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प्रवासियों की ये दो जुदा तस्वीरें हमारे सिस्टम के मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़ है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 12 मई, 2020 01:50 PM
  • 12 मई, 2020 01:50 PM
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सोशल मीडिया पर दो तस्वीरें वायरल (Viral Photo) हो रही हैं दोनों तस्वीरें एक दूसरे से जुदा हैं और दो वर्गों को दिखाती हैं. पहली एक अमीर कुत्ते (Dog Rescued From Uzbekistan) की है जबकि दूसरी में वो बुजुर्ग महिला है जो बैंगलोर (Bengaluru) से पैदल चलकर राजस्थान के कोटा (Kota) तक जा रही है और जिसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है.

लॉकडाउन (Lockdown) का ये दौर इतिहास में दर्ज होगा और साथ ही दर्ज होंगी इस दौर की दास्तानें. गुज़रे 48 दिनों में हम ऐसी तमाम तस्वीरें देख चुके हैं जो मजबूत से मजबूत इंसान के कलेजे को हिला दें और आंसुओं का सैलाब ला दें. हमने वो तस्वीरें देखीं जिनमें भूख से बिलखते बच्चे थे. इलाज के लिए अस्पतालों के बाहर लावारिसों की तरह ज़िंदगी बिताते इंसान थे. हमनें गर्भवती माओं को देखा. मीलों का सफ़र, पैदल ही तय कर अपने घर जाते मजदूरों को देखा. साथ ही हमनें उन बुजुर्गों को भी देखा, जो थे तो माज़ूर मगर जो वक़्त के हाथों लाचार हैं और इस आस में अपने घर वालों के साथ सफ़र पर हैं कि क्या पता ज़िंदा सलामत वो अपने वतन पहुंच जाएं और अगर मौत भी आए तो अपने घर पर आए, अपनी जमीन पर आए. हो सकता है ये तमाम बातें पढ़ने या फिर देखने पर कोई खास असर न डालें. मगर जब हम इन चीजों को ख़ुद से जोड़कर अनुभव करेंगे तो मिलेगा कि स्थिति जानलेवा है और यहां संघर्ष जीवन के लिए है. जान बचाने के लिए है. यूं तो इन बातों के मद्देनजर सैकड़ों किस्से और कहानियां हैं. मगर सार दो तस्वीरों में है. हम आपके सामने दो तस्वीरें पेश कर रहे हैं. दोनों ही तस्वीरें इंटरनेट पर खूब तेजी से वायरल हो रही हैं और इन दोनों को ही लेकर भांति भांति की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

सोशल मीडिया पर वायरल दो अलग तस्वीरें जिनपर देश की जनता अपने अंदाज में अलग अलग प्रतिक्रियाएं दे रही है

बता दें कि पहली तस्वीर एक खास की है. जबकि दूसरी तस्वीर में एक आम सी महिला है जिसकी शायद ही किसी को पड़ी हो. अब चूंकि देश में गरीब अपने मरने के बाद ही याद किया जाता है तो सबसे पहले बात खास तस्वीर की. पहली तस्वीर ओरियो के कारण चर्चा में आई है. जिसे हमारे देश की सरकार ने अपने अथक प्रयासों से उज़्बेकिस्तान से रेस्क्यू कराया है. वाक़ई बड़ी मशक्कत करनी...

लॉकडाउन (Lockdown) का ये दौर इतिहास में दर्ज होगा और साथ ही दर्ज होंगी इस दौर की दास्तानें. गुज़रे 48 दिनों में हम ऐसी तमाम तस्वीरें देख चुके हैं जो मजबूत से मजबूत इंसान के कलेजे को हिला दें और आंसुओं का सैलाब ला दें. हमने वो तस्वीरें देखीं जिनमें भूख से बिलखते बच्चे थे. इलाज के लिए अस्पतालों के बाहर लावारिसों की तरह ज़िंदगी बिताते इंसान थे. हमनें गर्भवती माओं को देखा. मीलों का सफ़र, पैदल ही तय कर अपने घर जाते मजदूरों को देखा. साथ ही हमनें उन बुजुर्गों को भी देखा, जो थे तो माज़ूर मगर जो वक़्त के हाथों लाचार हैं और इस आस में अपने घर वालों के साथ सफ़र पर हैं कि क्या पता ज़िंदा सलामत वो अपने वतन पहुंच जाएं और अगर मौत भी आए तो अपने घर पर आए, अपनी जमीन पर आए. हो सकता है ये तमाम बातें पढ़ने या फिर देखने पर कोई खास असर न डालें. मगर जब हम इन चीजों को ख़ुद से जोड़कर अनुभव करेंगे तो मिलेगा कि स्थिति जानलेवा है और यहां संघर्ष जीवन के लिए है. जान बचाने के लिए है. यूं तो इन बातों के मद्देनजर सैकड़ों किस्से और कहानियां हैं. मगर सार दो तस्वीरों में है. हम आपके सामने दो तस्वीरें पेश कर रहे हैं. दोनों ही तस्वीरें इंटरनेट पर खूब तेजी से वायरल हो रही हैं और इन दोनों को ही लेकर भांति भांति की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

सोशल मीडिया पर वायरल दो अलग तस्वीरें जिनपर देश की जनता अपने अंदाज में अलग अलग प्रतिक्रियाएं दे रही है

बता दें कि पहली तस्वीर एक खास की है. जबकि दूसरी तस्वीर में एक आम सी महिला है जिसकी शायद ही किसी को पड़ी हो. अब चूंकि देश में गरीब अपने मरने के बाद ही याद किया जाता है तो सबसे पहले बात खास तस्वीर की. पहली तस्वीर ओरियो के कारण चर्चा में आई है. जिसे हमारे देश की सरकार ने अपने अथक प्रयासों से उज़्बेकिस्तान से रेस्क्यू कराया है. वाक़ई बड़ी मशक्कत करनी पड़ी होगी सरकार को.

अब चूंकि इतना बड़ा काम हुआ था इसलिए सरकार को अपनी तारीफ भी करानी थी और इसके लिए फ़ोटो सेशन ज़रूरी था. कोरोना वायरस के इस दौर में उज़्बेकिस्तान से भारत लाए गए ओरियो की तस्वीर पूरे ट्विटर पर चर्चा का विषय बनी है. हमें पता है कि आप इस वक़्त ओरियो के बारे में सोच रहे हैं. आपका वक़्त जाया न हो इसलिए बता दें कि ओरियो वंदे भारत मिशन के तहत भारत लाया गया एक कुत्ता है.

जहाज में बैठकर किसी धन्ना सेठ की तरह दिल्ली पहुंचे ओरियो की उम्र एक साल है. ओरियो भारत आया तो क्या मालिक क्या अधिकारी कोई फूला नहीं समा रहा था. खैर एक कुत्ते का इस तरह भारत लाया जाना लोगों को खफा कर गया उन्होंने इसके साथ फ़ोटो क्लिक कराकर तारीफ बटोरने वाले दिल्ली के डीएम की जमकर क्लास लगाई जिसके बाद उन्हें अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.

ये तो हो गया तस्वीर का एक पक्ष. अब बात हो जाए दूसरी तस्वीर की. दूसरी तस्वीर इंदौर की है. जहां अपने पूरे परिवार के साथ कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर से चला एक व्यक्ति पूरे 1 महीने 14 दिन बाद पैदल पहुंचा है और अब जिसकी जेब में फूटी कौड़ी तक नहीं है. करीब 1350 किलोमीटर का सफर तय कर चुके इस व्यक्ति का आगे का सफर कहीं लंबा है. इसे राजस्थान के कोटा पहुंचना है. व्यक्ति के साथ छोटे छोटे बच्चे हैं. पत्नी है और मां है. कलयुग का ये श्रवण कुमार अपनी मां को साईकिल के कैरियर पर बैठाए अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ा जा रहा है.

ध्यान रहे कि ये व्यक्ति कोई शौक में पैदल नहीं चल रहा है. इसके सामने रोटी का संकट है. इसे शायद लॉक डाउन के वक़्त ही इस बात का एहसास हो गया था कि अगर ये यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा तो शायद इसके बच्चे भूख से बिलख कर मर जाएं और इसकी और इसके परिवार की मौत अखबार में बस एक आंकड़ा या ये कहें कि एक संख्या बनकर रह जाए.

सोचिए बीते 1 महीनों में इसने क्या क्या नहीं सहा होगा.1 महीना तो बहुत लंबा वक्त है बीते दिन की ही बात करते हैं. दिल्ली एनसीआर के अलावा पूरा देश भीषण गर्मी का सामना कर रहा था. मौसम ने करवट ली तो माहौल बदला पहले आंधी आई फिर बारिश हुई. बारिश के बाद मौसम ठंडा हुआ.

मौसम के इस रूप को देखकर लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा. जिनको आता था वो ख़ुद से, जिनको नहीं पता था उन्होंने यू ट्यूब देखकर पकोड़ी, समोसा, फिंगर चिप्स, नगेट्स, नाचोस यानी हर वो पकवान बनाया जिससे वो अपना लॉक डाउन एन्जॉय कर सकें. जिस समय अपने घरों में बंद लोग बारिश की फुहारें देखते हुए ये तमाम चीजें खा रहे थे ठीक उसी वक़्त इस देश के तमाम मजदूर पैदल ही अपने घरों तक पहुंचने के लिए सफ़र पर थे.

छोटे छोटे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग. कल्पना करिए क्या स्थिति रही होगी इनकी? कितना मुश्किल रहा होगा उस बाप के लिए अपने बेटे की आंखों में पड़ी धूल को साफ करना जिसका सिर्फ एक लक्ष्य अपने घर तक सही सलामत पहुंचना है. कल्पना करिए उस मां की जिसकी गोद में नवजात है और सही खुराक न मिलने के कारण जिसके स्तनों में मौजूद दूध तक सूख चुका है.

याद करिये उस बुजुर्ग महिला को जो अपने बेटे और बहू के साथ चल तो रही है मगर कहीं न कहीं इस बात को लेकर डरी हुई है कि इस ख़राब मौसम में अगर आंधी के चलते उड़ता हुआ एक पेड़ उसके बेटे के ऊपर गिर जाए तो क्या होगा? विचार करिये उन बच्चों पर जिनके नन्हें शरीर पर बारिश की बूंदों के कारण चोट लग रही है.

इन तमाम बातों में वो तमाम एलिमेंट हैं जो पत्थर पिघला कर मोम कर दें. कितना अजीब है कि जो सरकार और उसके अधिकारी उज्बेकिस्तान में फंसे कुत्ते को भारत लाने के लिए जी जान से जुटे थे उन्हें बैंगलोर से 1350 किलोमीटर चलकर करीब एक महीने बाद इंदौर पहुंचा ये परिवार नहीं दिखा.

सवाल ये है कि क्या एक मजदूर की बीमार बूढ़ी मां की जान की कीमत एक कुत्ते की जान से कहीं ज्यादा सस्ती है? कहने को इस पूरे मुद्दे पर तमाम बातें कही जा सकती हैं मगर हम इस देश की सरकार और अधिकारियों से बस इतना ही कहेंगे कि ये लोग वोट थे. कम से कम इन्हें बचाकर लोकतंत्र की ही लाज रख लेनी चाहिए थी.

बहरहाल अब जबकि ये दोनों ही तस्वीरें हमारे सामने हैं तो हम भी बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि आज जो जो हो रहा है जब इतिहास में दर्ज होगा. एक मजदूर किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है इसलिए आज जो कुछ भी उसके साथ हुआ है उसे वो शायद ही कभी भूल पाए. इन मज़दूरों के जहन में सब दर्ज हो चुका है और जैसा एक गरीब का जीवन होता है शायद ही ये लोग अपने और अपने परिवार के साथ हुए इस सुलूक को कभी भूल पाएं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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