• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

कश्मीर के एक सिपाही की पत्नी का खत आपको रुला देगा!

    • आईचौक
    • Updated: 05 सितम्बर, 2018 04:40 PM
  • 05 सितम्बर, 2018 04:40 PM
offline
कश्मीर के एक पुलिसवाले की पत्नी ने अपने दर्द को बयां करते हुए एक खुला खत लिखा है. इस खत में उन्होंने ये समझाने की कोशिश की है कि आखिर पुलिसवालों की दिक्कत क्या है और उनकी पत्नियों को कितना सहना पड़ता है.

कश्मीर के हालात दिन पर दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं. जहां एक ओर राज्यपाल शासन लगाने के बाद ऐसा लग रहा था कि आतंकवादियों पर थोड़ी लगाम रहेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आए दिन किसी पुलिसवाले या किसी सैनिक को उठाकर ये आतंकवादी किसी न किसी बुरी घटना को अंजाम दे देते हैं. इन आतंकवादियों से लड़ने वाले सिर्फ सैनिक नहीं होते. कश्मीर में कई पुलिसवाले भी हैं जो रोज़ इस तरह के खतरे को झेलते हैं.

कश्मीर के ऐसे ही एक पुलिस वाले की पत्नी आरिफा तौसिफ ने एक लोकल वेबसाइट पर एक खुला खत लिखा है. ये खत किसी शिकायत को नहीं दर्शा रहा, बल्कि उस दर्द को बताता है जो असल में पुलिसवालों की पत्नियां रोजमर्रा में झेलती हैं.

कश्मीर के पुलिसवालों को कई बार अपने लोगों के खिलाफ भी खड़े होना पड़ता है.

आरिफा लिखती हैं कि...

'पुलिसवालों की पत्नियों को ये सुख नहीं मिलता कि वो एक साथ रह सकें, हर मुश्किल और खुशी में साथ दे सकें. अपने पतियों के साथ समय बिताना पुलिसवालों की पत्नियों के लिए किसी ख्वाब जैसा होता है. हम लंच के लिए इंतज़ार करते हैं, हम रात के खाने पर इंतज़ार करते हैं. हम बस इंतज़ार करते हैं.

हम ये सोचते हैं कि परिवार के किसी जसले में शामिल होंगे या किसी की अंतिम क्रिया में ही साथ रहेंगे पर ऐसा नहीं होता. हम हर बार घूमने का प्लान बनाते हैं पर वो सफल शायद कभी ही हो पाता हो. हम अपने बच्चों को अकेले पालते हैं. और ये सिर्फ सिंगल पेरेंट होने के बारे में नहीं है. हम दुनिया के सबसे अच्छे झूठे भी होते हैं. हम अपने बच्चों को ये बताते हैं कि उनके पापा इस बार आएंगे. उनके पापा इस पेरेंट टीचर मीटिंग में हिस्सा लेंगे, इस संडे हम घूमने जाएंगे, इस ईद पिताजी साथ रहेंगे लेकिन ऐसा होता नहीं है.

हम अपने पति के बूढ़े होते माता-पिता...

कश्मीर के हालात दिन पर दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं. जहां एक ओर राज्यपाल शासन लगाने के बाद ऐसा लग रहा था कि आतंकवादियों पर थोड़ी लगाम रहेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आए दिन किसी पुलिसवाले या किसी सैनिक को उठाकर ये आतंकवादी किसी न किसी बुरी घटना को अंजाम दे देते हैं. इन आतंकवादियों से लड़ने वाले सिर्फ सैनिक नहीं होते. कश्मीर में कई पुलिसवाले भी हैं जो रोज़ इस तरह के खतरे को झेलते हैं.

कश्मीर के ऐसे ही एक पुलिस वाले की पत्नी आरिफा तौसिफ ने एक लोकल वेबसाइट पर एक खुला खत लिखा है. ये खत किसी शिकायत को नहीं दर्शा रहा, बल्कि उस दर्द को बताता है जो असल में पुलिसवालों की पत्नियां रोजमर्रा में झेलती हैं.

कश्मीर के पुलिसवालों को कई बार अपने लोगों के खिलाफ भी खड़े होना पड़ता है.

आरिफा लिखती हैं कि...

'पुलिसवालों की पत्नियों को ये सुख नहीं मिलता कि वो एक साथ रह सकें, हर मुश्किल और खुशी में साथ दे सकें. अपने पतियों के साथ समय बिताना पुलिसवालों की पत्नियों के लिए किसी ख्वाब जैसा होता है. हम लंच के लिए इंतज़ार करते हैं, हम रात के खाने पर इंतज़ार करते हैं. हम बस इंतज़ार करते हैं.

हम ये सोचते हैं कि परिवार के किसी जसले में शामिल होंगे या किसी की अंतिम क्रिया में ही साथ रहेंगे पर ऐसा नहीं होता. हम हर बार घूमने का प्लान बनाते हैं पर वो सफल शायद कभी ही हो पाता हो. हम अपने बच्चों को अकेले पालते हैं. और ये सिर्फ सिंगल पेरेंट होने के बारे में नहीं है. हम दुनिया के सबसे अच्छे झूठे भी होते हैं. हम अपने बच्चों को ये बताते हैं कि उनके पापा इस बार आएंगे. उनके पापा इस पेरेंट टीचर मीटिंग में हिस्सा लेंगे, इस संडे हम घूमने जाएंगे, इस ईद पिताजी साथ रहेंगे लेकिन ऐसा होता नहीं है.

हम अपने पति के बूढ़े होते माता-पिता से झूठ बोलते हैं कि वो इस दिन आएंगे, लेकिन हमे भी पता है कि ऐसा होगा नहीं. यहां तक कि हम खुद से भी यही झूठ बोलते हैं.

अकेले सोना सबसे बड़ा दुख नहीं है, पर बीच रात में नींद टूट जाना और आधीरात में बेचैनी होना सबसे खराब है. ये असहज कर देता है. हमारे साथ कोई नहीं होता धांधस बंधाने के लिए. हम इंतज़ार करते हैं, इंतज़ार करते हैं और सिर्फ इंतज़ार ही करते रह जाते हैं.

अगर हमारा कोई प्लान सफल हो भी जाता है या पति घर आ भी जाते हैं तो भी वो एक पुलिसवाले ही रहते हैं. सिर्फ अपनी मौजूदगी ही दर्ज करवाते हैं. दिमागी तौर पर या फिर टेलिफोन के जरिए पति सिर्फ अपनी ड्यूटी ही निभाते रहते हैं.

हमारी जिंदगी आज के दौर में और भी ज्यादा परेशानीभरी हो गई है. खतरे दिन पर दिन बढ़ते चले जा रहे हैं. किसी पुलिसवाले की किसी दिन मौत की खबर सुनते ही दिल और बेचैन हो जाता है. साथ ही मौजूदा दौर में जो राजनीति और सामाजिक उठापटक चल रही है उसके कारण लोगों को ये यकीन दिलाना मुश्किल हो जाता है कि पुलिस की ड्यूटी का मतलब ये नहीं कि हम अपने लोगों के लिए वफादार नहीं हैं. ये हर वक्त अपनी सुविधा के अनुसार नहीं होता.

ये सिर्फ हमारे राज्य के हालात ही हैं कि वेटनरी डॉक्टर अब DySps (पुलिस बल की एक पोस्ट) के रूप में काम कर रहे हैं, फिजिकल एजुकेशन जिसके पास है वो अधीक्षक के रूप में काम कर रहा है, जिसके पास पॉलिटिक्स की डिग्री है वो अपना बिजनेस कर रहा है और अगर किसी के पास व्यापार की डिग्री या किसी अन्य तरह की स्पेशलाइजेशन है तो वो सरकारी ठेकेदार बना बैठा है.

तनाव घर के बाहर भी बढ़ जाता है. अगर कोई अनहोनी घटना हो जाती है, जैसे किसी को पैलेट गन से चोट लग गई हो, तो ऐसे केस में लोग हमे ही दोषी ठहराते हैं. और उसके बाद अगर किसी पुलिसवाले के साथ कुछ बुरा हो जाता है तो शायद ही कोई ऐसा होता है जो हमे सहानुभूति दे.

मेरे बच्चे ये सब समझते हैं और मैं चाहती हूं कि मेरे राज्य पर से ये चिंता के बादल हट जाएं और हम एक शांत और समृद्ध कश्मीर की सुबह देखें.'

आरिफा का ये खत किसी शिकायत के लिए नहीं था, ये तो बता रहा था कि आखिर कैसे कश्मीर के पुलिसवालों का एक दूसरा पहलू भी है जो न तो बाहरी दुनिया देख पाती है और न ही खुद कश्मीर के निवासी.

जरा सोचकर देखिए क्या बीतती होगी उस महिला पर जिसका पति ड्यूटी से कई दिन घर नहीं आता. कश्मीर में खतरा बाकी देश से थोड़ा सा ज्यादा है इसे तो सभी जानते हैं. पर असल में वहां रहने वाले लोग और लगातार खतरों से खेलते सैनिक और उनकी पत्नियां कितना कुछ झेलती हैं ये कोई समझ नहीं पाता.

ये भी पढ़ें-

क्या अगवा किए गए पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों की रिहाई के बदले आतंकवादियों को छोड़ना जायज़ होगा?

...तो क्या जम्मू-कश्मीर पुलिस आतंकियों के सामने झुक जाएगी?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲