• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

मध्यप्रदेश में एक और किसान आत्महत्या कमलनाथ से कुछ कह रही है

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 26 दिसम्बर, 2018 04:32 PM
  • 26 दिसम्बर, 2018 04:32 PM
offline
मध्यप्रदेश में एक और किसान ने आत्महत्या कर ली है. कमलनाथ सरकार के कर्ज माफी करने के बाद 1 हफ्ते के अंदर दो किसानों की आत्महत्या एक संदेश दे रही है जो सरकार के लिए समझना जरूरी है.

मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है. जहां किसानों की कर्ज माफी को लेकर कमलनाथ सरकार अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है वहीं कर्ज माफी का फैसला आने के 1 हफ्ते के अंदर दो किसानों ने आत्महत्या कर ली है. विधानसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने वादा किया था कि अगर कांग्रेस की सरकार आती है तो 10 दिनों के अंदर किसानों की कर्ज माफी कर दी जाएगी. ये हुआ भी और हज़ारों किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन जैसे ही इस अध्यादेश की शर्तों के बारे में जानकारी मिली कई किसानों का दिल टूट गया.

शनिवार को खंडवा जिले के जौन सिंह ने एक पेड़ पर लटक कर आत्महत्या कर ली थी और अब शाजापुर जिले के प्रेम नारायण रघुवंशी ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली. प्रेम नारायण रघुवंशी अपने घर के एक लौते कमाऊ सदस्य थे. पिछले साल ज्यादा बारिश के कारण सोयाबीन की फसल खराब होने और इस साल कम बारिश के बाद गेहूं की फसल खराब होने से वो बेहद परेशान थे. बैंक के लगातार आते फोन उन्हें परेशान कर रहे थे और इस कारण ही उन्होंने आत्महत्या कर ली. कुछ ऐसा ही किस्सा जौन सिंह के साथ भी था जिसका नाम सरकार की कर्ज माफी वाली लिस्ट में नहीं आया था.

इन दोनों ही किसानों पर 3 लाख का लोन था और दोनों ही इसे चुका पाने में असमर्थ थे. कमलनाथ की कैबिनेट बनकर तैयार है और कांग्रेस सरकार मध्यप्रदेश में 15 सालों के वनवास के बाद आई है. ये उम्मीद की जा रही थी कि इस सरकार के आने के बाद प्रदेश में कुछ बेहतर होगा, लेकिन एक हफ्ते के अंदर ही दूसरे किसान की आत्महत्या ने यकीनन कमलनाथ कैबिनेट को नया चैलेंज दे दिया है. इन होने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए न सिर्फ कमलनाथ को, बल्कि राहुल गांधी और किसानों को भी कुछ सोचना चाहिए.

मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के सामने कर्ज माफी से भी बड़ी चुनौती ये...

मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है. जहां किसानों की कर्ज माफी को लेकर कमलनाथ सरकार अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है वहीं कर्ज माफी का फैसला आने के 1 हफ्ते के अंदर दो किसानों ने आत्महत्या कर ली है. विधानसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने वादा किया था कि अगर कांग्रेस की सरकार आती है तो 10 दिनों के अंदर किसानों की कर्ज माफी कर दी जाएगी. ये हुआ भी और हज़ारों किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन जैसे ही इस अध्यादेश की शर्तों के बारे में जानकारी मिली कई किसानों का दिल टूट गया.

शनिवार को खंडवा जिले के जौन सिंह ने एक पेड़ पर लटक कर आत्महत्या कर ली थी और अब शाजापुर जिले के प्रेम नारायण रघुवंशी ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली. प्रेम नारायण रघुवंशी अपने घर के एक लौते कमाऊ सदस्य थे. पिछले साल ज्यादा बारिश के कारण सोयाबीन की फसल खराब होने और इस साल कम बारिश के बाद गेहूं की फसल खराब होने से वो बेहद परेशान थे. बैंक के लगातार आते फोन उन्हें परेशान कर रहे थे और इस कारण ही उन्होंने आत्महत्या कर ली. कुछ ऐसा ही किस्सा जौन सिंह के साथ भी था जिसका नाम सरकार की कर्ज माफी वाली लिस्ट में नहीं आया था.

इन दोनों ही किसानों पर 3 लाख का लोन था और दोनों ही इसे चुका पाने में असमर्थ थे. कमलनाथ की कैबिनेट बनकर तैयार है और कांग्रेस सरकार मध्यप्रदेश में 15 सालों के वनवास के बाद आई है. ये उम्मीद की जा रही थी कि इस सरकार के आने के बाद प्रदेश में कुछ बेहतर होगा, लेकिन एक हफ्ते के अंदर ही दूसरे किसान की आत्महत्या ने यकीनन कमलनाथ कैबिनेट को नया चैलेंज दे दिया है. इन होने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए न सिर्फ कमलनाथ को, बल्कि राहुल गांधी और किसानों को भी कुछ सोचना चाहिए.

मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के सामने कर्ज माफी से भी बड़ी चुनौती ये है

राहुल गांधी को समझने की जरूरत है-

राहुल गांधी को ये समझने की जरूरत है कि समस्या सिर्फ किसी एक किसान या किसी एक राज्य की नहीं है. कर्ज माफी को मुद्दा बनाकर अगर वो प्रचार कर रहे हैं तो किसानों को आश्वासन भी दें कि हर किसी की बात सुनी जाएगी. अगर कोई किसान उस लिस्ट में नहीं आता है जो कर्ज माफी के लिए बनाई जा रही है तो भी वो अपनी फरियाद लेकर जा सकता है. किसानों को सिर्फ कर्ज माफी का आश्वासन देना सही नहीं है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस तरह कांग्रेस ने अपना प्रचार-प्रसार किया उससे हुआ ये कि जो किसान अपना कर्ज दे रहे थे उन्होंने भी कर्ज माफी के सपने देखना शुरू कर दिया. साथ ही, अगर राहुल गांधी ने कर्ज माफी का वादा ही 31 मार्च 2018 के बाद किया है तो फिर 31 मार्च तक कर्ज लेने की शर्त क्यों कर्ज माफी के आदेश में रखी गई? किसानों की आत्महत्या इसलिए शुरू हो गई है क्योंकि कई किसान उन शर्तों को पूरा नहीं कर पाए जो कर्ज माफी के लिए जरूरी थीं. सोचने वाली बात है कि शर्तों में कमी थी या कांग्रेस के वादे में?

सीएम कमलनाथ को समझने की जरूरत है-

सीएम कमलनाथ के लिए भी कुछ कड़े फैसले लेने का समय यही है. मध्यप्रदेश में कर्ज माफी की स्कीम करीब 33 लाख किसानों की सहायता करेगी और इसमें खर्च 50,000 करोड़ रुपए का है. कुल कर्ज किसानों ने जो लिया है वो 70,000 करोड़ है. ऐसे में अभी भी लाखों किसान बिना कर्ज माफी के अपना काम करने के लिए विवश हैं. पर कम से कम जब तक कर्ज माफी नहीं होती या उन्हें किसी तरह की राहत नहीं मिलती तब तक किसानों की मौजूदा समस्याओं का हल तो निकाला जा सकता है.

नीचे दिया वीडियो गुना का है जहां किसानों को खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है. सीएम शिवराज सिंह चौहान पहले ही कह चुके हैं कि मध्यप्रदेश में खाद की कमी नहीं है, लेकिन अगर फिर भी किसानों को परेशानी झेलनी पड़ रही है तो ये शर्म की बात है.

किसानों की मौजूदा समस्याएं तो हल की जाएं ताकि वो जल्दी से जल्दी अपनी अगली फसल पर काम कर पाएं. अगर किसी किसान के पास उम्मीद ही नहीं रहेगी तो भला वो कैसे हताश नहीं होगा.

किसानों को समझने की जरूरत है-

किसानों को ये समझने की जरूरत है कि एकदम हताश होने की जगह सरकार की अन्य स्कीम का फायदा उठाया जाए. ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक ही स्कीम के लिए परेशान हुआ जाए. कपास, गन्ना, अनाज, चावल, अन्नपूर्णा योजना, भू-जल संवर्धन योजना, बायोगैस योजना, बीमा योजना आदि पर ध्यान दिया जाए. अगर सरकार की बीमा योजना का ही सभी किसान इस्तेमाल करते हैं तो भी फसल के खराब होने पर बहुत बड़े नुकसान से बचा जा सकता है.

यहां मिलेगी सभी योजनाओं की जानकारी-

साहूकारों और ठेकेदारों से कर्ज लेने की जगह अगर सरकारी साधनों से कर्ज लिया जाए तो फायदे की गुंजाइश ज्यादा होती है.

किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है. उनके लिए सिर्फ स्कीम लॉन्च कर देना ही सरकार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि किसानों को खेती के लिए हर तरह की सुविधा मुहैया करवाना और साथ ही साथ किसानों को ऐसी स्कीम के लाभ के बारे में बताना उन्हें जागरुक करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है. अगर किसानों को उन स्कीमों का फायदा नहीं मिलेगा जो उनके लिए ही शुरू की गई हैं तो फिर किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला कैसे खत्म होगा.

ये भी पढ़ें-

कमलनाथ की सबसे बड़ी नाकामी इस किसान की आत्महत्या ही तो है!

कर्जमाफी तो ठीक है लेकिन असली समस्या भी देखने की जरूरत है




इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲