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पिता ने 'बेची' दुधमुंही बच्ची, लेकिन क्या इसे 'मानव तस्करी' कहा जाएगा?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 19 फरवरी, 2021 09:33 PM
  • 19 फरवरी, 2021 09:31 PM
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नवजात बच्चियों के कूड़े के ढेर या सुनसान जगह में पड़े मिलने की खबरें सामने आती ही रहती हैं. लेकिन एक गरीब पिता ने अपनी बच्ची को एक दंपति को गोद दे दिया. अगर वह भी ऐसा ही कोई कदम उठा लेता, जिस पर हम घर बैठे केवल अफसोस जताते हैं, तब क्या होता?

एक दुधमुंही नवजात बच्ची, जिसे जन्म देने के साथ मां गुजर गई. पिता के सामने उसे पालने का संकट पैदा हुआ तो, उसने अपनी नवजात बच्ची को मोहल्ले के एक निसंतान दंपति को दे दिया. बच्ची पाकर दंपति खुश हो गए और उन्होंने अपनी इस खुशी में पिता को एक मामूली सी रकम दे दी. घर में अपनी बहन को ना पाकर 13 साल का मासूम पुलिस के पास पहुंच गया. हड़कंप मच गया और बच्ची देने का मामला बच्ची बेचने का बन गया. यह किसी फिल्म का प्लॉट नहीं है. कानपुर की इस घटना ने समाज ही नहीं पूरे सिस्टम के मुंह पर एक जोरदार तमाचा जड़ा है. ये मामला मानव तस्करी का नहीं है. बल्कि, एक गरीब और मजबूर बाप की कहानी है. एक पिता जो अपनी पारिवारिक मजबूरी की वजह से दुधमुंही बच्ची को खुद से दूर करने को तैयार हो गया.

आजकल के दौर में प्राइवेसी की चाह ने समाज से संयुक्त परिवार के चलन को खत्म होने की कगार पर ला दिया है. किसी जमाने में अगर ऐसी स्थितियां पैदा होती थीं, तो परिवार के लोग ही आगे आकर कोई न कोई हल निकाल लेते थे. लेकिन, इस मामले में ड्राइवर पिता बच्ची को लेकर घर बैठता, तो बिना मां के घर में 16 साल की बड़ी बेटी, 13 साल का बेटा और 8 साल की बेटी कैसे पलते. साथ ही एक विकलांग भाई का भार भी इस शख्स के कंधों पर था. कुछ दिनों तक उसकी बहन ने बच्ची की देखभाल की, लेकिन एक दिन वो भी अपने घर लौट गई. काम पर न जाने की वजह से घर फांके पड़ने की स्थिति आ गई. भूखे बच्चों और लाचार भाई की बेबसी ने पिता को कश्मकश में डाल दिया.

पिता को कुछ न सूझा, तो उसने मोहल्ले के ही एक निसंतान दंपति को बच्ची देने का फैसला किया.

पिता को कुछ न सूझा, तो उसने मोहल्ले के ही एक निसंतान दंपति को बच्ची देने का फैसला किया. शायद पिता ने सोचा था कि भले बच्ची घर से दूर रहे, लेकिन कम से कम आंखों को सामने रहेगी. 12 साल...

एक दुधमुंही नवजात बच्ची, जिसे जन्म देने के साथ मां गुजर गई. पिता के सामने उसे पालने का संकट पैदा हुआ तो, उसने अपनी नवजात बच्ची को मोहल्ले के एक निसंतान दंपति को दे दिया. बच्ची पाकर दंपति खुश हो गए और उन्होंने अपनी इस खुशी में पिता को एक मामूली सी रकम दे दी. घर में अपनी बहन को ना पाकर 13 साल का मासूम पुलिस के पास पहुंच गया. हड़कंप मच गया और बच्ची देने का मामला बच्ची बेचने का बन गया. यह किसी फिल्म का प्लॉट नहीं है. कानपुर की इस घटना ने समाज ही नहीं पूरे सिस्टम के मुंह पर एक जोरदार तमाचा जड़ा है. ये मामला मानव तस्करी का नहीं है. बल्कि, एक गरीब और मजबूर बाप की कहानी है. एक पिता जो अपनी पारिवारिक मजबूरी की वजह से दुधमुंही बच्ची को खुद से दूर करने को तैयार हो गया.

आजकल के दौर में प्राइवेसी की चाह ने समाज से संयुक्त परिवार के चलन को खत्म होने की कगार पर ला दिया है. किसी जमाने में अगर ऐसी स्थितियां पैदा होती थीं, तो परिवार के लोग ही आगे आकर कोई न कोई हल निकाल लेते थे. लेकिन, इस मामले में ड्राइवर पिता बच्ची को लेकर घर बैठता, तो बिना मां के घर में 16 साल की बड़ी बेटी, 13 साल का बेटा और 8 साल की बेटी कैसे पलते. साथ ही एक विकलांग भाई का भार भी इस शख्स के कंधों पर था. कुछ दिनों तक उसकी बहन ने बच्ची की देखभाल की, लेकिन एक दिन वो भी अपने घर लौट गई. काम पर न जाने की वजह से घर फांके पड़ने की स्थिति आ गई. भूखे बच्चों और लाचार भाई की बेबसी ने पिता को कश्मकश में डाल दिया.

पिता को कुछ न सूझा, तो उसने मोहल्ले के ही एक निसंतान दंपति को बच्ची देने का फैसला किया.

पिता को कुछ न सूझा, तो उसने मोहल्ले के ही एक निसंतान दंपति को बच्ची देने का फैसला किया. शायद पिता ने सोचा था कि भले बच्ची घर से दूर रहे, लेकिन कम से कम आंखों को सामने रहेगी. 12 साल से घर में किलकारी गूंजने की आस लगाए दंपति को मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने बच्ची को खुशी-खुशी अपना लिया. ड्राइवर को एक छोटी सी रकम दे दी. घर से नवजात बहन को गायब देख 13 साल का मासूम पुलिस के पास जा पहुंचा. पुलिस ने भी मामले को गंभीरता को लेते हुए सतर्कता दिखाई और बच्ची को बरामद कर लिया. मानव तस्करी का मामला मान रही पुलिस के सामने जब सच्चाई आई, तो सख्त दिल वर्दी भी पिघल गई.

कानून के हिसाब से यह मामला 'मानव तस्करी' का हो जाता है. लेकिन, बेटे के शिकायत वापस लेने पर पुलिस ने आरोपी पिता को निजी मुचलके पर छोड़ दिया और नियमानुसार कार्रवाई की बात कही. फिलहाल बच्ची पिता को वापस कर दी गई है. दंपति ने भी बच्ची की जिम्मेदारी में साथ निभाने की बात कही है. दुधमुंही बच्ची के संग तीन अन्य बच्चों और विकलांग भाई की जिम्मेदारी संभाल रहे पिता को उसकी मजबूरी ने अंदर तक तोड़ दिया होगा. तभी उसने यह फैसला लिया. आजकल जिस तरह का माहौल है, ऐसे में वह अपनी बच्ची को किसके सहारे छोड़ देता.

गाहे-बगाहे नवजात बच्चियों के कूड़े के ढेर या सुनसान जगह में पड़े मिलने की खबरें सामने आती रहती हैं. इस पिता ने तो फिर भी बच्ची को एक दंपति को गोद दे दिया था. अगर वह भी ऐसा ही कोई कदम उठा लेता, जिस पर हम घर बैठे केवल अफसोस जताते हैं, तब क्या होता. मैं पिता का पक्ष नहीं ले रहा हूं, लेकिन हमें इस पर सोचना जरूर होगा. दरअसल, खामी हमारे सिस्टम की है. अनाथालयों और नारी निकेतनों से जुड़ी जैसी खबरें सामने आती हैं, उनके बाद शायद ही कोई ऐसी व्यवस्थाओं पर भरोसा करेगा.

सिस्टम में गोद लेने और देने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि सामान्य व्यक्ति की इस तक पहुंच नामुमकिन है. इसमें काफी समय भी लगता है. गरीब आदमी के लिए बच्चा गोद लेना तो दूर की कौड़ी है. सरकार को ऐसी व्यवस्थाएं बनानी ही होंगी, जिससे ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सके. इस घटना के बाद सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि इस पिता का अपनी बच्ची को 'बेचना' मानव तस्करी है या गरीब पिता की 'मजबूरी'.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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