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जमशेदजी टाटा: धनकुबेरों को परोपकार के मामले में आईना दिखाते रहेंगे

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 24 जून, 2021 11:14 PM
  • 24 जून, 2021 11:14 PM
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अपने हितों से ऊपर राष्ट्र हित की भावना को अपनाने की वजह से ही आज टाटा समूह इतना आगे निकल चुका है कि शायद ही भारत का कोई प्रतिष्ठित कारोबारी घराना उनके आस-पास तक भी पहुंच सके. क्योंकि आज के समय में बिजनेस का सीधा सा मतलब हो गया है मुनाफा के लिए अंधी दौड़.

यहूदी नरसंहार की एक पीड़िता एनी फ्रैंक (Anne Frank) ने अपनी डायरी में एक बहुत ही साधारण सी बात लिखी थी कि no one has ever become poor by giving. 'देने से आजतक कोई गरीब नहीं हुआ', यह साधारण सी बात अपने अंदर इतनी असाधारणता समेटे हुए है कि इसके बारे में लिखने बैठा जाए, तो शब्द कम पड़ जाएंगे. हमारे देश में परोपकार और दान की महत्ता को बताती हुई कई पौराणिक कथाएं हैं.

भारत में परोपकार की यह परंपरा आज भी जारी है. हाल ही में हुरुन रिसर्च और एडेलगिव फाउंडेशन ने बीते 100 सालों में दान करने वाले टॉप-50 लोगों की एक सूची बनाई है. 102 अरब अमेरिकी डॉलर का दान देकर इस सूची में भारतीय उद्योग के जनक कहे जाने वाले टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) का नाम पहले पायदान पर है. इस सूची के अनुसार, पिछली सदी में जमशेदजी टाटा जैसा परोपकारी इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं हुआ है.

समाज कल्याण पर करीब 1200 करोड़ खर्च करता है टाटा ग्रुप 

इस सूची में एकमात्र दूसरे भारतीय उद्योगपति अजीम प्रेमजी शामिल हैं. अजीम प्रेमजी (azim premji) ने अपनी 22 अरब डॉलर की पूरी संपत्ति दान कर दी है. इस सूची में इन दो भारतीयों के अलावा भारत का कोई अन्य धनकुबेर शामिल नहीं है. वैसे, जमशेदजी टाटा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश से जितना कमाया, उससे ज्यादा वापस दिया. ऐसा कहने का बड़ा कारण भी है. दरअसल, टाटा समूह की लिस्टेड कंपनियों की कमाई का 66 फीसदी हिस्सा दान के रूप में दिया जाता है. जमशेदजी टाटा की विरासत संभालने वाले रतन टाटा ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए इसी साल मार्च में 1500 करोड़ रुपये दान किए थे. टाटा समूह की एक कंपनी ने कोरोना से जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिवारों को 60 साल तक सैलरी देने की घोषणा की थी. इस तरह की चीजें टाटा समूह की ओर से लंबे समय तक की जाती रही हैं. वहीं, ऐसी घोषणाओं पर रतन टाटा मानते हैं कि उन्हें भारतीय होने और भारत की समृद्धि में योगदान पर गर्व है. दरअसल, परोपकार या समाज कल्याण (social-welfare) टाटा ट्रस्ट की मूल भावना है. इस समूह के लिए मुनाफा देश के लोगों की सेवा करने का साधन मात्र है. आप शायद जानकर...

यहूदी नरसंहार की एक पीड़िता एनी फ्रैंक (Anne Frank) ने अपनी डायरी में एक बहुत ही साधारण सी बात लिखी थी कि no one has ever become poor by giving. 'देने से आजतक कोई गरीब नहीं हुआ', यह साधारण सी बात अपने अंदर इतनी असाधारणता समेटे हुए है कि इसके बारे में लिखने बैठा जाए, तो शब्द कम पड़ जाएंगे. हमारे देश में परोपकार और दान की महत्ता को बताती हुई कई पौराणिक कथाएं हैं.

भारत में परोपकार की यह परंपरा आज भी जारी है. हाल ही में हुरुन रिसर्च और एडेलगिव फाउंडेशन ने बीते 100 सालों में दान करने वाले टॉप-50 लोगों की एक सूची बनाई है. 102 अरब अमेरिकी डॉलर का दान देकर इस सूची में भारतीय उद्योग के जनक कहे जाने वाले टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) का नाम पहले पायदान पर है. इस सूची के अनुसार, पिछली सदी में जमशेदजी टाटा जैसा परोपकारी इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं हुआ है.

समाज कल्याण पर करीब 1200 करोड़ खर्च करता है टाटा ग्रुप 

इस सूची में एकमात्र दूसरे भारतीय उद्योगपति अजीम प्रेमजी शामिल हैं. अजीम प्रेमजी (azim premji) ने अपनी 22 अरब डॉलर की पूरी संपत्ति दान कर दी है. इस सूची में इन दो भारतीयों के अलावा भारत का कोई अन्य धनकुबेर शामिल नहीं है. वैसे, जमशेदजी टाटा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश से जितना कमाया, उससे ज्यादा वापस दिया. ऐसा कहने का बड़ा कारण भी है. दरअसल, टाटा समूह की लिस्टेड कंपनियों की कमाई का 66 फीसदी हिस्सा दान के रूप में दिया जाता है. जमशेदजी टाटा की विरासत संभालने वाले रतन टाटा ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए इसी साल मार्च में 1500 करोड़ रुपये दान किए थे. टाटा समूह की एक कंपनी ने कोरोना से जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिवारों को 60 साल तक सैलरी देने की घोषणा की थी. इस तरह की चीजें टाटा समूह की ओर से लंबे समय तक की जाती रही हैं. वहीं, ऐसी घोषणाओं पर रतन टाटा मानते हैं कि उन्हें भारतीय होने और भारत की समृद्धि में योगदान पर गर्व है. दरअसल, परोपकार या समाज कल्याण (social-welfare) टाटा ट्रस्ट की मूल भावना है. इस समूह के लिए मुनाफा देश के लोगों की सेवा करने का साधन मात्र है. आप शायद जानकर चौंक जाएंगे कि सामान्य हालातों में टाटा ट्रस्ट हर साल करीब 1,200 करोड़ समाज कल्याण के लिए खर्च करता है.

रतन टाटा ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए इसी साल मार्च में 1500 करोड़ रुपये दान किए थे.

स्वहित से ऊपर राष्ट्र हित की भावना

अपने हितों से ऊपर राष्ट्र हित की भावना को अपनाने की वजह से ही आज टाटा समूह इतना आगे निकल चुका है कि शायद ही भारत का कोई प्रतिष्ठित कारोबारी घराना उनके आस-पास तक भी पहुंच सके. दरअसल, आज के समय में बिजनेस का सीधा सा मतलब हो गया है मुनाफा. लोग अंधे होकर केवल पैसों की तरफ भाग रहे हैं और इसकी वजह से कहीं न कहीं परोपकार पीछे छूट जाता है. ऐसा नहीं है कि अन्य भारतीय उद्योगपति दान या परोपकार नहीं करते हैं. देश के लगभग हर बड़े औद्योगिक घरानों की ओर से चैरिटैबल ट्रस्ट या अन्य जरियों से समाज कल्याण के लिए दान दिया जाता रहा है. लेकिन, यह हिस्सा टाटा समूह द्वारा समाज कल्याण के लिए दिए जा रहे हिस्से से काफी छोटा है. हुरुन रिसर्च और एडेलगिव फाउंडेशन ने साल 2020 के बड़े दानवीरों की एक लिस्ट जारी की थी. जिसमें देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शामिल और एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी ने बीते साल 458 करोड़ रुपये दान कर तीसरे स्थान पर थे. इस लिस्ट में 795 करोड़ रुपये दान कर एचसीएल टेक्नोलॉजीज के फाउंडर शिव नाडर अंबानी से आगे थे. इस लिस्ट में विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी 7906 करोड़ दान करने के साथ पहले नंबर पर थे.

राजनीतिक दलों को दिल खोलकर मिलता है दान

बीते डेढ़ साल से देश और दुनिया को झकझोर के रख देने वाली कोरोना महामारी के दौरान हर जगह लोगों ने अपनी हैसियत के अनुसार जरूरतमंदों की यथासंभव मदद की है. किसी के गाढ़े वक्त में काम आना भारत की संस्कृति का हिस्सा रहा है. लेकिन, कुछ धनकुबेरों के लिए यह सब किस्से और कहानियां ही लगते हैं. 2017 में आई ऑक्सफैम इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत का 58 फीसदी धन सिर्फ एक फीसदी लोगों के पास है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 57 अरबपतियों के पास 216 अरब डॉलर की संपत्ति है. हमारे देश में किस स्तर तक आर्थिक विभेद है, उसे दर्शाने के लिए ये रिपोर्ट काफी है. क्या यहां ये सवाल नहीं उठना चाहिए कि इन 1 फीसदी लोगों ने कोरोना काल में भारत के लिए कितने उनमुक्त हाथों से दान किया? क्या यहां ये सवाल नहीं उठना चाहिए कि कॉर्पोरेट घराने अपने हितों को साधने के लिए राजनीतिक दलों को अरबों रुपये का चंदा दे सकते हैं, लेकिन देश और समाज के कल्याण के लिए इनकी जेब उतनी ढीली नहीं हो पाती है क्यों? क्या देश के संसाधनों से अकूत संपदा कमाने वालों का देश के प्रति कुछ फर्ज नहीं बनता है?

आदर्श समाज की हो सकती है स्थापना

हुरुन के चेयरमैन रुपर्ट हूगवर्फ कहते हैं कि आज के अरबपति जिस हिसाब से कमाई करते हैं, उस हिसाब से दान नहीं देते हैं. तमाम आंकड़ों को देखते हुए उनकी यह बात सच ही लगती है. दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में पहले नंबर पर आने वाले अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस और दूसरे सबसे अमीर शख्स टेस्ला के एलन मस्क का नाम इस लिस्ट में दूर-दूर तक नजर नहीं आता है. ये सभी लोग तेजी से अपनी संपत्ति बढ़ा रहे हैं, लेकिन दान करने के मामले में पीछे हैं. हालांकि, जेफ बेजोस की पूर्व पत्नी मेकैंजी स्कॉट इसी लिस्ट में 29वें नंबर पर नजर आती हैं. वैसे, किसी पर दान देने का दबाव तो नहीं बनाया जा सकता है. लेकिन, ये धनकुबेर अगर खुद से ही आगे आकर इस तरह के विचार को अपना लें, तो दुनिया बिल्कुल ही बदल जाएगी. अगर ऐसा हो जाता है, तो दुनिया में शायद ही कोई भूख और इलाज की कमी के चलते अपनी जान गंवाएगा. शायद ही कोई बच्चा बिना शिक्षा के रहेगा. शायद ही कोई गरीब रहे. एक ऐसा आदर्श समाज जिसकी हम केवल कल्पना करते हैं, वो हमारी आंखों के सामने साकार हो सकता है. लेकिन, पौराणिक कथाओं की तरह असल जिंदगी में भी दानवीर कर्ण या दधीचि जैसे लोग कम ही होते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि मुनाफे की पीछे भागती इस दुनिया में जमशेदजी टाटा जैसे लोगों की वजह से ही समाज कल्याण के लिए काम करने की भावना इस देश में अभी तक जीवित मिलती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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