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सरकार को पत्रकारों से भय है? यूपी हो या एमपी उनको मिल रही सजा देखकर लगता तो यही है!

    • रीवा सिंह
    • Updated: 10 अप्रिल, 2022 04:59 PM
  • 10 अप्रिल, 2022 04:59 PM
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अब वो चाहे उत्तर प्रदेश हो या फिर मध्य प्रदेश सिस्टम पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों की स्थिति कहीं भी सही नहीं है. यूपी में पत्रकार पेपर लीक मामले में गिरफ्तार हुए हैं. वहीं एमपी में थाने में उनके कपड़े उतरवाए गए हैं.

चाहे वो यूपी हो या फिर मध्य प्रदेश या फिर देश का कोई और राज्य पत्रकारों को लिहाज से स्थिति कहीं भी ठीक नहीं है. उत्तर प्रदेश के बलिया में जिन पत्रकारों ने पेपर लीक के मामले को उजागर किया, ज़िला प्रशासन द्वारा उन्हें ही गिरफ़्तार कर लिया गया है. मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में एक विधायक के ख़िलाफ़ ख़बर चलाने पर यूट्यूब के पत्रकारों को थाने में बुलाकर कपड़े उतरवाये गये. आईपीसी अथवा सीआरपीसी की किस धारा के अंतर्गत क्वांटम ऑफ़ पनिश्मेंट कपड़े उतरवाना है, थाना प्रभारी ही बता सकेंगे.

राज्य कोई भी हो पुलिस और प्रशासन लगातार पत्रकारों के साथ ज्यादती कर रहा है

केंद्र में प्रधान मंत्री अपने मन की बात हमेशा कह लेते हैं, प्रेस कॉन्फ़्रेंस एक भी नहीं रखते. हां, एक बार शामिल हुए थे 2019 के चुनाव से ठीक पहले. कम से कम बैठे तो थे. अमित शाह ने उन्हें बोलने नहीं दिया और वे दायें-बायें, ऊपर-नीचे देखते रहे. शायद चिड़िया गिन रहे होंगे.

यही प्रधान मंत्री संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में गौरवांवित हो हमारे देश की लोकतांत्रिक संरचना व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कसीदे पढ़ आये थे.

आतंकवादियों से ख़तरा मुनासिब है लेकिन लोकतंत्र में सरकार को पत्रकारों से कैसा भय? आलोचनाओं का स्वागत, आत्मविश्लेषण... यह सब सिर्फ़ किताबों के लिये बचे हैं? क्योंकि अपनी ग़लती सुधारने के बजाय पत्रकारों को घेर लेना सरकार को ज़्यादा पसंद आने लगा है.

जैसे हालात हैं अपने सरकार विरोध के लिए मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने शायद उन्हें पहले ही देख लिया हो और रचना की हो कि -

मत कहो आकाश में कोहरा घना है

ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है

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चाहे वो यूपी हो या फिर मध्य प्रदेश या फिर देश का कोई और राज्य पत्रकारों को लिहाज से स्थिति कहीं भी ठीक नहीं है. उत्तर प्रदेश के बलिया में जिन पत्रकारों ने पेपर लीक के मामले को उजागर किया, ज़िला प्रशासन द्वारा उन्हें ही गिरफ़्तार कर लिया गया है. मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में एक विधायक के ख़िलाफ़ ख़बर चलाने पर यूट्यूब के पत्रकारों को थाने में बुलाकर कपड़े उतरवाये गये. आईपीसी अथवा सीआरपीसी की किस धारा के अंतर्गत क्वांटम ऑफ़ पनिश्मेंट कपड़े उतरवाना है, थाना प्रभारी ही बता सकेंगे.

राज्य कोई भी हो पुलिस और प्रशासन लगातार पत्रकारों के साथ ज्यादती कर रहा है

केंद्र में प्रधान मंत्री अपने मन की बात हमेशा कह लेते हैं, प्रेस कॉन्फ़्रेंस एक भी नहीं रखते. हां, एक बार शामिल हुए थे 2019 के चुनाव से ठीक पहले. कम से कम बैठे तो थे. अमित शाह ने उन्हें बोलने नहीं दिया और वे दायें-बायें, ऊपर-नीचे देखते रहे. शायद चिड़िया गिन रहे होंगे.

यही प्रधान मंत्री संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में गौरवांवित हो हमारे देश की लोकतांत्रिक संरचना व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कसीदे पढ़ आये थे.

आतंकवादियों से ख़तरा मुनासिब है लेकिन लोकतंत्र में सरकार को पत्रकारों से कैसा भय? आलोचनाओं का स्वागत, आत्मविश्लेषण... यह सब सिर्फ़ किताबों के लिये बचे हैं? क्योंकि अपनी ग़लती सुधारने के बजाय पत्रकारों को घेर लेना सरकार को ज़्यादा पसंद आने लगा है.

जैसे हालात हैं अपने सरकार विरोध के लिए मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने शायद उन्हें पहले ही देख लिया हो और रचना की हो कि -

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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