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जब मुस्लिमों ने नहीं निकाला मुहर्रम का जुलुस, कहा पहले होगा कैंसर पेशेंट हिन्दू का इलाज

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 12 अक्टूबर, 2017 05:39 PM
  • 12 अक्टूबर, 2017 05:39 PM
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पश्चिम बंगाल से कौमी एकता पर एक ऐसी खबर आई है. जिसको देखकर, कोई भी भारत वासी हिंदू मुस्लिम भूलकर ये कहेगा कि, नफरतों के इस दौर में ये खबर गर्म जिस्म पर बारिश की ठंडी बूंद है.

दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं, जिनकी अपनी अलग मान्यताएं हैं. आज के समय में ये कहना कोई बड़ी बात न होगी कि, लोग धर्म को मानने के मामले में जितने पक्के हैं. मानवता के लिहाज से वो उतने ही कच्चे हैं. शायद ये बात सुनने में थोड़ी अजीब लगे मगर ये एक ऐसा सत्य है जिसे किसी भी सूरत में नाकारा नहीं जा सकता. मानवता के लिहाज से हम दिन-ब-दिन खोखले और छिछले हुए चले जा रहे हैं. आज न हमारे अन्दर दूसरों को सुनने का जज्बा ही बचा है और न ही दूसरों की मदद का संस्कार.

कौमी एकता की ये मिसाल किसी का भी मन मोह सकती हैसमाज में इतनी नकारात्मकता के बावजूद अक्सर ही कुछ ऐसा सुनने को मिल जाता है जो न सिर्फ राहत देता है. बल्कि ये भी सोचने पर मजबूर करता है कि, काश! दुनिया के सभी लोग ऐसे ही होते. और यूं ही वक्त जरूरत एक दूसरे की मदद करते. शायद इन पंक्तियों को पढ़कर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएं कि आखिर माजरा क्या है? तो आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल से एक ऐसी खबर आई है जो किसी भी भारतवासी को उतना ही प्रभावित करेगी जितना उमस भरी गर्मी में बारिश की बूंदें.

मामला पश्चिम बंगाल के खड़गपुर से है. जहां हिंदू-मुस्लिम एकता की एक अनूठी मिसाल देखने को मिली है. यहां पुरातन मोहल्ले में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस बार मोहर्रम का जुलूस नहीं निकाला. जुलुस न निकालने की वजह बस इतनी थी की इन्होंने मुहर्रम के जुलूस के लिए जो पैसे इकट्ठा किए थे वो इन्होंने पड़ोस में रहने वाले कैंसर पीड़ित हिंदू को इलाज के लिए दे दिए.

ऐसी खबरों को देखकर लगता है कि हम सदैव एक थे गौरतलब है कि खड़गपुर में हर वर्ष...

दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं, जिनकी अपनी अलग मान्यताएं हैं. आज के समय में ये कहना कोई बड़ी बात न होगी कि, लोग धर्म को मानने के मामले में जितने पक्के हैं. मानवता के लिहाज से वो उतने ही कच्चे हैं. शायद ये बात सुनने में थोड़ी अजीब लगे मगर ये एक ऐसा सत्य है जिसे किसी भी सूरत में नाकारा नहीं जा सकता. मानवता के लिहाज से हम दिन-ब-दिन खोखले और छिछले हुए चले जा रहे हैं. आज न हमारे अन्दर दूसरों को सुनने का जज्बा ही बचा है और न ही दूसरों की मदद का संस्कार.

कौमी एकता की ये मिसाल किसी का भी मन मोह सकती हैसमाज में इतनी नकारात्मकता के बावजूद अक्सर ही कुछ ऐसा सुनने को मिल जाता है जो न सिर्फ राहत देता है. बल्कि ये भी सोचने पर मजबूर करता है कि, काश! दुनिया के सभी लोग ऐसे ही होते. और यूं ही वक्त जरूरत एक दूसरे की मदद करते. शायद इन पंक्तियों को पढ़कर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएं कि आखिर माजरा क्या है? तो आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल से एक ऐसी खबर आई है जो किसी भी भारतवासी को उतना ही प्रभावित करेगी जितना उमस भरी गर्मी में बारिश की बूंदें.

मामला पश्चिम बंगाल के खड़गपुर से है. जहां हिंदू-मुस्लिम एकता की एक अनूठी मिसाल देखने को मिली है. यहां पुरातन मोहल्ले में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस बार मोहर्रम का जुलूस नहीं निकाला. जुलुस न निकालने की वजह बस इतनी थी की इन्होंने मुहर्रम के जुलूस के लिए जो पैसे इकट्ठा किए थे वो इन्होंने पड़ोस में रहने वाले कैंसर पीड़ित हिंदू को इलाज के लिए दे दिए.

ऐसी खबरों को देखकर लगता है कि हम सदैव एक थे गौरतलब है कि खड़गपुर में हर वर्ष पुरातन बाजार के एक क्लब की तरफ से मोहर्रम के जुलूस के लिए एक निर्धारित राशि जुटाई जाती है. बताया जा रहा है कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने इस वर्ष इस पैसे को मोहर्रम जुलूस पर खर्च करने के बजाए एक कैंसर पीड़ित अबीर भुनिया को सौंप दिया ताकि बीमार व्यक्ति अपना इलाज करा सके. कैंसर पीड़ित अबीर कोलकाता के सरोज गुप्ता कैंसर संस्थान में अपना इलाज करवा रहा है और इस पूरे इलाज में तकरीबन 12 लाख रुपए की जरूरत है.

बहरहाल इस पर बयान देते हुए समाज संघ के सचिव अमजद खान ने एक बेहद संजीदा और दिल को छू लेने वाली बात कही है. उन्होंने कहा है कि, 'मोहर्रम का जुलूस तो हम हर वर्ष आयोजित कर सकते हैं लेकिन इस समय हमारी प्राथमिकता बीमार के जीवन को बचाना है.'

अंत में इतना ही कि इस देश की तमाम बुरी शक्तियों को इस खबर के बाद ये समझ लेना चाहिए कि आम लोग आज भी शांति प्रेम और भाई चारा चाहते हैं. तमाम तरह की बुरी शक्तियां जितना भी कोशिश कर लें मगर ऐसी खबरें उनके मुंह पर करारा तमाचा हैं और ये बताती हैं कि चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम हम हमेशा से साथ रहते आए हैं और आगे भी रहेंगे साथ ही ये भी कि, बुराई चाहे जितनी भी बड़ी क्यों न हो वो सदैव अच्छाई और इंसानियत के आगे बौनी ही साबित होगी और उससे कभी जीत न पाएगी.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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