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Lockdown 2: जानिए कहां कमी रह गई 21 दिन वाले लॉकडाउन में

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 14 अप्रिल, 2020 04:11 PM
  • 14 अप्रिल, 2020 04:11 PM
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लॅाकडाउन पार्ट-2 (lockdown 2) की चर्चा है और कहा जा रहा है कि इसमें सरकार अर्थव्यवस्था (Economy) को गति देने के लिए कुछ छूट दे सकती है लेकिन अगला लॅाकडाउन बहुत सख्त करने की ज़रूरत है क्योंकि सोशल डिस्टेंस (Social Distance) का पालन ना करके कुछ लोगों ने लॅाकडाउन-1 की धज्जियां उड़ा दी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 25 मार्च से देश भर में 21 दिनों का लॅाकडाउन (Lockdown) लगाया ताकि कोरोना वायरस (Coronavirus) पर काबू पाया जा सके. जानकारों का मानना है कि 21 दिनों का लॅाकडाउन किसी वायरस की चेन को तोड़ने के लिए एक सही समय सीमा है. 21 दिन बीतने का निष्कर्ष ये है कि वायरस पूरी तरह से काबू में आया नहीं हैे. कोरोना वायरस पर काबू पाना तो दूर उसकी बढ़ती रफ्तार पर भी लगाम नहीं लग पा रही है. तो आखिर सवाल उठता है क्या लॅाकडाउन पूरी तरह से फेल हो गया? इसका जवाब भी वही होगा हरगिज़ नहीं. तो फिर आखिर 21 दिनों की लॅाकडाउन की समयसीमा पूरी होने से पहले ही लॅाकडाउन बढ़ाने की मांग तेज़ी के साथ क्यों उठी. दरअसल हकीकत तो यही है कि लॅाकडाउन का सही से पालन ही नहीं किया गया है. जिस तरह की तस्वीरें इस लॅाकडाउन के बीच देखने को मिल रही थी उससे यह साफ हो चला है कि नियमों को दरकिनार किया गया है.

लॉक डाउन के दौरान नियम तोड़ने वालों को सजा देती पुलिस

पुलिस वालों को मशक्कत करनी पड़ी है. बल का इस्तेमाल भी करना पड़ा है ताकि लोग अपने अपने घरों में ही रह सकें लेकिन लोगों का बेवजह घर से निकलना बदस्तूर जारी रहा. जिससे समस्या कम होने के बजाए बढ़ती गई. लॅाकडाउन के ऐलान के बाद से ही इसकी धज्जियां उड़नी शुरू हो गई थी. सबसे पहले बड़े-बड़े शहरों से लोगों का पलायन बढ़ा जहां सोशल डिस्टेंसिंग का जमकर मज़ाक उड़ाया गया. उसके बाद अलग अलग राज्यों से तस्वीरें आती रहीं.

कहीं जुमे की नमाज़ के लिए लोग इकठ्ठा हुए. कहीं बाजारों में खरिदारी के लिए भीड़ जुट गई. कहीं जन्मदिन का आयोजन किया गया तो कहीं तेरहीं की दावत की गई. हद तो इस बात की हो गई कि कई जगहों से यह खबर आई कि लॅाकडाउन का सही से पालन कराने के लिए पुलिस...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 25 मार्च से देश भर में 21 दिनों का लॅाकडाउन (Lockdown) लगाया ताकि कोरोना वायरस (Coronavirus) पर काबू पाया जा सके. जानकारों का मानना है कि 21 दिनों का लॅाकडाउन किसी वायरस की चेन को तोड़ने के लिए एक सही समय सीमा है. 21 दिन बीतने का निष्कर्ष ये है कि वायरस पूरी तरह से काबू में आया नहीं हैे. कोरोना वायरस पर काबू पाना तो दूर उसकी बढ़ती रफ्तार पर भी लगाम नहीं लग पा रही है. तो आखिर सवाल उठता है क्या लॅाकडाउन पूरी तरह से फेल हो गया? इसका जवाब भी वही होगा हरगिज़ नहीं. तो फिर आखिर 21 दिनों की लॅाकडाउन की समयसीमा पूरी होने से पहले ही लॅाकडाउन बढ़ाने की मांग तेज़ी के साथ क्यों उठी. दरअसल हकीकत तो यही है कि लॅाकडाउन का सही से पालन ही नहीं किया गया है. जिस तरह की तस्वीरें इस लॅाकडाउन के बीच देखने को मिल रही थी उससे यह साफ हो चला है कि नियमों को दरकिनार किया गया है.

लॉक डाउन के दौरान नियम तोड़ने वालों को सजा देती पुलिस

पुलिस वालों को मशक्कत करनी पड़ी है. बल का इस्तेमाल भी करना पड़ा है ताकि लोग अपने अपने घरों में ही रह सकें लेकिन लोगों का बेवजह घर से निकलना बदस्तूर जारी रहा. जिससे समस्या कम होने के बजाए बढ़ती गई. लॅाकडाउन के ऐलान के बाद से ही इसकी धज्जियां उड़नी शुरू हो गई थी. सबसे पहले बड़े-बड़े शहरों से लोगों का पलायन बढ़ा जहां सोशल डिस्टेंसिंग का जमकर मज़ाक उड़ाया गया. उसके बाद अलग अलग राज्यों से तस्वीरें आती रहीं.

कहीं जुमे की नमाज़ के लिए लोग इकठ्ठा हुए. कहीं बाजारों में खरिदारी के लिए भीड़ जुट गई. कहीं जन्मदिन का आयोजन किया गया तो कहीं तेरहीं की दावत की गई. हद तो इस बात की हो गई कि कई जगहों से यह खबर आई कि लॅाकडाउन का सही से पालन कराने के लिए पुलिस कार्य कर रही थी और बदले में उन्हीं पुलिसवालों पर हमला कर दिया गया.

लोग इतनी बेहूदा और गैरजिम्मेदाराना हरकत कैसे कर सकते हैं क्योंकि पुलिस उनको इसलिए समझा रही है ताकि उनकी और उनके परिवार वालों की जान बच सके. पुलिस खुद को खतरे में डाल कर अपनी ड्यूटी निभा रही है. बदले में पुलिस पर ही हमला करना किसी बड़े अपराध से कम नहीं है. लॅाकडाउन का कड़ाई से पालन लोगों को खुद से करना चाहिए था. क्योंकि यह लॅाकडाउन हर एक नागरिक के लिए था. उनकी ही सुरक्षा के लिए किया गया था. लेकिन हद हो गई. पुलिस लोगों से अपील करते करते थक गई, लेकिन लोग मानने को तैयार ही नहीं दिखे.

पुलिस ने जब बल का इस्तेमाल किया तो लोग डरे लेकिन पुलिस की गैरमौजूदगी में मामला वही जस का तस रहा. देश में जिस तरह से कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है उससे सभी को संवेदनशील हो जाना चाहिए, लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं. उनको अंदाज़ा ही नहीं है कि यह कितना खतरनाक है उनके लिए और उनके परिवार के लिए. ये एक सच्चाई है अगर लोगों को डर होता तो वह इसका पालन करते लेकिन लोग बेखौफ होकर सड़कों पर घूम फिर रहे हैं.

नियम तोड़ने के मामले में देश के तमाम हिस्सों से एक जैसी तस्वीरें आ रही हैं

यह बेहद बुरा अनुभव है कि लोगों को कहा जा रहा है कि घर में रहें सोशल डिस्टेंस का पालन करें लेकिन इसको लगातार अनसुना किया जा रहा था. लॅाकडाउन करने से भारत सरकार को हर दिन अरबों-खरबों का नुकसान झेलना पड़ रहा है लेकिन सरकार के लिए देश के नागरिकों की सुरक्षा ज़्यादा ज़रूरी थी इसलिए लॅाकडाउन का फैसला लिया गया था.

लॅाकडाउन का अगर सही से पालन कर लिया जाए तो इस कोरोना नामक महामारी से जल्दी ही छुटकारा पाया जा सकता है. कोरोना वायरस से लड़ाई किसी युद्ध से कम नहीं है और यह लड़ाई ऐसी लड़ाई है जिससे कोई भी सरकार या कोई भी व्यक्ति अकेले नहीं लड़ सकता है, इसमें देश के सभी नागरिकों को साथ मिलकर लड़ना है, इस लड़ाई में हर किसी को योगदान देना है.

हर किसी की भूमिका ज़रूरी है, इस लड़ाई को जीतने के लिए लोगों को सोशल डिस्टेंस का पालन अवश्य करना होगा और यह किसी पुलिस के डर से नहीं बल्कि खुद से करना चाहिए. जिन लोगों में लक्षण हैं या संदिग्ध हैं उनको खुद से आगे आकर जाँच करानी चाहिए. लोगों को यह ज़रूर समझना चाहिए कि इस पूरी लड़ाई को हमें ही लड़ना है.

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए लॅाकडाउन की अवधि को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया है. यह लॅाकडाउन बहुत सख्त होना चाहिए, वरना इस दौरान भी पहले के जैसी लापरवाही रही नागरिकों की ओर से, तो इस लॅाकडाउन का भी वही हाल होगा जो अभी का है. सख्ती ज़रूरी है क्योंकि लोगों का बेवजह घर से बाहर घूमना बतलाता है कि यह लातों के भूत हैं बातों से नहीं मानते. इनके खिलाफ सख्त होने की ही ज़रूरत है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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