतर बचाव' है.

क्या होती है कृत्रिम बारिश?

कृत्रिम बारिश के लिए बादलों की भौतिक अवस्था को कृत्रिम तरीके से बदलाव किया जाता है, जिसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. इसके लिए जिस इलाके में बारिश करानी होती है, वहां पर कैमिकल्स का इस्तेमाल करते हुए वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ भेजा जाता है, जिससे वो बारिश के बादल बना सकें. इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नकम और यूरिया का इस्तेमाल होता है. ये रसायन हवा में फैले जलवाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं. इसके बाद इंसानों द्वारा बनाए गए बादल या फिर पहले से आसमान में फैले बादलों पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिड़काव किया जाता है. इसकी वजह से बादलों को घनत्व बढ़ने लसगता है और पूरा बादल बर्फीले स्वरूप में आने लगता है, जो हवा में लटका नहीं रह पाता और बारिश के रूप में बरसने लगता है. बादलों पर रसायनों का छिड़काव करने के लिए रॉकेट या फिर एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल होता है.

दिल्ली में कृत्रिम बारिश 10 नवंबर के बाद कराने का फैसला लिया गया है, क्योंकि मौसम विभाग का कहना है कि इससे पहले बारिश कराने में मुश्किल होगी. दरअसल, दिल्ली में पहले से ही बने हुए बादलों से बारिश कराने की योजना बनाई जा रही है, ना कि बादलों को बनाकर उनसे बारिश कराई जाएगी. ऐसे में, बारिश तभी कराई जा सकती है जब सही मात्रा में बादल मौजूद हों और उनमें नमी भी सही हो. आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के अनुसार मॉनसून के दौरान बारिश कराना आसान होता है, क्योंकि बादलों में काफी नमी होती है, लेकिन सर्दियों में बादलों में नमी काफी कम होती है, इसलिए बारिश कराना काफी मुश्किल होता है. इस प्रोजेक्ट को सीपीसीबी की मंजूरी मिल चुकी है.

चीन में कई सालों से कृत्रिम बारिश करवाई जा रही है. अमेरिका, इजराइल, साउथ अफ्रीका और जर्मनी भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं. भारत में भी आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भीषण सूखा पड़ने पर इस तकनीक का सहारा लिया जा चुका है. सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश अच्छा विकल्प है, लेकिन कृत्रिम बारिश से प्रदूषण को कम करने की योजना भले ही कारगर हो, लेकिन स्थाई तो बिल्कुल नहीं है. सरकार को जरूरत है कि बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाई जाए, पराली और कूड़ा जलने से रोका जाए, ना कि प्रदूषण फैल जाने पर उसे दूर करने के लिए कृत्रिम बारिश कराई जाए. ये तो वही बात हो गई कि जो गुटखा बेचता है, वही कैंसर के अस्पताल खोलकर लोगों को इलाज देने लगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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