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समाज

सड़कों पर दूध बहाने वालों को जेल में डाल देना चाहिए

    • प्रेरणा कौल मिश्रा
    • Updated: 17 जुलाई, 2018 08:45 PM
  • 17 जुलाई, 2018 08:31 PM
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आखिर हम इस तरह के विरोधों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, जहां सब्जियां और दूध को सड़कों पर बर्बाद कर दिया जाता हो या फिर सड़ा दिया जाता हो. एक किसान का धर्म उत्पादन करना होता है न की गुस्से और अहंकार में इसे नष्ट करना.

प्रिय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, कृपया आप यह न कहें कि महाराष्ट्र के दूध प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत के लिए आप उपलब्ध हैं. पहले तो हर किसान, कार्यकर्ता या नागरिक, जो नाली और सड़कों पर दूध के टैंकर को बहा रहा है, उन्हें जेल में डालें. उन सभी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लें जिन्होंने राज्य भर में सड़कों पर दूध से भरे टैंकरों को खाली कर दिया है.

आखिर वो ऐसा कैसे कर सकते हैं?

उसका कारण यहां है...

ये हरकत किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए

पिछले हफ्ते मॉनसून सत्र के दौरान महाराष्ट्र सरकार में महिला विकास मंत्री, पंकजा मुंडे ने विधानसभा को बताया कि सितंबर 2017 से जनवरी 2018 तक, राज्य में 6 महीने की उम्र से कम के 995 शिशुओं की मृत्यु हो गई.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-2016 और 2005-06 के तीसरे और चौथे राउंड के बीच की तुलना से पता चलता है कि कुपोषण ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में अकेले 718 बच्चों की जान ले ली है. दोहरे अंकों वाले आर्थिक विकास (2004-05 से 2014-15) के एक दशक के बाद भी, पालघर की कुपोषण की स्थिति में शायद ही सुधार हुआ है.

अगर ऐसा है, तो आखिर हम इस तरह के विरोधों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, जहां सब्जियां और दूध को सड़कों पर बर्बाद कर दिया जाता हो या फिर सड़ा दिया जाता हो. एक किसान का धर्म उत्पादन करना होता है न की गुस्से और अहंकार में इसे नष्ट करना.

हम किसानों के साथ खड़े हैं. लेकिन एक किसान भी किसी राज्य के उतने ही जिम्मेदार नागरिक होते हैं जितना की एक शिक्षक, पुलिस अधिकारी, या एक सरकारी कर्मचारी है. शिक्षक किताबों को जलाकर विरोध नहीं कर सकते हैं. पुलिस तोड़फोड़ करके विरोध नहीं कर सकती है और सरकारी कर्मचारी, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर विरोध नहीं कर...

प्रिय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, कृपया आप यह न कहें कि महाराष्ट्र के दूध प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत के लिए आप उपलब्ध हैं. पहले तो हर किसान, कार्यकर्ता या नागरिक, जो नाली और सड़कों पर दूध के टैंकर को बहा रहा है, उन्हें जेल में डालें. उन सभी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लें जिन्होंने राज्य भर में सड़कों पर दूध से भरे टैंकरों को खाली कर दिया है.

आखिर वो ऐसा कैसे कर सकते हैं?

उसका कारण यहां है...

ये हरकत किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए

पिछले हफ्ते मॉनसून सत्र के दौरान महाराष्ट्र सरकार में महिला विकास मंत्री, पंकजा मुंडे ने विधानसभा को बताया कि सितंबर 2017 से जनवरी 2018 तक, राज्य में 6 महीने की उम्र से कम के 995 शिशुओं की मृत्यु हो गई.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-2016 और 2005-06 के तीसरे और चौथे राउंड के बीच की तुलना से पता चलता है कि कुपोषण ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में अकेले 718 बच्चों की जान ले ली है. दोहरे अंकों वाले आर्थिक विकास (2004-05 से 2014-15) के एक दशक के बाद भी, पालघर की कुपोषण की स्थिति में शायद ही सुधार हुआ है.

अगर ऐसा है, तो आखिर हम इस तरह के विरोधों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, जहां सब्जियां और दूध को सड़कों पर बर्बाद कर दिया जाता हो या फिर सड़ा दिया जाता हो. एक किसान का धर्म उत्पादन करना होता है न की गुस्से और अहंकार में इसे नष्ट करना.

हम किसानों के साथ खड़े हैं. लेकिन एक किसान भी किसी राज्य के उतने ही जिम्मेदार नागरिक होते हैं जितना की एक शिक्षक, पुलिस अधिकारी, या एक सरकारी कर्मचारी है. शिक्षक किताबों को जलाकर विरोध नहीं कर सकते हैं. पुलिस तोड़फोड़ करके विरोध नहीं कर सकती है और सरकारी कर्मचारी, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर विरोध नहीं कर सकते हैं.

ये लोग, जो अपने पैरों से अपने उपज और आजीविका को बर्बाद कर रहे हैं, उनके किसान होने की कल्पना भी नहीं कर सकते.

यह पूरा मुद्दा सड़कों में गड्डे करके मुंबई में मैनहोल के खतरे को सामने लाने की तरह लगता है. और असल में यह तब हुआ जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने विरोध के रुप में मंत्रालय के सामने सड़कों को नुकसान पहुंचाना शुरु किया. क्या हमें इसे और प्रोत्साहित करना चाहिए?

इस बीच, मालेगांव में दूध प्रदर्शनकारियों ने पहले ही हिंसक मोड़ ले लिया है.

स्वाभिमानी शेटकारी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी कहते हैं, "दूध बर्बाद करने में हमें कोई खुशी नहीं मिल रही है. लेकिन सरकार डेयरी की रक्षा कर रही है और किसानों की पीड़ाओं पर विचार नहीं कर रही है." अगर राज्य सरकार उनकी मांगों को पूरा करने में विफल रहती है तो और अधिक विरोध प्रदर्शन की चेतावनी उन्होंने दी.

राजू शेट्टी जैसे लोगों के लिए हम कहते हैं: अगर अपने उत्पाद को डेयरी में नहीं भेजना, तो इसे अनाथालयों में ले जाएं और बच्चों को खिलाएं. इसे ग्राहकों को न बेचकर अपना विरोध दर्ज करें, और वंचित लोगों को खिलाकर अपने बडप्पन को दिखाएं. इस तरह, आपका विरोध पंजीकृत भी होगा, और शायद, सम्मान भी किया जाएगा.

विरोध हमें जरुर करना चाहिए. लेकिन एक विरोध सामाजिक और नागरिक स्वामित्व के ढांचे में फिट होना चाहिए.

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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