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क्‍या अन्ना के अनशन से बड़ा है कतार का कष्ट ?

    • डीपी पुंज
    • Updated: 17 नवम्बर, 2016 07:04 PM
  • 17 नवम्बर, 2016 07:04 PM
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मनमोहन सिंह ईमानदार थे, मोदी भी ईमानदार हैं पर दोनों में अंतर साहस का था. एक ईमानदार दस सालों तक भ्रष्टाचारियों के डर से चुप रहा और एक ईमानदार इतने कम समय में सभी भ्रष्टाचारियों को चुप करा रहा है.

हम गवाह हैं जब अन्ना ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल फूंक था. हमने पुलिस के लाठियां खाई थीं, पानी के बौछारे झेले थे, भूखा प्यासा रोड पे नारे लगाते लगाते गला सूख जाता था, भगदड़ में हाथ पैर छिल जाते थे. आज भी हम गवाह हैं जब मोदी ने बिगुल फूंका है. हां आज स्थिति भयवाह है. लोग लाइनों में लगे हैं, बहुत सारी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. सब परेशान हैं, सब को पीड़ा हो रही है. वही पीड़ा जो हमें जंतर मंतर पर हुई थी. आंदोलन को सड़कों पर ले जाने में हुई थी.

 भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन तब सड़कों पर उतर आया था

ये स्थिति और भयावह तब हो जाती है जब हम ये देखते हैं कि सारी पार्टियां कलेधन और भ्रष्टाचार को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़ी हैं. सारी पार्टियां एक जुट हो रही हैं और देश को भ्रमित कर रही हैं. तब बहुत दुःख होता है. माना कि हम बहुत कष्ट झेल रहे हैं, पर यह हमारे लिए एक मौका भी तो है जहां से हम एक नए भारत के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं. हम आने वाले नए भारत को देख सकते हैं. छोटे छोटे हमारे प्रयास हमें अन्ना के सपनों के पास ले जा रहे हैं.

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हम गवाह हैं जब अन्ना ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल फूंक था. हमने पुलिस के लाठियां खाई थीं, पानी के बौछारे झेले थे, भूखा प्यासा रोड पे नारे लगाते लगाते गला सूख जाता था, भगदड़ में हाथ पैर छिल जाते थे. आज भी हम गवाह हैं जब मोदी ने बिगुल फूंका है. हां आज स्थिति भयवाह है. लोग लाइनों में लगे हैं, बहुत सारी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. सब परेशान हैं, सब को पीड़ा हो रही है. वही पीड़ा जो हमें जंतर मंतर पर हुई थी. आंदोलन को सड़कों पर ले जाने में हुई थी.

 भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन तब सड़कों पर उतर आया था

ये स्थिति और भयावह तब हो जाती है जब हम ये देखते हैं कि सारी पार्टियां कलेधन और भ्रष्टाचार को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़ी हैं. सारी पार्टियां एक जुट हो रही हैं और देश को भ्रमित कर रही हैं. तब बहुत दुःख होता है. माना कि हम बहुत कष्ट झेल रहे हैं, पर यह हमारे लिए एक मौका भी तो है जहां से हम एक नए भारत के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं. हम आने वाले नए भारत को देख सकते हैं. छोटे छोटे हमारे प्रयास हमें अन्ना के सपनों के पास ले जा रहे हैं.

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ये एक सुखद घटना थी. इसमें पुरे देश को उत्सव की तरह एक जुट हो जाना चाहिए था. पर अफसोस... कुछ लोग और पार्टियां अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. हम सब वही लोग हैं जो अन्ना के आंदोलन में रोज धूल धूसरित हो रहे थे, चिल्ला चिल्लाकर अपना गला फाड रहे थे. आज हमको संतोष हो रहा है कि चलो देर से ही सही अंधेर नहीं है. एक उम्मीद जगी है हम सबके मन में.

मनमोहन काल से अन्ना आंदोलन निकला और आंदोलन से केजरीवाल की सरकार निकली. उसके बाद मोदी को पूर्ण बहुमत मिली. ये सब मनमोहन काल की देन था. क्योंकि तब सब लोग भ्रष्ट तंत्र से त्रस्त हो गए थे और उससे छुटकारा पाना चाहते थे. केजरीवाल को दिल्ली की जिम्मेदारी मिली और मोदी को देश की. मनमोहन ईमानदार थे, मोदी भी ईमानदार हैं पर दोनों में अंतर साहस का था. एक ईमानदार दस सालों तक भ्रष्टाचारियों के डर से चुप रहा और एक ईमानदार इतने कम समय में सभी भ्रष्टाचारियों को चुप करा रहा है. केजरीवाल का जन्म जिस लिए हुआ था वो आज भूल कर बैठे हैं. वो दिल्ली में लोकपाल नहीं दे सके और आज जब किसी ने कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाया तो बजाये उसके साथ कदम मिलाने के, वो लोगों को उकसाने में लगे हैं.

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नोटबंदी को लेकर बहुत कम लोग होंगे जिनको इससे एतराज होगा. हां, नोटबंदी के लिए जिस स्तर की तैयारी चाहिए थी शायद सरकार से यहां कमी रह गयी है. हम इसके लिए सरकार और मोदी जी की आलोचना कर सकते हैं. पर पुरी मुहिम को झुठलाना गलत है. अगर कोई नेता बोल्ड कदम लेता है तो उसका साथ देना चाहिए वार्ना सदियां बीत जाएंगी कोई दूसरा नेता कोई बड़ा कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा.

मीडिया आज बहुत बुरे दौर से गुजर रही है. मीडिया में बैठे लोग शायद फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि कौन सा पक्ष देशहित का है और कौन सा पक्ष देश के अहित का है. शायद देश में बौद्धिक संकट का काल चल रहा है. हर सुधार को आपातकाल से जोड़ कर देखने का प्रचलन चल निकला है, जो ठीक नहीं है, आलोचना होनी चाहिए, बेशक होनी चाहिए, पर ये भी देखना चाहिए कि हम जो स्टैंड ले रहे हैं वो सही है या गलत है.

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जहां एक तरफ पूरा देश एक सुर में नोट बंदी की तारीफ कर रहा है, वहीं पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग आंखे बाद कर विरोध कर रहे हैं. हां, इनमें बहुत होंगे जिनका कालाधन बर्बाद हो गया हो. तो भाई जाने दो, इसके बदले तुम्हारे बच्चो को एक नया भारत मिलेगा. प्रॉब्लम ये है कि किसी खास पार्टी को फायदा होगा. जनता में उस पार्टी की पैठ बनेगी. तो भाई अपनी पार्टी को भी प्रेरित करो कुछ अच्छा काम करें, देश को क्यों बर्बाद कर रहे हो ? रचनात्मक बनो.

अन्ना आज मुस्कुरा रहे होंगे और ठंडी आहें भी भर रहे होंगे कि चलो कुछ बहरूपियों से पीछा छूटा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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