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क्वारंटाइन सेंटर का डांस यदि फायदा पहुंचा रहा है तो वो अश्लील नहीं है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 मई, 2020 01:19 PM
  • 21 मई, 2020 01:19 PM
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प्रवासी मजदूरों के लिए बनाए गए समस्तीपुर के क्वॉरेंटाइन सेंटर में सिस्टम को ताक पर रखकर डांस का प्रोग्राम कराया गया. अश्लील गाने भी जमकर बजाए गए. सोशल मीडिया पर इस आयोजन का वीडियो सामने आने के बाद बहस छिड़ गई.

एक ऐसे समय में जब सरकारी आदेश के बाद पूरा देश अपने घर में बन्द है प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले हम जैसे लोग वर्क फ्रॉम होम के साथ साथ वर्क फ़ॉर होम कर रहे हों गीत संगीत ही हम मज़लूमों का सहारा है. नाच गाना अच्छा हो तो टाइम पास तो होता ही है कसम से मन को भी बड़ा सुकून मिलता है. मेरे एक डॉक्टर मित्र हैं, प्राचीन काल में जब कोरोना नहीं आया था और सब कुछ खुला था हर 10-15 दिन में उनसे भेंट हो जाती थी. कहते थे कि गीत संगीत बीमार के लिए भी फायदेमंद है., आदमी बीमारी में इसे सुने/देखे तो उसके जल्द ही स्वस्थ होने की संभावनाएं ज्यादा प्रबल होती हैं. अपनी बातों में डाक साब कितना सही थे या कितना गलत ये तो मैं नहीं जानता मगर बिहार के समस्तीपुर में जो हुआ है उसे देखकर इतना तो साफ है कि डाक साब की बातें कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं थी. पॉइंट तो था उसमें. दरअसल बिहार (Bihar) के समस्तीपुर (Samastipur) जिले का क़्वारेंटाइन सेंटर (Quarantine Centres) आजकल खूब सुर्खियों में है. वजह है यहां पर एक स्कूल में आइसोलेट किये गए मरीजों के मनोरंजन के लिए डांस का आयोजन, जहां अकेलेपन से उकताए मरीज सटकर बैठे तथाकथित अश्लील गानों पर झूमते नज़र आ रहे हैं.

वायरल हुए वीडियो में मरीजों के सामने डांस करते हुए कलाकार

अब इस आयोजन का वीडियो सोशल मीडिया पर घूमता बहस का मुद्दा बना हुआ है. सरकार की नाकामियां गिनाने वालों ने अपनी फेहरिस्त में इसे भी जोड़ लिया है और इधर उधर से इस आयोजन की और खबरें तलाशी जा रही हैं. वायरल हुए इस वीडियो को बड़ी प्रशासनिक चूक बताया जा रहा है और इसके सामने आने के बाद आलोचना से लेकर बातों का दौर शुरू हो गया है. तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं एक से एक किस्से कहानियां सामने आ रही हैं.

एक ऐसे समय में जब सरकारी आदेश के बाद पूरा देश अपने घर में बन्द है प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले हम जैसे लोग वर्क फ्रॉम होम के साथ साथ वर्क फ़ॉर होम कर रहे हों गीत संगीत ही हम मज़लूमों का सहारा है. नाच गाना अच्छा हो तो टाइम पास तो होता ही है कसम से मन को भी बड़ा सुकून मिलता है. मेरे एक डॉक्टर मित्र हैं, प्राचीन काल में जब कोरोना नहीं आया था और सब कुछ खुला था हर 10-15 दिन में उनसे भेंट हो जाती थी. कहते थे कि गीत संगीत बीमार के लिए भी फायदेमंद है., आदमी बीमारी में इसे सुने/देखे तो उसके जल्द ही स्वस्थ होने की संभावनाएं ज्यादा प्रबल होती हैं. अपनी बातों में डाक साब कितना सही थे या कितना गलत ये तो मैं नहीं जानता मगर बिहार के समस्तीपुर में जो हुआ है उसे देखकर इतना तो साफ है कि डाक साब की बातें कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं थी. पॉइंट तो था उसमें. दरअसल बिहार (Bihar) के समस्तीपुर (Samastipur) जिले का क़्वारेंटाइन सेंटर (Quarantine Centres) आजकल खूब सुर्खियों में है. वजह है यहां पर एक स्कूल में आइसोलेट किये गए मरीजों के मनोरंजन के लिए डांस का आयोजन, जहां अकेलेपन से उकताए मरीज सटकर बैठे तथाकथित अश्लील गानों पर झूमते नज़र आ रहे हैं.

वायरल हुए वीडियो में मरीजों के सामने डांस करते हुए कलाकार

अब इस आयोजन का वीडियो सोशल मीडिया पर घूमता बहस का मुद्दा बना हुआ है. सरकार की नाकामियां गिनाने वालों ने अपनी फेहरिस्त में इसे भी जोड़ लिया है और इधर उधर से इस आयोजन की और खबरें तलाशी जा रही हैं. वायरल हुए इस वीडियो को बड़ी प्रशासनिक चूक बताया जा रहा है और इसके सामने आने के बाद आलोचना से लेकर बातों का दौर शुरू हो गया है. तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं एक से एक किस्से कहानियां सामने आ रही हैं.

बता दें कि समस्तीपुर के मध्य विद्यालय (करर्ख गांव) में बने क्वॉरेंटाइन सेंटर में सिस्टम को ताक पर रखकर डांस का प्रोग्राम कराया गया. साथ ही इस कार्यक्रम में खूब जमकर अश्लील गाने भी बजाए गए. ध्यान रहे कि इस क्वॉरेंटाइन सेंटर में प्रवासी मजदूरों को रखा गया है.

अब स्कूल में नाच का प्रोग्राम हुआ तो कलाकारों के प्रवेश पर सवाल भी खूब खड़े हुए. सवाल उठने शुरू हो गए कि अखिर किसकी मर्जी से क्वॉरेंटाइन सेंटर में नाच का आयोजन किया गया.

सोशल मीडिया की बदौलत अब जबकि बात बढ़ गई है प्रशासन के पांव तले जमीन खिसकना लाजमी था. मामले पर जिले के एडिशनल कलेक्टर का बयान आया है. कलेक्टर साहब ने कहा है कि हमने मामले का संज्ञान लिया है और इस पर कार्रवाई की जाएगी. हमने वहां टीवी की व्यवस्था की है. प्रशासन वहां बाहर से किसी भी मनोरंजन की इजाजत नहीं देता है.

मामले में कितनी जांच होगी ये किसी से छिपा थोड़े ही है मगर इतना तो है कि जिसका भी ये आईडिया हो उसे 100 तोपों की सलामी देनी चाहिए. अगला जानता था कि भले ही क्वॉरेंटाइन सेंटर में अश्लील डांस कराना बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा हो मगर यही वो तरीका है जिससे इन प्रवासी मजदूरों को एक जगह पर रखा जा सकता है.

भले ही ये डांस प्रशासन के गले की हड्डी बन गया हो. लेकिन हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए डांस देखता मजदूर अपने काम में इतना तल्लीन था कि कोई टस से मस न हुआ. सब अपनी जगह पर बने रहे जोकि अपने आप में एक जरूरी चीज है. मेरे डाक साब भले ही तमाम मोर्चों पर गलत साबित हुए हों मगर इस बार बात जब गीत संगीत और मनोरंजन की आई तो मेरा उन्हें 100 में से 100 देने का मन है. गीत संगीत और मनोरंजन के मद्देनजर मैं उनकी बात को झुठला नहीं पाया.

कुल मिलाकर देखा जाए तो क्वारंटाइन सेंटर का डांस यदि फायदा पहुंचा रहा है या ये कहें कि वो लोगों को एक ही स्थान पर रख रहा है तो वो कुछ भी हो लेकिन अश्लील नहीं हो सकता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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