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सूमो रिंग में महिलाओं का प्रवेश और पुरुषों की सत्ता हिल गई

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 30 अप्रिल, 2018 12:41 PM
  • 08 अप्रिल, 2018 01:27 PM
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सूमो टूर्नामेंट के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि रेसलिंग रिंग में महिलाओं को जाना पड़ा. पुरुषों की सत्ता विचलित हुई और बवाल मच गया. सारा हाल ये वीडियो बता रहा है.

धार्मिक कट्टरता की बात करें तो हर देश अपने आप में अनोखा है. लेकिन महिलाओं के मामले में लगभग पूरी दुनिया की सोच एक ही जैसी है. भारत में महिलाओं को अपवित्र माना गया है तो ये मानने वाला वो अकेला देश नहीं है. फिलहाल चर्चे जापान के हो रहे हैं. वजह बना सूमो रेसलिंग रिंग जिसमें महिलाएं चली गईं और बवाल हो गया.

सूमो रेसलिंग जापान का सबसे पुराना और पवित्र खेल माना जाता है जिसमें कई तरह के अनूठे अनुष्ठान किए जाते हैं. और इस कुश्ती में परंपरा रही है कि सूमो रिंग या 'दोह्यो' में महिलाओं का जाना वर्जित है. 'दोह्यो' को मंदिर की तरह पवित्र माना जाता है और महिलाओं को अपवित्र. जी हां, जापान भी यही मानता है कि पीरियड्स की वजह से महिलाएं अशुद्ध या अपवित्र हो जाती हैं.

सूमो रिंग को पवित्र माना जाता है

बहरहाल हुआ ये कि नॉर्थ वेस्ट क्योटो में एक सूमो टूर्नामेंट के दौरान मायजुरु के मेयर एक सुमो रिंग में भाषण दे रहे थे और अचानक बेहोश होकर गिर पड़े. उन्हें गिरता देख कुछ महिलाएं उनकी मदद करने के इरादे से रिंग की तरफ दौड़ पड़ीं. और उन्हें cpr देने की कोशिश करने लगीं.

मेयर की हालत देखकर महिलाएं जो नर्स भी थीं, खुद को रोक न सकीं

लेकिन इस मुश्किल दौर में जब हर कोई मेयर की जान बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था, सूमो असोसिएशन इस बात को लेकर परेशान थी कि महिलाएं रिंग में चली गईं और रिंग अपवित्र हो गया. उन्होंने बाकायदा माइक पर एनाउंसमेंट कर महिलाओं को सूमो रिंग से बाहर जाने के लिए कहा. लाउड स्पीकर पर बार-बार बोला जा रहा था कि 'महिलाएं रिंग से बाहर निकल...

धार्मिक कट्टरता की बात करें तो हर देश अपने आप में अनोखा है. लेकिन महिलाओं के मामले में लगभग पूरी दुनिया की सोच एक ही जैसी है. भारत में महिलाओं को अपवित्र माना गया है तो ये मानने वाला वो अकेला देश नहीं है. फिलहाल चर्चे जापान के हो रहे हैं. वजह बना सूमो रेसलिंग रिंग जिसमें महिलाएं चली गईं और बवाल हो गया.

सूमो रेसलिंग जापान का सबसे पुराना और पवित्र खेल माना जाता है जिसमें कई तरह के अनूठे अनुष्ठान किए जाते हैं. और इस कुश्ती में परंपरा रही है कि सूमो रिंग या 'दोह्यो' में महिलाओं का जाना वर्जित है. 'दोह्यो' को मंदिर की तरह पवित्र माना जाता है और महिलाओं को अपवित्र. जी हां, जापान भी यही मानता है कि पीरियड्स की वजह से महिलाएं अशुद्ध या अपवित्र हो जाती हैं.

सूमो रिंग को पवित्र माना जाता है

बहरहाल हुआ ये कि नॉर्थ वेस्ट क्योटो में एक सूमो टूर्नामेंट के दौरान मायजुरु के मेयर एक सुमो रिंग में भाषण दे रहे थे और अचानक बेहोश होकर गिर पड़े. उन्हें गिरता देख कुछ महिलाएं उनकी मदद करने के इरादे से रिंग की तरफ दौड़ पड़ीं. और उन्हें cpr देने की कोशिश करने लगीं.

मेयर की हालत देखकर महिलाएं जो नर्स भी थीं, खुद को रोक न सकीं

लेकिन इस मुश्किल दौर में जब हर कोई मेयर की जान बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था, सूमो असोसिएशन इस बात को लेकर परेशान थी कि महिलाएं रिंग में चली गईं और रिंग अपवित्र हो गया. उन्होंने बाकायदा माइक पर एनाउंसमेंट कर महिलाओं को सूमो रिंग से बाहर जाने के लिए कहा. लाउड स्पीकर पर बार-बार बोला जा रहा था कि 'महिलाएं रिंग से बाहर निकल जाएं.'

प्रत्यक्षदर्शी की मानें तो इस वाक्ये के बाद सूमो अधिकारियों ने रिंग को पवित्र करने के लिए उसमें काफी मात्रा में नमक भी डाला, जिससे उस स्थान को शुद्ध किया जा सके.

देखिए वीडियो और अंदाजा लगाइए कि जान बचाने के लिए दौड़ी उन महिलाओं को किस तरह जलील किया गया-

इस वीडियो के वायरल होने के बाद जापान सूमो असोसिएशन को कड़ी आलोचनाओं को सामना करना पड़ा और इस बदसलूकी के लिए उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी.

ये पहली बार नहीं है जब सूमो रिंग में जाने को लेकर महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया गया हो, बल्कि दशकों से परंपरा के नाम पर महिलाओं को इस तरह का व्यवहार झेलना पड़ रहा है.

ये कहानी भले ही एक खेल की हो, लेकिन आशय तो वहीं है कि पवित्र जगह पर महिलाओं का आना वर्जित है. ठीक यहां के मंदिर-मस्जिद की तरह जहां भी महिलाओं को इसीलिए प्रवेश नहीं दिया जाता क्योंकि उन्हें अशुद्ध माना जाता है. बहरहाल इस मामले को धार्मिक कट्टरता का सबसे बड़ा उदाहरण भी कहा जा सकता है क्योंकि इनकी नजर में तो परंपरा का निभाया जाना किसी की जान से भी ज्यादा कीमती है. मेयर की जान जाती है तो जाए लेकिन परंपरा न टूटे!

भारत हो या जापान, भले ही कितने ही शिक्षित, कितने ही विकसित हो जाएं लेकिन बात अगर बराबरी की हो, लिंग समानता की हो तो महिलाओं को अभी और संघर्ष करना होगा. क्योंकि देश में अगर लकीर के फकीर ज्यादा हों तो शिक्षा भी कुछ नहीं कर पाती.

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त्योहारों का मज़ा उसे लिंगभेद से मुक्त करके मनाने में ही है...

 



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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