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ससुराल में पत्नी पर होने वाले अत्याचार के लिए पति कितना दोषी होता है?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 20 दिसम्बर, 2021 10:21 PM
  • 20 दिसम्बर, 2021 10:21 PM
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अगर लड़के के परिवार वाले उसकी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, उसे नुकसान पहुंचाते हैं तो क्या पति का फर्ज नहीं है कि वह उसकी रक्षा करे और उसका पक्ष ले?

सुनैना, देखो यार घर आते ही तुम अपना ये रोना-धोना मेरे पास लेकर मत आया करो. मैं दिनभर काम करके घर आता हूं और तुम पानी पूछने की बजाय शिकायतों का पिटारा लेकर बैठ जाती हो. कितनी बार कहा है कि घर की दिक्कतों में मेरा नाम मत घसीटा करो. मैं मेरी मम्मी के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. तुम्हें मेरे घरवालों से इतनी परेशानी है तो तुम अपने घर चली जाओ ना किसने मना किया है? घर आते ही दिमाग खराब कर दिया...चलो, अब एक कप अच्छी सी चाय पिला दो.

ये लाइनें पढ़कर आपको लगा होगा जैसे आप किसी टीवी सीरियल का सीन देख रहे हैं लेकिन यकीन मानिए यह सच्ची कहानी है. ऐसे पतिदेव आज भी कई घरों में पाए जाते हैं. जिन्हें पत्नी की परेशानियों से कोई फर्क नहीं पड़ता. असल में पत्नी की परेशानियां उन्हें नौटंकी लगती हैं. पत्नी को भले लड़के के माता-पिता परेशान करते रहे लेकिन वे अपने परिवार से कुछ नहीं कहेंगे. वे पत्नी से कहेंगे कि तुम ही चुप रह जाया करो. तुम बर्दाश्त कर लिया करो. तुम्हें पता है कि मैं उनसे कुछ नहीं बोल सकता.

जो लड़की शादी करके अपने ससुराल आई है वह अपने मायके चली जाए, क्या यही परेशानी को खत्म करने का एक तरीका बचा है? वहीं अगर वह ज्यादा दिन मायके में जाकर रह जाए तो समाज के लोग उसे 10 बातें भी सुनाने लगते हैं. 

शादी के बाद एक महिला के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की होती है

पत्नी भले दिनभर काम करके मरती रहे लेकिन पति हाथ बटाने की जगह कहेंगे कि तुम दिन भर घर में रहकर करती क्या हो? 4 लोगों को खाना बनाना भी भला कोई काम होता है? मैं तो आधा घंटे में खाना बनाकर रख दूं लेकिन मम्मी को मेरा किचन में काम करना पसंद नहीं हैं.

नियम के अनुसार, शादी के बाद एक महिला के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की होती है. तो पति क्या लड़की अपना घर छोड़कर ससुराल...

सुनैना, देखो यार घर आते ही तुम अपना ये रोना-धोना मेरे पास लेकर मत आया करो. मैं दिनभर काम करके घर आता हूं और तुम पानी पूछने की बजाय शिकायतों का पिटारा लेकर बैठ जाती हो. कितनी बार कहा है कि घर की दिक्कतों में मेरा नाम मत घसीटा करो. मैं मेरी मम्मी के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. तुम्हें मेरे घरवालों से इतनी परेशानी है तो तुम अपने घर चली जाओ ना किसने मना किया है? घर आते ही दिमाग खराब कर दिया...चलो, अब एक कप अच्छी सी चाय पिला दो.

ये लाइनें पढ़कर आपको लगा होगा जैसे आप किसी टीवी सीरियल का सीन देख रहे हैं लेकिन यकीन मानिए यह सच्ची कहानी है. ऐसे पतिदेव आज भी कई घरों में पाए जाते हैं. जिन्हें पत्नी की परेशानियों से कोई फर्क नहीं पड़ता. असल में पत्नी की परेशानियां उन्हें नौटंकी लगती हैं. पत्नी को भले लड़के के माता-पिता परेशान करते रहे लेकिन वे अपने परिवार से कुछ नहीं कहेंगे. वे पत्नी से कहेंगे कि तुम ही चुप रह जाया करो. तुम बर्दाश्त कर लिया करो. तुम्हें पता है कि मैं उनसे कुछ नहीं बोल सकता.

जो लड़की शादी करके अपने ससुराल आई है वह अपने मायके चली जाए, क्या यही परेशानी को खत्म करने का एक तरीका बचा है? वहीं अगर वह ज्यादा दिन मायके में जाकर रह जाए तो समाज के लोग उसे 10 बातें भी सुनाने लगते हैं. 

शादी के बाद एक महिला के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की होती है

पत्नी भले दिनभर काम करके मरती रहे लेकिन पति हाथ बटाने की जगह कहेंगे कि तुम दिन भर घर में रहकर करती क्या हो? 4 लोगों को खाना बनाना भी भला कोई काम होता है? मैं तो आधा घंटे में खाना बनाकर रख दूं लेकिन मम्मी को मेरा किचन में काम करना पसंद नहीं हैं.

नियम के अनुसार, शादी के बाद एक महिला के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की होती है. तो पति क्या लड़की अपना घर छोड़कर ससुराल आई है उसका ख्याल रखना पति का फर्ज नहीं?

ससुराल के लोग पत्नी को प्रताड़ित करते रहे, जुर्म करते रहे और पति सब जानते हुए भी चुप्पी साधे रहे क्योंकि उसे बेटे का फर्ज निभाना है तो क्या यह अन्याय नहीं हुआ? अधितकर घरों में पत्नी को घरवाले परेशान करते रहते हैं लेकिन पति कहता है कि परिवार के लिहाज की वजह से वह चुप था. ऊपर ने पत्नी कितनी भी दुखी क्यों ना हो पति यही चाहता है कि पत्नी जब उससे मिले तो मुस्कुराते हुए सजे-धजे ही मिले...जैसे वह इंसान नहीं मशीन है.

अगर लड़के के परिवार वाले उसकी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, उसे नुकसान पहुंचाते हैं तो क्या पति का फर्ज नहीं है कि वह उसकी रक्षा करे और उसका पक्ष ले?

सुनैना कि शादीशुदा जिंदगी इसलिए ही तबाह हो गई क्योंकि सास अपनी मर्जी चलाती थी. पति पूरा ममाज बॉय था जो जानता था कि मम्मी गलत कर रही है लेकिन फिर वह पत्नी से ही झगड़ा करता था. सास ने सुनैना को इतना परेशान कर दिया कि आखिरकार वह अपने मायके आ गई.

सास ने सुनैना के खाने-पीने का समय तक तय कर रखा था. सुनैना तभी को खा सकती थी जब सभी घरवालों भोजन कर लें. किसी दिन अगर सास या ससुरा ने दोपहर तक कुछ नहीं खाया तो वह नाश्ता भी नहीं कर पाती. उसे ससुराल जाते ही काम वाली की छुट्टी कर दी गई और तीन फ्लोर घर का झाड़ू, पोछा और रसोई की पूरी जिम्मेदारी उसे सिर आ गई. उसके नौकरी करने का सपना अब सिर्फ सपना ही रह गया.

शादी के वक्त सुनैना के ससुराल वालों ने कहा था कि हमें सिर्फ अच्छी बहू चाहिए दहेज नहीं चाहिए. वहीं जब सुनैना अपने ससुराल गई तो उसे दहेज के नाम पर ताने मारे जाने लगे और एक तरह से उससे बदला लिया जाने लगा. सुनैना के पति को सब पता था लेकिन वह चुपचाप रहता जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह भी सुनैना को ही दोष देता कि तुम घर नहीं संभाल पाती. सास को दहेज वाली बहू नहीं मिली थी तो वह सुनैना को प्रताड़ित करने का एक मौका नहीं छोड़तीं.

ऊपर से सुनैना के खिलाफ अपने बेटे को हर पल इतना भड़काते रहती कि पति-पत्नी में दूरियां बहुत बढ़ गईं. फिलहाल सुनैना अपने मायके आ गई है, नौबत तलाक तक आ गई है लेकिन समाज के इज्जत के नाम पर उसके मायके वाले तलाक ना लेने की सलाह दे रहे हैं.

जो सुनैना के साथ हुआ क्या उसमें पति की गलती नहीं है? भले ही उसने अपनी पत्नी को मारा-पीटा नहीं लेकिन उसे मानकित तौर पर तो परेशान किया. उस पर हो रहे जुर्म को अनदेखा भी तो किया. अगर शुरुआत में ही उसने अपने माता-पिता को टोक दिया होता तो वे सुनैना पर इतना जुर्म करने की हिम्मत नहीं करते.

एक केस के उदाहरण से इस मामले को समझते हैं जो पंजाब के लुधियाना में जून 2020 में दहेज प्रताड़ना की एक शिकायत दर्ज की गई थी. मामला कोर्ट में तो पति की अग्रिम ज़मानत की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘ससुराल में पत्नी को पहुंचाई गई चोटों के लिए प्राथमिक तौर पर पति जिम्मेदार होता है, भले ही चोटें रिश्तेदारों की वजह से आई हों.

पति ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि पत्नी की बैट से पिटाई उसने नहीं बल्कि उसके पिता ने की थी. जिसपर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि ‘यह मायने नहीं रखता कि आपने या आपके पिता ने पिटाई के लिए कथित तौर पर बैट का इस्तेमाल किया था. अगर किसी भी महिला को ससुराल में चोट पहुंचाई जाती है तो उसकी ज़िम्मेदारी पति की होती है'.

वहीं धारा 304बी के अनुसार, अगर शादी के 7 सालों के अंदर अप्राकृतिक कारण से किसी महिला की मौत हो जाती है और अगर पहले उसके साथ दहेज के लिए उत्पीड़न हुआ हो तो ऐसे में उसकी मृत्यु को दहेज हत्या मान लिया जाएगा. अगर शिकायत में किसी विशेष व्यक्ति के नाम का उल्लेख नहीं किया हो तो पति सहित लड़की की ससुराल में जितने भी लोग रहते हैं सबका नाम अपने आप शामिल कर लिया जाएगा.

भले ही पति ने उत्पीड़न में शामिल न रहा हो. वहीं अगर महिला के मायके वाले सिर्फ ससुराल के लोगों पर आरोप लगाते हैं और पति पर नहीं तो उस अपराध में पति का नाम शामिल नहीं किया जाएगा. इस धारा के अनुसार, पत्नी के सुरक्षा की जिम्मेदारी पति की मानी गई है. यानी अगर वह पत्नी पर जुर्म होते हुए देखता है और फिर भी चुप रहता है तो उसे भी महिला के साथ होने वाली क्रूरता कि लिए आरोपी माना जाएगा.

वहीं घरेलू हिंसा कानून के अनुसार, अगर पत्नी अपने ससुराल के लोगों को आरोपी बनाती है लेकिन पति को नहीं तो ऐसे में पति का कोई पक्ष नहीं बनाया जाएगा. वहीं अगर पत्नी यह कहती है कि पति ने शारीरिक रूप से तो प्रताड़ित नहीं किया लेकिन उसे मेरे ऊपर हो रहे प्रताड़ना की जानकारी थी. ऐसे में पति पर मानसिक या भावनात्मक प्रतड़ना का मामला तो बनता ही है.

चलिए भले ही आप कानून को भूल जाइए क्योंकि कानून बन तो जाते हैं लेकिन उनका कितना पालन होता है यह आपको भी पता है. लड़की तो यही कोशिश करती है कि वह सबकुछ बर्दाश्त कर ले और उसे कानून का सहारा न लेना पड़े...क्योंकि उसे पता होता है कि घर की बात कानून तक जाने से उसका रिश्ता नहीं बचा पाएगा.

वह अपनी परेशानियों को जितना हो सकता है छिपाने की कोशिश करती है. वह नहीं चाहती कि उसके मायके वाले उसके बारे में जानकर दुखी हो जाएं. जो पति सबकुछ देखता है कि उसकी पत्नी के साथ किसतरह का व्यहार किया जा रहा है? वह अच्छा बेटा बने रहने के लिए चुप रहता है, तो फिर क्या वह दोषी नहीं?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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