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संस्कृति

त्योहारों का मज़ा उसे लिंगभेद से मुक्त करके मनाने में ही है...

    • पल्लवी त्रिवेदी
    • Updated: 07 नवम्बर, 2016 03:34 PM
  • 07 नवम्बर, 2016 03:34 PM
offline
क्यों एक त्योहार और परम्परा इसलिए बन्द हो जानी चाहिए कि घर की बहू उसे नहीं करना चाहती? हर पीढी के साथ कुछ सुखद और सुविधाजनक बदलाव आने ही चाहिए. त्योहारों में लिंगभेद नहीं होना चाहिए.

हम चार बहनों और मम्मी सहित पांच स्त्रियों वाले परिवार में सिर्फ पापा ही अकेले पुरुष थे. घर में कथा,पूजा कार्यक्रम होने पर नारियल फोड़ने का काम उन्हीं का होता क्योंकि लड़कियों को नारियल फोड़ने की अनुमति नहीं थी हमारी सामाजिक धार्मिक मान्यता में. पापा नहीं रहते तब कोई मामा या कोई कज़िन को नारियल फोड़ने बुला लेते या कुछ नहीं तो अगल बगल का कोई लड़का आकर फोड़ जाता. यूं नारियल फोड़ना चलता रहा. हमे कभी बुरा लगता तो कभी नहीं भी लगता.

समय बीता. पापा नहीं रहे. घर में पूजापाठ पहले की तरह ही चलते रहे . पर फिर एक चीज़ बदली. कैसे बदली,किसने बदली ,इसकी कोई कहानी नहीं पर बदली जरूर. अब दिवाली सहित हर पूजा पर मम्मी या हम बहनों में कोई एक नारियल फोड़ देता था बिना कोई विचार विमर्श किए. एकदम सहजता से, एक परंपरा खामोशी से बदल गई और अब ऐसी बदली कि हमारे घर में शायद आगे कोई नहीं जानेगा कि नारियल लड़के ही फोड़ा करते थे.

ये भी पढ़ें- लोक आस्था का महापर्व छठ

हाँ,तो ये ज़िक्र मैं क्यों कर रही हूँ. कल छठ पूजा का एक वीडियो देखा शारदा सिन्हा के अप्रतिम खूबसूरत छठ गीत के साथ. वीडियो में एक माँ अपने बेटे को फोन पर बता रही है कि अब कोई बहू छठ का व्रत और पूजा नहीं करना चाहती इसलिए अब यह परंपरा,यह त्योहार हमारे घर में बन्द होने जा रहा हैं. बेटा यह जानकर बहुत दुखी है तब दूसरे प्रांत की बहू नेट से पूजा की विधि देखती है और छठ पूजा करती है. परंपरा बन्द नहीं होती है.

 सांकेतिक फोटो

मेरे दिमाग में इसे देखकर आया कि क्यों एक...

हम चार बहनों और मम्मी सहित पांच स्त्रियों वाले परिवार में सिर्फ पापा ही अकेले पुरुष थे. घर में कथा,पूजा कार्यक्रम होने पर नारियल फोड़ने का काम उन्हीं का होता क्योंकि लड़कियों को नारियल फोड़ने की अनुमति नहीं थी हमारी सामाजिक धार्मिक मान्यता में. पापा नहीं रहते तब कोई मामा या कोई कज़िन को नारियल फोड़ने बुला लेते या कुछ नहीं तो अगल बगल का कोई लड़का आकर फोड़ जाता. यूं नारियल फोड़ना चलता रहा. हमे कभी बुरा लगता तो कभी नहीं भी लगता.

समय बीता. पापा नहीं रहे. घर में पूजापाठ पहले की तरह ही चलते रहे . पर फिर एक चीज़ बदली. कैसे बदली,किसने बदली ,इसकी कोई कहानी नहीं पर बदली जरूर. अब दिवाली सहित हर पूजा पर मम्मी या हम बहनों में कोई एक नारियल फोड़ देता था बिना कोई विचार विमर्श किए. एकदम सहजता से, एक परंपरा खामोशी से बदल गई और अब ऐसी बदली कि हमारे घर में शायद आगे कोई नहीं जानेगा कि नारियल लड़के ही फोड़ा करते थे.

ये भी पढ़ें- लोक आस्था का महापर्व छठ

हाँ,तो ये ज़िक्र मैं क्यों कर रही हूँ. कल छठ पूजा का एक वीडियो देखा शारदा सिन्हा के अप्रतिम खूबसूरत छठ गीत के साथ. वीडियो में एक माँ अपने बेटे को फोन पर बता रही है कि अब कोई बहू छठ का व्रत और पूजा नहीं करना चाहती इसलिए अब यह परंपरा,यह त्योहार हमारे घर में बन्द होने जा रहा हैं. बेटा यह जानकर बहुत दुखी है तब दूसरे प्रांत की बहू नेट से पूजा की विधि देखती है और छठ पूजा करती है. परंपरा बन्द नहीं होती है.

 सांकेतिक फोटो

मेरे दिमाग में इसे देखकर आया कि क्यों एक त्योहार और परम्परा इसलिए बन्द हो जानी चाहिए कि घर की बहू उसे नहीं करना चाहती. मैं वह वीडियो बनाती तो बेटा माँ को यह जवाब देता कि " माँ, मैं करूंगा छठ व्रत और पूजा , त्योहार बन्द नहीं होगा" और मेरे वीडियो में बेटा खुद वह सारे रीतिरिवाज निभाता जो बहू करती है. मान लो किसी माँ के बेटा ही नहीं है या बहू इच्छुक नहीं है तो बेटे और माँ के इतनी इच्छा के बावजूद त्योहार क्यों बन्द हो जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- छठ पर्व पर वोट साधने की राजनीति

हर पीढी के साथ कुछ सुखद और सुविधाजनक बदलाव आने ही चाहिए. ये बदलाव इतनी सहजता से आ जाने चाहिए मानो नींद में करवट बदली हो. इसके लिए किसी क्रान्ति की ज़रूरत नहीं है. चाहे वह लड़कों द्वारा नारियल फोड़ने,लड़कों द्वारा कुलदेवी की पूजा करने का रिवाज़ हो चाहे बहुओं द्वारा छठ पूजा करने का. त्योहारों का मज़ा उसे लिंगभेद से मुक्त करके मनाने में ही है.

देखिए ये वीडियो और सुनिए ये अद्भुत गीत. आपको भावुक ज़रूर करेगा,जैसे मुझे किया था...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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