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ऑक्सफोर्ड में 'नारी शक्ति', जीत नहीं संघर्ष की कहानी है

    • आईचौक
    • Updated: 29 जनवरी, 2019 05:13 PM
  • 29 जनवरी, 2019 05:13 PM
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ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 2018 का अपना सबसे अहम हिंदी शब्द चुन लिया है. ये है नारी शक्ति. पर शायद इस शब्द की परिभाषा के चक्कर में इसका मतलब समझना भूल गए हैं.

'नारी शक्ति' शब्द के भारत में कई मायने हैं. कुछ के लिए ये एक बहुत गंभीर विषय है, कुछ के लिए हिम्मत, कुछ के लिए सिर्फ मजाक, लेकिन नारी शक्ति का परिचय सभी को पता है. अपने-अपने तरीके से हमेशा हम नारी शक्ति की परिभाषा बदलते रहते हैं या यूं कहें कि इसको लेकर बड़े सिलेक्टिव हो जाते हैं. किसी भी कारण से हो, लेकिन हमारे जीवन में मौजूद नारियों की शक्ति को पहचानने में चूक जाते हैं. पर जब भी देश में महिलाओं को लेकर कुछ बड़े फैसले होते हैं, कुछ बड़े संघर्ष होते हैं तब इस शब्द की बात जरूर होती है.

कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ है. इस बार ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी (इंडिया) ने 'नारी शक्ति' को अपना हिंदी वर्ड ऑफ द इयर (Hindi word of the year) बनाया है. हर साल ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी साल का एक सर्वोच्च हिंदी शब्द चुनती है. इस बार जगह मिली है नारी शक्ति को. इसके पीछे भी एक कहानी है. हर साल उसी शब्द को जगह मिलती है जो पूरे साल हिंदुस्तान पर छाया रहा, जिसपर बहुत चर्चा हुई और राजनीति से लेकर निजी जिंदगी तक जिसकी वजह से बदलाव आए.

पर नारी शक्ति ही क्यों?

2018 में इस शब्द ने कई विवादों को भी जन्म दिया और नए नियमों को भी. महिलाओं की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कई फैसले लिए गए. न सिर्फ समाज में, बल्कि सरकार में नियमों में और धार्मिक अनुष्ठानों में भी बदलाव आया. ये सब कुछ महिला सशक्तिकरण से जुड़ा हुआ है. इस शब्द को चुनने में हिंदी भाषा के कई दिग्गजों की मदद ली गई है. हर साल एक खास पैनल शब्द का चुनाव करने में मदद करता है. इस बार जानी मानी लेखिका नमिता गोखले, रणधीर ठाकुर, कृतिका अग्रवाल और सौरभ द्विवेदी शामिल थे.

नारी शक्ति को 2018 का सबसे अहम शब्द तो बनना ही था

इस शब्द को चुनने के अहम दो कारण थे, पहला सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक मामले में...

'नारी शक्ति' शब्द के भारत में कई मायने हैं. कुछ के लिए ये एक बहुत गंभीर विषय है, कुछ के लिए हिम्मत, कुछ के लिए सिर्फ मजाक, लेकिन नारी शक्ति का परिचय सभी को पता है. अपने-अपने तरीके से हमेशा हम नारी शक्ति की परिभाषा बदलते रहते हैं या यूं कहें कि इसको लेकर बड़े सिलेक्टिव हो जाते हैं. किसी भी कारण से हो, लेकिन हमारे जीवन में मौजूद नारियों की शक्ति को पहचानने में चूक जाते हैं. पर जब भी देश में महिलाओं को लेकर कुछ बड़े फैसले होते हैं, कुछ बड़े संघर्ष होते हैं तब इस शब्द की बात जरूर होती है.

कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ है. इस बार ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी (इंडिया) ने 'नारी शक्ति' को अपना हिंदी वर्ड ऑफ द इयर (Hindi word of the year) बनाया है. हर साल ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी साल का एक सर्वोच्च हिंदी शब्द चुनती है. इस बार जगह मिली है नारी शक्ति को. इसके पीछे भी एक कहानी है. हर साल उसी शब्द को जगह मिलती है जो पूरे साल हिंदुस्तान पर छाया रहा, जिसपर बहुत चर्चा हुई और राजनीति से लेकर निजी जिंदगी तक जिसकी वजह से बदलाव आए.

पर नारी शक्ति ही क्यों?

2018 में इस शब्द ने कई विवादों को भी जन्म दिया और नए नियमों को भी. महिलाओं की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कई फैसले लिए गए. न सिर्फ समाज में, बल्कि सरकार में नियमों में और धार्मिक अनुष्ठानों में भी बदलाव आया. ये सब कुछ महिला सशक्तिकरण से जुड़ा हुआ है. इस शब्द को चुनने में हिंदी भाषा के कई दिग्गजों की मदद ली गई है. हर साल एक खास पैनल शब्द का चुनाव करने में मदद करता है. इस बार जानी मानी लेखिका नमिता गोखले, रणधीर ठाकुर, कृतिका अग्रवाल और सौरभ द्विवेदी शामिल थे.

नारी शक्ति को 2018 का सबसे अहम शब्द तो बनना ही था

इस शब्द को चुनने के अहम दो कारण थे, पहला सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक मामले में बड़ा फैसला और दूसरा ऐतिहासिक फैसला लेना जहां 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को केरल के सबरीमला में प्रार्थना करने की स्वीकृति दी गई थी. यही नहीं इसके अलावा भी कई ऐसे फैसले लिए गए थे पिछले साल जो महिलाओं की स्थिती बेहतर करने के लिए लिए गए थे. इसमें महिलाओं को डिफेंस फोर्स में कॉम्बैट रोल की अनुमति मिलना है और इसके पिछले साल लिया गया फैसला जिसमें हज जाने वाली महिलाओं को बिना पुरुष गार्डियन के हज जाने की इजाजत देना हो. ये सब कुछ महिला सशक्तिकरण से ही जुड़ा हुआ है.

Oxford Dictionaries की तरफ से इस शब्द को चुनने का अहम कारण ही यही था कि इस साल कई हिंदी भाषी महिलाओं को देश में नई जगह मिली है. ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का Hindi Word of the Year इस साल के जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल (JLF) में घोषित किया गया था.

पर ये जीत नहीं संघर्ष की निशानी है..

नारी शक्ति शब्द को ऑक्सफोर्ड हिंदी वर्ड ऑफ द इयर तो बना दिया, लेकिन अगर किसी को लग रहा हो कि ये नारी शक्ति की जीत है तो अभी जंग बहुत लंबी है. ये जंग आसानी से खत्म नहीं होगी. ये शब्द चुना ही इसलिए गया क्योंकि 2018 में महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया है. वो संघर्ष जो हर परिस्थिति‍ में टिका रहा. तीन तलाक मामले की बात हो या फिर सबरीमला में कनकदुर्गा और बिंदू के जान पर खेलकर दर्शन करने की बात. तीन तलाक अभी भी हो रहे हैं, कनकदुर्गा और बिंदू अभी भी परेशान हैं उन्हें उनके घर वालों ने भी स्वीकार नहीं किया. साथ ही, महिलाओं के कॉम्बैट रोल में जाने को लेकर आर्मी चीफ बिपिन रावत बयान दे ही चुके हैं कि क्या-क्या दिक्कतें हैं. #Metoo मामले में तो बात की शुरुआत न ही की जाए तो अच्छा है. न जाने कितने लोगों के नाम सामने आए, लेकिन नतीजा अभी भी निल बटे सन्नाटा.

इस सबसे यही साबित होता है कि जहां तक फैसलों की बात है तो वो ले लिए गए, लेकिन अभी भी बात वहीं की वहीं है. अभी भी महिलाओं का स्ट्रगल वैसा ही है जैसा पहले था. नारी शक्ति की परिभाषा तो भले ही बताई गई हो, लेकिन उसका संघर्ष शायद डिक्शनरी में नहीं दिखाया जा सकता है. वो संघर्ष जो अभी भी वैसा का वैसा ही है.

ये शब्द अपने आप में बहुत खास है, लेकिन हिंदुस्तान में मजाक में लिया जाता है. लोग महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए इसे ताने के रूप में इस्तेमाल करते हैं. कई बार तो किटी पार्टी को भी नारी शक्ति से जोड़कर मजाक बनाया जाता है और शायद यही कारण है कि इतने बड़े फैसले होने के बाद भी महिलाओं को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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