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मिलिए हिंदुस्तान के सबसे नए धर्म से...

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 09 फरवरी, 2018 02:59 PM
  • 09 फरवरी, 2018 02:59 PM
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भारत में अब एक नए धर्म के लोग तेजी से बढ़ रहे हैं. खुद को सबसे अलग समझने वाले ये लोग अब जल्द ही आरक्षण की मांग शुरू कर सकते हैं...

फोन का रिसीवर उठाइए, खाना ऑर्डर करने के लिए कोई नंबर डायल कीजिए और बस आपका स्वागत एक ऐसी आवाज़ करती है जिसका सबसे पहला सवाल ये होता है कि 'Good eve/afternoon, How may i help you'. इस सवाल का जवाब अगर आप 'मुझे दो पनीर पिज्जा चाहिए' से देते हैं तो आप खुद ब खुद अपने आप ही छोटा महसूस करते हैं. कहीं न कहीं मन में ये बात आती है कि यार मुझे इंग्लिश नहीं आती.

हिंदुस्तान में एक ऐसा धर्म (जी हां, जाति नहीं धर्म) उभर कर आ रहा है जो तेजी से लोगों को अपनी तरफ खींच रहा है. अभी इसकी पहुंच ज्यादातर मेट्रो शहरों में ही है, लेकिन छोटे शहरों के लोग भी जल्दी ही इसकी पकड़ में आ रहे हैं.

ये बिहारी, गुजराती, बंगाली, मराठी, पंजाबी, मद्रासी नहीं ये अंग्रेजी भाषी लोग हैं. नई भाषा के साथ-साथ इनके रहन सहन का तरीका भी अलग है. ये वो लोग हैं जो सिर्फ ऑफिस, स्कूल, कॉलेज में ही नहीं बल्कि खाने की टेबल पर भी इंग्लिश बोलते हैं. रोमांस भी इंग्लिश में ही होता है.

सबसे ऊपर है इस धर्म के लोग...

ये मेरी राय नहीं है, ऐसा अधिकतर इंग्लिश भाषी लोग समझते हैं. अगर मोटा-मोटा आंकड़ा लिया जाए तो आधे से ज्यादा अंग्रेजी भाषी लोग एक पूरा वाक्य भी हिंदी में ठीक से नहीं बोल पाते. ये वो लोग हैं जिन्हें हिंदी पढ़ने में तो अच्छी खासी दिक्कत होती है, लिखने का तो भूल ही जाइए.

इन लोगों को LS और Tacky बोलते काफी बार सुना गया है. इन लोगों को भारतीय भाषाएं बोलना थोड़ा अजीब लगता है. इस धर्म के बूढ़े तो फिर भी किसी भारतीय भाषा का प्रयोग कर लेते हैं, लेकिन नई पीढ़ी अगर बाइलिंगुअल होती है तो भी वो अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश जैसी किसी विदेशी भाषा में पारंगत होते हैं. दरअसल, स्कूलों में हिंदी भले ही वैकल्पिक हो, लेकिन विदेशी भाषाएं अनिवार्य हो गई...

फोन का रिसीवर उठाइए, खाना ऑर्डर करने के लिए कोई नंबर डायल कीजिए और बस आपका स्वागत एक ऐसी आवाज़ करती है जिसका सबसे पहला सवाल ये होता है कि 'Good eve/afternoon, How may i help you'. इस सवाल का जवाब अगर आप 'मुझे दो पनीर पिज्जा चाहिए' से देते हैं तो आप खुद ब खुद अपने आप ही छोटा महसूस करते हैं. कहीं न कहीं मन में ये बात आती है कि यार मुझे इंग्लिश नहीं आती.

हिंदुस्तान में एक ऐसा धर्म (जी हां, जाति नहीं धर्म) उभर कर आ रहा है जो तेजी से लोगों को अपनी तरफ खींच रहा है. अभी इसकी पहुंच ज्यादातर मेट्रो शहरों में ही है, लेकिन छोटे शहरों के लोग भी जल्दी ही इसकी पकड़ में आ रहे हैं.

ये बिहारी, गुजराती, बंगाली, मराठी, पंजाबी, मद्रासी नहीं ये अंग्रेजी भाषी लोग हैं. नई भाषा के साथ-साथ इनके रहन सहन का तरीका भी अलग है. ये वो लोग हैं जो सिर्फ ऑफिस, स्कूल, कॉलेज में ही नहीं बल्कि खाने की टेबल पर भी इंग्लिश बोलते हैं. रोमांस भी इंग्लिश में ही होता है.

सबसे ऊपर है इस धर्म के लोग...

ये मेरी राय नहीं है, ऐसा अधिकतर इंग्लिश भाषी लोग समझते हैं. अगर मोटा-मोटा आंकड़ा लिया जाए तो आधे से ज्यादा अंग्रेजी भाषी लोग एक पूरा वाक्य भी हिंदी में ठीक से नहीं बोल पाते. ये वो लोग हैं जिन्हें हिंदी पढ़ने में तो अच्छी खासी दिक्कत होती है, लिखने का तो भूल ही जाइए.

इन लोगों को LS और Tacky बोलते काफी बार सुना गया है. इन लोगों को भारतीय भाषाएं बोलना थोड़ा अजीब लगता है. इस धर्म के बूढ़े तो फिर भी किसी भारतीय भाषा का प्रयोग कर लेते हैं, लेकिन नई पीढ़ी अगर बाइलिंगुअल होती है तो भी वो अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश जैसी किसी विदेशी भाषा में पारंगत होते हैं. दरअसल, स्कूलों में हिंदी भले ही वैकल्पिक हो, लेकिन विदेशी भाषाएं अनिवार्य हो गई हैं.

 

इनकी अजीब ही मान्यताएं हैं. इनके लिए सिगरेट-शराब प्रसाद की तरह है. इन्हें सोशल मीडिया स्टेटस भी अंग्रेजी में डालना होता है. शशी थरूर इनके भगवान हैं, इन्हें चुटकुलों से ज्यादा सार्केज्म (व्यंग्य) में मजा आता है. ये अभी सिर्फ बड़े शहरों में ही पाए जाते हैं. इन्हें शहरों के कुछ खास इलाकों में ही देखा जा सकता है. जैसे दिल्ली में साउथ डेल्ही (दिल्ली नहीं डेल्ही), गुड़गांव, नोएडा में सेक्टर 17-18 , फिल्म सिटी बस, मुंबई में साउथ बॉम्बे, कोलाबा की तरफ मिलेंगे, ऐसे ही पुणे, बेंगलुरू, कोलकता, चेन्नई में भी होंगे.

ये धर्म भजन नहीं सुनता इन्हें अलग तरह के गाने चाहिए होते हैं. Lean on, Shape of you, Despecito, ptown funk सुनने वाले ये लोग कभी ये समझ ही नहीं पाएंगे कि दलेर महंदी के 'ओ हो हो हो' में कितना दम था. इनका धर्म है शुक्रवार रात को पार्टी करना. इन्हें सोमवार से शुक्रवार तक दिन में ज्यादा देखा नहीं जाता और यकीन मानिए शहरों में लगने वाले ट्रैफिक जैम का 80% हिस्सा इनका ही होता है. अब तो ये डर लगने लगा है कि कहीं ये लोग अपने लिए आरक्षण की मांग न करने लगें. वैसे सभी बड़ी कंपनियों में नौकरी सिर्फ अंग्रेजीभाषी लोगों के लिए ही आरक्षित है. सिर्फ कुछ ही ऐसी कंपनियां हैं जहां हिंदी भाषी लोगों को भी नौकरी मिल जाती है.

ये धर्म वैसे तो हाई-क्लास लोगों के लिए है, लेकिन तेजी से अब मध्यम वर्गीय परिवारों को अपनी ओर खींच रहा है. उम्मीद है कि इसका हल जल्दी ही निकाला जा सकेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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