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International Tea Day: अहमदाबाद में सिर्फ मोदी ही नहीं हैं जिनकी चाय की चर्चा हो

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 21 मई, 2020 09:26 PM
  • 21 मई, 2020 09:26 PM
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अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day) हम भारतीयों के लिए इस लिए भी जरूरी है क्योंकि हमारे न जाने कितने रिश्ते सिर्फ चाय पर बने. चाय हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा है और कहीं न कहीं इसने हमें जीवन को सहेजना सिखाया है.

यूं तो अहमदाबाद की कई विशेषताएं हैं लेकिन चूंकि आज 'अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस' (International Tea Day) है तो क्यों न हमारे 'किटली सर्कल' की बात की जाए. यह विश्व का पहला किटली सर्कल है, जिसका उद्घाटन 15 सितंबर, 2014 को किया गया था. किटली की बात होगी तो चाय का ज़िक़्र तो होना ही है. और जब 'चाय पे चर्चा' हो तो माननीय मोदी जी (PM Modi) को कैसे भूल सकते हैं. हम जानते हैं कि 2014 में आदरणीय मोदी जी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा (BJP) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. इससे पहले वे एक लम्बे अरसे तक (2001- 2014) तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. कहा जाता है कि उन्होंने अपनी युवावस्था में चाय बेची थी. लोगों की मानें तो उन्होंने किशोरावस्था में अहमदाबाद, गीता मंदिर इलाके में राज्य परिवहन डिपो में अपने चाचाजी की कैंटीन का प्रबंधन संभाला था. यह कुछ समय के लिए ही था लेकिन इस बात को आवश्यकता से अधिक ही प्रचारित किया गया.

चाय की एक ये भी बड़ी खासियत है कि इसके जरिये हम किसी न किसी से रिश्ता बना ही लेते हैं

सम्भवतः यह उनकी जमीन से जुड़ी छवि को उभारने के लिए किया गया होगा. यह भी सिद्ध करना होगा कि कैसे एक 'चायवाला' गरीबी से उठकर उच्च राजनैतिक नेतृत्व की ओर बढ़ चला है. इसमें कोई बुराई भी नहीं थी क्योंकि यह छवि लोगों को उम्मीद देती है. कठिन समय से लड़ने की हिम्मत देती है. उन्हें अपनी क्षमताओं को बेहतर रूप से समझने और निरंतर बढ़ने को प्रेरित भी करती है.

चाय हमेशा से ही भारतीयों को कनेक्ट करती रही है. यह एक ऐसा गर्म पेय है जिससे हर आदमी अपनी सुबह प्रारम्भ करता है. चाय अमीरी-ग़रीबी, ऊंच-नीच कुछ नहीं तौलती और सबकी स्वाद इन्द्रियों को समान सुख देती है. सबकी थकान इसका पहला घूंट भरते ही उतरने लगती है और चेहरा खिल उठता...

यूं तो अहमदाबाद की कई विशेषताएं हैं लेकिन चूंकि आज 'अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस' (International Tea Day) है तो क्यों न हमारे 'किटली सर्कल' की बात की जाए. यह विश्व का पहला किटली सर्कल है, जिसका उद्घाटन 15 सितंबर, 2014 को किया गया था. किटली की बात होगी तो चाय का ज़िक़्र तो होना ही है. और जब 'चाय पे चर्चा' हो तो माननीय मोदी जी (PM Modi) को कैसे भूल सकते हैं. हम जानते हैं कि 2014 में आदरणीय मोदी जी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा (BJP) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. इससे पहले वे एक लम्बे अरसे तक (2001- 2014) तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. कहा जाता है कि उन्होंने अपनी युवावस्था में चाय बेची थी. लोगों की मानें तो उन्होंने किशोरावस्था में अहमदाबाद, गीता मंदिर इलाके में राज्य परिवहन डिपो में अपने चाचाजी की कैंटीन का प्रबंधन संभाला था. यह कुछ समय के लिए ही था लेकिन इस बात को आवश्यकता से अधिक ही प्रचारित किया गया.

चाय की एक ये भी बड़ी खासियत है कि इसके जरिये हम किसी न किसी से रिश्ता बना ही लेते हैं

सम्भवतः यह उनकी जमीन से जुड़ी छवि को उभारने के लिए किया गया होगा. यह भी सिद्ध करना होगा कि कैसे एक 'चायवाला' गरीबी से उठकर उच्च राजनैतिक नेतृत्व की ओर बढ़ चला है. इसमें कोई बुराई भी नहीं थी क्योंकि यह छवि लोगों को उम्मीद देती है. कठिन समय से लड़ने की हिम्मत देती है. उन्हें अपनी क्षमताओं को बेहतर रूप से समझने और निरंतर बढ़ने को प्रेरित भी करती है.

चाय हमेशा से ही भारतीयों को कनेक्ट करती रही है. यह एक ऐसा गर्म पेय है जिससे हर आदमी अपनी सुबह प्रारम्भ करता है. चाय अमीरी-ग़रीबी, ऊंच-नीच कुछ नहीं तौलती और सबकी स्वाद इन्द्रियों को समान सुख देती है. सबकी थकान इसका पहला घूंट भरते ही उतरने लगती है और चेहरा खिल उठता है.

उन दिनों मोदीजी के लिए 'चाय पे चर्चा' सबसे happening topic था. यह लोगों को आनंदित करता था और अपना सा भी लगता था. वडनगर रेलवे स्टेशन से इस चर्चा की शुरुआत की गई थी. तो इस 'किटली सर्कल' की संकल्पना भी उन्हीं दिनों में हुई.

अब तो इस नाम के कई टी-जंक्शन भी शहर में बन चुके हैं. अहमदाबाद के एक प्रमुख ट्रैफिक जंक्शन अख़बार नगर सर्कल में, आग की लपटों से घिरे केतली के इस विशाल एवं प्रभावशाली मॉडल को देखा जा सकता है. इसे 2014 में 'सिल्वर ओक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी' द्वारा बनाया गया था. हम जानते हैं कि यह एक मॉडल है पर कमी निकालने वालों ने इसे भी नहीं छोड़ा. उनका सोचना है कि पहली नज़र में इसे देखकर यक़ीन हो जाता है कि यह चाय पहुंचाएगा लेकिन ध्यान से देखने पर धोखे का अहसास होने लगता है.

असल में इसकी डिजाइन के साथ समस्या है क्योंकि हैंडल इतना जुड़ा हुआ है कि चाय डालने के लिए केतली को नहीं झुकाया जा सकता है. पर सोचने वाली बात ये भी है कि इन कुतर्कों का मतलब क्या है? आप हवाई जहाज़ के मॉडल को देखें और फिर उम्मीद रखें कि ये आपको दिल्ली पहुंचा दे तो वह समझदारी नहीं, निरी मूर्खता ही लगती है.

हमें तो चाय पर फ़ोकस करना चाहिए जो कि न केवल हमारे जीवन का अंग है बल्कि इसमें कई मीठे रंग भी घोलती है. कितने किस्से हैं जो चाय के पहले सिप के साथ जन्म लेते हैं. कितनी बातें हैं जो एक कप को थामे चलती हैं. और फिर कुछ ख़ूबसूरत रिश्तों का जन्म होता है जो चलते हैं उम्र भर, जैसे कि हमारी चाय. जब तक ज़मीं है, आसमां है, हवा है, पानी है... तब तक चाय है और इससे जुड़ी हजारों कहानी हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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