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जमाने ने लड़कों के साथ बहुत सितम किया है, उनका दर्द कोई नहीं समझता

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 08 नवम्बर, 2022 01:27 PM
  • 08 नवम्बर, 2022 01:25 PM
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तुम लड़का हो बाबू, याद रखना...जिस तरह बैल की जिम्मेदारी होती है ना पीछे की पूरी गाड़ी को खींचना. ठीक उसी तरह तुम्हारी भी जिम्मेदारी है, पूरे परिवार को खींचना ही पड़ेगा...

तुम लड़का हो, याद रखना कोई तुम्हारी पर्सनैलिटी नहीं देखेगा. कोई तुम्हारे इमोशन नहीं देखेगा. कोई तुम्हारे दुख दर्द नहीं समझेगा. कोई पूछेगा तो बस इतना पूछेगा कि कितना कमाते हो? तुम रोओ, गाओ, जियो हंसो कुछ भी करो. तुम लड़का हो बाबू, याद रखना जिस तरह बैल की जिम्मेदारी होती है न पीछे की पूरी गाड़ी को खींचना. ठीक उसी तरह तुम्हारी भी जिम्मेदारी है, पूरे परिवार को खींचना ही पड़ेगा. यही सच्चाई है बाबू...

सोशल मीडिया पर खान सर का एक वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें वे ये लाइनें कहते नजर आ रहे हैं...चलिए इन्हीं लाइनों के आधार पर हम लड़कों के उन तकलीफों के बारे में बताते हैं जिसे सिर्फ वही समझ सकते हैं.

लड़कों की पहचान उनके नौकरी और ओहदे से होती है. जो लड़का जितना कमाता है उसकी समाज में उतनी ही इज्जत होती है. लड़कों की इज्जत को मानो पैसे से जोड़ दिया गया है. यहां स्ट्रगल करते हुए लड़के की कोई वैल्यू नहीं होती है. उसे अवारा, घुमक्कड़ और ना जाने क्या-क्या कहा जाता है. लड़कों को किस तरह बिहैव करना चाहिए, कैसे रंग पहनने चाहिए, कैसे गेम खेलने चाहिए, कैसा डांस करना चाहिए यह सब जमाने ने पहले से ही तय कर रखा है.

घर पर किसी मुसीबत को आने से पहले, उसे घर के पुरुषों के मजबूत कंधे से होकर गुजरना होता है

सराकारी और प्राइवेट नौकरी में फर्क

शादी के लिए जब लड़की के घरवाले लड़के को देखने जाते हैं तो सबसे पहले यही सवाल पूछते हैं कि लड़का करता क्या है? उसकी सैलरी कितनी है? मानो लड़के की कीमत उसकी सैलरी बताती है उसके आचरण नहीं. लड़का भले ही कितना अच्छा हो, अगर उसकी सैलरी कम है...

तुम लड़का हो, याद रखना कोई तुम्हारी पर्सनैलिटी नहीं देखेगा. कोई तुम्हारे इमोशन नहीं देखेगा. कोई तुम्हारे दुख दर्द नहीं समझेगा. कोई पूछेगा तो बस इतना पूछेगा कि कितना कमाते हो? तुम रोओ, गाओ, जियो हंसो कुछ भी करो. तुम लड़का हो बाबू, याद रखना जिस तरह बैल की जिम्मेदारी होती है न पीछे की पूरी गाड़ी को खींचना. ठीक उसी तरह तुम्हारी भी जिम्मेदारी है, पूरे परिवार को खींचना ही पड़ेगा. यही सच्चाई है बाबू...

सोशल मीडिया पर खान सर का एक वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें वे ये लाइनें कहते नजर आ रहे हैं...चलिए इन्हीं लाइनों के आधार पर हम लड़कों के उन तकलीफों के बारे में बताते हैं जिसे सिर्फ वही समझ सकते हैं.

लड़कों की पहचान उनके नौकरी और ओहदे से होती है. जो लड़का जितना कमाता है उसकी समाज में उतनी ही इज्जत होती है. लड़कों की इज्जत को मानो पैसे से जोड़ दिया गया है. यहां स्ट्रगल करते हुए लड़के की कोई वैल्यू नहीं होती है. उसे अवारा, घुमक्कड़ और ना जाने क्या-क्या कहा जाता है. लड़कों को किस तरह बिहैव करना चाहिए, कैसे रंग पहनने चाहिए, कैसे गेम खेलने चाहिए, कैसा डांस करना चाहिए यह सब जमाने ने पहले से ही तय कर रखा है.

घर पर किसी मुसीबत को आने से पहले, उसे घर के पुरुषों के मजबूत कंधे से होकर गुजरना होता है

सराकारी और प्राइवेट नौकरी में फर्क

शादी के लिए जब लड़की के घरवाले लड़के को देखने जाते हैं तो सबसे पहले यही सवाल पूछते हैं कि लड़का करता क्या है? उसकी सैलरी कितनी है? मानो लड़के की कीमत उसकी सैलरी बताती है उसके आचरण नहीं. लड़का भले ही कितना अच्छा हो, अगर उसकी सैलरी कम है तो उसका रिश्ता होने से पहले ही टूट जाता है. वहीं अगर लड़का सरकारी नौकरी वाला है तो उसकी शादी के लिए लड़कियों की लाइन लगी रहती है.

काम करना जरूरी है

लड़कियों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें काम करने की च्वाइस होती है. वे चाहें तो हाउसवाइफ बन जाए या चाहें तो वर्किंग वुमन. मगर लड़कों के जीवन का एक ही उद्देश्य है नौकरी करना, बाहर जाकर पैसा कमाना और परिवार के हर एक सदस्य की जिम्मेदारी को पूरी करना. एक टाइम के बाद वह अपने खर्चे के लिए किसी पर आश्रित नहीं रह सकता. वह चाहकर भी घर में बैठ नहीं सकता है क्योंकि उसे निखट्टू कहा जाएगा. अगर पत्नी अच्छा कमाती है तो भी उनका कमाना फर्ज है वरना लोग क्या कहेंगे कि पत्नी की कमाई खाता है. इसलिए पुरुष जिंदगी भर परिवार की जिम्मेदारी ही ढोता रहता है. बड़ा होते ही बहन की जिम्मेदारी, फिर शादी के बाद पत्नी की जिम्मेदारी और फिर मां की जिम्मेदारी. ऐसा लगता है कि वह कभी भी अपने लिए जिंदगी जीता ही नहीं है.

पुरुषों के नसीब में रोना नहीं है

इस जमाने ने पुरुषों को मजबूती की संज्ञा देकर कठोर बना दिया. इतना कठोर कि उन्हें कितना भी दुख हो वे रो नहीं सकते. महिलाएं तो रोकर अपनी तकलीफ को बयां कर देती हैं, मगर पुरुष दुखी होकर भी अपने सीने को पत्थर बनाकर कर अपने सारे गमों को सीने में दफन कर खामोश हो जाते हैं. जबकि तकलीफ में उनका भी गला भर आता है मगर मजाल है जो उनकी आंखों से एक आंसू तक गिर जाए. अगर वे ही रोने लगे तो बाकी घरवालों को कौन संभालेगा? मगर जब कभी वे रोते हैं ऐसा लगता है, किसी ने बादल के सीने को छलनी कर दिया है. वे ऐसे रोते हैं कि आस-पास मौजदू लोगों को भी रुला देते हैं. कभी बच्चों को तकलीफ में देखकर, कभी अपने परिवार से बिछड़कर, तो कभी बेटी की विदाई पर रोने वाले पुरुषों से कहा जाता है कि क्या लड़की की तरह रो रहा है, मर्द रोया नहीं करते हैं. इस दुनिया में बेटा, भाई, पति और पिता कभी कमजोर नहीं हो सकते, क्योंकि वे अपने परिवार की ढाल होते हैं.

मर्द को दर्द नहीं होता

इस एक डायलॉग ने पुरुषों की सच्चाई समाई हुई है. मगर यह झूठ है कि मर्द को भी दर्द नहीं होता है. दरअसल, घर में मुसीबत को आने से पहले पुरुषों के मजबूत कंधे से होकर गुजरना होता है इसलिए यह कहावत कभी गढ़ दी गई. हमारे समाज में बेटों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि कैसे उसे बहन की रक्षा करनी है. उसे बताया जाता है कि बहन की शादी से पहले अगर वह शादी करता है तो यह जमाना उसे सेल्फिश कहेगा. शादी से पहले लड़कों को समझाया जाता है कि पत्नी की हर डिमांड पूरी करना ही उसका कर्तव्य है. मैंने देखा है कि, कैसे भाई बहन की जिद पूरी करने के लिए अपनी पॉकेट मनी जोड़ता है. कैसे लड़के अपनी प्रेमिका के लिए हर मुश्किल से लड़ जाते हैं. कैसे वे अपनी दोस्त को रात को ट्रेन में बिठाकर आते हैं. कैसे मां की गोदी में वे आज भी बच्चे बन जाते हैं. कैसे पत्नी की नोंकझोक में उनका लड़कपन दिखता है, कैसे प्यार में धोखा खाने पर वे पूरी तरह टूट जाते हैं. यह अलग बात है कि वे अपने दर्द को एक झिझक के अंदर छिपा देते हैं, जहां दुनिया वालों की नजर पड़कर भी नहीं पड़ती है.

कुछ बातें जो सिर्फ लड़कों से कही जाती हैं-

अरे लड़के हो थोड़ा मजबूत बनो, मर्द बनो मर्द.

लड़के हो थोड़ा गाड़ी तो भगाओ, क्या डरकर रेंग रहे हो.

लड़का होकर दिन भर घर में घुसे रहते हो डरपोक हो क्या?

लड़का होकर-शराब सिरगेट नहीं पीते जरा पतलून से बाहर निकलो.

लड़का होकर घऱ का काम करता है जोरु का गुलाम है क्या?

तुम तो घरजमाई हो, तुम सलाह ना ही दिया करो.

पुरुषों के साथ जमाने ने इतना बड़ा सितम किया है कि कुछ लोग उन्हें देखते से ही जज कर लेते हैं, कि ये तो पक्का पियक्कड़ होगा. ये तो नशेड़ी होगा. ये तो लड़की बाज होगा. ये तो प्ले बॉय होगा, भले ही वह लड़का सही हो. इसलिए कहते हैं कि इस समाज में पुरुष होना आसान नहीं है. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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