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मीराबाई चानू को लेकर नारीवाद से लेकर नस्लवाद तक डिबेट

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 29 जुलाई, 2021 12:03 PM
  • 29 जुलाई, 2021 12:02 PM
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जंगलों में लकड़ी बीनने से लेकर मीराबाई चानू के नेमप्लेट वाली यह तस्वीर दिल जीत लेती है...आपने कितने घरों में बेटियों के नाम की नेमप्लेट देखी है. इस दीवार पर लगी नेमप्लेट कोई आम नेमप्लेट नहीं है बल्कि ये दास्तान है उन संघर्षों और चुनौतियों के पहाड़ की जिनको तोड़ कर देश की एक बेटी ने चांदी में बदल दिया.

जंगलों में लकड़ी बीनने से लेकर मीराबाई चानू के नेमप्लेट वाली यह तस्वीर दिल जीत लेती है...कितने घरों की लड़कियों को उनके नाम की नेमप्लेट नसीब होती है. आपने कितने घरों में बेटियों के नाम की नेमप्लेट देखी है. इस दीवार पर लगी नेमप्लेट कोई आम नेमप्लेट नहीं है बल्कि ये दास्तान है उन संघर्षों और चुनौतियों के पहाड़ की जिनको तोड़ कर देश की एक बेटी ने चांदी में बदल दिया.

ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू को मणिपुर एसएसपी (स्पोर्ट्स) बना दिया गया. शायद मीराबाई चानू ने उस दबी हुई परत को खोल दिया है, तभी तो लोग नस्लवाद और नारीवाद पर बहस कर रहे हैं. सोचिए अगर कोई लड़की किसी खेल में जीतने के बजाय हार जाती तो? तब देश के लोगों का उसके प्रति क्या रवैया होता. वैसे भी चानू एक बार हार चुकी थीं. लोगों ने इन्हें तब जाना है जब इन्होंने टोक्यो ओलंपिक में अपनी प्रतिभा के बल पर रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है. इसके पहले इन्हें कौन जानता था. वैसे भी हारे हुए खिलाड़ी को कौन पूछता है.

कितनी लड़कियों को उनके नाम की नेमप्लेट नसीब होती है

अगर लड़कियां जीतती हैं कुछ बड़ा करती हैं, मेडल जीतती हैं तो घर के बाहर उसके नाम की नेमप्लेट लगती है. वरना वो घर के भीतर सिमटी आम गृहणी बनकर रह जाती हैं. कितनी-कितनी प्रतिभाशाली लड़कियों को खेल में भाग लेने का ही मौका नहीं. जरूरी नहीं है कि वह सिर्फ खेल का मैदान हो. उन्हें अपने सपने पूरे करने का मौका नहीं मिलता, खुद को साबित करने का मौका नहीं मिलता. एक आम लड़की की नेमप्लेट कितने लोग अपने घरों के बाहर सजाते हैं.

वहीं जब हर देशवासी आज मीरा बाई चानू के नाम का गुणगान कर रहा है. तब एक्टर और मॉडल मिलिंद सोमन की पत्नी अंकिता कोंवर ने नॉर्थ ईस्ट के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर सोशल...

जंगलों में लकड़ी बीनने से लेकर मीराबाई चानू के नेमप्लेट वाली यह तस्वीर दिल जीत लेती है...कितने घरों की लड़कियों को उनके नाम की नेमप्लेट नसीब होती है. आपने कितने घरों में बेटियों के नाम की नेमप्लेट देखी है. इस दीवार पर लगी नेमप्लेट कोई आम नेमप्लेट नहीं है बल्कि ये दास्तान है उन संघर्षों और चुनौतियों के पहाड़ की जिनको तोड़ कर देश की एक बेटी ने चांदी में बदल दिया.

ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू को मणिपुर एसएसपी (स्पोर्ट्स) बना दिया गया. शायद मीराबाई चानू ने उस दबी हुई परत को खोल दिया है, तभी तो लोग नस्लवाद और नारीवाद पर बहस कर रहे हैं. सोचिए अगर कोई लड़की किसी खेल में जीतने के बजाय हार जाती तो? तब देश के लोगों का उसके प्रति क्या रवैया होता. वैसे भी चानू एक बार हार चुकी थीं. लोगों ने इन्हें तब जाना है जब इन्होंने टोक्यो ओलंपिक में अपनी प्रतिभा के बल पर रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है. इसके पहले इन्हें कौन जानता था. वैसे भी हारे हुए खिलाड़ी को कौन पूछता है.

कितनी लड़कियों को उनके नाम की नेमप्लेट नसीब होती है

अगर लड़कियां जीतती हैं कुछ बड़ा करती हैं, मेडल जीतती हैं तो घर के बाहर उसके नाम की नेमप्लेट लगती है. वरना वो घर के भीतर सिमटी आम गृहणी बनकर रह जाती हैं. कितनी-कितनी प्रतिभाशाली लड़कियों को खेल में भाग लेने का ही मौका नहीं. जरूरी नहीं है कि वह सिर्फ खेल का मैदान हो. उन्हें अपने सपने पूरे करने का मौका नहीं मिलता, खुद को साबित करने का मौका नहीं मिलता. एक आम लड़की की नेमप्लेट कितने लोग अपने घरों के बाहर सजाते हैं.

वहीं जब हर देशवासी आज मीरा बाई चानू के नाम का गुणगान कर रहा है. तब एक्टर और मॉडल मिलिंद सोमन की पत्नी अंकिता कोंवर ने नॉर्थ ईस्ट के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाली है. अंकिता ने कहा कि ‘मेडल जीते तो भारतीय नहीं तो चिंकी और चाइनीज़’.

अंकिता ने अपने ट्विटर हैंडल और इंस्टाग्राम पर लिखा है कि, ‘अगर आप भारत के नॉर्थ-ईस्ट इलाके के रहने वाले हैं तो आप भारतीय तभी बन सकते हैं जब देश के लिए कोई मेडल जीतते हैं. वरना हमें चिंकी, चाइनीज़, नेपाली और आजकल तो नए नाम कोरोना से पहचाना जाता है. भारत में जातिवाद के साथ नस्लवाद भी है और ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूं # हिप्पोक्रेट्स’... अंकिता के पोस्ट के सपोर्ट में कई लोग आए, उन्होंने भी अपने अनुभव बताए.

एक बात और एक मिनट के लिए जरा सोचिए क्या हारे हुई लड़की का भी स्वागत ऐसे ही होता जैसे जीती हुई लड़की का होता है. शायद नहीं...ठीक है धूम-धाम से स्वागत मत करो लेकिन उसे इज्जत तो दे ही सकते हैं, उसका हौसला तो बढ़ा ही सकते हैं. मत पहचानो उसे लेकिन उसकी पहचान तो मत मिटाओ...हम सभी ने देखा कि कैसे जीतकर भारत लौटी बेटी मीराबाई चानू के स्वागत के लिए सड़कों पर लोगों का सैलाब उतर आया. उनके शहर में लोग सड़कों पर खड़े हो गए. फूल, माला, गाड़ियां और उनके नाम के जयकारे...

सच में यह सब देखकर बहुत हर भारतीय को खुशी महसूस हो रही होगी, होनी भी चाहिए लेकिन हर उस बेटी को याद रखिए जो कुछ करना चाहती है. जो उड़ान भरने के सपने देखती है, जो मीराबाई चानू में खुद को देखती है. भले ही वह देश के लिए पदक ना जीते लेकिन आपका दिल तो जीत ही सकती है. उसे मौका तो दीजिए. बेटियों के नाम की नेमप्लेट तब भी लगाइए जब वे किसी क्षेत्र में हार जाएं, उनका हौंसला बढ़ाइए और उनके संघर्षों को याद रखिए...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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