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Kaali Poster Controversy: अभिव्यक्ति की आज़ादी पर केवल हिन्दू धर्म की बलि क्यों?

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 06 जुलाई, 2022 10:19 PM
  • 06 जुलाई, 2022 10:04 PM
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धर्म का प्रेम, जूनून बन किस किस रूप में आता है इसके बारे में अब तो बताने की आवश्यकता नहीं है. हिन्दू धर्म तो यूं भी अपने देश में पुराने समय से रौंदे जाने के लिए बना है. इसका मखौल बाहर वालों से ज्यादा अपनों ने उड़ाया है. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर केवल हिन्दू देवी-देवता ही क्यों?

हालिया दिनों में यकीनन आप लोगो में से बहुतों ने हदीस-कुरान-शरिया का मतलब समझने की कोशिश की होगी किंतु हाथ कुछ न आया होगा. क्योंकि इसमें आपस में ही काफी झोल है. खैर आपने स्कंद पुराण, उपनिषद, मनु स्मृति, गुरुग्रंथ साहिब ये खंगाले हैं कभी? नहीं न? जानते है क्यों? क्योंकि जनाब आप किसी को भी, कुछ भी बोल लिख कर बच सकते हैं किंतु खुदा खैर करें, अल्लाह जी के बारे में चूं नही कर सकते. अगर करेंगे तो सुबह आपकी नहीं तो परिवार में से किसी की गर्दन लटकी मिलेगी.

अपनी फिल्म के जरिये लीना ने एक बार फिर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया है

सहिष्णु या बेपरवाह

धर्म का प्रेम जूनून बन किस किस रूप में आता है, इसके बारे में अब तो बताने की आवश्यकता नहीं है. हां, हिन्दू धर्म तो यूं भी अपने देश में भी पुराने समय से रौंदे जाने के लिए बना है तो मखौल तो बाहर वालों से ज्यादा अपने उड़ाते हैं. इस अति बुद्धिमान प्रजाति में एक नाम और शामिल हो गया है - डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर लीना मनिमेकलाई का. टोरोंटो में अपनी फिल्मा का पोस्टर रिलीज़ करते हुए उन्हें ज़रा भी अंदेशा नहीं रहा होगा की उसपर प्रतिक्रिया कुछ यूं आएगी.

उनके हिसाब से मां काली यानि स्त्री यानि शक्ति और प्राइड सिम्बल के तौर पर झंडा हाथ में यानि LGBTQ कम्युनिटी के साथ यानि की दिमागी तौर पर प्रगतिशील और हाथ में सिगरेट यानि - यानि? प्रगतिशील? मॉडर्न? बहरहाल जो भी हो लल्ली तोय जरा भय न लागा?

न मां काली की ऐसी तस्वीर बनाते लगते हुए ज़रा डर न लगा होगा क्योंकि हिन्दू व्यव्हार से ही गलती को माफ़ करने वाली प्रजाति है और यही हमारी दुर्दशा की वजह भी! लीना मनिमेकलाई शायद बरसों से राम जी के प्रति बैर दिल में संजो कर कलाकारी दिखा रही हैं  इन्होने 2017 में कहा था 'राम ईश्वर नहीं बीजेपी की वोट...

हालिया दिनों में यकीनन आप लोगो में से बहुतों ने हदीस-कुरान-शरिया का मतलब समझने की कोशिश की होगी किंतु हाथ कुछ न आया होगा. क्योंकि इसमें आपस में ही काफी झोल है. खैर आपने स्कंद पुराण, उपनिषद, मनु स्मृति, गुरुग्रंथ साहिब ये खंगाले हैं कभी? नहीं न? जानते है क्यों? क्योंकि जनाब आप किसी को भी, कुछ भी बोल लिख कर बच सकते हैं किंतु खुदा खैर करें, अल्लाह जी के बारे में चूं नही कर सकते. अगर करेंगे तो सुबह आपकी नहीं तो परिवार में से किसी की गर्दन लटकी मिलेगी.

अपनी फिल्म के जरिये लीना ने एक बार फिर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया है

सहिष्णु या बेपरवाह

धर्म का प्रेम जूनून बन किस किस रूप में आता है, इसके बारे में अब तो बताने की आवश्यकता नहीं है. हां, हिन्दू धर्म तो यूं भी अपने देश में भी पुराने समय से रौंदे जाने के लिए बना है तो मखौल तो बाहर वालों से ज्यादा अपने उड़ाते हैं. इस अति बुद्धिमान प्रजाति में एक नाम और शामिल हो गया है - डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर लीना मनिमेकलाई का. टोरोंटो में अपनी फिल्मा का पोस्टर रिलीज़ करते हुए उन्हें ज़रा भी अंदेशा नहीं रहा होगा की उसपर प्रतिक्रिया कुछ यूं आएगी.

उनके हिसाब से मां काली यानि स्त्री यानि शक्ति और प्राइड सिम्बल के तौर पर झंडा हाथ में यानि LGBTQ कम्युनिटी के साथ यानि की दिमागी तौर पर प्रगतिशील और हाथ में सिगरेट यानि - यानि? प्रगतिशील? मॉडर्न? बहरहाल जो भी हो लल्ली तोय जरा भय न लागा?

न मां काली की ऐसी तस्वीर बनाते लगते हुए ज़रा डर न लगा होगा क्योंकि हिन्दू व्यव्हार से ही गलती को माफ़ करने वाली प्रजाति है और यही हमारी दुर्दशा की वजह भी! लीना मनिमेकलाई शायद बरसों से राम जी के प्रति बैर दिल में संजो कर कलाकारी दिखा रही हैं  इन्होने 2017 में कहा था 'राम ईश्वर नहीं बीजेपी की वोट वेंडिंग मशीन है! मतलब बैर की वजह भी इतनी उथली!

न न कैनवास से पहले कलाकारी ट्विटर पर हुई है जहां एक खास व्यक्ति और पार्टी से इनका बैर! शिव शिव शिव. मूढमती हिन्दू धर्म न आपके पिता की सत्ता है ना किसी के पितरों की सत्ता किंतु फिर भी पर्सनल ग्रज के नाम पर धर्म को गरियाए पड़ी हो. और तो और फेमिनिज्म और प्राइड प्रॉउड के नाम पर मां काली को प्राईड सपोर्टर दिखा कर तुमने सिगरेट पकड़ा दी! वाह दीदी वाह!

तुम्हारे अभिव्यक्ति की आजादी और क्रिएटिविटी सिर्फ इसी धर्म का मखौल उड़ाने के लिए है या तुम अल्लाह जी, के नाम पर भी कोई स्लोगन वगेरह लिख कर अपनी स्वतंत्र और बुद्धिमान होने का परिचय दोगी?

सहिष्णु सनातन

तुम ये कर पाई क्योंकि तुम्हें पता था की दूर देश में तुम्हारी बेहूदा क्रिएटिविटी पर कोई देश में चाकू ले कर तुम्हारे पिता की गर्दन तक नहीं आएगा कोई पत्थर तुम्हारे घर की खिड़की का शीशा नहीं तोड़ेगा जहां तुम्हारी मां तुम्हारे पसंद का खाना पका रही होंगी. होगा तो बस विरोध और कुछ लोग तुरंत इसे हटाने की मांग के साथ माफी की उम्मीद करेंगे और बस इतने पर तुम और तमाम बुद्धिजीवी जमात 'हाय हाय हिन्दू कट्टरवाद' का रोना छाती पीट पीट कर हर मीडिया पर रोएंगे!

याद रखियेगा कि ये सब तब हो रहा है जब तमाम बम ब्लास्ट दूसरे देश में आतंक, उस पर कब्जा, मात्र नौ साल की बच्ची को, अपने गुर्गों की मिल्कियत समझना, औरत को जिस्म से परे और कुछ ना समझना इस विश्वव्यापी समस्या के एक ही एक चेहरा है. इनके अलावा शायद ही कोई इतनी शिद्दत से कट्टरता सीखाता है.

अभिव्यक्ति की आज़ादी- हिन्दू धर्म के प्रति सौतेला व्यव्हार

आज भी एक तबका अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात कहेगा वही तबका इस्लाम की कट्टरता पर मुंह को फ़ैवीकोल से जोड़ कर पहाड़ बारिश मां ममता जानवर जंगल सब देखता है. 2015 में फ़्रांस के एक समाचार पत्र के ऑफिस में घुस कर 12 लोगो की जान ले ली गयी और करीब उतने ही घायल हुए क्योंकि पैगम्बर मोहम्मद के नाम पर कार्टून बने थे!

2020 में फ़्रांस के के टीचर का गाला रेत दिया गया क्योंकि उसने पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून बच्चो को दिखाए. वहीँ मशहूर पेंटर एम् ऍफ़ हुसैन ने हिन्दू देवी देवताओं की निर्वस्त्र कलाकृति बिना बनायीं. हालांकि इसके बाद उन्हें देश छोड़ना पड़ा किन्तु उनके प्रति देश में हुए विरोध को ले कर आज तक अति बुध्दिमान लोगो को दुःख है.

फिल्म पी के में भी ईश्वर के नाम पर नौटंकी दिखाई गयी और बिना ज़्यादा तूल दिए उसे नज़रअंदाज़ किया गया. किन्तु ये सवाल हिरानी साहब से भी पूछे कोई की किसी डायलॉग में इस्लाम की कारस्तानियों पर सवाल क्यों नहीं उठा. तो सहिष्णु कौन है ये समझते हुए भी कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं हो रही और अब ये रायता!

वैसे रायता फ़ैल ही जाये तो बेहतर क्योंकि सहिष्णुता के पथ पर सिवाय ज़िल्लत और कटी गर्दन कुछ और मिल नहीं रहा.

दोगलेपन और कट्टरता से जूझता भारत

जहां एक तरफ एक धर्म की धार्मिक किताबो में से ही किसी पन्ने पर लिखी किताब के मात्र जिक्र करने भर से किसी नागरिक की जान चली गई और कट्टरता के तार आतंक से जुड़ने लगे है वहीं दूसरे धर्म के प्रति दोहरा दोगला व्यवहार बीच की खाई को बड़े से बड़ा कर रहा है. जहां एक धर्म की आस्था को डर और आतंक का साथ ले कर अपना दबदबा बना रही है वही हिन्दू धर्म की हर बात पर उन्हें असहिष्णु कट्टर और पुरातनपंथी कहने से बाज नहीं आते.

ये रवैय्या देश के पढ़े लिखे लोगो का भी है जो राजनीती, सामाजिक शाश्त्र और इतिहास हुए भी अनदेखा कर अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ कर इस खाई को बड़ा करने में शामिल है. धर्म के प्रति अलग अलग विचार रखना और अभिव्यक्ति के तमाम तरीको पर सवाल उठते रहे हैं.

अब ये मसला कहां तक जायेगा ये वक़्त बताएगा. जहां एक और शांति प्रिय और माफ़ कर देने की आदत सनातन धर्म को महान बनती है वही उसे लोगो के लिए इस तरह के मज़ाक के लायक भी. आगे आने समय में अभिव्यक्ति कैसी होगी और कितनी अज़ादी होगी ये समय बताएगा.

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