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हाउसवाइफ आदर्श नहीं हो सकती, घरेलू महिला पर शर्मिंदगी और कामकाजी पर गर्व क्यों?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 24 जून, 2022 09:08 PM
  • 24 जून, 2022 09:08 PM
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लोगों को यह क्यों समझ नहीं आता कि पढ़ी-लिखी महिला भी हाउसवाइफ बनना चुन सकती है. जरूरी नहीं है कि हर महिला को बाहर काम करना ही पसंद हो. कई महिलाओं को घर संभालना अच्छा लगता है.

हाउसवाइफ (Housewife) और वर्किंग महिलाओं (working women) की अपनी-अपनी जिम्मेदारी है, अपना-अपना काम है. हम यहां किसी से किसी की तुलना नहीं कर रहे हैं लेकिन अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं. क्या आपने कभी हाउसवाइफ का इसलिए सम्मान होता देखा है, क्योंकि उसने घर को बड़े ही करीने से संभाला है.

लोगों को यह क्यों समझ नहीं आता कि पढ़ी-लिखी महिला भी हाउसवाइफ बनना चुन सकती है. जरूरी नहीं है कि हर महिला को बाहर काम करना ही पसंद हो. कई महिलाओं को घर संभालना अच्छा लगता है. घर को मैनेज करना किसी कंपनी को मैनेज करने से आसान  काम थोड़ी है.

अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं

महिला दिवस पर भी लोग उन महिलाओं को खोजते हैं जिन्होंने बाहर के कामों में बड़ा मुकाम हांसिल किया हो. जो सफल बिजनेस वुमन हो, जो अफसर हो...कोई ऐसी महिला के बारे में नहीं छापता तो एक साधारण हाउस वाइफ है और वह अपने परिवार, पति, सास-ससुर और बच्चों की अच्छी तरह संभाल रही है. वह कोई बेचारी नहीं है, उसकी कोई मजबूरी नहीं है यह करना उसकी अपनी मर्जी है. अगर पति या बच्चें कुछ अच्छा करते हैं तो उसमें उसका बहुत बड़ा रोल है और वह इसमें खुश है.

असल में भारतीय महिलाओं के लिए करियर कोई विकल्प नहीं होता है. यह सिर्फ पैसा कमाने का जरिया होता है. ससुराल या पति चाहते हैं कि वह नौकरी करे ताकि घऱ में दो पैसे आ सकें. अगर कोई महिला नौकरी छोड़ देती है तो उसे सामाजिक रूप से शर्मिंदा होना पड़ता है. अगर वह गृहिणी है तो दुनिया उसे आलसी कहती है, क्योंकि उनकी नजर में वह करती ही क्या है? दो-चार लोगों के लिए रोटी बनाना भी भला कोई काम है. हर महिला को एक ना एक दिन ऐसी बातें सुनने को ही मिलती हैं. अगर कोई बॉलीवुड एक्ट्रेस काम करना छोड़ती है तो उसे ही लोग 10 बातें सुना...

हाउसवाइफ (Housewife) और वर्किंग महिलाओं (working women) की अपनी-अपनी जिम्मेदारी है, अपना-अपना काम है. हम यहां किसी से किसी की तुलना नहीं कर रहे हैं लेकिन अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं. क्या आपने कभी हाउसवाइफ का इसलिए सम्मान होता देखा है, क्योंकि उसने घर को बड़े ही करीने से संभाला है.

लोगों को यह क्यों समझ नहीं आता कि पढ़ी-लिखी महिला भी हाउसवाइफ बनना चुन सकती है. जरूरी नहीं है कि हर महिला को बाहर काम करना ही पसंद हो. कई महिलाओं को घर संभालना अच्छा लगता है. घर को मैनेज करना किसी कंपनी को मैनेज करने से आसान  काम थोड़ी है.

अक्सर लोग घरेलू महिलाओं को कम आंकते हैं

महिला दिवस पर भी लोग उन महिलाओं को खोजते हैं जिन्होंने बाहर के कामों में बड़ा मुकाम हांसिल किया हो. जो सफल बिजनेस वुमन हो, जो अफसर हो...कोई ऐसी महिला के बारे में नहीं छापता तो एक साधारण हाउस वाइफ है और वह अपने परिवार, पति, सास-ससुर और बच्चों की अच्छी तरह संभाल रही है. वह कोई बेचारी नहीं है, उसकी कोई मजबूरी नहीं है यह करना उसकी अपनी मर्जी है. अगर पति या बच्चें कुछ अच्छा करते हैं तो उसमें उसका बहुत बड़ा रोल है और वह इसमें खुश है.

असल में भारतीय महिलाओं के लिए करियर कोई विकल्प नहीं होता है. यह सिर्फ पैसा कमाने का जरिया होता है. ससुराल या पति चाहते हैं कि वह नौकरी करे ताकि घऱ में दो पैसे आ सकें. अगर कोई महिला नौकरी छोड़ देती है तो उसे सामाजिक रूप से शर्मिंदा होना पड़ता है. अगर वह गृहिणी है तो दुनिया उसे आलसी कहती है, क्योंकि उनकी नजर में वह करती ही क्या है? दो-चार लोगों के लिए रोटी बनाना भी भला कोई काम है. हर महिला को एक ना एक दिन ऐसी बातें सुनने को ही मिलती हैं. अगर कोई बॉलीवुड एक्ट्रेस काम करना छोड़ती है तो उसे ही लोग 10 बातें सुना देते हैं, कोई उसके फैसले का सम्मान नहीं करता बल्कि काम ना करने की वजह का पता लगाता है.

सिर्फ कामकाजी महिलाओं को फिर सम्मान क्यों दिया जाता है

अगर किसी लड़की से पूछा जाए कि वह पढ़कर क्या करना चाहती है तो उसका जवाब होता है डॉक्टर या इंजीनियर...ठीक है यह उनकी च्वाइस है. वहीं अगर कोई लड़की यह बोल दे कि उसे हाउस वाइफ बनना है लोग उसका मजाक बनाने लगते हैं लोगों की नजर में हाउस वाइफ होना छोटी और शर्म की बात है.

तो क्या एक घरेलू महिला लड़कियों के लिए आदर्श नहीं हो सकतीं? सिर्फ कामकाजी महिलाओं को फिर सम्मान क्यों दिया जाता है. जैसे उसने घर संभालकर कुछ ऐसा किया ही नहीं कि उसे इनाम दिया जाए. ऐसा करके हम ही उसे कम आंकते हैं. गृहिणियां करती ही क्या हैं? हमारे लिए कोई महिला तभी महत्वपूर्ण और मॉर्डन होती है जब वह घर से बाहर जाकर नौकरी करती है. अगर कई महिला घर में रहकर किताबें लिख दें, तब हमें आश्चचर्य होता है.

अगर कोई महिला घर में रहकर 37 साल बाद 10वीं की परीक्षा पास कर ले तब हम उसका वाहवाही करते हैं, उसपर गर्व करते हैं. उसने इतने सालों में जो घर के लिए किया क्या उसका कोई मोल नहीं है. असल में हमारे समाज में दो तरह की बातें होती हैं. लोग हाउसवाइफ किसी से कम नहीं जैसी बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन इसल जिंदगी में उन्हें वह जगह नहीं देते तो एक कामकाजी महिला को देते हैं. जबकि यह महिला की च्वाइस है कि वह क्या करना चाहती है.

एक गृहिणी को अपनों के साथ पड़ोसियों और दूसरे रिश्तेदारों की भी ख्याल रखती है. रसोई में खाना बनाने के साथ ही पूरे घर की छोटी से छोटी और बड़ी जिम्मेदारी को संभालती है. वह दूसरों की खुशी का ध्यान रखने में खुद को तो भूल ही जाती है. जिन कामों को करने में हमें नानी याद आ जाए वो चुटकी बजाकर झट से कर देती है. फिर भी वह हमारी नजरों में कुछ नहीं करती है वाली महिला होता है. जबकि अगर हम ऑफिस में आराम से काम कर रहे हैं, जिंदगी में सफल हो रहे हैं तो इसमें हाउसवाइफ की बहुत बड़ी भूमिका रहती है.

महिला पढ़ीलिखी है सिर्फ इसलिए उसे काम पर जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता

पति से अगर उसका कोई दोस्त पूछता है कि और वाइफ क्या करती है और अगर वह हाउस वाइफ है तो उसे यह बताने में जैसे झिझक महसूस होती है. वह सीधे यह नहीं बोलता कि वह हाउसवाइफ है. वह लगता है उसके काम ना करने की वजहें गिनाने. वहीं अगर वह वर्किंग है तो वह गर्व महसूस कर तपाक से बताता है कि वह फलाने जगह कि पोजीशन पर काम करती है.

हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति डांगरे ने एक सुनवाई में कहा था कि "हमारे समाज ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि घर की महिला को आर्थिक सहायता देनी चाहिए. काम करना या ना करना किसी महिला की पसंद है. वह पढ़ीलिखी है सिर्फ इसलिए उसे काम पर जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. वह ग्रेजुएट है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह घर पर नहीं बैठ सकती है."

हालांकि जो महिलाएं बाहर काम करती हैं वे अपनी सैलरी अपने हिसाब से खर्च भी नहीं कर सकती हैं...महिलाओं का काम करना मर्जी होनी चाहिए मजबूरी नहीं, वैसे आजकर लोगों को ऐसी बहू चाहिए तो काम भी करे और घर भी संभाले...फिर घरेलू लड़कियों की शादी में भी परेशानी होती है.

वैसे आपकी नजरों में हाउसवाइफ की क्या अहमियत है? क्या किसी महिला को काम करने के लिए मजबूर करना गुनाह नहीं है. जो काम करना चाहती है उसे घर में बिठा दो और जो घर में रहना चाहती है उसे काम न करने पर ताने दो...वाह रे समाज!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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