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सत्यजीत रे : जिनके काम पर फिल्म स्टडीज का सिलेबस टिका है, उनको हैप्पी बर्थडे

    • मनीष जैसल
    • Updated: 02 मई, 2018 09:44 PM
  • 02 मई, 2018 09:44 PM
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सत्यजीत रे का सिनेमा अपने आप में ऐतिहासिक है, ऐसा इसलिए क्योंकि सिर्फ सत्यजीत रे की फिल्मों को देखकर ही आजके निर्देशकों द्वारा उसके कंटेंट से प्रभावित होकर कई फिल्मों का निर्माण किया जा सकता है.

पाथेर पांचाली, अपराजितो, चारुलता और द वर्ल्ड ऑफ और शतरंज के खिलाड़ी जैसी शानदार फिल्में बनाने वाले फिल्मकार सत्यजीत रे का आज जन्मदिन है. उनकी फिल्में सिर्फ फिल्में न होकर अपने आप में एक समाज का निर्माण करती हुई हमें दिखती थीं. कहा जा सकता है कि उनकी बंगाली फिल्म पांथेर पांचाली के बनने की कहानी पर ही मौजूदा समय में कई फिल्मों का निर्माण हो सकता है. 2 मई 1921 में बंगाल में जन्में सत्यजीत रे फिल्मकार से पहले चित्रकार, कहानीकार, ग्राफिक डिजाइनर होने के साथ फिल्म आलोचक भी थे. कहना गलत न होगा कि, भारत में आज जितने भी फिल्मकार संवेदनशील सिनेमा बनाने की कोशिश में हैं वे कहीं न कहीं सत्यजीत रे से प्रभावित जरूर हैं.

ये कहना गलत नहीं है कि वर्तमान में कई निर्देशक सत्यजीत रे और उनकी फिल्मों को देखकर ही अपनी फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं

शांति निकेतन से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी कर सत्यजीत रे 1943 में वापस कलकत्ता गए और ग्राफिक डिजाइनर का कार्य करने लगे. ग्राफिक डिजाइनिंग के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर चुके सत्यजीत रे की मुलाकात जब फ्रांस के निर्देशक ज्यां रेनुआ से हुई तो उनके जीवन में नया बदलाव आया. ज्यां रेनुआ उन दिनों अपनी मशहूर फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए भारत आये हुए थे. रे को रेनुआ के साथ काम करने का मौका मिला और प्रशस्ति के तौर पर ज्यां ने खूब सराहा. रे के मन में फिल्मकार बनने की पहली ललक यही से जगी.

मन में विश्वास लिए सत्यजीत रे को एक बार 1950 में लंदन जाने का मौका मिला तो उन्होंने वहां इटैलियन न्यू रियलिज्म धारा की मशहूर फिल्म बाइसिकिल थीव्स देखने को मिली. इसे देख सत्यजीत रे ने फिल्मकार बनना तय किया. वापसी की यात्रा के दौरान ही उन्होंने बंगाली उपन्यासकार विभूति भूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास पांथेर पांचाली को बाल संस्करण मे...

पाथेर पांचाली, अपराजितो, चारुलता और द वर्ल्ड ऑफ और शतरंज के खिलाड़ी जैसी शानदार फिल्में बनाने वाले फिल्मकार सत्यजीत रे का आज जन्मदिन है. उनकी फिल्में सिर्फ फिल्में न होकर अपने आप में एक समाज का निर्माण करती हुई हमें दिखती थीं. कहा जा सकता है कि उनकी बंगाली फिल्म पांथेर पांचाली के बनने की कहानी पर ही मौजूदा समय में कई फिल्मों का निर्माण हो सकता है. 2 मई 1921 में बंगाल में जन्में सत्यजीत रे फिल्मकार से पहले चित्रकार, कहानीकार, ग्राफिक डिजाइनर होने के साथ फिल्म आलोचक भी थे. कहना गलत न होगा कि, भारत में आज जितने भी फिल्मकार संवेदनशील सिनेमा बनाने की कोशिश में हैं वे कहीं न कहीं सत्यजीत रे से प्रभावित जरूर हैं.

ये कहना गलत नहीं है कि वर्तमान में कई निर्देशक सत्यजीत रे और उनकी फिल्मों को देखकर ही अपनी फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं

शांति निकेतन से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी कर सत्यजीत रे 1943 में वापस कलकत्ता गए और ग्राफिक डिजाइनर का कार्य करने लगे. ग्राफिक डिजाइनिंग के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर चुके सत्यजीत रे की मुलाकात जब फ्रांस के निर्देशक ज्यां रेनुआ से हुई तो उनके जीवन में नया बदलाव आया. ज्यां रेनुआ उन दिनों अपनी मशहूर फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए भारत आये हुए थे. रे को रेनुआ के साथ काम करने का मौका मिला और प्रशस्ति के तौर पर ज्यां ने खूब सराहा. रे के मन में फिल्मकार बनने की पहली ललक यही से जगी.

मन में विश्वास लिए सत्यजीत रे को एक बार 1950 में लंदन जाने का मौका मिला तो उन्होंने वहां इटैलियन न्यू रियलिज्म धारा की मशहूर फिल्म बाइसिकिल थीव्स देखने को मिली. इसे देख सत्यजीत रे ने फिल्मकार बनना तय किया. वापसी की यात्रा के दौरान ही उन्होंने बंगाली उपन्यासकार विभूति भूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास पांथेर पांचाली को बाल संस्करण मे तब्दील कर फिल्म बनाने का विचार बना लिया. बाल संस्करण का नाम आम अंतिर भेपू था. मतलब आम के बीज की सीटी. इस किताब के लिए उन्होंने जिन रेखाचित्रों को बनाया था वही शूटिंग के दौरान भी काम आए थे.

भारत आकर अपनी नई टीम के साथ सत्यजीत रे ने फिल्म पांथेर पांचाली का निर्माण किया. शुरुआत में कोई निर्माता इन्हें समर्थन नही कर रहा था लेकिन बंगाल सरकार के समर्थन से फिल्म बनी और कई-कई हफ्तों तक हाउसफुल भी रही. कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचो पर सम्मानित रही. मौजूदा समय में यह फिल्म भारत में फिल्म अध्ययन के पाठ्यक्रम में शामिल है. बिना इस फिल्म के समाज और सिनेमा के अंतर संबंधों पर चर्चा व्यर्थ है. आपको आश्चर्य होगा कि इस फिल्म के निर्माण के लिए सत्यजीत रे को अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े थे.

भारत में जहां उनके फिल्मी कैरियर से नए फिल्मकार सीख लेकर फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं वहीं विदेशी धरती पर भी सत्यजीत रे की कहानी से प्रभावित फिल्में बनी हैं जिनमें टैक्सी ड्राइवर', 'फोर्टी शेड्स ऑफ ब्लू', 'E.T द एक्सट्रा टेरेस्ट्रअल' जैसी फिल्में शामिल हैं.

 

कहा जा सकता है कि सत्यजीत रे के कौशल से ही बॉलीवुड को नए आयाम मिले हैं

सत्यजीत रे अपने पूरे फिल्मी कैरियर में संवेदनशील और तार्किक सिनेमा की ओर ही बढ़ते रहे. 70 के दशक में उभरे व्यावसायिक युग का उनपर कोई असर नही पड़ा. वहीं 1983 में वें अपनी फ़िल्म घरे बाहरे की शूटिंग कर रहे थे तब उन्हें हार्टअटैक आया. वें लंबे समय तक बेड पर रहे लेकिन बेटे की मदद से फिल्म पूरी की. स्वस्थ होने के बाद फिर रे ने इंडोर शूटिंग की तरफ ध्यान दिया. जिनमें गणशत्रु, शाखा प्रोशाखा, आगंतुक प्रमुख थी.

सत्यजीत रे की फिल्म अपू ट्रायलॉजी को वर्ल्ड सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है. भारतीय सिनेमा को दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंचाने वाले निर्देशक सत्यजीत रे की छाप आज हमें विभिन्न फिल्मकारों में देखने को मिलती है. वे भी सत्यजीत रे की तरह ही अपनी फिल्मों में कहानी, संगीत, शूटिंग, पटकथा, कला निर्देशांकों को लेकर काफी सजग रहते हैं. इसी कड़ी में मुजफ्फर अली, श्याम बेनेगल से लेकर अपर्णा सेन, विशाल भारद्वाज, दिबाकर बनर्जी, सुजॉय घोष आदि का नाम लिया जा सकता है.

बांग्ला भाषी होने के कारण उन्होंने अपनी एकमात्र हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की असफलता पर कहा था कि अगर उनकी हिन्दी पर अच्छी पकड़ होती तो वे इसे और भी अच्छा बना सकते थे. बारीक से बारीक तकनीकियों पर ध्यान देकर फिल्मों का निर्माण करने वाले सत्यजीत रे को 32 राष्ट्रीय पुरस्कारों सहित ऑस्कर से भी नवाजा जा चुका है. भारत सरकार ने 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न देकर उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी थी.

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