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बेडरूम से ड्राइंग रूम में आ गई है समलैंगिकों की ये सच्चाई..

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 04 जून, 2016 05:30 PM
  • 04 जून, 2016 05:30 PM
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हाल ही में एक वीडियो आया है, जो शायद समलैंगिक संबंधों का समर्थन करने वाले बाकी विज्ञापनों से दो कदम आगे है. यहां दिखाया जा रहा है कि एक महिला अपने पति को बेटी की सेम सेक्स मैरिज को स्वीकृति देने के लिए समझा रही है.

अभी कुछ समय पहले एक विज्ञापन हमारी टीवी स्क्रीन्स पर दस्तक देकर गया, जिसे बेहद बोल्ड करार दिया गया था. वजह थी कि पहली बार विज्ञापन में समलैंगिकों को स्वीकृति के लिए प्रतीक्षा करते दिखाया गया था. पहली नजर में लगा जैसे ये दो दोस्तों के बीच का प्यार है, लेकिन अंत में पता चलता है कि ये दोस्तों का नहीं बल्कि दो समलैंगिकों के बीच का प्यार है, ये दोनों लड़कियां अपने रिश्ते के लिए अपने माता-पिता की स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रही हैं. अब उनके माता-पिता उनके इस रिश्ते को स्वीकारते हैं या नहीं वो नहीं दिखाया गया.

अभी हाल ही में सर्विस प्रोवाइडर कंपनी 'अर्बन क्लैप' ने एक वीडियो बनाया जो शायद इस पहले वाले विज्ञापन से दो कदम आगे है. यहां दिखाया जा रहा है कि उच्च वर्गीय परिवार की महिला अपने पति को बेटी की सेम सेक्स मैरिज को स्वीकृति देने के लिए समझा रही है. उनका तर्क है कि जब हम इंटर रिलीजन मैरिज कर सकते हैं तो फिर इस शादी के लिए ना क्यों?

वीडियो के अंत में एक लाइन लिखी हुई है कि 'जिसे आप प्यार करना चाहो, उसे प्यार न कर पाना, जीवन छिन जाने जैसा है'.

अमेरिका में समलैंगिक विवाह को स्वीकृति मिलने के बाद भारत में भी एलजीबीटी समुदाय काफी एक्टिव हो गया. अब लोग खुलकर अपने समलैंगिक रिश्ते स्वीकारने लगे हैं. इस विषय पर वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क, और परेड भी होती हैं, लेकिन समाज फिर भी उन्हें सामान्य इंसानों की श्रेणी में नहीं रख पाया है. मतलब, जब समाज समलैंगिक संबंधों के नाम पर ही नाक-भौं सिकोड़ता है, तो फिर समलैंगिक शादी या सेम सेक्स मैरिज के बारे में भला कैसे सहमत हो सकता है. लेकिन इस विज्ञापन में कितनी सहजता से दिखा दिया गया कि सिर्फ एक फोटोशूट कराकर एक लडकी अपने पिता को अपनी ही फीमेल पार्टनर के साथ शादी के लिए राजी कर लेती है.

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अभी हाल ही में सर्विस प्रोवाइडर कंपनी 'अर्बन क्लैप' ने एक वीडियो बनाया जो शायद इस पहले वाले विज्ञापन से दो कदम आगे है. यहां दिखाया जा रहा है कि उच्च वर्गीय परिवार की महिला अपने पति को बेटी की सेम सेक्स मैरिज को स्वीकृति देने के लिए समझा रही है. उनका तर्क है कि जब हम इंटर रिलीजन मैरिज कर सकते हैं तो फिर इस शादी के लिए ना क्यों?

वीडियो के अंत में एक लाइन लिखी हुई है कि 'जिसे आप प्यार करना चाहो, उसे प्यार न कर पाना, जीवन छिन जाने जैसा है'.

अमेरिका में समलैंगिक विवाह को स्वीकृति मिलने के बाद भारत में भी एलजीबीटी समुदाय काफी एक्टिव हो गया. अब लोग खुलकर अपने समलैंगिक रिश्ते स्वीकारने लगे हैं. इस विषय पर वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क, और परेड भी होती हैं, लेकिन समाज फिर भी उन्हें सामान्य इंसानों की श्रेणी में नहीं रख पाया है. मतलब, जब समाज समलैंगिक संबंधों के नाम पर ही नाक-भौं सिकोड़ता है, तो फिर समलैंगिक शादी या सेम सेक्स मैरिज के बारे में भला कैसे सहमत हो सकता है. लेकिन इस विज्ञापन में कितनी सहजता से दिखा दिया गया कि सिर्फ एक फोटोशूट कराकर एक लडकी अपने पिता को अपनी ही फीमेल पार्टनर के साथ शादी के लिए राजी कर लेती है.

ये भी पढ़ें- समलैंगिकता की आजादी मना रहा अमेरिका, हम भी मनाएं

वीडियो में ये सब दिखाना बेहद सरल है, आए दिन ऐसे विज्ञापन आते भी रहते हैं जिसमें प्रमोशन के नाम पर ऐसे सेंसिटिव मुद्दों को बहुत ही स्वीकार्ययोग्य तरीके से परोस दिया जाता है. लेकिन वीडियो पर लाइक्स और शेयर की संख्या इस बात की तसदीक नहीं करती कि जिन लोगों ने वीडियो देखा है, वो उस बात से सहमत भी हों.

लेकिन पश्चिम में सब चलता है

सोशल मीडिया पर आए दिन समलैंगिक विवाहों की खबरें आती ही रहती हैं, लेकिन दोनों पार्टनर्स में से अगर एक भारतीय हो, तो वो ज्यादा कौतुहल पैदा करती है. लेकिन असल में भारतीय लोग अपने मन की यहां कर नहीं सकते, इसलिए विदेश में ही भारतीय परंपरा के अनुसार धूम धाम से शादी करते हैं. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मूल के सलापति राव को फेसबुक पर, अमेरिका के जॉन मैकेन से प्यार हो गया. उन्होंने मैलबर्न में भारतीय परंपरा के अनुसार मंगनी कर ली, और अगले साल शादी भी करने वाले हैं. मंगनी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं.  

अगले साल करेंगे शादी
 फेसबुक पर हुआ प्यार

ठीक इसी तरह से कनाडा में रहने वाले ऋषि अग्रवाल ने भारतीय रीति रिवाजों के साथ अपने पार्टनर डेनियल से शादी की थी.

अपने माता-पिता और जीवनसाथी के साथ ऋषि अग्रवाल

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अब ये चलन आम है. भारतीय मूल के कई लोगों ने इसी तरह शादियां की हैं

 भारतीय मूल के लड़के और लड़कियां विदेशों में कर रहे हैं समलैंगिक विवाह
 विदेशों में समलैंगिक शादियां अब आम हैं

क्या समाज अभी परिपक्व नहीं है?

मुद्दे की बात ये है कि, किसी के बेडरूम में क्या होता है, क्या नहीं होता वो उसका निजी मसला है. वो बंद दीवारों में होता भी इसीलिए हैं क्योंकि उनमें हमें समाज का दखल बर्दाश्त नहीं होता. ऐसा नहीं है कि समलैंगिक संबंध कोई नई बात है, लेकिन अब तक ये सिर्फ बैडरूम के अंदर होते थे क्योंकि इन संबंधों को समाज स्वीकार नहीं करता. लेकिन अब ये संबंध ढके-छुपे न रहकर बैडरूम से बाहर निकल चुके हैं और समाज से स्वीकृति मिलने की वकालत करने लगे हैं. इन्हें सिर्फ स्वीकृति ही नहीं बल्कि शादी की कानूनन मान्यता भी चाहिए. लेकिन सच्चाई तो ये है कि कानून क्या हमारा समाज ही इस बात से सहमत नहीं होगा.

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अमेरिका में परिवार की परंपरा खत्म होती जा रही है. ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो ओल्डएज होम्स में शरण लेते हैं, ज्यादातर बच्चे समय से पहले ही यौन सुख प्राप्त करने लगे हैं, किसी रिश्ते के लिए शादी की अहमियत नहीं है, तो ऐसे में सेक्स के लिए पार्टनर कौन है, कैसा है इसमें भी किसी को कोई परेशानी नहीं है. ऐसे में अगर अमेरिका सेम सेक्स मैरिज को स्वीकृति देता है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन अगर भारत इससे सहमत नहीं, तो इसका मतलब ये जरा भी नहीं कि हमारा देश बैकवर्ड या फिर संकीर्ण मानसिकता लिए हुए है. ये हमारी संस्कृति है, जिसका आधार शादी, संतान और परिवार ही होता है. नैतिक रूप से हमें उस समाज का निर्माण करना चाहिए जो हम अपने बच्चों को देना चाहते हैं.

फर्ज कीजिए कि अगर आपके माता पिता ने भी सेम सैक्स मैरिज की होती तो आप शायद इस दुनिया में ही नहीं होते. इतनी परेड और आंदोलन करने से बच जाते. लेकिन हां, अगर भारत सेम सैक्स मैरिज को स्वीकृति देता है तो इसमें भारत को कम से कम एक फायदा तो जरूर होगा. भारत ज्यादा खुशहाल हो जाएगा, क्योंकि भारत की जनसंख्या पर कुछ तो लगाम लगेगी.

बहरहाल सृष्टि के नियमों में परिवर्तन की बात करना ही अपने आप में समाज के खिलाफ बिगुल फूंकने जैसा है. ये एक लंबी लड़ाई हो सकती है जिसके लिए भारतीय समलैंगिक भाई-बहन या तो इंतजार करें, या फिर पलायन.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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