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केरल में तबाही के पीछे कारण क्या हैं?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 19 अगस्त, 2018 01:44 PM
  • 19 अगस्त, 2018 01:44 PM
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हाल के विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के कारण बारिश में अत्यधिक वृद्धि हुई और इसका परिणाम बाढ़ के रूप में जबरदस्त तबाही देखने को मिली है.

केरल में भारी तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है. बारिश, संबंधित बाढ़ और भूस्खलन से लगभग 8 अगस्त के बाद से 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. कई जिलों में लोग घरों में फंसे हुए हैं. बाढ़ों का पानी उनके घरों में घुस गया है. कई के घर तो पूरे डूब गए हैं. उन्हें घर छोड़ कर दूसरे सुरक्षित स्थान में जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. अब तक राज्य में सामान्य से 30 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है. राज्य में तकरीबन 2200 मिलीमीटर बारिश अभी तक दर्ज की जा चुकी है. 1924 के बाद से राज्य में पहली बार इस तरह की भारी बारिश और बाढ़ देखने को मिल रही है. हालाँकि राज्य के उत्तर क्षेत्र में स्थिति कुछ सुधरी है, लेकिन सेंट्रल केरल में अभी भी भयावह स्थिति बनी हुई है. केरल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि राज्य के 39 डैम में से 35 डैम को खोला गया हो. स्थिति कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केरल अपना सबसे बड़ा त्यौहार ओणम धूमधाम से मनाने में असक्षम हैं.

केरल में 8 अगस्त के बाद से 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं

केरल में इस बाढ़ आपदा के लिए किसे उत्तरदायी माना जायेगा? क्या हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या जलवायु परिवर्तन इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या ग्लोबल वार्मिंग इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? केरल उन राज्यों में से एक है जहां मानसून के दौरान सबसे ज्यादा बारिश होती है. लेकिन इस साल भारत के पश्चिमी तट पर निरंतर कम दबाव की स्थिति के चलते राज्य में बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है. हाल के विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के कारण बारिश में अत्यधिक वृद्धि हुई और इसका परिणाम बाढ़ के रूप में जबरदस्त तबाही देखने को मिली है.

पश्चिमी घाट विशेषज्ञ पैनल के एक सदस्य पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वीएस विजयन ने कहा कि केरल मानव...

केरल में भारी तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है. बारिश, संबंधित बाढ़ और भूस्खलन से लगभग 8 अगस्त के बाद से 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. कई जिलों में लोग घरों में फंसे हुए हैं. बाढ़ों का पानी उनके घरों में घुस गया है. कई के घर तो पूरे डूब गए हैं. उन्हें घर छोड़ कर दूसरे सुरक्षित स्थान में जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. अब तक राज्य में सामान्य से 30 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है. राज्य में तकरीबन 2200 मिलीमीटर बारिश अभी तक दर्ज की जा चुकी है. 1924 के बाद से राज्य में पहली बार इस तरह की भारी बारिश और बाढ़ देखने को मिल रही है. हालाँकि राज्य के उत्तर क्षेत्र में स्थिति कुछ सुधरी है, लेकिन सेंट्रल केरल में अभी भी भयावह स्थिति बनी हुई है. केरल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि राज्य के 39 डैम में से 35 डैम को खोला गया हो. स्थिति कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केरल अपना सबसे बड़ा त्यौहार ओणम धूमधाम से मनाने में असक्षम हैं.

केरल में 8 अगस्त के बाद से 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं

केरल में इस बाढ़ आपदा के लिए किसे उत्तरदायी माना जायेगा? क्या हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या जलवायु परिवर्तन इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या ग्लोबल वार्मिंग इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? केरल उन राज्यों में से एक है जहां मानसून के दौरान सबसे ज्यादा बारिश होती है. लेकिन इस साल भारत के पश्चिमी तट पर निरंतर कम दबाव की स्थिति के चलते राज्य में बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है. हाल के विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के कारण बारिश में अत्यधिक वृद्धि हुई और इसका परिणाम बाढ़ के रूप में जबरदस्त तबाही देखने को मिली है.

पश्चिमी घाट विशेषज्ञ पैनल के एक सदस्य पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वीएस विजयन ने कहा कि केरल मानव निर्मित आपदा से गुजर रहा है. उन्होंने कहा कि यदि गाडगिल समिति की रिपोर्ट को लागू किया जाता तो पारिस्थितिक रूप से नाजुक पर्वत श्रृंखलाओं में इसका प्रभाव सीमित हो सकता था. उन्होंने मानव गतिविधियों और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अवैज्ञानिक गतिविधियों को बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के कारण बारिश ज्यादा हुई

पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रंखला को विश्व में जैव विविधता के 8 सर्वाधिक संपन्न क्षेत्रों में से एक माना जाता है. इस श्रृंखला के वन मानसून की स्थिति को प्रभावित करते हैं. बड़े पैमाने पर हुई मानव गतिविधियों और घुसपैठ के चलते पश्चिमी घाट जिसकी मानसून को प्रभावित करने में बहुत बड़ी भूमिका है सिकुड़ रही हैं. इस चिंता को देखते हुए 2010 में केंद्र सरकार ने गाडगिल के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी. गाडगिल समिति ने पूरे पश्चिमी घाट के आस-पास खनन, कारखानों और बस्तियों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था.

जब घाट क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी छह राज्यों (केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात) ने इस समिति के सिफारिशों का विरोध किया, तो इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के तहत एक और समिति गठित की गई थी. कस्तुरिरंगन ने जोनल वर्गीकरण में कुछ बदलाव किए थे और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को घटाकर 64% से 37% कर दिया था. लेकिन उसके बाद भी कई राज्यों ने इसका विरोध किया कि अगर रिपोर्ट लागू हुआ तो घाट के किनारे वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए समस्या उत्पन्न हो जाएगी.

जाहिर हैं पर्यावरण से छेड़छाड़ के कारण ही पारिस्थितिक असंतुलन देखने को मिल रही हैं. केरल में बाढ़ का जो भयावह रूप देखने को मिल रहा है उसका कहीं न कहीं सम्बन्ध पश्चिमी घाट में हाल के वर्षो में आये बदलाव से जरूर हैं. समय रहते अगर हम इससे सबक नहीं लेते हैं तो इसका खामियाजा बहुत दुखदायी हो सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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