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असम के 'तालिबानी कॉलेज' में परदा लपेटे लड़की शौकिया 'अफगानी' नहीं बनी है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 18 सितम्बर, 2021 04:48 PM
  • 18 सितम्बर, 2021 04:48 PM
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कट्टरपंथी नजरिया लिए असम का एक कॉलेज तालिबान बन गया है. ऐसे में शॉर्ट्स पहनकर एग्जाम देने पहुंची लड़की पर परदा लपेटा गया है. मामला चूंकि अब हमारे सामने है इसलिए हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि असम में लड़की का 'अफगानी' बनना शौक नहीं, मजबूरी था.

1947 में देश आजाद हुआ. आज हम 2021 में है. 47 से लेकर 2021 तक, इन गुजरे हुए 74 सालों में अगर हमने किसी चीज को बार बार सुना. लगातार सुना. तो वो Freedom Of Speech थी Freedom Of Expression था. हमारा संविधान वाक़ई अदभुत है. जो हमें ऐसे तमाम अधिकार देता है जो कई देशों के नागरिकों के लिए दूर के सुहावने ढोल हैं. बोली, भाषा की तरह कपड़े पहनने का अधिकार भी एक ऐसा ही अधिकार है. हमारी आपकी तरह संविधान ने भी 'सहजता' पर ही अपना सारा फोकस रखा है. यानी अगर कोई जीन्स पहन कर सहज महसूस कर रहा है तो संविधान ने उससे कहा है जींस पहनों वहीं कोई लुंगी में अपने को सहज महसूस करता है तो संविधान उसे लुंगी पहनने की इजाजत खुले मन से देता है. लड़कियों द्वारा पहने जाने वाले शर्ट्स का भी सीन ऐसा ही है. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संविधान गुड़ तो खाता है लेकिन गुलगुले से परहेज करता है. ध्यान रखिएगा. यहां बात भारतीय संविधान की हो रही है तालिबान शासित अफगानिस्तान की नहीं. मगर तब क्या जब भारत में कोई तालिबान हो जाए?

असम में जो कुछ भी एक कॉलेज ने एक छात्रा के साथ किया वो कई मायनों में विचलित करता है

विचलित होने की कोई ज़रूरत नहीं है. असम का एक कॉलेज तालिबान बन गया है. ऐसे में शॉर्ट्स पहनकर एग्जाम देने पहुंची लड़की को पर्दे लपेटकर एग्जाम देना पड़ा है. और हां यूं इस तरह परदा लपेटकर एग्जाम देने वाली लड़की का 'अफगानी' बनना शौक नहीं मजबूरी ही कहा जाएगा.

क्या है पूरा मैटर और क्यों बना मामला चर्चा का विषय

मामला जुड़ा है असम के सोनितपुर जिले की एक 19 साल लड़की से. जिसके पास परदे से खुद को ढ़ककर प्रवेश परीक्षा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. दरअसल असम स्थित तेजपुर के गिरिजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के अधिकारियों ने न केवल छात्रा के...

1947 में देश आजाद हुआ. आज हम 2021 में है. 47 से लेकर 2021 तक, इन गुजरे हुए 74 सालों में अगर हमने किसी चीज को बार बार सुना. लगातार सुना. तो वो Freedom Of Speech थी Freedom Of Expression था. हमारा संविधान वाक़ई अदभुत है. जो हमें ऐसे तमाम अधिकार देता है जो कई देशों के नागरिकों के लिए दूर के सुहावने ढोल हैं. बोली, भाषा की तरह कपड़े पहनने का अधिकार भी एक ऐसा ही अधिकार है. हमारी आपकी तरह संविधान ने भी 'सहजता' पर ही अपना सारा फोकस रखा है. यानी अगर कोई जीन्स पहन कर सहज महसूस कर रहा है तो संविधान ने उससे कहा है जींस पहनों वहीं कोई लुंगी में अपने को सहज महसूस करता है तो संविधान उसे लुंगी पहनने की इजाजत खुले मन से देता है. लड़कियों द्वारा पहने जाने वाले शर्ट्स का भी सीन ऐसा ही है. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संविधान गुड़ तो खाता है लेकिन गुलगुले से परहेज करता है. ध्यान रखिएगा. यहां बात भारतीय संविधान की हो रही है तालिबान शासित अफगानिस्तान की नहीं. मगर तब क्या जब भारत में कोई तालिबान हो जाए?

असम में जो कुछ भी एक कॉलेज ने एक छात्रा के साथ किया वो कई मायनों में विचलित करता है

विचलित होने की कोई ज़रूरत नहीं है. असम का एक कॉलेज तालिबान बन गया है. ऐसे में शॉर्ट्स पहनकर एग्जाम देने पहुंची लड़की को पर्दे लपेटकर एग्जाम देना पड़ा है. और हां यूं इस तरह परदा लपेटकर एग्जाम देने वाली लड़की का 'अफगानी' बनना शौक नहीं मजबूरी ही कहा जाएगा.

क्या है पूरा मैटर और क्यों बना मामला चर्चा का विषय

मामला जुड़ा है असम के सोनितपुर जिले की एक 19 साल लड़की से. जिसके पास परदे से खुद को ढ़ककर प्रवेश परीक्षा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. दरअसल असम स्थित तेजपुर के गिरिजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के अधिकारियों ने न केवल छात्रा के शॉर्ट्स पहनने पर आपत्ति जताई. बल्कि उसे प्रवेश परीक्षा के लिए अंदर जाने से मना कर दिया.

मामले के मद्देनजर जो जानकारी सामने आई है यदि उसपर यकीन किया जाए तो जिस छात्रा के साथ ये घटना हुई है उसका नाम है जुबली तमुली है. जुबली अपने पिता के साथ गिरिजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी में प्रवेश परीक्षा देने पहुंची थी. जुबली के अनुसार जब उसने परीक्षा केंद्र में प्रवेश किया तो कोई अड़चन नहीं थी, लेकिन समस्या तो तब शुरू हुई जब वह परीक्षा हॉल में प्रवेश करने वाली थी.

जुबली तमुली के अनुसार 'अधिकारियों ने मुझे उचित जांच करने के बाद परीक्षा स्थल में प्रवेश करने की अनुमति दी थी. जब मैं परीक्षा हॉल में जा रही थी तब एक व्यक्ति ने मुझे प्रतीक्षा करने के लिए कहा, जबकि अन्य सभी छात्रों को प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी. मेरे पास एडमिट कार्ड, आधार कार्ड, फोटोकॉपी सहित मेरे सभी दस्तावेज थे, लेकिन उन्होंने मेरे दस्तावेजों की जांच नहीं की और मुझे बताया कि छोटे कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है.

जुबली ने सवाल तो किया लेकिन जवाब था जो उसे मिला नहीं! 

जुबली ने एडमिट कार्ड का हवाला देते हुए मौजूद अधिकारीयों से कहा कि एडमिट कार्ड पर तो ऐसे किसी भी नियम का उल्लेख नहीं किया गया? इस पर अधिकारीयों का तर्क था कि छात्र को ऐसे नियम के बारे में खुद पता करना चाहिए था. शॉर्ट्स के कारण तमाम समस्याओं से दो चार होना पड़ा जुबली को जब ये सब ड्रामा चल रहा था तो जुबली ने सुपरवाइजर से अपने पिता से बात करने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया.

पिता से बोला गया जाओ पहले पैंट खरीदकर आओ

जुबली और कॉलेज के बीच 'ड्रेस' को लेकर खूब बहस हुई. न तो जुबली हार मानने वाली थी न ही कॉलेज पीछे हटने को तैयार था. बाद में ये तय हुआ कि जुबली परीक्षा तो दे सकती है लेकिन पहले उसके पिता को उसके लिए पैंट खरीदकर लानी होगी.

तालिबान की तर्ज पर लपेट वाया गया जुबली से परदा

कॉलेज की इस अनोखी डिमांड पर जुबली के पिता पैंट खरीदने बाजार गए. जुबली वहीं कॉलेज में ही पिता की प्रतीक्षा कर रही थी कि तभी दो लड़कियां उसके पास आईं और उसे अपने पैरों के चारों ओर एक पर्दा लपेटने के लिए कहा. फिर वह अपने चारों ओर एक पर्दा लपेटकर परीक्षा के लिए उपस्थित हुई.

भारत तालिबान नहीं है यही उसकी सुन्दरता है!

जैसा कि हमने शुरुआत में ही इस बात का जिक्र किया था कि भारतीय संविधान हमें तमाम तरह की आजादी देता है. संविधान में इस बात का जिक्र है कि हम जिस चीज में सहज हों उसे धारण कर सकते हैं. असम की जुबली शॉर्ट्स में सहज थी इसलिए उसने उसे धारण किया. किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का न सही कॉलेज को कम से कम संविधान का मान तो रखना ही चाहिए था. 

तेजपुर स्थित गिरिजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी और उसके अधिकारीयों को इस बात को समझना चाहिए था कि इस तरह का तालिबानी फरमान किसी और का नहीं बल्कि कॉलेज का ही अहित करेगा. साथ ही उन्हें इस बात को भी समझना चाहिए कि भारत तालिबान नहीं है यही उसकी सुन्दरता है.

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