• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

बनारस में गंगा ने विष पी लिया है!

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 31 मई, 2021 05:55 PM
  • 31 मई, 2021 05:55 PM
offline
गंगा हरी हो रही है. गंगा हरी हो गई है और वह भी महादेव के त्रिशूल पर बसे काशी में. कुछ लोगों को इसकी चिंता है. कुछ को कत्तई चिंता नहीं है. गंगा के जल के रंग में परिवर्तन स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े लोगों के लिए और भी अधिक चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है.

अगर आपका ध्यान व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी में ब्लैक फंगस की बोगस वजहों को फॉरवर्ड करने से अधिक अगल-बगल की खबरों पर भी जाता हो, या आप धर्मनिष्ठ हिंदू हों, या आपके घर में गंगाजल की बुतलिया हो, या आपकी थोड़ी भी आस्था गंगा मैया या देवी गंगा में हो या आप देवी-देवताओं के चक्कर में कत्तई न पड़कर गंगा को महज नदी भी मानते हों, तो आपको आज यह लेख पढ़ना चाहिए. देश और उत्तर प्रदेश में भगवा राज है, लेकिन गंगा हरी हो रही है. गंगा हरी हो गई है और वह भी महादेव के त्रिशूल पर बसे काशी में कुछ लोगों को इसकी चिंता है. कुछ को कत्तई चिंता नहीं है. गंगा के जल के रंग में परिवर्तन स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े लोगों के लिए और भी अधिक चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है. आपको याद होगा पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था और महामारी की पहली लहर के दौरान, गंगा का पानी साफ हो गया था. कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगो ने बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे.

हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं.

वैसे, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय गंगा अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष और गंगा पर अनेक शोध कर चुके डॉ बीडी त्रिपाठी के अनुसार, 'नदी की हरी-भरी उपस्थिति माइक्रोसिस्टिस शैवाल के कारण हो सकती है.' लेकिन वह साथ में जोड़ते हैं, 'शैवाल बहते पानी में भी पाए जा सकते हैं. लेकिन यह आमतौर पर गंगा में नहीं देखा जाता है. लेकिन जहां भी पानी रुक जाता है और पोषक तत्वों की स्थिति बन जाती है, माइक्रोसिस्टिस बढ़ने लगते हैं. इसकी विशेषता यह है कि यह तालाबों और नहरों के पानी में ही उगता है.' 

बनारस में गंगा का पानी हरा हुआ है जिससे समाज का एक बड़ा वर्ग चिंतित है

कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, 'शैवाल वाला पानी जहरीला भी हो सकता है और इसकी जांच की जानी चाहिए कि क्या हरा रंग...

अगर आपका ध्यान व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी में ब्लैक फंगस की बोगस वजहों को फॉरवर्ड करने से अधिक अगल-बगल की खबरों पर भी जाता हो, या आप धर्मनिष्ठ हिंदू हों, या आपके घर में गंगाजल की बुतलिया हो, या आपकी थोड़ी भी आस्था गंगा मैया या देवी गंगा में हो या आप देवी-देवताओं के चक्कर में कत्तई न पड़कर गंगा को महज नदी भी मानते हों, तो आपको आज यह लेख पढ़ना चाहिए. देश और उत्तर प्रदेश में भगवा राज है, लेकिन गंगा हरी हो रही है. गंगा हरी हो गई है और वह भी महादेव के त्रिशूल पर बसे काशी में कुछ लोगों को इसकी चिंता है. कुछ को कत्तई चिंता नहीं है. गंगा के जल के रंग में परिवर्तन स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े लोगों के लिए और भी अधिक चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है. आपको याद होगा पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था और महामारी की पहली लहर के दौरान, गंगा का पानी साफ हो गया था. कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगो ने बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे.

हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं.

वैसे, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय गंगा अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष और गंगा पर अनेक शोध कर चुके डॉ बीडी त्रिपाठी के अनुसार, 'नदी की हरी-भरी उपस्थिति माइक्रोसिस्टिस शैवाल के कारण हो सकती है.' लेकिन वह साथ में जोड़ते हैं, 'शैवाल बहते पानी में भी पाए जा सकते हैं. लेकिन यह आमतौर पर गंगा में नहीं देखा जाता है. लेकिन जहां भी पानी रुक जाता है और पोषक तत्वों की स्थिति बन जाती है, माइक्रोसिस्टिस बढ़ने लगते हैं. इसकी विशेषता यह है कि यह तालाबों और नहरों के पानी में ही उगता है.' 

बनारस में गंगा का पानी हरा हुआ है जिससे समाज का एक बड़ा वर्ग चिंतित है

कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, 'शैवाल वाला पानी जहरीला भी हो सकता है और इसकी जांच की जानी चाहिए कि क्या हरा रंग अधिक समय तक बना रहता है.' एक अखबार में पर्यावरण प्रदूषण वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम कहते हैं, 'गंगा में पानी में पोषक तत्वों की वृद्धि के कारण शैवाल दिखाई देते हैं.' उन्होंने बारिश को भी गंगा के पानी के रंग बदलने का एक कारण बताया है.

हालांकि, कुछ लोग कहते हैं कि बनारस में गंगा में पानी का रंग बदलने के पीछे वहां बन रही एक नहर है. बनारस के एक वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में उड़ता बनारस शीर्षक से लिखा है, 'गंगा की धारा में जमी काई का विस्तार अब लगभग दो किलोमीटर के दायरे में दशाश्वमेध से पंचगंगा घाट तक हो गया है. पंचगंगा घाट पर हरी काई की मोटी पर्त जम गई है, जबकि दशाश्वमेध घाट पर भी हल्की काई की पर्त देखी जा सकती है. तेज हवा के कारण काई इधर-उधर गंगा में फैलती जा रही है.'

सिंह अपने पोस्ट में आगे लिखते हैं, 'पानी में काई वहीं लगती है, जहां पानी का ठहराव हो. गांवों में गड़ही और तालाब में अक्सर काई जमा हो जाती है. गंदे और सड़ते पानी में काई स्वत: वायुमंडल के असर से पैदा हो जाती है. इसका सीधा मतलब यह है कि जलधारा के अवरोध के कारण गंगा का पानी सड़ गया है.' सिंह अपने पोस्ट में लिखते हैं कि जिन घाटों के सामने काई लगी थी, उसके हटने के कारण पानी का रंग काला हो गया है.

यह कालापन गंगा में बढ़ते प्रदूषण का परिणाम है. उल्लेखनीय है कि मीरघाट, ललिताघाट, जलासेन और मणिकर्णिका श्मशान के सामने गंगा की धारा को प्लास्टिक में भरी बालू की लाखों बेरियों और मुक्तिधाम के हजारों ट्रैक्टर मलबे से पाट दिया गया है, जिससे गंगा का बहाव रुक गया है. सिंह संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्र को उद्धृत करते हुए लिखते हैं, 'गंगा में फेंके गए बालू व मलबे के कारण बहाव रुक गया है, जिसका परिणाम है कि गंगा में हरी काई जम गई है.'

अब पानी का बहाव गंगा में फेंके मलबे से रुका है या दूसरे पाट की तरफ बन रहे बालू की नहर से (जानकार बताते हैं कि उस ओर हो रही नदी के पाट में करीबन 25 मीटर चौड़ा और 3 मीटर गहरा नहर खोदा जा रहा है. बीसेक जेसीबी लगे हैं. पर कोई जिम्मेदारी नहीं ले रहा है कि खुदाई किस कारण हो रही है और कौन करवा रहा है) भी पानी का बहाव कुछ हिस्सों में रुक गया है और काई पैदा हो गई है.

वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम कहते हैं, 'वर्षा के कारण, ये शैवाल उपजाऊ भूमि से नदी में प्रवाहित होते हैं. पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने के बाद, वे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया शुरू करते हैं. यदि पानी लंबे समय तक स्थिर रहता है, तो केवल सूर्य की किरणें ही प्रकाश संश्लेषण को सक्षम करते हुए गहराई तक जा सकती हैं.' उन्होंने समझाया कि फॉस्फेट, सल्फर और नाइट्रेट ऐसे पोषक तत्व हैं जो शैवाल को बढ़ने में मदद करते हैं. पोषक तत्व कृषि भूमि और सीवेज से भी आ सकते हैं.

गंगा नदी की यह बड़ी समस्या रही है कि पूरे हरित क्रांति की पट्टी में रासायनिक उर्वरकों का बेतहाशा इस्तेमाल होता आया है और उर्वरक की सारी मात्रा फसलों के इस्तेमाल में नहीं आता. बारिश के साथ अतिरिक्त रसायन बहकर सहायक नदियों के जरिए गंगा में ही आकर जमा होता है. ऐसे में, पानी जहां रुकता है शैवालों का विकास तेजी से होता है. वैज्ञानिकों का यही कहना है कि फिलहाल चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.

यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और आम तौर पर मार्च और मई के बीच होती है. चूंकि पानी जहरीला हो जाता है, इसमें नहाने से त्वचा रोग हो सकते हैं और इसे पीने से लीवर को नुकसान हो सकता है. लेकिन, पर्यावरण की जितनी जानकारी मुझे है उसके लिहाज से मैं इतना तो कह ही सकता हूं कि नदी का स्वभाव बहना होता है और काई बहते प्रवाह में यूं नहीं दिखता है जैसे, अभी बनारस में दिख रहा है.

गंगा की सौगंध लेने वालों को देखना चाहिए कि जिस देवी की यह पूजा करते हैं, अगर गंगा खत्म हो गई तो उस देवी का क्या होगा! वैसे गंगा का हरी काई से ढंक जाना नदी को लेकर हमारी सामाजिक चेतना पर छाई काई के लिए गजब का अलंकार है.

ये भी पढ़ें -

जल्द अपनी पसंद, नाम, कलर की वैक्सीन लगवा सकेंगे भारतीय!

'शादियों' के जरिये Covid को निमंत्रण हमने खुद भेजा, पॉजिटिव केस और मौतों पर रंज कैसा?

गुब्बारा बांधकर कुत्ते को उड़ाने वाले की हवा निकालना जरूरी है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲