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क्या अयोध्या तैयार है वाराणसी / तिरुपति बनने के लिए?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 नवम्बर, 2019 02:05 PM
  • 04 नवम्बर, 2019 02:05 PM
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अयोध्या चर्चा में है.जल्द ही राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला आने वाला है. ऐसा क्या क्या है जिसे अंजाम देकर अयोध्या के वासी अपने शहर की तस्वीर और अपना मुकद्दर दोनों बदल सकते हैं.

राम मंदिर-अयोध्‍या विवाद पर फैसलों दस दिनों के भीतर कभी भी आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी करने के साथ देश के इस सबसे पुराने मुकदमे को खत्‍म करने की तैयारी कर ली है. CJI रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, और वे जाते-जाते इस फैसले को सुना कर जाना चाहते हैं. फैसला जो भी आए, इधर खबर आई है कि RSS ने अयोध्‍या विवाद से जुड़े फैसले का जश्‍न मनाने की तैयारी कर ली है. शायद उन्‍हें उम्‍मीद है कि फैसला राम मंदिर के पक्ष में ही आएगा. इस विवाद से जुड़े दोनों पक्षों की अपनी-अपनी अपेक्षाएं हैं, लेकिन क्‍या अयोध्‍या की भी कोई अपेक्षा है? क्‍या इस फैसले को लेकर अयोध्‍या की भी अपनी कोई तैयारी है?

राममंदिर बाबरी मस्जिद मामले में 40 दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बाद, मंदिर समर्थकों के बीच तर्क दिया जा रहा है कि अब फैसला हिंदू पक्षकारों के हित में आएगा. जल्द ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा. फैसले के मद्देनजर, एक वर्ग ऐसा भी है जिसका मानना है कि, कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या की काया बदल जाएगी. जो विकास वहां होगा, वो बिलकुल नहीं तरह का होगा. इस बात में कोई शक नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यदि अयोध्या में भव्य राममंदिर बना तो वहां पर्यटन के आयाम बढ़ेंगे. लोगों को रोजगार मिलेगा और अब तक धीमी गति से चल रहे अयोध्या की रफ़्तार बढ़ जाएगी. फैसला क्या होगा? इसपर किसी भी तरह की कोई टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी है. मगर बात चूंकि अयोध्या की है तो सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि क्या वाकई अयोध्या आने वाले वक़्त के लिय तैयार है? आने वाले वक़्त में अयोध्या के स्वरुप को हम काशी के वर्तमान स्वरुप से भी समझ सकते हैं. मौजूदा वक़्त में काशी एक बड़ा धार्मिक हब है. जिस कारण देश विदेश से टूरिस्ट यहां भ्रमण और दर्शन के लिए आते हैं. जिस तरह खुद यहां के लोगों ने अपने को तैयार किया है, काशी की जनता और टूरिस्टों के बीच बैलेंस बना हुआ है और हालात अच्छे हैं. अब इसी बात को हम अयोध्या के सन्दर्भ में देखें तो अयोध्या की स्थिति काशी से काफी अलग है. अयोध्या में कई बेसिक खामियां हैं. अगर आज अयोध्या, काशी के मुकाबले पिछड़ा है तो इसकी जिम्मेदारी यहां के लोगों से ज्यादा अलग अलग राज्य सरकारों की है.

राम मंदिर-अयोध्‍या विवाद पर फैसलों दस दिनों के भीतर कभी भी आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी करने के साथ देश के इस सबसे पुराने मुकदमे को खत्‍म करने की तैयारी कर ली है. CJI रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, और वे जाते-जाते इस फैसले को सुना कर जाना चाहते हैं. फैसला जो भी आए, इधर खबर आई है कि RSS ने अयोध्‍या विवाद से जुड़े फैसले का जश्‍न मनाने की तैयारी कर ली है. शायद उन्‍हें उम्‍मीद है कि फैसला राम मंदिर के पक्ष में ही आएगा. इस विवाद से जुड़े दोनों पक्षों की अपनी-अपनी अपेक्षाएं हैं, लेकिन क्‍या अयोध्‍या की भी कोई अपेक्षा है? क्‍या इस फैसले को लेकर अयोध्‍या की भी अपनी कोई तैयारी है?

राममंदिर बाबरी मस्जिद मामले में 40 दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बाद, मंदिर समर्थकों के बीच तर्क दिया जा रहा है कि अब फैसला हिंदू पक्षकारों के हित में आएगा. जल्द ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा. फैसले के मद्देनजर, एक वर्ग ऐसा भी है जिसका मानना है कि, कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या की काया बदल जाएगी. जो विकास वहां होगा, वो बिलकुल नहीं तरह का होगा. इस बात में कोई शक नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यदि अयोध्या में भव्य राममंदिर बना तो वहां पर्यटन के आयाम बढ़ेंगे. लोगों को रोजगार मिलेगा और अब तक धीमी गति से चल रहे अयोध्या की रफ़्तार बढ़ जाएगी. फैसला क्या होगा? इसपर किसी भी तरह की कोई टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी है. मगर बात चूंकि अयोध्या की है तो सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि क्या वाकई अयोध्या आने वाले वक़्त के लिय तैयार है? आने वाले वक़्त में अयोध्या के स्वरुप को हम काशी के वर्तमान स्वरुप से भी समझ सकते हैं. मौजूदा वक़्त में काशी एक बड़ा धार्मिक हब है. जिस कारण देश विदेश से टूरिस्ट यहां भ्रमण और दर्शन के लिए आते हैं. जिस तरह खुद यहां के लोगों ने अपने को तैयार किया है, काशी की जनता और टूरिस्टों के बीच बैलेंस बना हुआ है और हालात अच्छे हैं. अब इसी बात को हम अयोध्या के सन्दर्भ में देखें तो अयोध्या की स्थिति काशी से काफी अलग है. अयोध्या में कई बेसिक खामियां हैं. अगर आज अयोध्या, काशी के मुकाबले पिछड़ा है तो इसकी जिम्मेदारी यहां के लोगों से ज्यादा अलग अलग राज्य सरकारों की है.

जल्द ही अयोध्या के अच्छे दिन आने वाले हैं और इसके मद्देनजर पहल उसे खुद करनी है

आज अयोध्या का नाम बच्चे बच्चे की जुबान पर है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर होगा. मगर मंदिर बनने से पहले ऐसा बहुत कुछ है जो खुद अयोध्या वासियों को करना होगा. अयोध्या की आवाम को याद रखना होगा कि सरकार जब उनके विकास के लिए कुछ करेगी तब करेगी लेकिन उससे पहले ऐसा बहुत कुछ है जिसको अगर उन्होंने अमली जामा पहना दिया तो राम मंदिर निर्माण के पहले ही उनके अच्छे दिन आ जाएंगे.

तो आइये जानें कि ऐसा क्या क्या है जिसे करके अयोध्या के वासी अपने शहर की तस्वीर और अपना मुकद्दर दोनों बदल सकते हैं.

कैशलेस ट्रांजेक्शन

बात अयोध्या के बनारस बनने से शुरू हुई है तो बता दें कि एक बड़ा धामिक पर्यटन हब होने के कारण देश विदेश के टूरिस्टों की एक बड़ी संख्या है जो बनारस आती है. बात अगर लेन देन की हो तो मोदी सरकार द्वारा कैशलेस  ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के बाद काशी की जनता ने उसे अपनाया. आज अगर आप काशी हों और आपके पास कैश न हो तो भी आपका काम चल जाएगा. वहीं जब बात अयोध्या की आती है तो आज भी वहां कैशलेस ट्रांजेक्शन, कार्ड पेमेंट, पेटीएम, गूगल पे जैसी चीजें दूर की कौड़ी हैं.

भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 135 किलोमीटर होने के बावजूद आज भी शहर बहुत धीमी गति से चल रहा है. बात अगर रोजगार की हो तो मिठाई, फूल और पूजा सामग्री का कारोबार यहां लोगों का मुख्य रोजगार है और इसमें भी सारा लेन देन कैश में ही होता है.

अब चूंकि आने वाले वक़्त में अयोध्या, धार्मिक पर्यटन के मामले में काशी से भी बड़ा हब बनने वाला है तो यहां के लोगों के लिए जरूरी हो गया है कि वो मुख्य धारा से जुड़ते हुए कैश के मुकाबले कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दें.

विदेशी और अपने ही देश की अलग भाषाएं

बात अगर अयोध्या आने वाले लोगों की हो तो वर्तमान में ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है जो दक्षिण भारत से अयोध्या दर्शन के लिए आते हैं. बात अगर ऐसे लोगों की हो तो अयोध्या आकर इन्हें जिस चीज की सबसे ज्यादा परेशानी होती है वो है भाषा. मंदिर के पुजारियों से लेकर स्थानीय दुकानदारों तक इक्का दुक्का ही लोग हैं जिन्हें दक्षिण से जुड़ी भाषाएं जैसे तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ जैसी भाषाएं आती हैं.

साथ ही अब चूंकि कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि विदेशी भी यहां खूब आएंगे तो अब वो वक़्त आ गया  है जब अयोध्या के लोगों खासतौर से वो लोग जो मंदिर परिसर के दायरे में रह रहे हैं उन्हें विदेशी भाषाएं सीख ही लेना चाहिए.

इस बात को यदि हम बनारस के परिदृश्य में देखें तो चीजें काफी हद तक साफ़ हो जाएंगे. बनारस में जो लोग घाटों के किनारे रह रहे हैं उन्हें न सिर्फ अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन भाषा आती है बल्कि वो अन्य भारतीय भाषाएं भी उतनी ही खूबसूरती के साथ बोल सकते हैं.

प्रोफेशनल अप्रोच

चाहे वो यातातात हो या फिर बाजार और दैनिक जीवन किसी भी बढ़ते हुए शहर के लिए प्रोफेशनल अप्रोच बहुत जरूरी है. अगर आज काशी विकास कि धारा में कदम से कदम मिलाकर चल रहा है तो उसकी एक वजह बनारस के लोगों का अपनी चीजों के प्रति प्रोफेशनल होना माना जा सकता है. ऐसे ही अब जब बात अयोध्या की आ रही है. तो क्योंकि आने वाले वक़्त में वहां भव्य राम मंदिर बनने की सम्भावना है. प्रोफेशनल अप्रोच को लागू करना कहीं न कहीं अयोध्या के लिए वक़्त की जरूरत है. अयोध्या तभी बनारस से आगे निकल पाएगा जब वहां के लोग प्रोफेशनल होने के लिए खुद पहल करेंगे.

धर्मशालाओं / होटल का रिनोवेशन

एक धार्मिक नगरी होने के कारण अयोध्या में धर्मशालाओं / होटलों की ठीक ठाक संख्या है. बाकी बात टूरिज्म की चल रही है तो किसी भी शहर में घूमने आने वाला पर्यटक एक बार के लिए भले ही अपने खाने के साथ समझौता कर ले मगर बात जब रुकने की आती है तो वो उसमें समझौता नहीं करता. पर्यटक यही चाहता है कि उसे कम पैसों में रुकने की अच्छी से अच्छी जगह मिले.

इसलिए अब वो समय आ गया है जब अयोध्या में मौजूद धर्मशालाओं और होटलों के संरक्षकों को इस दिशा में काम करना शुरू कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अगर आने वाले वक़्त में मंदिर बन जाए तो दर्शन के लिए आए पर्यटकों को परेशानी न हो.

साफ सफाई और सुरक्षा

यूपी में थानों और साफ़ सफाई दोनों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. जैसा उत्तर प्रदेश का माहौल है इन दोनों ही चीजों के लिए खुद अयोध्या वासियों को आगे आना चाहिए और साफ़ सफाई के साथ साथ सुरक्षित माहौल तैयार करना चाहिए. साथ ही यहां थानों में जो पुलिस के लोग बैठें उनमें भी ये सलीका हो कि न सिर्फ वो धैर्य के साथ फरियादी की बात सुनें बल्कि अगर कोई परेशान हाल हो तो उसकी मदद भी की जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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