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डा.कल्बे सादिक और उनके विचारों का सेहमतमंद होना बेहद जरूरी है

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 19 नवम्बर, 2020 10:47 PM
  • 19 नवम्बर, 2020 10:35 PM
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अपने प्रोग्रेसिव थॉट्स के लिए मशहूर भारत के दूसरे सर सय्यद अहमद ख़ान (Sir Syed Ahmad Khan), शिक्षा विद्, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामिक स्कॉलर मौलाना डा कल्बे सादिक (Dr Kalbe Sadiq) की हालत नाज़ुक है. तरक्कीपसंद विश्वविख्यात धर्मगुरु के सेहतयाब होने के लिए दुनियाभर में दुआओं का सिलसिला जारी है.

भारत के दूसरे सर सय्यद अहमद ख़ान, शिक्षाविद्, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामिक स्कॉलर मौलाना डा कल्बे सादिक (Dr Kalbe Sadiq health) की हालत नाज़ुक है. लखनऊ के एरा अस्पताल के आईसीयू में ज़िन्दगी और मौत से जंग लड़ रहे इस तरक्कीपसंद विश्वविख्यात धर्मगुरु के सेहतयाब होने के लिए दुनियाभर में दुआओं का सिलसिला जारी है. इक्यासी बरस के डा सादिक वैसे तो तकरीबन दो साल से बीमार चल रहे थे लेकिन बीते म़गलवार से उनकी हालत बेहद नाज़ुक है. निमोनिया होने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें जीवनरक्षक यंत्रों पर रखा गया है. इंसानियत, इल्म, इत्तेहाद और मोहब्बत के इस फरिश्ते के दुबारा जीवन के लिए हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख, ईसाई समाज से लेकर मुसलमानों का हर हर वर्ग दुआओं के लिए हाथ बुलंद किए है. हिन्दू-मुस्लिम एकता और मुसलमानों के तमाम मसलकों में इत्तेहाद क़ायम करने के प्रयास करने वाले डा सादिक़ ने हमेशां अशिक्षित समाज में शिक्षा की अलख जलाने पर बल दिया. सर सय्यद अहमद ख़ान की तरह डा. सादिक़ ने मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए इल्म की रौशनी फैलाने पर विशेष बल दिया. और इस मिशन को ना सिर्फ तक़रीरों और तहरीरों के जरिए बल्कि अमली तौर पर आगे बढ़ाया.

मौलाना डॉक्टर कल्बे सादिक़ का शुमार न सिर्फ यूपी बल्कि प्रोग्रेसिव मुसलमानों में होता है

उनका मानना है कि ग़रीबी, कट्टरता, संकीर्णता, अंधविश्वास, धर्म के प्रति गलतफहमियां, रूढ़ियां, कुरीतियां, नफरत और साम्प्रदायिकता की जड़ अज्ञानता ही होती है. गंदी सियासत अज्ञानता का लाभ उठाकर समाज को बांटती है. आपस में झगड़ा पैदा करती है. जहालत की माचिस से सियासतदां दंगों और नफरत की आग लगाकर अपना-अपना वोट बैंक तैयार कर लेते हैं. यही कारण है कि पॉलिटिकल एजेंडों में शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता.

डा. कल्बे...

भारत के दूसरे सर सय्यद अहमद ख़ान, शिक्षाविद्, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामिक स्कॉलर मौलाना डा कल्बे सादिक (Dr Kalbe Sadiq health) की हालत नाज़ुक है. लखनऊ के एरा अस्पताल के आईसीयू में ज़िन्दगी और मौत से जंग लड़ रहे इस तरक्कीपसंद विश्वविख्यात धर्मगुरु के सेहतयाब होने के लिए दुनियाभर में दुआओं का सिलसिला जारी है. इक्यासी बरस के डा सादिक वैसे तो तकरीबन दो साल से बीमार चल रहे थे लेकिन बीते म़गलवार से उनकी हालत बेहद नाज़ुक है. निमोनिया होने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें जीवनरक्षक यंत्रों पर रखा गया है. इंसानियत, इल्म, इत्तेहाद और मोहब्बत के इस फरिश्ते के दुबारा जीवन के लिए हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख, ईसाई समाज से लेकर मुसलमानों का हर हर वर्ग दुआओं के लिए हाथ बुलंद किए है. हिन्दू-मुस्लिम एकता और मुसलमानों के तमाम मसलकों में इत्तेहाद क़ायम करने के प्रयास करने वाले डा सादिक़ ने हमेशां अशिक्षित समाज में शिक्षा की अलख जलाने पर बल दिया. सर सय्यद अहमद ख़ान की तरह डा. सादिक़ ने मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए इल्म की रौशनी फैलाने पर विशेष बल दिया. और इस मिशन को ना सिर्फ तक़रीरों और तहरीरों के जरिए बल्कि अमली तौर पर आगे बढ़ाया.

मौलाना डॉक्टर कल्बे सादिक़ का शुमार न सिर्फ यूपी बल्कि प्रोग्रेसिव मुसलमानों में होता है

उनका मानना है कि ग़रीबी, कट्टरता, संकीर्णता, अंधविश्वास, धर्म के प्रति गलतफहमियां, रूढ़ियां, कुरीतियां, नफरत और साम्प्रदायिकता की जड़ अज्ञानता ही होती है. गंदी सियासत अज्ञानता का लाभ उठाकर समाज को बांटती है. आपस में झगड़ा पैदा करती है. जहालत की माचिस से सियासतदां दंगों और नफरत की आग लगाकर अपना-अपना वोट बैंक तैयार कर लेते हैं. यही कारण है कि पॉलिटिकल एजेंडों में शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता.

डा. कल्बे सादिक के ऐसे ख्यालों की तकरीरें और मजलिसें पूरी दुनियां में पसंद की जाती रही हैं. उन्होंने हिंदू-मुसलमानों और शिया-सुन्नी के बीच किसी भी फासले को भरने के लिए मोहब्बत और एकता के पैग़ाम दिए. वो कहते हैं कि अस्ल मजहब जोड़ता है तोड़ता नहीं है. जो तोड़े वो मजहब सियासत होती है. डा सादिक मुस्लिम आरक्षण के ख़िलाफ रहे. सिक्ख समाज की तारीफ करते हुए वो कहते रहे हैं कि इस अल्पसंख्यक कौम ने कभी भी आरक्षण नहीं लिया और वो मेहनत और संघर्षों से क़तरा-क़तरा हासिल करके तरक्की की रेस में आगे रहते हैं.

मौलाना कल्बे सादिक अज्ञानता, भ्रष्टाचार और गरीबी को देश की तरक्की की रुकावट मानते हैं. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भी खूब तकरीरें दीं. उनका मत है कि किसी भी किस्म के आतंकवाद का वास्ता किसी भी मज़हब से नहीं हो सकता हां किसी भी तरह की सियासत से दहशतगर्दी का रिश्ता ज़रूर हो सकता है. इस्लामिक स्कॉलर, शिया धर्मगुरु और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष डा. सादिक ऐसे तरक्कीपसंद शिक्षाविद हैं कि उन्हें आज का सर सय्यद अहमद ख़ान कहा जाता रहा है.

वो एरा यूनिवर्सिटी, यूनिटी कॉलेज,और तमाम शैक्षणिक संस्थाओं के अलावा चेरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक सदस्य रहे. 1984 में उन्होंने तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट क़ायम किया. जिसमें गरीब बच्चों की पढ़ाई मे मदद और मेधावी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाती है. उनके यूनिटी कॉलेज ने शैक्षणिक संस्थाओं में एक अलग पहचान बनाई. इस कालेज की दूसरी शिफ्ट में मुफ्त तालीम दी जाती है. 

अलीगढ़ में एम यू कॉलेज क़ायम किया. टेक्निकल कोर्सेज़ के लिए इंडस्ट्रियल स्कूल बनाया. लखनऊ के काज़मैन में चेरिटेबल अस्पताल शुरू किया. अमेरिका सहित दुनिया के दर्जनों देशों में इनकी मजलिसें और तकरीरें पसंद की जाती हैं. उन्होंने गुफरान माब इमामबाड़े की खूबसूरत बिल्डिंग का निर्माण कर उसमें रोशनी हॉस्टल बनवाया. बेवाओ, यतीमों, बीमारों की मदद के साथ उनके इदारों (संस्थानों) में बच्चों की पढ़ाई के लिए विशेष योगदान देने का प्रावधान है.

गुजरात दंगों से भी सौहार्द का पैग़ाम लेकर आये थे डा. कल्बे सादिक़

ये बात कम ही लोग जानते हैं कि गुजरात दंगों की नफरत के शोले से भी डा कल्बे सादिक साम्प्रदायिक सौहार्द, भाईचारे और मोहब्बत का पैग़ाम लेकर लखनऊ वापस आये थे. गोधरा ट्रेन कांड के बाद गुजरात दंगे शुरू हो चुके थे. इन दंगों की नफरत देश के कोने-कोने मे फैल रही थी. मीडिया भी आग बुझाने के बजाय आग लगा रही थी. उस वक्त विश्वविख्यात धर्मगुरु डा. कल्बे सादिक गुजरात दंगों से सुरक्षित निकलकर लखनऊ आये थे.

और उन्होंने गुजरात में हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत की हिंसा की आग में भी दोनों धर्मों के बीच मोहब्बत और सौहार्द की मिसाल ढूंढ कर मुझसे इसकी दलील पेश की थी.मुझे याद है करीब सत्तरह वर्ष पहले मैं एक राष्ट्रीय अख़बार के ब्यूरो कार्यालय में काम कर रहा था. वहां मेरे सीनियर पत्रकार मरहूम मनोज श्रीवास्तव (जिनका अब स्वर्गवास हो चुका है) ने मुझसे कहा कि डा कल्बे सादिक गुजरात से लखनऊ वापस आये हैं, उनसे बात कर लो.

मैंने डाक्टर सादिक को उनके लखनऊ स्थित आवास पर लैंडलाइन फोन के ज़रिए बात की तो उन्होंने बताया कि वो एक मजलिस पढ़ने गुजरात गये थे. वहां दंगों की शुरुआत हो चुकी थी. लेकिन उन्हें ये अंदाजा नहीं था कि इतना जबरदस्त फसाद और नरसंहार हो जायेगा. इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रम मंत्री उनके पास बहुत हड़बड़ाहट मे आये और बोले डाक्टर साहब मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ने जाऊंगा.

मौलाना कल्बे सादिक साहब ने मुझे बताया कि उस हिंदू भाई (मोदी की गुजरात सरकार के श्रम मंत्री) ने मुझे गुजरात से सुरक्षित लखनऊ पंहुचाने के लिए एयरपोर्ट तक छोड़ा. और मैं ख़ैरियत से सही सलामत गुजरात से लखनऊ वापिस हुआ. ख़शतमाम खूबियों वाले, मोहब्बत का पैग़ाम देने वाले, इल्म की रौशनी फैलाने वाले, इत्तेहाद के पैरोकार, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाले मौलाना सादिक़ वक्त के बहुत पाबंद रहे है. उन्हें मालूम होना चाहिए है कि इस वक्त विश्व बिरादरी को उनकी सख्त जरूरत है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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