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Breaking : मिस यूनिवर्स तो चुन ली गई !

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 17 मई, 2017 05:04 PM
  • 17 मई, 2017 05:04 PM
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27 साल की ये मुस्लिम ब्यूटी क्वीन इस साल मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के स्विमिंग सूट राउंड में बाकी प्रतियोगियों के साथ स्टेज पर तो आएंगी लेकिन बिकनी पहनकर नहीं बल्कि काफ्तान पहनकर.

एक महिला को ब्यूटी क्वीन बनने के लिए काफी चीजों से गुजरना पड़ता है. तमाम तरह की ट्रेनिंग के साथ-साथ हर तरीके के कपड़े पहनना तक. यहां तक कि बिकनी या फिर स्विमिंग सूट भी. मकसद सिर्फ एक, खूबसूरती का प्रदर्शन. कहते हैं इन सारे पायदानों से गुजरकर ही एक महिला किसी ब्यूटी पीजेंट का ताज अपने माथे पर रखने लायक बनती है. लेकिन एक मुस्लिम महिला ने ब्यूटी पीजेंट की इसी परंपरा को न सिर्फ ललकारा बल्कि कड़ी चुनौती देते हुए ये बता दिया कि खूबसूरती दिखाने के लिए अंग प्रदर्शन जरूरी नहीं होता.

मुना जुमा, मिस यूनिवर्स ग्रेट ब्रिटेन प्रतियोगिता की फाइनलिस्ट

लंदन में रहने वाली एक मुस्लिम महिला मुना जुमा मिस यूनिवर्स ग्रेट ब्रिटेन प्रतियोगिता की 40 फाइनलिस्ट्स में से एक हैं. उन्होंने इस प्रतियोगिता में बिकनी नहीं पहनकर भाग लेने का अधिकार जीत लिया है. 27 साल की मुना इस साल मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के स्विमिंग सूट राउंड में बाकी प्रतियोगियों के साथ स्टेज पर तो आएंगी लेकिन बिकनी पहनकर नहीं बल्कि काफ्तान पहनकर.

मुना ने दो साल पहले मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मन बनाया, लेकिन जब जवाब में जब हिस्सा लेने के लिए पत्र आया तो उनके हाथ-पांव ठंडे पड़ गए. क्योंकि प्रतियोगिता के नियम के मुताबिक उन्हें उसमें स्विम सूट राउंड में बिकनी या स्विम सूट पहनकर चलना होता. मुना को लगा कि इतने लोगों के सामने बिकनी पहनकर खड़ा होने उनके लिए काफी असहज होगा. क्योंकि इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, और बजाए ऑर्गेनाइजर्स को चुनौती देने और अपनी धर्मिक मान्यताओं से समझौता करने के, मुना ने अपना नाम वापस लेना ही बेहतर समझा.

एक महिला को ब्यूटी क्वीन बनने के लिए काफी चीजों से गुजरना पड़ता है. तमाम तरह की ट्रेनिंग के साथ-साथ हर तरीके के कपड़े पहनना तक. यहां तक कि बिकनी या फिर स्विमिंग सूट भी. मकसद सिर्फ एक, खूबसूरती का प्रदर्शन. कहते हैं इन सारे पायदानों से गुजरकर ही एक महिला किसी ब्यूटी पीजेंट का ताज अपने माथे पर रखने लायक बनती है. लेकिन एक मुस्लिम महिला ने ब्यूटी पीजेंट की इसी परंपरा को न सिर्फ ललकारा बल्कि कड़ी चुनौती देते हुए ये बता दिया कि खूबसूरती दिखाने के लिए अंग प्रदर्शन जरूरी नहीं होता.

मुना जुमा, मिस यूनिवर्स ग्रेट ब्रिटेन प्रतियोगिता की फाइनलिस्ट

लंदन में रहने वाली एक मुस्लिम महिला मुना जुमा मिस यूनिवर्स ग्रेट ब्रिटेन प्रतियोगिता की 40 फाइनलिस्ट्स में से एक हैं. उन्होंने इस प्रतियोगिता में बिकनी नहीं पहनकर भाग लेने का अधिकार जीत लिया है. 27 साल की मुना इस साल मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के स्विमिंग सूट राउंड में बाकी प्रतियोगियों के साथ स्टेज पर तो आएंगी लेकिन बिकनी पहनकर नहीं बल्कि काफ्तान पहनकर.

मुना ने दो साल पहले मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मन बनाया, लेकिन जब जवाब में जब हिस्सा लेने के लिए पत्र आया तो उनके हाथ-पांव ठंडे पड़ गए. क्योंकि प्रतियोगिता के नियम के मुताबिक उन्हें उसमें स्विम सूट राउंड में बिकनी या स्विम सूट पहनकर चलना होता. मुना को लगा कि इतने लोगों के सामने बिकनी पहनकर खड़ा होने उनके लिए काफी असहज होगा. क्योंकि इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, और बजाए ऑर्गेनाइजर्स को चुनौती देने और अपनी धर्मिक मान्यताओं से समझौता करने के, मुना ने अपना नाम वापस लेना ही बेहतर समझा.

लेकिन यूके फाइनल्स में बाकी प्रतियोगियों को कड़ी टक्कर देने के बाद, मुना ने दोबारा भाग लेने का सोचा और काफ्तान पहनने का अधिकार प्राप्त करने के लिए एक कैंपेन की शुरुआत की और आयोजकों से बात की. और आखिरकार उन्हें ये अधिकार मिल गया कि वो बिकनी पहनने के लिए बाध्य नहीं हैं.

मुना का कहना है 'मैं बीच पर भी बिकनी नहीं पहनती, तो मैं किसी प्रतियोगिता में पॉइंट्स बनाने के लिए बिकनी क्यों पहनूं'

मुना एक स्टार्ट-अप कंपनी क्लाउडलेस रिसर्च की को-फाउंडर हैं. यह संस्था पूर्वी अफ्रीका में बच्चों के प्रति अपराध और गैरकानूनी प्रवास पर काम करती है.

80 से ज्यादा देशों से महिलाएं लंदन में होने वाली इस मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भाग लेती हैं और इसकी विजेता सीधे ग्लोबल मिस यूनिवर्स में भाग लेने के लिए क्वालिफाई करती है. लेकिन मुना ही वो शख्स हैं जिन्होंने अपनी धार्मिक मान्यताओं को आगे रखकर इस प्रतियोगिता के नियमों से समझौता नहीं किया. ऐसा करके फाइनल्स में भले ही उनके सर पर ताज हो या न हो, लेकिन समाज के लिए वो मिस यूनिवर्स तो बन ही गई हैं.

बिकनी पहनने के लिए बाध्य क्यों हों महिलाएं

महिलाओं की सुंदरता को मापने के पैमाने यूं तो हर किसी के लिए अलग-अलग होते हैं, किसी के लिए रंग मायने रखता है तो किसी के लिए रूप. लेकिन ब्यूटी पीजेंट्स में सिर्फ शारीरिक खूबसूरती ही मायने नहीं रखती बल्कि बुद्धिमानी को भी बराबर की अहमियत दी जाती है. आखिरी राउंड में सलेक्ट हुई सभी सुंदरियों में से जो सबसे बुद्धिमानी वाला जवाब देती है, उसी के सिर पर ताज होता है. तो देखा जाए तो आयोजक भी यही मानते हैं कि शारीरिक सुंदरता से ज्यादा इंसान की बुद्धिमत्ता ज्यादा अहमियत रखती है, फिरभी सुंदरता के मायने यहां हिप्स की कसावट और टांगों की लंबाई पर निर्भर हैं जो बिकनी में साफ साफ दिखाई देते हैं.

जरा फर्ज कीजिए, जिस स्टेज पर पानी का एक कतरा भी न हो, वहां महिलाओं का बिकनी पहनकर परेड करना कितना अजीब लगता है. क्या फर्क पड़ता है कि किसी की फिगर किसी से दो इंच कम या ज्यादा हो? लेकिन अगर एक एक इंच भी मायने रखता है तो उसे कहीं और मापकर जजों को बताया जाए, और स्टेज पर सिर्फ वो हो जिससे शारीरिक नहीं आंतरिक सुंदरता दिखाई दे. इस तरह से अंग प्रदर्शन करने से खूबसूरती नहीं दिखाई देती, सिर्फ समाज की सोच का प्रदर्शन होता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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