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खबरदार, जो मेरे देश के बारे में कुछ भी गलत कहा तो !

    • रीता गुप्ता
    • Updated: 14 नवम्बर, 2017 06:52 PM
  • 14 नवम्बर, 2017 06:52 PM
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भारतीयों का विदेश में रहकर भारत को कोसना एक बहुत आम सी बात है जिसे हम प्रायः देखते चले आ रहे हैं. ऐसे में सच्ची देश सेवा ये है कि हम अपने देश में रहें और उन बुराइयों को दूर करने का प्रयास करें.

एक जोक खूब चलता है,'शादी कर लो आखिर हर चीज के लिए सरकार को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है'. ये एक आम सी मानसिकता है, घर में कुछ भी गलती हो जाये पति-पत्नी एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहराते हैं. ठीक वैसे ही बाहर कुछ गलत होता है तो हम सरकार को कोसते हैं. ठीक है ना दोनों हमारे अपने ही हैं, इतना तो हक बनता ही है कि हम इन्हें ठोकपीट – रोकटोक कर सही रास्तें पर रखें अन्यथा शायद ये हमारी गिरफ्त से दूर हो जाएं. चूंकि हम छोटी छोटी बातों पर घर तो नहीं छोड़ रहें, बल्कि उसकी भलाई के लिए ही सदस्य एक दूसरे से उलझते भी हैं.

इसी तरह हमारी सड़कें ख़राब हैं या स्टेशन पर गंदगी का अम्बार है, तो हम इस पर बातें करतें हैं, सिस्टम को कोसते हैं. कुछ जागरूक लोग सही ऑथोरिटी तक शिकायत भी करते हैं. सरकार को कोसते हैं, अगले चुनाव में मजा चखाने की बात भी बोलते हैं. 'इस देश का कुछ नहीं हो सकता'. ऐसे डायलाग भी बोलते हैं. इस बात में वैसा ही एक प्रेम छुपा होता है जो एक पिता अपने बच्चे को गणित में कम नंबर लेन पर बोलता दिखता है 'क्या करोगे तुम, मुझे चिंता हो रही है'.

किसी भारतीय का विदेश में रहकर भारत की बुराई करना खुद को धोखा देना है

चूंकि हम सब इसी सिस्टम में रहते हुए ही इसे कोस रहे हैं, तो कहीं ना कहीं इसको सुधारने की भी नीयत रखते हैं. सो हम सब एक दूसरे की इन बातों को सुन भी लेते हैं और गुन भी लेते हैं कि हम क्या करें, हमारा क्या योगदान हो कि ये समस्या और बढ़े नहीं. पर बुरा उन लोगो के मुंह से सुन कर लगता है जो देश छोड़ परदेस में जा बसें हैं.

सच मुझे तो बहुत ही बुरा लगता है जब कोई अप्रवासी भारतीय कहता है 'इंडिया का कुछ नहीं हो सकता है'. मेरे तो तनबदन में मानों आग लग जाती है जब अपने किसी मित्र-बंधू या रिश्तेदार से ये बात सुनती हूं, झगड़ पड़ती हूं कि,' तुम्हें...

एक जोक खूब चलता है,'शादी कर लो आखिर हर चीज के लिए सरकार को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है'. ये एक आम सी मानसिकता है, घर में कुछ भी गलती हो जाये पति-पत्नी एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहराते हैं. ठीक वैसे ही बाहर कुछ गलत होता है तो हम सरकार को कोसते हैं. ठीक है ना दोनों हमारे अपने ही हैं, इतना तो हक बनता ही है कि हम इन्हें ठोकपीट – रोकटोक कर सही रास्तें पर रखें अन्यथा शायद ये हमारी गिरफ्त से दूर हो जाएं. चूंकि हम छोटी छोटी बातों पर घर तो नहीं छोड़ रहें, बल्कि उसकी भलाई के लिए ही सदस्य एक दूसरे से उलझते भी हैं.

इसी तरह हमारी सड़कें ख़राब हैं या स्टेशन पर गंदगी का अम्बार है, तो हम इस पर बातें करतें हैं, सिस्टम को कोसते हैं. कुछ जागरूक लोग सही ऑथोरिटी तक शिकायत भी करते हैं. सरकार को कोसते हैं, अगले चुनाव में मजा चखाने की बात भी बोलते हैं. 'इस देश का कुछ नहीं हो सकता'. ऐसे डायलाग भी बोलते हैं. इस बात में वैसा ही एक प्रेम छुपा होता है जो एक पिता अपने बच्चे को गणित में कम नंबर लेन पर बोलता दिखता है 'क्या करोगे तुम, मुझे चिंता हो रही है'.

किसी भारतीय का विदेश में रहकर भारत की बुराई करना खुद को धोखा देना है

चूंकि हम सब इसी सिस्टम में रहते हुए ही इसे कोस रहे हैं, तो कहीं ना कहीं इसको सुधारने की भी नीयत रखते हैं. सो हम सब एक दूसरे की इन बातों को सुन भी लेते हैं और गुन भी लेते हैं कि हम क्या करें, हमारा क्या योगदान हो कि ये समस्या और बढ़े नहीं. पर बुरा उन लोगो के मुंह से सुन कर लगता है जो देश छोड़ परदेस में जा बसें हैं.

सच मुझे तो बहुत ही बुरा लगता है जब कोई अप्रवासी भारतीय कहता है 'इंडिया का कुछ नहीं हो सकता है'. मेरे तो तनबदन में मानों आग लग जाती है जब अपने किसी मित्र-बंधू या रिश्तेदार से ये बात सुनती हूं, झगड़ पड़ती हूं कि,' तुम्हें कोई हक नहीं मेरे देश को गाली देने का. यहां रहो, यहां के सिस्टम को ठीक करो और तब बोलो. भला है बुरा है जैसा भी है, ये मेरा देश है और मैं तथाकथित विदेशियों के मुख से अपने देश की कोई बुराई सुनना पसंद नहीं करूंगी'.

जरा सोचिये बीस-पचीस वर्ष यहां रह कर जब आप हाथ-पांव मार किसी तरह एक विकसित देश पहुंच जाते हैं तो यहां की बुराइयां आपको स्पष्ट हो उठती हैं. ये सच बात है, मैंने देखा है जो अपने किसी टैलेंट के बल पर जातें हैं उनके मन में भारत के प्रति सम्मान भी अक्षुण रहता है. ऐसे बहुत से परिपक्व लोग भी होते हैं, जब वे देश में आते हैं तो यहीं के जैसे बन रहते हैं, मानों कभी कहीं गए ही नहीं.

देश में रहने वाले अपने रिश्तेदारों से भी बड़ा ही सहज व्यवहार रखतें हैं. पर इससे इतर येन केन प्रकारेण विदेश पहुंचने वाले को जैसे ही वहां खड़े होने की जगह मिलती है उनका तुलनात्मक अध्ययन गति पकड़ लेता है.'उफ़! वहां भारत में जहां देखो भीड़ ही भीड़ दिखती है, लोगों को मानों बच्चे पैदा करने के सिवा कोई काम नहीं, मेरी एक सद्यः विदेशी हुई सहेली ने कहा तो मैंने भी जड़ ही दिया, 'अभी कल तक यहां तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा थी, तुम्हारे जाने के बाद यहां भी कुछ भीड़ कम हो ही गयी है'. तिलमिला गयी मेरी सहेली, 'जो सच है वो सच है'.

बात सही ही है, पर पता नहीं क्यों ये बात मुझे उसके मुख से गाली सरीखी ही लगी. रहेंगे विदेश में पर यहां कि सारी नकारात्मक बातों की लेखा-जोखा रखेंगे. फेसबुक पर खूब यहां की डर्टी पॉलिटिक्स की चर्चा करेंगे, रीती रिवाजों की मजाक उड़ायेंगे, चुनचुन कर यहां  हुए अपराधों को अपनी समझ से उंगली करेंगे. ठीक है ये सभी बुराइयां हैं मेरे देश में परन्तु तुम बोलो तो बर्दास्त नहीं होता है मिस्टर NRI. क्यों यहां रहने वालें अपने मित्रों- रिश्तेदारों को ये महसूस करने पर मजबूर करते हो कि तुम स्वर्गवासी हो और वे नरक. तुम अपनी सुनाओ न, अपनी बताओ न. अपनी बीती जिन्दगी की जो तुमने देश में बिताई थीं उसकी नकारात्मक चर्चा कर आखिर क्या जतलाना चाहते हो?

मिस्टर NRI, अब यहां भी समय बहुत बदला है, जिससे तुम शायद अनभिज्ञ हो. सौ बात की एक बात, इन अप्रवासियों को कहने मन होता है कि अपनी दोनों टांगें वहीं जमाने की कोशिश करो ना जहां गए हो. क्यों एक टांग का इस्तेमाल फटे में पैर घुसाने के लिए करते हो. यहां की हवा खराब, यहांका खाना अनहेल्थी, रोड खराब, डॉक्टर खराब.

क्या यही बताने के लिए तुमलोग हो. खराब  है तो ठीक करो ना, जब लायक हुए तो देश छोड़ दिया तो फिर ना बोलो ना नालायकों. जरा से लायक क्या हुए तुमने उचक कर दूसरे देश में जड़ें जमानी शुरू कर दिया. यहां तुम्हारे पीछे तुम्हारे बूढ़े होते मां-बाप, नालायक बेरोजगार भाई, जैसे जी रहें जीने दो. अपने जन्मदाता देश को गाली देने वाले मिस्टर NRIs दरअसल देखा जाए तो तुम ये हक खो चुके हो. और हमारे लिए तुम्हारा स्टेटस NOT REQIRED IN INDIA ही है.

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