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भारत में 3,30,487 'आर्यन खान' हैं, उन पर कितनों का ध्यान जाता है?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 28 अक्टूबर, 2021 09:16 PM
  • 25 अक्टूबर, 2021 08:23 PM
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कहना गलत नहीं होगा कि अंडरट्रायल कैदियों (Undertrial Prisoners) में से निरपराध लोगों की संख्या भी होगी. लेकिन, यह लोग केवल गरीबी और अशिक्षा की दोहरी मार की वजह से जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी के कीमती साल गुजारने को मजबूर हैं. मुंबई क्रूज ड्रग केस में गिरफ्तार हुए आर्यन खान (Aryan Khan) की तरह ये लोग भी जमानत के लिए तरस रहे हैं.

जगजीवन राम यादव की यातना भरी कहानी पढ़ि‍ए. कथित तौर पर पड़ोसी की पत्नी की हत्या के आरोप में उसे जेल भेज दिया गया था. तब वो 30 साल का था. लेकिन, उसके केस पर कभी कोई मुकदमा या सुनवाई नहीं हुई. जगजीवन राम यादव ने बिना दोषी साबित हुए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी के कीमती 38 साल बिता दिए. एक निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका सिर्फ इस वजह से खारिज कर दी कि पुलिस रिकॉर्ड से केस से जुड़े सभी दस्तावेज गायब हो गए हैं. यानी, गलती पुलिस महकमे की, और भुगता जगजीवन ने. वह 1967 में गिरफ्तार हुआ, लेकिन 2006 में छूट पाया. उसकी रिहाई का आदेश देने वाले फैजाबाद के तत्कालीन एडिशनल सेशन जज लालचंद्र त्रिपाठी ने लिखा था- 'यह अफसोसनाक है कि जघन्यतम अपराध करने वाले मुल्जिम बाहर आजाद घूम रहे हैं, और यह शख्स बिना सुनवाई के 38 साल से जेल में पड़ा रहा.'

जगजीवन राम यादव को 38 साल बाद 18 जनवरी 2006 में जेल से रिहाई मिली थी.

जगजीवन राम यादव को 18 जनवरी 2006 में जेल से रिहाई मिली थी. कहा जा सकता है कि शायद बिना किसी जुर्म के ही जगजीवन को 38 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े. मुंबई क्रूज ड्रग केस (Mumbai Cruise Drug Case) में गिरफ्तार हुए बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan) को आखिर मुंबई हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. लेकिन, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या 3,30,487 है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में 3,30,487 'आर्यन खान' हैं. अंडरट्रायल कैदियों की यह संख्या दुनियाभर के तमाम देशों की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के मुकाबले कहीं ज्यादा है.

कहना गलत नहीं होगा कि आर्यन खान को आज नहीं तो कुछ समय बाद जमानत मिल ही...

जगजीवन राम यादव की यातना भरी कहानी पढ़ि‍ए. कथित तौर पर पड़ोसी की पत्नी की हत्या के आरोप में उसे जेल भेज दिया गया था. तब वो 30 साल का था. लेकिन, उसके केस पर कभी कोई मुकदमा या सुनवाई नहीं हुई. जगजीवन राम यादव ने बिना दोषी साबित हुए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी के कीमती 38 साल बिता दिए. एक निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका सिर्फ इस वजह से खारिज कर दी कि पुलिस रिकॉर्ड से केस से जुड़े सभी दस्तावेज गायब हो गए हैं. यानी, गलती पुलिस महकमे की, और भुगता जगजीवन ने. वह 1967 में गिरफ्तार हुआ, लेकिन 2006 में छूट पाया. उसकी रिहाई का आदेश देने वाले फैजाबाद के तत्कालीन एडिशनल सेशन जज लालचंद्र त्रिपाठी ने लिखा था- 'यह अफसोसनाक है कि जघन्यतम अपराध करने वाले मुल्जिम बाहर आजाद घूम रहे हैं, और यह शख्स बिना सुनवाई के 38 साल से जेल में पड़ा रहा.'

जगजीवन राम यादव को 38 साल बाद 18 जनवरी 2006 में जेल से रिहाई मिली थी.

जगजीवन राम यादव को 18 जनवरी 2006 में जेल से रिहाई मिली थी. कहा जा सकता है कि शायद बिना किसी जुर्म के ही जगजीवन को 38 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े. मुंबई क्रूज ड्रग केस (Mumbai Cruise Drug Case) में गिरफ्तार हुए बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan) को आखिर मुंबई हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. लेकिन, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या 3,30,487 है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में 3,30,487 'आर्यन खान' हैं. अंडरट्रायल कैदियों की यह संख्या दुनियाभर के तमाम देशों की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के मुकाबले कहीं ज्यादा है.

कहना गलत नहीं होगा कि आर्यन खान को आज नहीं तो कुछ समय बाद जमानत मिल ही जाएगी. लेकिन, इन 3,30,487 अंडरट्रायल कैदियों (जिनकी संख्या हर साल बढ़ रही है) के बारे में देश की सरकारें और लोग कितना सोचते होंगे? वैसे, आर्यन खान को मामले में गुण-दोष के आधार पर जमानत देना या न देना पूरी तरह से अदालत का फैसला है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत की जेलों में सलाखों के पीछे पड़े इन अंडरट्रायल कैदियों पर कितनों का ध्यान जाता है?

बेल के आदेश के बाद भी इन कैदियों को नहीं मिलती जमानत

जगजीवन राम यादव का मामला भारतीय न्याय व्यवस्था की कमजोरियां दिखाने के लिए काफी है. भारत के इन अंडरट्रायल कैदियों में से कई ऐसे हैं, जिन्हें अदालत से जमानत मिल चुकी है. लेकिन, इनके पास जमानतदार ही नही हैं. जमानत ले सकने वाले लोगों के इंतजार में ये लोग महीनों तक यूं ही जेल में रहने को मजबूर हैं. इनमें से कई अंडरट्रायल कैदियों के पास तो मुकदमों में आगे की पैरवी के लिए पैसे ही नहीं होते हैं. इन अंडरट्रायल कैदियों में से करीब 28 फीसदी अनपढ़ हैं. वहीं, 90 फीसदी से ज्यादा कैदी ग्रेजुएट नही हैं. इस आंकड़े से अंदाजा लगाना मुश्किल नही है कि अंडरट्रायल कैदियों के मुकदमों की पैरवी और जमानत से जुड़ी चीजें कितनी कठिन होंगी? जिन्हें कानून के 'क' का भी ठीक तरह से ज्ञान ही न हो, वो कैसे जमानत के लिए बड़ी अदालतों तक पहुंच पाएंगे. राज्य विधिक सेवा प्राधिकार की ओर से इन अंडरट्रायल कैदियों के कितने मामलों पर विचार किया जाता है, इसका कोई आंकड़ा मौजूद नही है.

तय होनी चाहिए जेल में रखने की समयसीमा

वैसे, भारतीय न्याय व्यवस्था में इंसाफ में मिलने वाली देरी का जगजीवन राम यादव इकलौते उदाहरण नही हैं. इसी साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विष्णु तिवारी नाम के एक शख्स को दुष्कर्म के आरोप से बरी करते हुए निर्दोष करार दिया था. जगजीवन और विष्णु तिवारी जैसे तमाम मामलों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि अंडरट्रायल कैदियों में से निरपराध लोगों की संख्या भी होगी. लेकिन, यह लोग केवल गरीबी और अशिक्षा की दोहरी मार की वजह जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी के कीमती साल गुजारने को मजबूर हैं. हत्या तक के मामले में लोग पैसों और पैरवी के दम पर आसानी से जमामत पर जेल से बाहर आ जाते हैं. लेकिन, एक सामान्य से अपराध का विचाराधीन कैदी भी अनिश्चिचकाल के लिए जेल में रहने को केवल इस वजह से मजबूर हो जाता है, क्योंकि वह गरीब और अशिक्षित है. यह अमानवीयता का सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है.

आर्यन खान और उनके जैसे सुविधासंपन्न अन्य अंडरट्रायल कैदियों के लिए देश में जमानत मिलना बहुत बड़ी बात नहीं कहा जा सकती है. कहना गलत नहीं होगा कि भारत में अपराध के हिसाब से गुण-दोष देखते हुए जेल में अंडरट्रायल कैदियों को रखने की एक समयसीमा तय की जानी चाहिए. जिससे उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न हो. इतना ही नहीं, जब अंतरिम जमानत जैसी व्यवस्था मौजूद हो इस स्थिति में किसी आरोपी की जमानत का लंबी चलने वाली अदालती औपचारिकताओं को पूरा करने के नाम पर बलि नहीं ली जा सकती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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