• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

कैसे एक छपरी श्रद्धा को अपनी मां से ज्यादा सगा लगा? कहीं जिम्मेदार परवरिश तो नहीं?

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 17 नवम्बर, 2022 01:49 PM
  • 17 नवम्बर, 2022 01:49 PM
offline
क्यों जन्म देने वालों का 25 साल पुराना रिश्ता इतना कमज़ोर हो जाता है कि कोई आफ़ताब उसे 6 महीने में ही तोड़ देता है? क्यों मां से ज़्यादा सगा एक छपरी दिखने लगता है? आप ज्ञानी लोग तो ख़ुद कहते हो न कि बच्चे क्या हैं चिकनी मिट्टी, जैसे ढालो ढल जायेंगे? तो फिर क्यों कुम्हार को नहीं टोका जाता कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारी मिल्कियत नहीं हैं, उनसे बात करो, उनको समय दो उनसे कम्युनिकेशन रखो, पर नहीं!

बच्चों की बातें होते ही मां-पिता का गुणगान सबसे पहले ज़रूरी होता है. मां -बाप ने जन्म दिया है तो उनको सर्वोपरि मान हमारी (दूसरों के लिए) यही सलाह होती है कि हर बच्चा अपने मां - बाप की सुने. जो नहीं सुनता है उसका अंजाम अगर बुरा हो तो हमें ये कहने का हक़ मिलता है कि ग्रेट, यही होना चाहिए था तेरे साथ! पर क्या मां बाप भी ऐसा कह पाते होंगे? अगर हां, तो क्या वो मां बाप फिर भी पूजने लायक रह जाते हैं? मिर्ची लगी हो तो ज़रा इस बात का जवाब दीजिए कि अगर मैं किसी का भला चाहता हूं, सपोज़ मैं अपने तजुर्बे से जानता हूं कि घर से दूर एक जंगल है और वहां एक प्रिडेटर है जो काट के छोटे छोटे टुकड़े कर देगा! तो मैं अपने बच्चे को मना करूंगा न? बच्चा तो बहुत क्लोज़ रिलेशन हो गया. मैं अपने दोस्त को भी वहां जाने से मना करूंगा. पर वो फिर भी जाता है तो? ज़िद पर अड़ गया है तो? तो मैं क्या कहूंगा कि जा अपनी गांव मरा जहां जाना है जा? या मैं उस जंगल में उसके साथ चलूंगा और ऐसी तैयारी के साथ चलूंगा  कि मेरा तजुर्बा भी काम आए और हमारे पास पर्याप्त हथियार भी हों.

श्रद्धा ने अगर अपना घर बार छोड़ आशिक को चुना तो इसका जिम्मेदार कौन है

आप क्या करना चुनेंगे? आप जो भी चुने, बेफ़िक्र रहें कि कोई आपको ग़लत ठहरायेगा. बस फ़र्क ये होगा कि अगर आप अपने प्रिय के ग़लत चुनाव में (या कम से कम आपकी बुद्धि उसे ग़लत कहती है) उसका साथ छोड़ देते हैं तो झूठ बोलते हैं कि वो आपका प्रिय है. क्योंकि जब वाकई प्रेम होता है तो साथ होता है,समर्पण होता है, तानाशाही नहीं होती कि तूने मेरी बात नहीं मानी तो जा अब तुझसे मेरा कोई संबंध नहीं.

एक बेटी अपने बाप से नाता तोड़ती है, ये बहुत ग़लत बात है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन एक बाप अपनी बेटी से ताल्लुक ख़त्म करता है तो इससे बड़ा मतलबी बाप...

बच्चों की बातें होते ही मां-पिता का गुणगान सबसे पहले ज़रूरी होता है. मां -बाप ने जन्म दिया है तो उनको सर्वोपरि मान हमारी (दूसरों के लिए) यही सलाह होती है कि हर बच्चा अपने मां - बाप की सुने. जो नहीं सुनता है उसका अंजाम अगर बुरा हो तो हमें ये कहने का हक़ मिलता है कि ग्रेट, यही होना चाहिए था तेरे साथ! पर क्या मां बाप भी ऐसा कह पाते होंगे? अगर हां, तो क्या वो मां बाप फिर भी पूजने लायक रह जाते हैं? मिर्ची लगी हो तो ज़रा इस बात का जवाब दीजिए कि अगर मैं किसी का भला चाहता हूं, सपोज़ मैं अपने तजुर्बे से जानता हूं कि घर से दूर एक जंगल है और वहां एक प्रिडेटर है जो काट के छोटे छोटे टुकड़े कर देगा! तो मैं अपने बच्चे को मना करूंगा न? बच्चा तो बहुत क्लोज़ रिलेशन हो गया. मैं अपने दोस्त को भी वहां जाने से मना करूंगा. पर वो फिर भी जाता है तो? ज़िद पर अड़ गया है तो? तो मैं क्या कहूंगा कि जा अपनी गांव मरा जहां जाना है जा? या मैं उस जंगल में उसके साथ चलूंगा और ऐसी तैयारी के साथ चलूंगा  कि मेरा तजुर्बा भी काम आए और हमारे पास पर्याप्त हथियार भी हों.

श्रद्धा ने अगर अपना घर बार छोड़ आशिक को चुना तो इसका जिम्मेदार कौन है

आप क्या करना चुनेंगे? आप जो भी चुने, बेफ़िक्र रहें कि कोई आपको ग़लत ठहरायेगा. बस फ़र्क ये होगा कि अगर आप अपने प्रिय के ग़लत चुनाव में (या कम से कम आपकी बुद्धि उसे ग़लत कहती है) उसका साथ छोड़ देते हैं तो झूठ बोलते हैं कि वो आपका प्रिय है. क्योंकि जब वाकई प्रेम होता है तो साथ होता है,समर्पण होता है, तानाशाही नहीं होती कि तूने मेरी बात नहीं मानी तो जा अब तुझसे मेरा कोई संबंध नहीं.

एक बेटी अपने बाप से नाता तोड़ती है, ये बहुत ग़लत बात है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन एक बाप अपनी बेटी से ताल्लुक ख़त्म करता है तो इससे बड़ा मतलबी बाप मेरी नज़र में और कोई नहीं. अरे क्या फ़ायदा आपके तजुर्बे का आपकी दूरंदेशी का कि जब अपनी बेटी के ग़लत चुनाव पर आप उसके साथ न खड़े रह सको. अगर सिर्फ हांजी के लिए ही बच्चे चाहिए थे तो कुत्ता पालते. (इन दिनों तो ये भी हांजी नहीं करते)

फैमिली का अर्थ ही यही होता है कि आप एक दूसरे के ग़लत फैसलों में ख़ूब खरी खोटी सुनाओ, उन्हें ढेर ताने दो पर साथ बने रहो. अरे सही फैसलों में ही साथ लेना हो तो IT कंपनी का मैनेजर बेहतर है फिर. अब समझिए कि होता क्या है. जब एक भेड़िए को पता होता है कि मेमनी अपने कुनबे से दूर हो गयी है तो वो कुछ भी कर गुज़रने के लिए स्वतंत्र महसूस करता है. ये कोरी डिफेंस थ्योरी नहीं है भई.

मैं कम से कम दस ऐसे कपल्स को जानता हूं जिनमें हिन्दू लड़की और मुस्लिम पति है और घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, या उन्हें नाराज़ कर शादी की है और आज जीवन सुख से बिता रहे हैं और लड़की के घरवालों ने भले ही पति को पूरी तरह न अपनाया हो, पर बेटी को बेदखल नहीं किया है. क्योंकि मां -बाप होने की ज़िम्मेदारी पैदा करते ही शुरु होती है और शादी के बाद ख़त्म नहीं होती, बस बट जाती है. लेकिन यहां श्रद्धा की मां को तो शक़ ही तब होता है जब वो गौर करती हैं कि श्रद्धा की फेसबुक प्रोफाइल पर बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं आई.

सच में?

शर्म आनी चाहिए!

शर्म इसलिए आनी चाहिए कि अब बेटी पर इल्ज़ाम देते ये भेड़िए जो फेसबुक पर उसको वेश्या कहते नहीं थक रहे हैं, 35 बोटी और फ्रिज-सूटकेस वाले जोक बनाते इनका दम नहीं फूल रहा है; ये भी अगला कांड होने से रोक नहीं पायेंगे न और न ही ये बात माँ बाप को तसल्ली दे सकेगी कि 'हमने तो कितनी ही बार मना किया था पर नहीं मानी' ह्यूमन कॉन्शियसनेस ऐसा ही है कि रात करवट बदलते वक़्त मन में आख़िर तो ये विचार आयेगा कि हमें फ़ोन करते रहना चाहिए था.

मान जाते तो मुम्बई से इतनी दूर दिल्ली न जाती, कम से कम यहीं रह लेती तो नज़र के सामने तो रहती, पर नहीं. ईगो के आगे प्यार का ढोंग न चल सका. रही बात 'मेरा अब्दुल अलग है' कि? तो भैया ये कांड नहीं रुकेंगे. रुक ही नहीं सकते कि जबतक आप सही वजह को पकड़ने की बजाए शाख को गाली बकते रहोगे. एक लड़की को रंडी कहकर आप दूसरी को कहेंगे कि वो फलाने धर्म से दूर रहे? वो समझेगी आपकी बात?

क्यों जन्म देने वालों का 25 साल पुराना रिश्ता इतना कमज़ोर हो जाता है कि कोई आफ़ताब 6 महीने में तोड़कर फरार हो जाता है? क्यों मां से ज़्यादा सगा एक छपरी दिखने लगता है? आप ज्ञानी लोग तो ख़ुद कहते हो न कि बच्चे क्या हैं चिकनी मिट्टी, जैसे ढालो ढल जायेंगे? तो फिर क्यों कुम्हार को नहीं टोका जाता था कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारी मिल्कियत नहीं हैं, उनसे बात करो उनको समय दो उनसे कम्युनिकेशन रखो, पर नहीं!

इन सबमें समय और डेडिकेशन लगता है साहब, ऐसा क्यों करें? कैसे करें? बच्चे को 5वें बर्डे पर वीडियोगेम और 16वें बर्डे पर मोबाइल गिफ्ट कर देते हैं, आते जाते हर बात पर टोकते रहते हैं कि यहां न जाओ वहां न जाओ और अगर बच्चा पूछे क्यों? तो कह देंगे अब इतनी बड़ी हो गयी हो कि बाप से सवाल करोगी? मां  की बात काटोगी?

फिर कुछ ऊंच नीच हो गयी तो कम से कम ये कहने के लिए तो हो जायेगा न कि "हमने तो पहले ही मना किया था" चलो फिर पहले ही मना कर देते हैं. मना करते रहो, बच्चियां  कटती रहेंगी, राक्षस अट्टहास करता रहेगा. बची खुची कसर ये मीडिया वाले पूरी कर देंगे, जिनके लिए फिलहाल टीआरपी का सोर्स LG का फ्रिज है, कुछ नहीं तो अमेज़न पर इसकी सेल में ही बढ़ोतरी हो जायेगी. पर जिसकी बेटी गयी, या जिसकी नेक्स्ट जाने वाली है, वो माथा पीटते रह जायेंगे. और कर भी क्या सकते हैं, आख़िर उन्होंने तो पहले ही कहा था कि... 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲