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Mask effect: बुर्का या घूंघट के पहलू पर भी गौर करना होगा!

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 06 मई, 2020 08:35 PM
  • 06 मई, 2020 08:30 PM
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लॉक डाउन (Lockdown) के इस दौर में बैंकों (Bank) का हाल भी गजब है. गर्मियों (Summers) की शुरुआत हो गयी है ऐसे में हम बैंकों में ऐसी तमाम महिलाओं (Women) को देख रहे हैं जो मौसम की परवाह किये बगैर बुर्के (Burqa) या घूंघट (Ghunghat) में आ रही हैं.

लगभग एक महीना और दो सप्ताह हो गया है हम सब को कोरोना संक्रमण (Coronavirus) को झेलते हुए. इस समय तक हमने अपने आप को यथासंभव लॉकडाउन (Lockdown) में ही रखा है. लेकिन इस त्रासदी के बहाने कई ऐसी चीजों पर सोचने का मौका मिल रहा है जो सामान्य परिस्थितियों में संभव नहीं था. अब अगर गरीबी के बारे में चिंतन फाइव स्टार होटल के आलिशान कमरे में किया जाएगा तो वह कितना सटीक होगा, यह बताने की जरुरत नहीं है (ये अलग बात है कि दुर्भाग्य से देश में ऐसा ही होता रहा है). खैर मैं यहां गरीबी (Poverty) के बारे में चर्चा नहीं करने जा रहा हूं. बस इस उदहारण से इतना ही बताने की कोशिश की है कि किसी भी चीज के बारे में सही आकलन उस परिस्थिति में रहकर या उसे जीकर ही की जा सकती है.

इस लॉकडाउन में चंद कार्यालय जो खुले हुए हैं, उनमें बैंक भी एक है जो लगातार जनता की सेवा में लगा है. धीरे धीरे गर्मी अपने शीर्ष पर पहुंच रही है और ऐसे में घर से बाहर निकलना बेहद कठिन होता जा रहा है. कोरोना के चलते जब हम लोगों ने सर पर टोपी और मास्क के साथ कुछ दिन ग्लव्स पहने तो हालत खराब हो गयी. टोपी में हवा आने की काफी गुंजाइश रहती है और मास्क भी हम कभी कभी हटाकर (जब आसपास कोई नहीं हो तो) ताजा दम हो लेते हैं. लेकिन ऐसे में जब शाखा में आये ग्राहकों पर नजर पड़ती है तो दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है.

लॉकडाउन के दौरान बैंकों के बाहर खड़ी महिलाएं

दरअसल हमारी शाखा में पिछले 50 दिन में जो ग्राहक आये हैं उनमें महिलाओं का प्रतिशत 90% है. और इन महिलाओं में भी लगभग 90% महिलाएं मुस्लिम परिवारों से आती हैं. इस भयानक गर्मी में जब इन ग्राहकों को काले बुर्के में सर से पैर तक ढकें कोई भी देखेगा तो उसके होश उड़ जाएंगे.

हिन्दू महिलाएं भी सर को पल्लू से और चेहरे को भी उसी...

लगभग एक महीना और दो सप्ताह हो गया है हम सब को कोरोना संक्रमण (Coronavirus) को झेलते हुए. इस समय तक हमने अपने आप को यथासंभव लॉकडाउन (Lockdown) में ही रखा है. लेकिन इस त्रासदी के बहाने कई ऐसी चीजों पर सोचने का मौका मिल रहा है जो सामान्य परिस्थितियों में संभव नहीं था. अब अगर गरीबी के बारे में चिंतन फाइव स्टार होटल के आलिशान कमरे में किया जाएगा तो वह कितना सटीक होगा, यह बताने की जरुरत नहीं है (ये अलग बात है कि दुर्भाग्य से देश में ऐसा ही होता रहा है). खैर मैं यहां गरीबी (Poverty) के बारे में चर्चा नहीं करने जा रहा हूं. बस इस उदहारण से इतना ही बताने की कोशिश की है कि किसी भी चीज के बारे में सही आकलन उस परिस्थिति में रहकर या उसे जीकर ही की जा सकती है.

इस लॉकडाउन में चंद कार्यालय जो खुले हुए हैं, उनमें बैंक भी एक है जो लगातार जनता की सेवा में लगा है. धीरे धीरे गर्मी अपने शीर्ष पर पहुंच रही है और ऐसे में घर से बाहर निकलना बेहद कठिन होता जा रहा है. कोरोना के चलते जब हम लोगों ने सर पर टोपी और मास्क के साथ कुछ दिन ग्लव्स पहने तो हालत खराब हो गयी. टोपी में हवा आने की काफी गुंजाइश रहती है और मास्क भी हम कभी कभी हटाकर (जब आसपास कोई नहीं हो तो) ताजा दम हो लेते हैं. लेकिन ऐसे में जब शाखा में आये ग्राहकों पर नजर पड़ती है तो दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है.

लॉकडाउन के दौरान बैंकों के बाहर खड़ी महिलाएं

दरअसल हमारी शाखा में पिछले 50 दिन में जो ग्राहक आये हैं उनमें महिलाओं का प्रतिशत 90% है. और इन महिलाओं में भी लगभग 90% महिलाएं मुस्लिम परिवारों से आती हैं. इस भयानक गर्मी में जब इन ग्राहकों को काले बुर्के में सर से पैर तक ढकें कोई भी देखेगा तो उसके होश उड़ जाएंगे.

हिन्दू महिलाएं भी सर को पल्लू से और चेहरे को भी उसी पल्लू से ढकें आती हैं और उनको देखकर भी मन सिहर जाता है. जब हम लोगों को सिर्फ मास्क लगाने और एक टोपी पहनने में ये हालत होती है तो इनको कितनी दिक्कत होती होगी, कोई भी कल्पना कर सकता है.

खैर जब तक यह कोरोना का प्रकोप चल रहा है, तब तक तो अपने शरीर को ढंक कर ही रहने में समझदारी है. लेकिन जैसे ही इससे राहत मिलती है. हम सब को महिलाओं के इस पहलू के बारे में गंभीरता से सोचने की जरुरत है. न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हिन्दू महिलाओं को भी इस कुरीति से छुटकारा दिलाने की जरुरत है. जिससे वह लोग आजादी की सांस ले पाएं. और इस मुहीम में महिलाओं को भी बढ़ चढ़कर आगे आना होगा, तभी यह सफल हो पायेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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