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थोड़ा सा आहत हो लीजिए, 2018 में बैंक बम्पर नौकरियों की सौगात नहीं देंगे !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 27 दिसम्बर, 2017 11:30 AM
  • 27 दिसम्बर, 2017 11:30 AM
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प्रायः हम उन बातों पर आहत होते हैं, जो हमें प्रभावित नहीं करतीं. मगर क्या बैंकों द्वारा लिया गया ये फैसला एक गंभीर समस्या नहीं है? क्यों हम इस समस्या को महसूस करने का वक़्त नहीं निकाल पा रहे हैं ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को देश के युवा पसंद करते हैं और उन्हें एक दूरदर्शी नेता मानते हैं. मोदी भी इस बात को बखूबी समझते हैं और अपने भाषणों में इस बात का खासा ख्याल रखते हैं कि वो देश के युवाओं को अपनी बातों से और अपने द्वारा की गई घोषणाओं से रिझा सकें. कहा जा सकता है कि देश के युवा इसलिए भी प्रधानमंत्री से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें आशा है कि प्रधानमंत्री उनके लिए रोज़गार की सम्भावना तलाशने में उनकी मदद करेंगे. बात जब रोजगार की चल रही है तो हम बीते कुछ वर्षों से अलग-अलग बैंकों द्वारा निकाली जा रही बम्पर भर्तियों को नकार नहीं सकते.

जो लोग बैंक की बम्पर भर्तियों से अपने उज्जवल भविष्य की कामना कर रहे हैं उन्हें ये खबर थोड़ा मायूस कर सकती है. बताया जा रहा है कि 2018 में भारत के कई बड़े सरकारी बैंक कोई वैकेंसी नहीं निकालेंगे. साथ ही बैंक कॉस्ट कटिंग के मद्देनजर अपनी ओवरसीज़ ब्रांचों पर भी ताला जड़ने पर विचार कर रहे हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. आम आदमी को प्रभावित करने वाली ये खबर न्यू इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से है, जिसे वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया है कि सरकार ने बैंकों से अपनी ओवरसीज़ शाखाओं को बंद करने के निर्देश दिए हैं. सूत्र के मुताबिक अभी सरकार ने इस सन्दर्भ में बैंकों को कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है.

यदि बैंक ये फैसला ले लेते हैं तो इसे युवाओं की तरफ से एक बड़ी क्षति माना जाएगा

आपको बताते चलें कि यदि ऐसा हो जाता है तो इस पूरी कवायद का असर भविष्य में, बैंक द्वारा निकाली जा रही नौकरियों पर पड़ेगा और देश के युवाओं के सामने नौकरी का भयंकर संकट खड़ा हो जाएगा. ज्ञात हो कि अभी तक देश के युवा आईबीपीएस जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर बड़ी संख्या में बैंकों में कार्यरत हो रहे थे. बताया ये भी जा रहा है कि 2018...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को देश के युवा पसंद करते हैं और उन्हें एक दूरदर्शी नेता मानते हैं. मोदी भी इस बात को बखूबी समझते हैं और अपने भाषणों में इस बात का खासा ख्याल रखते हैं कि वो देश के युवाओं को अपनी बातों से और अपने द्वारा की गई घोषणाओं से रिझा सकें. कहा जा सकता है कि देश के युवा इसलिए भी प्रधानमंत्री से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें आशा है कि प्रधानमंत्री उनके लिए रोज़गार की सम्भावना तलाशने में उनकी मदद करेंगे. बात जब रोजगार की चल रही है तो हम बीते कुछ वर्षों से अलग-अलग बैंकों द्वारा निकाली जा रही बम्पर भर्तियों को नकार नहीं सकते.

जो लोग बैंक की बम्पर भर्तियों से अपने उज्जवल भविष्य की कामना कर रहे हैं उन्हें ये खबर थोड़ा मायूस कर सकती है. बताया जा रहा है कि 2018 में भारत के कई बड़े सरकारी बैंक कोई वैकेंसी नहीं निकालेंगे. साथ ही बैंक कॉस्ट कटिंग के मद्देनजर अपनी ओवरसीज़ ब्रांचों पर भी ताला जड़ने पर विचार कर रहे हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. आम आदमी को प्रभावित करने वाली ये खबर न्यू इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से है, जिसे वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया है कि सरकार ने बैंकों से अपनी ओवरसीज़ शाखाओं को बंद करने के निर्देश दिए हैं. सूत्र के मुताबिक अभी सरकार ने इस सन्दर्भ में बैंकों को कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है.

यदि बैंक ये फैसला ले लेते हैं तो इसे युवाओं की तरफ से एक बड़ी क्षति माना जाएगा

आपको बताते चलें कि यदि ऐसा हो जाता है तो इस पूरी कवायद का असर भविष्य में, बैंक द्वारा निकाली जा रही नौकरियों पर पड़ेगा और देश के युवाओं के सामने नौकरी का भयंकर संकट खड़ा हो जाएगा. ज्ञात हो कि अभी तक देश के युवा आईबीपीएस जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर बड़ी संख्या में बैंकों में कार्यरत हो रहे थे. बताया ये भी जा रहा है कि 2018 में भी बैंक ऑफ बड़ौदा, आईडीबीआई बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और पंजाब नेशनल बैंक जैसे संस्थान एक भी भर्ती नहीं करेंगे. 2018 नौकरी की दृष्टि से कितना कठिन समय है इसकी पुष्टि आईबीपीएस का नोटिफिकेशन कर रहा है जिसके मुताबिक 2018 में पीओ की सिर्फ 3562 वैकेंसी हीं होंगी.

गौरतलब है कि कास्ट कटिंग और व्यर्थ के खर्चों पर नियंत्रण के तहत, भविष्य में जहां पीएनबी अपनी 300 के आस पास शाखाओं पर तालाबंदी करने वाला है तो वहीं बीओआई देश भर में फैले अपने 700 एटीएम को खत्म कर देगा. 2018 बैंकों में मिलने वाली नौकरी के लिहाज से कितना जटिल होने वाला है इसे आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है. आंकड़ों की मानें तो 2014 में आईबीपीएस के 21,680 पद थे. 2015 में इन पदों की संख्या 16721 हुई. 2017 में नौकरियों की ये संख्या घटते-घटते 8822 पर पहुंच गई है और आने वाले समय में बैंको में नौकरियों की संभावना 10-15 प्रतिशत ही रहने वाली है.

बहरहाल, ये एक बुरी खबर इसलिए भी है, क्योंकि प्रधानमंत्री और समूची केंद्र सरकार इंडिया को न्यू इंडिया की तरफ ले जाने में खासी गंभीर है. ऐसे में यदि न्यू इंडिया की तरफ जाते भारत के पास नौकरियों की सम्भावना न हो तो विकास के और लोक कल्याण के सारे दावे कोरे नजर आते हैं. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि प्रधानमंत्री को स्वयं इस गंभीर मामले का संज्ञान लेना चाहिए, ताकि देश के युवा बेरोजगारी की मार न सहें. ऐसा इसलिए क्योंकि हाल फ़िलहाल देश में रोजगार की भारी कमी है और बैंकों में मिलने वाली नौकरियां इस देश के युवाओं के लिए एक बड़ा सहारा हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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