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डॉ प्रियंका रेड्डी की जान बच सकती थी, यदि...

    • अनु रॉय
    • Updated: 30 नवम्बर, 2019 06:32 PM
  • 30 नवम्बर, 2019 06:32 PM
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मां-बाप दोनों की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने बेटों से खुलकर बात करें. Dr. Priyanka Reddy के अपराधियों के साथ पूरी संभावना है कि ऐसा नहीं हुआ होगा. इस उम्र में विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक है. लेकिन लड़की की मर्ज़ी के बिना उसे छूना या छिपकर देखना एक जैसा गलत है.

Hyderabad में डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का गैंगरेप और फिर हत्या (Dr. Priyanka Reddy rape and murder case) हुई. लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. लेकिन जब बलात्कार होते हैं तो हम बलात्कारियों को कोस कर चुप हो जाते हैं. फिर लड़कियों को सुरक्षा के क्या साधन अपनाने चाहिए ये भी बताते हैं. इन सब में जो सबसे ज़रूरी बात रह जाती है वो है कि हम अपने घर के लड़कों से इस पर कितनी बात करते हैं. उनको क्या हम समझा पाते हैं कि एक लड़की पर क्या गुजरती है जब कोई उसके साथ जबरदस्ती करता है. ये कितना दुखदायी होता है. एक लड़की जो बलात्कार के बाद मर जाती है या अगर बच भी जाती है तो उसके बाद उसके परिवार और उसकी ज़िंदगी कैसी हो जाती है. वो दुनिया में शायद किसी पर भी कभी भरोसा नहीं कर पाती होगी.

इसलिए सबसे जरूरी है हम अपने लड़कों को समझाएं उनसे बात करें. और ये समझाना तब तक मुमकिन नहीं हो सकता जब तक घरवाले खुलकर सेक्स से सम्बंधित बातें उनसे नहीं करेंगे. वैसे ये बदलाव एक दिन में नहीं आ सकता मगर कुछ चीज़ों पर अगर अभी से ध्यान देंगे तो शायद सालों बाद हम एक ऐसी नस्ल तैयार कर पाएंगे जो लड़कियों का सम्मान कर पाए. लड़कियां शायद सुरक्षित होकर घर से बाहर निकल पाएं.

लड़कियों को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो लड़कों की परवरिश में बदलाव जरूरी है

यहां लिखी कुछ बातों को अपनाकर ये समस्या हल की जा सकती है-

1. आपका बेटा जैसे-जैसे बड़ा हो उसे उसकी सेफ़्टी यानी गुड-टच और बैड-टच के बारे में बताइए. साथ ही साथ उसे ये भी बताइए कि वो भी किसी के प्राइवेट पार्ट को टच न करे, खेलते हुए भी.

2. मैं अक्सर ये नोटिस करती हूं कि लड़कों को बचपन में माएं लाड़ में आकर नंगा रखती हैं. गांव और कस्बों में चलन है कि बेटों की बिना कपड़ों की तस्वीर...

Hyderabad में डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का गैंगरेप और फिर हत्या (Dr. Priyanka Reddy rape and murder case) हुई. लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. लेकिन जब बलात्कार होते हैं तो हम बलात्कारियों को कोस कर चुप हो जाते हैं. फिर लड़कियों को सुरक्षा के क्या साधन अपनाने चाहिए ये भी बताते हैं. इन सब में जो सबसे ज़रूरी बात रह जाती है वो है कि हम अपने घर के लड़कों से इस पर कितनी बात करते हैं. उनको क्या हम समझा पाते हैं कि एक लड़की पर क्या गुजरती है जब कोई उसके साथ जबरदस्ती करता है. ये कितना दुखदायी होता है. एक लड़की जो बलात्कार के बाद मर जाती है या अगर बच भी जाती है तो उसके बाद उसके परिवार और उसकी ज़िंदगी कैसी हो जाती है. वो दुनिया में शायद किसी पर भी कभी भरोसा नहीं कर पाती होगी.

इसलिए सबसे जरूरी है हम अपने लड़कों को समझाएं उनसे बात करें. और ये समझाना तब तक मुमकिन नहीं हो सकता जब तक घरवाले खुलकर सेक्स से सम्बंधित बातें उनसे नहीं करेंगे. वैसे ये बदलाव एक दिन में नहीं आ सकता मगर कुछ चीज़ों पर अगर अभी से ध्यान देंगे तो शायद सालों बाद हम एक ऐसी नस्ल तैयार कर पाएंगे जो लड़कियों का सम्मान कर पाए. लड़कियां शायद सुरक्षित होकर घर से बाहर निकल पाएं.

लड़कियों को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो लड़कों की परवरिश में बदलाव जरूरी है

यहां लिखी कुछ बातों को अपनाकर ये समस्या हल की जा सकती है-

1. आपका बेटा जैसे-जैसे बड़ा हो उसे उसकी सेफ़्टी यानी गुड-टच और बैड-टच के बारे में बताइए. साथ ही साथ उसे ये भी बताइए कि वो भी किसी के प्राइवेट पार्ट को टच न करे, खेलते हुए भी.

2. मैं अक्सर ये नोटिस करती हूं कि लड़कों को बचपन में माएं लाड़ में आकर नंगा रखती हैं. गांव और कस्बों में चलन है कि बेटों की बिना कपड़ों की तस्वीर खेंचकर घर में रखेंगे. तो यहीं से टॉक्सिक मेल मेंटैलिटी का बीज डाला जाना शुरू हो जाता है. अपने शरीर को लेकर नॉर्मल होना अच्छी बात है, साथ ही साथ दूसरे के शरीर को सम्मान देना भी जरूरी है.

3. लड़के जब थोड़े बड़े यानी किशोर अवस्था में जा रहे हों तो उन्हें उनके अंदर हो रहे हार्मोनल और बाहर होने वाले शारीरिक बदलाव के बारे में बताएं.

4. मां-बाप दोनों की ज़िम्मेदारी है कि वो खुलकर बात करें. इस उम्र में विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक है. लड़कों को ये बात समझाएं. इसमें गलत कुछ भी नहीं है. लेकिन लड़की की मर्ज़ी के बिना उसे छूना या छिपकर देखना गलत है.

5. बेटा अगर पॉर्न देख रहा है तो उसे डांटकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा लिया ये सोचना गलत है. आपके डांटने के बावजूद भी वो छिपकर देखेगा तो बेहतर है कि उन्हें समझाएं.

6. सोलह-सत्रह साल की उम्र में उन्हें बताएं कि मास्टरबेशन एक नैचुरल प्रोसेस है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

7. अगर मां-बाप अपने बेटे को ये छः टॉपिक भी समझा पाएं और उनसे बात कर पाएं आधी समस्या का समाधान हो जाएगा. अकेली पुलिस और सरकार कुछ नहीं कर पाएगी. ना ही लड़कियों को घर में बंद कर देने से बलात्कार रुक जाएगा.

और एक बात ये सेंसेटाईज़ होने में वक़्त लगेगा तब तक के लिए अपनी बेटियों को सेल्फ़-डिफ़ेंस की ट्रेनिंग दिलवाएं. बचपन से ही उन्हें अपनी सुरक्षा के बारे में बताएं. अगर आपकी बेटी आपको कुछ बताना चाह रही हो तो उसे ध्यान से सुनिए. उससे बात कीजिए. घर में एक माहौल बनाइए जहां बेटा-बेटी दोनों एक जैसा महसूस करें. बदलाव तभी आएगा जब हम बदलेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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