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मुख्तार अंसारी का क्या खौफ है, ये मैंने अपनी आंखों से देखा है...

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 08 अप्रिल, 2021 02:37 PM
  • 08 अप्रिल, 2021 02:37 PM
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जो लोग मुख्तार के लिए सहानुभूति दिखाकर, उसकी गाथा गा रहे हैं और उस पर तरस खा रहे हैं. ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि एक अपराधी और मसीहा में जमीन-आसमान का अंतर होता है.

इंसान जो बोता है वही काटता है, मुख्तार अंसारी का भी यही हाल है. राजनीति एक ऐसी चीज है जिसमें शामिल होने के बाद एक गुंडा बाहुबली नेता कहलाने लगता है. कुछ लोग एक अपराधी को हीरो की तरह पेश करने लगते हैं. देखने में आया है कि मुख्तार अंसारी के लिए कसीदे पढ़े जा रहे हैं. यह बताने की कोशिश की जा रही है कि वह कितने अच्छे खानदान से है. अगर वह अच्छे खानदान से है तो यह बात तब क्यों नहीं याद दिलाई गई जब वह अपराध की दुनिया में कदम रख रहा था? क्या ये बाहुबल उसने अपने खानदान की वजह से पाया है? पति की सुरक्षा की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाली मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी तब कहां थीं जब वह लोगों की दुनियां उजाड़ रहा था?

मुख्तार को देखकर सहानुभूति दिखाने वाले लोग कौन हैं

अगर असली मुख्तार को जानना है तो उसकी दबंगई वाले इलाके गाजीपुर, बनारस, मऊ, बलिया और आजमगढ़ के लोगों से पूछिए. पूर्वांचल में मुख्तार के खिलाफ लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. अगर कोई जानकारी देने की कोशिश भी करता तो अपना नाम बताने से मना कर देता था. खौफ ऐसा कि कई पत्रकार भी खबर में अपना नाम छापने से मना कर देते थे.

मुख्तार अंसारी का खौफ क्‍या है, ये मैंने भी करीब से देखा है. वो भी तब जबक‍ि वह जेल में बंद था. 2017 की बात है, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. उन दिनों बनारस के आस-पास की जगहों की ग्राउंड रिपोर्ट करने का मौका मिला. एक सुबह हम मऊ और गाजीपुर के लिए निकल पड़े. मैं जब गाजीपुर के मोहम्मदाबाद क्षेत्र की बीजेपी प्रत्याशी अलका राय के कार्यालय पहुंची थी तो उनके ऑफिस के सामने थोड़ी ही दूर पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस पर बसपा का झंडा लगा था. इसमें माफिया मुख्तार के लोग थे. 

पता चला कि मुख्तार के लोगों ने...

इंसान जो बोता है वही काटता है, मुख्तार अंसारी का भी यही हाल है. राजनीति एक ऐसी चीज है जिसमें शामिल होने के बाद एक गुंडा बाहुबली नेता कहलाने लगता है. कुछ लोग एक अपराधी को हीरो की तरह पेश करने लगते हैं. देखने में आया है कि मुख्तार अंसारी के लिए कसीदे पढ़े जा रहे हैं. यह बताने की कोशिश की जा रही है कि वह कितने अच्छे खानदान से है. अगर वह अच्छे खानदान से है तो यह बात तब क्यों नहीं याद दिलाई गई जब वह अपराध की दुनिया में कदम रख रहा था? क्या ये बाहुबल उसने अपने खानदान की वजह से पाया है? पति की सुरक्षा की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाली मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी तब कहां थीं जब वह लोगों की दुनियां उजाड़ रहा था?

मुख्तार को देखकर सहानुभूति दिखाने वाले लोग कौन हैं

अगर असली मुख्तार को जानना है तो उसकी दबंगई वाले इलाके गाजीपुर, बनारस, मऊ, बलिया और आजमगढ़ के लोगों से पूछिए. पूर्वांचल में मुख्तार के खिलाफ लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. अगर कोई जानकारी देने की कोशिश भी करता तो अपना नाम बताने से मना कर देता था. खौफ ऐसा कि कई पत्रकार भी खबर में अपना नाम छापने से मना कर देते थे.

मुख्तार अंसारी का खौफ क्‍या है, ये मैंने भी करीब से देखा है. वो भी तब जबक‍ि वह जेल में बंद था. 2017 की बात है, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. उन दिनों बनारस के आस-पास की जगहों की ग्राउंड रिपोर्ट करने का मौका मिला. एक सुबह हम मऊ और गाजीपुर के लिए निकल पड़े. मैं जब गाजीपुर के मोहम्मदाबाद क्षेत्र की बीजेपी प्रत्याशी अलका राय के कार्यालय पहुंची थी तो उनके ऑफिस के सामने थोड़ी ही दूर पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस पर बसपा का झंडा लगा था. इसमें माफिया मुख्तार के लोग थे. 

पता चला कि मुख्तार के लोगों ने अलका राय पर नजर रखने के लिए ठीक उनके सामने अपना ऑफिस खोल रखा था. जबकि अलका राय के आपोजिट मुख्तार अंसारी चुनाव में भी नहीं खड़े थे. मोहम्मदाबाद सीट से मुख्तार के भाई सिब्गतुल्लाह अंसारी चुनाव लड़ रहे थे. अलका राय खौफ के साए में यह चुनाव लड़ रही थीं, क्योंकि 29 नवंबर, 2005 को उनके पति कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या कर दी गई थी.

दरअसल, कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर साल 2002 के चुनाव में हरा दिया था. बीजेपी विधायक राय की जीत अंसारी बंधुओं को खुली चुनौती जैसी लगी और परिणाम स्वरूप कृष्णानंद राय को जान गवानी पड़ी थी. मुख्तार उस वक्त जेल में बंद था, लेकिन इस साजिश के पीछे उसे मास्टरमाइंड माना गया. हालांकि इस मामले में कोर्ट ने उसे बरी कर दिया.

वहीं जब अलका राय हमें लाइव इंटरव्यू दे रही थीं तब भी उनके 20-25 समर्थक आस-पास ही खड़े थे. उन्हें शायद इस बात का डर था कि इस बार भी हालात 2002 जैसे बिगड़ ना जाएं. सामने ऑफिस खोलकर अंसारी बंधु के लोग अलका राय पर नजर रख रहे थे कि वे कब क्या करती हैं, कौन उनसे मिलने-जुलने जाता है. 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में सिब्गतुल्लाह अंसारी बसपा के प्रत्याशी थे. वहीं मुख्तार का खौफ ऐसा कि लोग उसके खिलाफ बोलने से पहले डर रहे थे कि कहीं उसे पता चल गया तो क्या होगा. हालांकि चुनाव परिणाम में अलका राय विजयी हुईं.

पूरे इलाके में घूम कर और लोगों से बात करके यह समझ आ गया था कि लोगों के मन में अंसारी बंधुओं की कितनी दहशत है. हां में हां मिलाए तो ठीक हैं लेकिन अगर खिलाफ गए तो खैर नहीं. कोई खुलकर कुछ नहीं बोल रहा था, यहां तक कि विरोधी भी सोच समझकर हमारे सवालों का जवाब दे रहे थे कि कहीं बवाल ना हो जाए. दरअसल, मोहम्मदाबाद में राजनीति फाटक से शुरू होकर फाटक पर ही खत्म हो जाती है. इसी फाटक के पीछे बाहुबली मुख्तार अंसारी, उनके भाई अफजाल अंसारी और सबसे बड़े भाई सिब्गतुल्लाह अंसारी का दरबार लगता था.

दूसरा किस्सा मऊ का है. कहने वाले कहते हैं कि पूरे मऊ में आगजनी के बीच मुख्तार खुली गाड़ी में घूम रहा था. चारों तरफ घर जल रहे थे, लोग जल रहे थे. उस वक्त मुख्तार के ऊपर इस हिंसा को भड़काने का आरोप लगा था.

इस घटना के बाद 2008 में गोरखनाथ मंदिर से लगभग 50 गाड़ियों के साथ योगी आदित्यनाथ का काफिला निकला. काफिले में योगी की लाल एसयूवी सातवें नंबर पर थी. काफिला जैसे ही आजमगढ़ के करीब पहुंचा तो करीब 100 चार पहिया और सैकड़ों की संख्या में बाइक जुड़ चुकी थी. इसी बीच एक पत्थर काफिले में मौजूद 7वीं गाड़ी यानी सीएम योगी के गाड़ी पर लगा. योगी के काफिले पर जो हमला हुआ था उसकी पहले से प्लानिंग थी. इस हमले का आरोप लोगों ने दबी जुबान में मुख्तार पर लगाया था. उस समय योगी सांसद थे, उन्होंने कहा था कि काफिले पर लगातार एक पक्ष से गोलियां चल रही थीं.

ऐसे अनेक किस्से आपको मुख्तार के बारे में सुनने को मिल जाएंगे. जिसके ऊपर मर्डर, किडनैपिंग, वसूली के आरोप में दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं. किस तरह साइकिल स्टैंड का ठेका दिला के लोगों पर धौंस जमाने वाला एक गुंडा धीरे-धीरे रेलवे, कोयला रैक, स्क्रैप, मोबाइल टावरों पर डीजल आपूर्ति, मछली व्यवसाय से लेकर सड़क, नाले-नाली, पुल तक के सभी व्यावसायिक ठेकों पर अपने लोगों को काबिज कर लिया.

जिस मुख्तार को व्हीलचेयर पर देखकर लोग तरस खा रहे हैं, उसके दहशत का आलम यह था कि पूर्वांचल में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का ठेका लेने में देशी-विदेशी कंपनियों ने किनारा कर लिया था. अपने समय में मुख्तार ने जो किया आज उसी की सजा काट रहा है. जो लोग मुख्तार पर सहानुभूति दिखाकर, उसके खानदान की गाथा गा कर, उस पर तरस खा रहे हैं. ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि एक अपराधी और मसीहा में जमीन-आसमान का अंतर होता है. अपराधी की बस एक ही जाति होती है और वह है अपराध. समझ नहीं आता कि व्हीलचेयर और सफेद बाल वाले खूखार अपराधी मुख्तार को देखकर सहानुभूति दिखाने वाले लोग कौन हैं?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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