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गौ अवशेष बर्दाश्त नहीं तो मृतक गाय का क्रिया-कर्म किया करो!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 05 दिसम्बर, 2018 01:08 PM
  • 05 दिसम्बर, 2018 01:08 PM
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बुलंदशहर में गोकशी की सूचना के बीच जिस तरह हिंसा का खेल खेला गया. सवाल खड़ा हो रहा है कि मवेशियों, विशेषकर गायों के उन शवों का क्या होगा जिनका निस्तारण अब तब दूर दराज में या फिर जंगलों में होता था ?

गौ-अवशेष तो मिलेंगे ही. ये आम बात है. यदि गो अवशेष को देखकर बुलंदशहर में मौत का तांडव खेला गया है तो ऐसी घटनायें बार-बार होती ही रहेंगी. हर इलाके की आबादी से दूर जंगलों में गो अवशेष देखने को मिल सकते हैं. इंसानी आबादी में पालतू या लावारिस जानवरों में बहुत बड़ी संख्या गाय की है. बीमार या दूध ना देने वाली गायें लावारिस होती हैं, जो सड़कों, मोहल्लों, कालोनियों या हाइवे पर छुट्टा घूमा करती हैं. कूड़ा खाकर जब तक जी पाती हैं जीती हैं और फिर भूख प्यास या किसी बीमारी में मर जाती हैं. मौत तो पालतू गायों की होती ही है.

बुलंदशहर घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि अब मरी हुई गायों के शवों का निस्तारण कैसे होगा

लावारिस या पालतू गायें जब मरती हैं तो उनके मृत्य शरीर के निस्तारण के लिए एक वर्ग विशेष के पेशेवरों को इसकी सूचना दी जाती है. या वो खुद मरी गाय तक पहुंच जाते हैं. अपने पेशे की जरूरत के साथ जनहित में भी ये पेशेवर मरी गाय को आबादी से दूर किसी क्षेत्र के नजदीकी जंगल में लाद कर ले जाते हैं.

पालतू गाय के मालिक गाय उठाने वाले को कुछ मेहनताना दे देते हैं. लावारिस गाय को उठाने का उन्हें कुछ नहीं मिलता. इसलिए ये गरीब और मेहनतकश पेशेवर जिस जंगल में मृत्यु गाय के निस्तारण के लिए ले जाते हैं वहां ही वो गाय के कुछ अंग, हड्डियां या खाल वगैरह ले जाते है. बाकी मांस चील, कौवे, गिद्ध वगैरह खा लेते हैं. और इस तरह बड़ी संख्या में मरने वाली गायों के मृत शरीर का निस्तारण होता है. निस्तारण ना हो तो आबादी में मृत्य गाय का शरीर सड़ेगा और कोई महामारी जन्म ले सकती है.

कहने का मतलब ये है उक्त प्रक्रिया के तहत आबादी के नजदीकी जंगलों में गायों के अवशेष अक्सर देखे जा सकते हैं. ऐसे अवशेष देखकर ही यदि बुलंदशहर जैसे दंगे भड़कने लगे तो देशभर में हर दिन...

गौ-अवशेष तो मिलेंगे ही. ये आम बात है. यदि गो अवशेष को देखकर बुलंदशहर में मौत का तांडव खेला गया है तो ऐसी घटनायें बार-बार होती ही रहेंगी. हर इलाके की आबादी से दूर जंगलों में गो अवशेष देखने को मिल सकते हैं. इंसानी आबादी में पालतू या लावारिस जानवरों में बहुत बड़ी संख्या गाय की है. बीमार या दूध ना देने वाली गायें लावारिस होती हैं, जो सड़कों, मोहल्लों, कालोनियों या हाइवे पर छुट्टा घूमा करती हैं. कूड़ा खाकर जब तक जी पाती हैं जीती हैं और फिर भूख प्यास या किसी बीमारी में मर जाती हैं. मौत तो पालतू गायों की होती ही है.

बुलंदशहर घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि अब मरी हुई गायों के शवों का निस्तारण कैसे होगा

लावारिस या पालतू गायें जब मरती हैं तो उनके मृत्य शरीर के निस्तारण के लिए एक वर्ग विशेष के पेशेवरों को इसकी सूचना दी जाती है. या वो खुद मरी गाय तक पहुंच जाते हैं. अपने पेशे की जरूरत के साथ जनहित में भी ये पेशेवर मरी गाय को आबादी से दूर किसी क्षेत्र के नजदीकी जंगल में लाद कर ले जाते हैं.

पालतू गाय के मालिक गाय उठाने वाले को कुछ मेहनताना दे देते हैं. लावारिस गाय को उठाने का उन्हें कुछ नहीं मिलता. इसलिए ये गरीब और मेहनतकश पेशेवर जिस जंगल में मृत्यु गाय के निस्तारण के लिए ले जाते हैं वहां ही वो गाय के कुछ अंग, हड्डियां या खाल वगैरह ले जाते है. बाकी मांस चील, कौवे, गिद्ध वगैरह खा लेते हैं. और इस तरह बड़ी संख्या में मरने वाली गायों के मृत शरीर का निस्तारण होता है. निस्तारण ना हो तो आबादी में मृत्य गाय का शरीर सड़ेगा और कोई महामारी जन्म ले सकती है.

कहने का मतलब ये है उक्त प्रक्रिया के तहत आबादी के नजदीकी जंगलों में गायों के अवशेष अक्सर देखे जा सकते हैं. ऐसे अवशेष देखकर ही यदि बुलंदशहर जैसे दंगे भड़कने लगे तो देशभर में हर दिन दंगे भड़कने लगेंगे. बिना सच जानें गाय के अवशेष देखकर ये मान लेना कि गौकशी हुई है, इसी मूर्खता ही कहा जा सकता है. या फिर दंगा करके कानून व्यवस्था को चुनौती देने का बहाना भी कहा जा सकता है.

यदि उत्पाती किस्म के लोगों को मृत्य गाय के अवशेष देखना बर्दाश्त नहीं हैं तो वो गाय के मरने पर उसके क्रिया-कर्म की पहल शुरू कर दें. जैसे कुछ लोग वानर का क्रिया-कर्म करते हैं. गाय के अवशेष देखकर ये मान लेना कि गौकशी हुई है ऐसे शक ज्यादा गलत होते हैं.

मॉब लिचिंग जैसी अमानवीय घटनाओं का सबसे बड़ा कारण गौकशी या गौवध का ऋण माना जा रहा है. कई बार लोग किसी के बहकावे में आकर भावुकता वश आक्रोशित हो जाते हैं. नादानी, नासमझी या किसी बड़ी साजिश के तहत इस तरह की घटनायें मानवता और कानून व्यवस्था को शर्मसार कर रही हैं.

सरकार को चाहिए कि इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए अहम कदम उठाये. अधिक से अधिक गौशालाओं में लावारिस गायों को शरण दी जाये. खासकर मृत गायों के शरीर के निस्तारण के लिए कोई अवश्य कदम उठायें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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