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'दलित-किसान-सैनिकों' आंदोलन का दूसरा चरण मोदी सरकार को कितनी मुश्किल में डालेगा?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 11 जुलाई, 2018 06:48 PM
  • 11 जुलाई, 2018 06:48 PM
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गैर-राजनीतिक संगठनों की आड़ लेकर देश में राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीति चमकाती रही हैं. इस बार जो काम कांग्रेस करती नजर आ रही है, कुछ समय पहले वही काम भाजपा के नेता करते दिखाई देते थे.

जल्द ही एक बार फिर से भारत बंद आंदोलन शुरू होने वाला है. ये दूसरे चरण का अंदोलन होगा, जो पहले चरण से काफी बड़े स्तर पर होने वाला है. इस बार का आंदोलन पीएम मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है, क्योंकि इस बार के 'भारत बंद' आंदोलन में सिर्फ दलित नहीं होंगे, बल्कि किसान संगठन और ओआरओपी कार्यकर्ता भी आंदोलन में हिस्सा लेंगे. भले ही आंदोलन करने वाले किसी राजनीतिक पार्टी के नहीं हैं, लेकिन इन गैर-राजनीतिक पार्टियों के पीछे एक बड़ी राजनीति हो रही है. ऐसा नहीं है कि ये पहली बार है, हमेशा से गैर-राजनीतिक संगठनों की आड़ लेकर देश में राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीति चमकाती रही हैं. इस बार जो काम कांग्रेस करती नजर आ रही है, कुछ समय पहले वही काम भाजपा के नेता करते दिखाई देते थे.

राजनीति पार्टियां साध रहीं अपना मकसद

जब देश में यूपीए (2) की सरकार थी तो भी इस तरह के आंदोलन देखे गए थे. जिस तरह उस समय सरकार ने इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का आंदोलन देखा था, अब ठीक उसी तरह की स्थिति मोदी सरकार के सामने भी आ खड़ी हुई है, लेकिन इस बार दलित, किसान और पूर्व सैनिक विरोध में खड़े हैं. यूपीए के दौर में सरकार के व्याप्त भ्रष्टाचार कटघरे में खड़ा था, जबकि अभी की स्थिति ये है कि सरकारी अपेक्षाएं और वादे कटघरे में आ गई हैं.

जिस तरह 2011-12 में सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे गैर-राजनीतिक दलों के पीछे भाजपा खड़ी थी, अब वही रणनीति कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां भी अपना रही हैं. इस बार भारत बंद का आह्वान करते हुए भले ही आपको दलित, किसान और पूर्व सैनिकों के चेहरे दिखें, लेकिन ध्यान से देखने पर इनके पीछे खड़ी कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को साफ देखा जा सकेगा. दरअसल, राजनीतिक दल इन गैर-राजनीतिक दलों की मदद से अपना मकसद साध रहे हैं.

आंदोलन का दिन...

जल्द ही एक बार फिर से भारत बंद आंदोलन शुरू होने वाला है. ये दूसरे चरण का अंदोलन होगा, जो पहले चरण से काफी बड़े स्तर पर होने वाला है. इस बार का आंदोलन पीएम मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है, क्योंकि इस बार के 'भारत बंद' आंदोलन में सिर्फ दलित नहीं होंगे, बल्कि किसान संगठन और ओआरओपी कार्यकर्ता भी आंदोलन में हिस्सा लेंगे. भले ही आंदोलन करने वाले किसी राजनीतिक पार्टी के नहीं हैं, लेकिन इन गैर-राजनीतिक पार्टियों के पीछे एक बड़ी राजनीति हो रही है. ऐसा नहीं है कि ये पहली बार है, हमेशा से गैर-राजनीतिक संगठनों की आड़ लेकर देश में राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीति चमकाती रही हैं. इस बार जो काम कांग्रेस करती नजर आ रही है, कुछ समय पहले वही काम भाजपा के नेता करते दिखाई देते थे.

राजनीति पार्टियां साध रहीं अपना मकसद

जब देश में यूपीए (2) की सरकार थी तो भी इस तरह के आंदोलन देखे गए थे. जिस तरह उस समय सरकार ने इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का आंदोलन देखा था, अब ठीक उसी तरह की स्थिति मोदी सरकार के सामने भी आ खड़ी हुई है, लेकिन इस बार दलित, किसान और पूर्व सैनिक विरोध में खड़े हैं. यूपीए के दौर में सरकार के व्याप्त भ्रष्टाचार कटघरे में खड़ा था, जबकि अभी की स्थिति ये है कि सरकारी अपेक्षाएं और वादे कटघरे में आ गई हैं.

जिस तरह 2011-12 में सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे गैर-राजनीतिक दलों के पीछे भाजपा खड़ी थी, अब वही रणनीति कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां भी अपना रही हैं. इस बार भारत बंद का आह्वान करते हुए भले ही आपको दलित, किसान और पूर्व सैनिकों के चेहरे दिखें, लेकिन ध्यान से देखने पर इनके पीछे खड़ी कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को साफ देखा जा सकेगा. दरअसल, राजनीतिक दल इन गैर-राजनीतिक दलों की मदद से अपना मकसद साध रहे हैं.

आंदोलन का दिन पीएम मोदी के लिए होगा चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. इसके विरोध में 2 अप्रैल को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था. 2 अप्रैल के इस भारत बंद के प्रदर्शन ने देखते ही देखते कब हिंसा का रूप ले लिया, किसी को पता ही नहीं चला. इस हिंसा में कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई थी और बहुत सारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था. ऐसे में भारत बंद का दूसरा चरण भी खतरे की घंटी बजा रहा है. देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि दलित, किसान और पूर्व सैनिक एक ही मंच पर आकर मौजूदा परिस्थितियों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करेंगे. ऐसे में मोदी सरकार को इससे निपटने के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था करनी होगी.

कब होगा ये आंदोलन?

अभी इस आंदोलन की तारीख निश्चित नहीं हो सकी है, लेकिन जिन्होंने 2 अप्रैल का भारत बंद आर्गेनाइज किया था, उनके अनुसार भारत बंद के दूसरे चरण का ये आंदोलन मानसून सत्र खत्म होने से पहले होगा. यहां आपको बताते चलें कि संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होगा और 10 अगस्त को खत्म होगा. नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित ऑर्गेनाइजेशन्स के पूर्व चेयरमैन अशोक भारती ने कहा कि इस आंदोलन का मकसद अपनी बात संसद तक पहुंचाना है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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