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हाउस वाइफ ये 7 काम करने के बाद गिल्ट में क्यों जीती हैं, यह अंतर कब खत्म होगा?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 14 जून, 2021 04:12 PM
  • 14 जून, 2021 04:12 PM
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महिलाएं एक अलग तरह के डर में जीती हैं जो आपको देखने में नहीं आएगा क्योंकि उनको लगता है वे कुछ गलत कर रही हैं.

हाउसवाइफ (housewife) अगर खुद के लिए कुछ करती हैं तो दिनभर सोचती रहती हैं कि घरवाले क्या सोच रहे होंगे. एक दिन देरी से सोकर जगें तो सोचती रहती हैं कि मेरी वजह से आज सबके नाश्ते में देरी हो गई, भले ही वह बीमार क्यों न हो.

आखिर महिलाएं किस मिट्टी की बनी हैं जो बीमार होने के बाद भी काम करती रहती हैं. आज भी कई घरों में मां तबियत खराब होने के बाद भी किचन में लगी रहती हैं. जब उनकी ज्यादा तबियत खराब हो जाती है तो एक घर में ही रखी पेरासिटामोल खा लेती हैं, उन्हें लगता है बस इसी से वे ठीक हो जाएंगी जबकि बीमारी इससे कहीं बड़ी होती है.

एक महिला का अपने बारे में सोचना दोषी होना क्यों है?

आजकल कई लोग सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर कर रहे हैं जिसमें मां काफी बीमार हैं और वो ऑक्सीजन लगाए हुए भी बच्चों के लिए रोटी बना रही हैं. लोगों को यह बात बड़ी गर्व की लगती है लेकिन मुझे यह तस्वीर देखकर गुस्सा आया.

क्या उस मां के घरवाले एक दिन रोटी नहीं बना सकते और नहीं बना सकते तो क्या कुछ और नहीं खा सकते. बीमार मां से खाना बनवाने में कौन सा बड़प्पन है और मां को भी इतना महान क्यों बनना है.

असल में हमारे समाज में लगभग हर हाउसम वाइफ की आदत ऐसी ही होती है. अपने लिए कुछ करना उनको गिल्ट में ले जाता है. पता नहीं उनको कब समझ आएगा कि गिल्ट और अधिकार में फर्क है.

असल में हमारे समाज में इज्जत रोटी कमाने वाले की होती है बनाने वाले की नहीं. इसलिए महिलाएं एक अलग तरह के डर में जीती हैं जो आपको देखने में नहीं आएगा क्योंकि उनको लगता है वे कुछ गलत कर रही हैं. महिलाएं छोटी-छोटी बातों मे खुद को दोषी मानती हैं.

चलिए ऐसे ही हाउसवाइफ के कुछ कामों के बारे में बताते हैं जिसे करने के बाद वे गिल्ट में ही जीती हैं.

1- एक...

हाउसवाइफ (housewife) अगर खुद के लिए कुछ करती हैं तो दिनभर सोचती रहती हैं कि घरवाले क्या सोच रहे होंगे. एक दिन देरी से सोकर जगें तो सोचती रहती हैं कि मेरी वजह से आज सबके नाश्ते में देरी हो गई, भले ही वह बीमार क्यों न हो.

आखिर महिलाएं किस मिट्टी की बनी हैं जो बीमार होने के बाद भी काम करती रहती हैं. आज भी कई घरों में मां तबियत खराब होने के बाद भी किचन में लगी रहती हैं. जब उनकी ज्यादा तबियत खराब हो जाती है तो एक घर में ही रखी पेरासिटामोल खा लेती हैं, उन्हें लगता है बस इसी से वे ठीक हो जाएंगी जबकि बीमारी इससे कहीं बड़ी होती है.

एक महिला का अपने बारे में सोचना दोषी होना क्यों है?

आजकल कई लोग सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर कर रहे हैं जिसमें मां काफी बीमार हैं और वो ऑक्सीजन लगाए हुए भी बच्चों के लिए रोटी बना रही हैं. लोगों को यह बात बड़ी गर्व की लगती है लेकिन मुझे यह तस्वीर देखकर गुस्सा आया.

क्या उस मां के घरवाले एक दिन रोटी नहीं बना सकते और नहीं बना सकते तो क्या कुछ और नहीं खा सकते. बीमार मां से खाना बनवाने में कौन सा बड़प्पन है और मां को भी इतना महान क्यों बनना है.

असल में हमारे समाज में लगभग हर हाउसम वाइफ की आदत ऐसी ही होती है. अपने लिए कुछ करना उनको गिल्ट में ले जाता है. पता नहीं उनको कब समझ आएगा कि गिल्ट और अधिकार में फर्क है.

असल में हमारे समाज में इज्जत रोटी कमाने वाले की होती है बनाने वाले की नहीं. इसलिए महिलाएं एक अलग तरह के डर में जीती हैं जो आपको देखने में नहीं आएगा क्योंकि उनको लगता है वे कुछ गलत कर रही हैं. महिलाएं छोटी-छोटी बातों मे खुद को दोषी मानती हैं.

चलिए ऐसे ही हाउसवाइफ के कुछ कामों के बारे में बताते हैं जिसे करने के बाद वे गिल्ट में ही जीती हैं.

1- एक दिन अगर सहेली से 10 मिनट बात कर लिया तो गिल्ट. आखिर औरत को अपना हक लेना बुरा क्यों लगता है.

2- अगर हाउस वाइफ बच्चों को घर में छोड़कर 10 मिनट वॉक के लिए चली जाएं तो रास्ते भर घर गिल्ट में ही रहती हैं. कहीं घूमने चली जाए तब तो छोड़ ही दो.

3- साल में एक बाहर से खाना आ गया तो गिल्ट. हाउस वाइफ को यही लगता है कि यह मेरी गलती की वजह से हुआ है.

4- कभी बीमार पड़ने पर डॉक्टर के दिखा कर बाहर से दवाई मंगवा ली तो गिल्ट, कोई बोले ना बोले हमारे समाज की रीत ही यही है.

5- मायके जाने से पहले महिलाएं सौ बार सोचती हैं. परमिशन लेने के बाद भी अगर 10 दिन रूक जाएं तो भी गिल्ट में ही जीती हैं.

6- भले ही उनको भूख लगी हो लेकिन सबसे पहले खाना में भी गिल्ट महसूस होती है कि अगर खा लिया तो घरवाले क्या कहेंगे.

7- इतना ही नहीं घर के ऊपर अधिकार जताने में भी उनको गिल्ट महसूस होती है. जैसे घर के उपर बस पति का ही हक है.

मर्दों के हिस्से में दुनिया का कोई गिल्ट नहीं आता तो औरत के हिस्स में क्यों. इस देश ही औरतों को कौन समझाएगा कि अपने लिए सोचना गिल्ट नहीं है. क्या औरतें इंसान नहीं है, क्या महिलाएं घर में काम नहीं करतीं. घर के बर्तन घिस-घिस करके महिलाएं अपनी लकीरें भी घिस लेती हैं लेकिन उसके बदले उन्हें मिलता क्या है खुद के लिए दोष.

घर को बनाने में महिलाओं की कितनी मेहनत लगती है, घर के रिश्ते-नाते सब हाउस वाइफ ही बनाती है. तो घर का हिस्सा लेने में महिलाओं को गिल्ट क्यों, सबको यही लगता है कि मकान है तो पिता के बाद बेटे को मिलेगा बहू को क्यों नहीं.

बेटे में ऐसे कौन से हीरे-मोती जड़ें हैं और बहू-बेटी ने कौन से ऐसे पाप किए हैं. महिलाएं कब समझेंगी कि यह एहसान नहीं है बल्कि उनका अधिकार है जो हाउस वाइफ कमाती है. सबको लगता है कि जो बेटे का है वो बूह का भी है तो अलग से देने की जरूरत क्या है. जबकि सभी को अपने हिस्से की छत मिलनी चाहिए, खासकर औरतों को जिसे वो अपना कह सकें. 

आरतों को बस त्याग करना सिखाया जाता है, अधिकार छोड़ना सिखाया जाता है. असल में गलती महिलाओं की नहीं है बल्कि इस समाज की है जिसने महिलाओं को अधिकार छोड़ना सिखाया है, लेना नहीं. फिल्मों में, टीवी में और कहानियों में सिर्फ उसी औरत को महान बताया जाता है जो सबसे पहले अधिकार छोड़ती है, लेकिन जिंदगी अधिकार छोड़ने से नहीं अधिकार लेने से बसती है.

मैं समाज के हर बेटी और हाउस वाइफ से यह कहना चाहती हूं की समाज में महान बनने का प्रेशर मत लो और इस गिल्ट को छोड़ दो, क्योंकि आप कोई प्रेशर कुकर नहीं हैं...अपने लिए कुछ करती हैं तो खुश होइए ना की खुद के उपर दोष मढ़िए...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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