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पाकिस्तान से घुसी टिड्डियों ने किसानों को भी प्रवासी मजदूर सा बना दिया

    • अंकिता जैन
    • Updated: 02 जून, 2020 04:51 PM
  • 02 जून, 2020 04:51 PM
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कोरोना वायरस (Coronavirus) के चलते यूं ही देश के सामने चुनौतियों का पहाड़ है ऐसे में जिस तरह टिड्डियों ने हमला (Locust Attack) किया है उसने भी सरकार (Modi Government) को परेशानी दे दी है. माना जा रहा है कि यदि अब भी इस पर कोई थोड़ कदम न उठाए गए तो ये देश के कृषि सेक्टर (Agriculture) को बुरी तरह प्रभावित करेगा.

देश का किसान आज दोहरी-तिहरी मौत के भय में जी रहा है. कोरोना से बच भी गए तो, टिड्डी दलों के हमले (Locust attack) से खेत-के-खेत चाट जाने से मरेंगे, उससे बच गए तो बिन मौसम बारिश-ओला-सूखा से मरेंगे. हमारे खेत में इस साल लीची खोजने से मिल रही है, बमुश्किल. ओलावृष्टि से आम और लीची पूरा ख़राब हो गया है. लीची में कीड़े लग गए हैं. जबकि वैदिक वाटिका की लीची विगत वर्ष रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ आदि कई शहरों में पहुंची थी. इसके अलावा सब्जियां लगभग सारी ख़राब हुईं. अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के बाद अब छत्तीसगढ़ में दूसरा ख़तरा टिड्डी दलों के हमले का है. टिड्डी दल पाकिस्तानी सीमा पर गर्मी बढ़ने से करोड़ों की संख्या में राजस्थान बॉर्डर से इस तरफ़ घुसा. अब वह तबाही मचा रहा है.

आप तस्वीरें देखेंगे तो किसी हॉलीवुड फ़िल्म की सी लगेगी जिसमें अचानक ही असंख्यात कीड़ें खेतों-पेड़ों पर लदकर मिनटों में सब साफ़ कर देते हैं. राजस्थान से होते हुए ये मध्यप्रदेश में घुसे जहां इन्होंने नीमच, पन्ना, सतना, छतरपुर और महाराष्ट्र में अमरावती में हमला किया. फसलों को नुकसान पहुंचाया. चार हिस्सों में बंटे ये दल एक दिन में 150 किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं. सुबह 7 से शाम 5 बजे तक घूमते हुए जहां जगह मिलती है वहीं अटैक करते हैं. समस्या यह है कि ये जहां आराम करते हैं वहीं अंडे भी देते हैं.

पाकिस्तान से आई टिड्डियों ने भारत की चुनौतियां बढ़ा दी हैं

इससे इनकी संख्या और बढ़ती है. हालांकि जहां-जहां इनके हमले की आशंका है वहां-वहां स्थानीय प्रशासन ने तैयारी की हैं. इन्हें भगाने के लिए फायरबिग्रेड से दवाइयों का छिड़काव. ढोल, डीजे, थाली-बर्तन, नगाड़े या किसी भी तरह की आवाज़ से ये भागते हैं. किसानों को हिदायत दी गई है कि वे नज़र बनाए रखें. हमला होते ही बचाव कार्य...

देश का किसान आज दोहरी-तिहरी मौत के भय में जी रहा है. कोरोना से बच भी गए तो, टिड्डी दलों के हमले (Locust attack) से खेत-के-खेत चाट जाने से मरेंगे, उससे बच गए तो बिन मौसम बारिश-ओला-सूखा से मरेंगे. हमारे खेत में इस साल लीची खोजने से मिल रही है, बमुश्किल. ओलावृष्टि से आम और लीची पूरा ख़राब हो गया है. लीची में कीड़े लग गए हैं. जबकि वैदिक वाटिका की लीची विगत वर्ष रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ आदि कई शहरों में पहुंची थी. इसके अलावा सब्जियां लगभग सारी ख़राब हुईं. अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के बाद अब छत्तीसगढ़ में दूसरा ख़तरा टिड्डी दलों के हमले का है. टिड्डी दल पाकिस्तानी सीमा पर गर्मी बढ़ने से करोड़ों की संख्या में राजस्थान बॉर्डर से इस तरफ़ घुसा. अब वह तबाही मचा रहा है.

आप तस्वीरें देखेंगे तो किसी हॉलीवुड फ़िल्म की सी लगेगी जिसमें अचानक ही असंख्यात कीड़ें खेतों-पेड़ों पर लदकर मिनटों में सब साफ़ कर देते हैं. राजस्थान से होते हुए ये मध्यप्रदेश में घुसे जहां इन्होंने नीमच, पन्ना, सतना, छतरपुर और महाराष्ट्र में अमरावती में हमला किया. फसलों को नुकसान पहुंचाया. चार हिस्सों में बंटे ये दल एक दिन में 150 किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं. सुबह 7 से शाम 5 बजे तक घूमते हुए जहां जगह मिलती है वहीं अटैक करते हैं. समस्या यह है कि ये जहां आराम करते हैं वहीं अंडे भी देते हैं.

पाकिस्तान से आई टिड्डियों ने भारत की चुनौतियां बढ़ा दी हैं

इससे इनकी संख्या और बढ़ती है. हालांकि जहां-जहां इनके हमले की आशंका है वहां-वहां स्थानीय प्रशासन ने तैयारी की हैं. इन्हें भगाने के लिए फायरबिग्रेड से दवाइयों का छिड़काव. ढोल, डीजे, थाली-बर्तन, नगाड़े या किसी भी तरह की आवाज़ से ये भागते हैं. किसानों को हिदायत दी गई है कि वे नज़र बनाए रखें. हमला होते ही बचाव कार्य में लगें. यदि रात को खेत में रुकते हैं तो ब्रह्ममुहूर्त में दवाइयों का छिड़काव करें, ताकि अंडे ना रहने पाएं. पहले से घरों में दवाइयां लाकर रखें.

समस्या यह है कि ये जिस ओर हवा होती है उसी तरफ़ इनके उड़ जाने की आशंका होती है. ऐसे में किसी ऐसे स्थान पर पहुंचना जहां बचाव की कोई तैयारी नहीं है, बड़ा नुकसान हो सकता है. सरकार ने पहले ही घोषणा कर दी है कि फ़सल ख़राब होने पर किसानों को मुआवज़ा दिया जाएगा. लेकिन मुआवज़ा कभी भी फ़सल से होने वाली कमाई की भरपाई नहीं करता. ऐसे में किसान बड़ी मार झेलता है. किसानों के लिए आए दिन आंदोलन होते हैं.

ख़ूब बड़े-बड़े. महाराष्ट्र वाला आंदोलन तो याद ही होगा. छिले पैरों की तस्वीर ख़ूब वायरल हुई थी. सुविधाओं के घेरे में लोट लगते मानव की संवेदना बस यहीं तक सीमित है. उसे लगता है एक ग़रीब किसान की छिले हुए पैरों के साथ तस्वीर की अगर डीपी बना लूं तो दुनिया मुझे किसानों का रखवाला समझने लगेगी. फिर भले मैं अगले ही दिन किसान से बार्गेनिंग करके सब्जी खरीदूं.

मंडी तक जाने की जद्दोजहद से बचने के लिए मार्ट से पैक्ड सब्जी खरीदूं. ये सब किसान को नुकसान थोड़ी पहुंचाता है. है ना? असल में ये छोटे किसानों को कितना नुकसान पहुंचाते हैं ये समझने की ज़रूरत है. लॉकडाउन जब शुरू हुआ तो बड़ी हाय-तौबा हुई किसान के लिए.

हाय रे किसान, ओह रे किसान. किसानों के लिए सरकार क्या कर रही है के भी नारे आए दिन सुनते रहते हैं. लेकिन क्या किसानों की समस्या सिर्फ़ पैसों से हल हो सकती हैं? सिर्फ टिड्डीदल ही नहीं हमें किसानों की हर समस्या को जड़ में उतरकर समझना होगा. वरना यकीन मानिए हर आंदोलन बेकार है. और आपकी संवेदनाएं भी. और हां हो सके तो छोटे किसानों से सब्जियाँ खरीदिए. बार्गेनिंग किए बिना. 

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