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कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए लॉकडाउन विकल्प क्यों नहीं हो सकता है? जानिए...

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 05 मई, 2021 09:14 PM
  • 05 मई, 2021 09:14 PM
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लॉकडाउन की वजह से बीते साल लाखों लोगों की नौकरियां गई थीं. कुछ समय पहले ही अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) की एक रिसर्च सामने आई थी. जिसमें बताया गया था कि बीते साल करीब 3.2 करोड़ भारतीय मिडिल क्लास से बाहर हो गए हैं. साथ ही भारत में गरीबों की संख्या में भी 7.5 करोड़ नये लोग जुड़ गए हैं.

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने भारत में तांडव मचा दिया है. कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही चिंताजनक बढ़ोत्तरी को रोकने के लिए विशेषज्ञों की टीम से लेकर विपक्षी दलों के राजनेता भी लॉकडाउन लगाने की बात कहते नजर आ रहे हैं. कई राज्यों में आंशिक तौर पर, तो कई जगहों पर संपूर्ण लॉकडाउन लगा भी दिया गया है. इसके बावजूद स्थितियां भयावह ही नजर आ रही हैं. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन को 'अंतिम विकल्प' बताया था. नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में राज्य सरकारों को माइक्रो कंटेनमेंट जोन पर ध्यान देने की बात कही थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए लॉकडाउन विकल्प क्यों नहीं हो सकता है?

टीकाकरण अभियान के करीब चार महीने बीत जाने के बाद भी भारत में अब तक करीब 16 करोड़ लोगों का ही वैक्सीनेशन हो सका है.

कुछ हफ्तों के लॉकडाउन से नहीं रुक पाएगा कोरोना संक्रमण

अमेरिका से लेकर भारत के विशेषज्ञ दलील दे रहे हैं कि कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए भारत में कुछ हफ्तों के लिए लॉकडाउन लगाना चाहिए. मान लिया जाए कि भारत सरकार देशभर में कुछ हफ्तों का लॉकडाउन लगाने की घोषणा कर देती है. लेकिन, उसके बाद अनलॉक प्रक्रिया का भी पालन करना पड़ेगा. लॉकडाउन को अचानक से ही नहीं खोला जा सकता है. ऐसा करते ही जिस चीज को रोकने की कवायद की गई है, वह कुछ ही समय में फिर से विकराल रूप ले लेगी. बीते साल की ही तरह लॉक-अनलॉक की प्रक्रिया में करीब 10 महीनों का समय लग जाएगा. वैक्सीनेशन न होने से लोगों में संक्रमण का खतरा बना रहेगा. हर्ड इम्यूनिटी पाने के लिए भी करीब 70 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन होना जरूरी है. ऐसी स्थिति में यह कह देना कि कुछ हफ्तों के लॉकडाउन से संक्रमण के मामलों में सुधार आ जाएगा, नाकाफी लगता है. लॉकडाउन से कोरोना संक्रमण के मामले कम हो सकते हैं, लेकिन इस पर रोक नहीं लग पाएगी. 

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने भारत में तांडव मचा दिया है. कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही चिंताजनक बढ़ोत्तरी को रोकने के लिए विशेषज्ञों की टीम से लेकर विपक्षी दलों के राजनेता भी लॉकडाउन लगाने की बात कहते नजर आ रहे हैं. कई राज्यों में आंशिक तौर पर, तो कई जगहों पर संपूर्ण लॉकडाउन लगा भी दिया गया है. इसके बावजूद स्थितियां भयावह ही नजर आ रही हैं. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन को 'अंतिम विकल्प' बताया था. नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में राज्य सरकारों को माइक्रो कंटेनमेंट जोन पर ध्यान देने की बात कही थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए लॉकडाउन विकल्प क्यों नहीं हो सकता है?

टीकाकरण अभियान के करीब चार महीने बीत जाने के बाद भी भारत में अब तक करीब 16 करोड़ लोगों का ही वैक्सीनेशन हो सका है.

कुछ हफ्तों के लॉकडाउन से नहीं रुक पाएगा कोरोना संक्रमण

अमेरिका से लेकर भारत के विशेषज्ञ दलील दे रहे हैं कि कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए भारत में कुछ हफ्तों के लिए लॉकडाउन लगाना चाहिए. मान लिया जाए कि भारत सरकार देशभर में कुछ हफ्तों का लॉकडाउन लगाने की घोषणा कर देती है. लेकिन, उसके बाद अनलॉक प्रक्रिया का भी पालन करना पड़ेगा. लॉकडाउन को अचानक से ही नहीं खोला जा सकता है. ऐसा करते ही जिस चीज को रोकने की कवायद की गई है, वह कुछ ही समय में फिर से विकराल रूप ले लेगी. बीते साल की ही तरह लॉक-अनलॉक की प्रक्रिया में करीब 10 महीनों का समय लग जाएगा. वैक्सीनेशन न होने से लोगों में संक्रमण का खतरा बना रहेगा. हर्ड इम्यूनिटी पाने के लिए भी करीब 70 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन होना जरूरी है. ऐसी स्थिति में यह कह देना कि कुछ हफ्तों के लॉकडाउन से संक्रमण के मामलों में सुधार आ जाएगा, नाकाफी लगता है. लॉकडाउन से कोरोना संक्रमण के मामले कम हो सकते हैं, लेकिन इस पर रोक नहीं लग पाएगी. 

बीते साल की ही तरह लॉक-अनलॉक की प्रक्रिया में करीब 10 महीनों का समय लग जाएगा.

लॉकडाउन की जगह वैक्सीनेशन पर देना होगा जोर

भारत सरकार की ओर से चलाए जा रहे वैक्सीनेशन अभियान को चार महीने बीत चुके हैं. 1 मई से 18+ लोगों के टीकाकरण को भी केंद्र सरकार की ओर से हरी झंडी मिल गई है. इसके बावजूद अब तक करीब 16 करोड़ लोगों का ही वैक्सीनेशन हो सका है. शुरुआती महीनों में कुछ राजनेताओं समेत कथित बुद्धिजीवी वर्ग के कई लोगों ने वैक्सीन को लेकर भ्रामक बातें फैलाई थीं. मानिए या न मानिए, इसका असर व्यापक रूप से टीकाकरण अभियान पर पड़ा था. काफी हद तक लोगों में वैक्सीन को लेकर अभी भी हिचकिचाहट मौजूद है. हालांकि, कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से अब लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तमाम जद्दोजहद कर रहे हैं. केंद्र सरकार को वैक्सीनेशन के लिए प्रयासों को बढ़ाना होगा.विदेश में इस्तेमाल की जा रही वैक्सीन को भारत में जल्द मंजूरी दी जानी चाहिए. जिससे लोगों का बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन किया जा सके.

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान केवल अप्रैल महीने में ही करीब 70 लाख लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है.

गरीब तबके और मिडिल क्लास की खराब हो जाएगी हालत

लॉकडाउन की वजह से बीते साल लाखों लोगों की नौकरियां गई थीं. कुछ समय पहले ही अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) की एक रिसर्च सामने आई थी. जिसमें बताया गया था कि बीते साल करीब 3.2 करोड़ भारतीय मिडिल क्लास से बाहर हो गए हैं. साथ ही भारत में गरीबों की संख्या में भी 7.5 करोड़ नये लोग जुड़ गए हैं. भारत के इकोनॉमिक थिंक टैंक सीएमआईई की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान केवल अप्रैल महीने में ही करीब 70 लाख लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. लॉकडाउन लगाने से बेरोजगारी के आंकड़ों लगातार बढ़ेंगे और इसे रोक पाना किसी के बस की बात नहीं होगी. मुफ्त राशन के सहारे गरीबों का भला नहीं हो सकेगा. लोगों के हाथ में पैसे नहीं होंगे, तो उनके खाने के लाले पड़ जाएंगे. लोगों ने बीते साल लॉकडाउन में अपनी सेविंग्स खत्म कर दीं. 2021 की शुरुआत में लोगों ने बड़ी संख्या में गोल्ड लोन वगैरह के जरिये अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश की. अगर फिर से लॉकडाउन लगता है, तो इन लोगों की आर्थिक रूप से कमर टूटना तय है.

देश अभी बीते साल लगे लॉकडाउन के आर्थिक झटके से ही बाहर नहीं आ पाया है.

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से बिगड़ जाएगी देश की अर्थव्यवस्था

बीते साल लॉकडाउन के दौरान 2020-21 वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी में 23.9 फीसदी गिरावट दर्ज की गई थी. कृषि सेक्टर को छोड़कर अन्य सभी उद्योग-व्यापार ठप रहने से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा. वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में जीडीपी में 7.5 फीसदी नीचे आ गई. इसके साथ ही देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया था. वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी में 0.4 फीसदी की मामूली सी बढ़ोत्तरी हुई थी. इसे आधार माना जाए, तो देश अभी बीते साल लगे लॉकडाउन के आर्थिक झटके से ही बाहर नहीं आ पाया है. ऐसी स्थिति में अगर दोबारा लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया जाता है, तो देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा जाएगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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