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सरलीकरण और आधुनिकीकरण के कारण 'हिंग्लिश' के रूप में परिवर्तित होती हिंदी

    • आयुष कुमार अग्रवाल
    • Updated: 14 सितम्बर, 2022 03:38 PM
  • 14 सितम्बर, 2022 03:38 PM
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कहा जाता है कि किसी भी भाषा (Language) का अस्तित्व उसकी शुद्ध वर्तनी और व्याकरण में निहित होता है. यह हिंदी से लेकर सभी भाषाओं पर लागू होता है. लेकिन, सरलीकरण और आधुनिकता के नाम पर 'हिंग्लिश' (Hinglish) की ओर बढ़ना हिंदी (Hindi) के साथ न्याय नजर नहीं आता है.

कहा जाता है कि किसी भी भाषा का अस्तित्व उसकी शुद्ध वर्तनी और व्याकरण में निहित होता है. यह हिंदी से लेकर सभी भाषाओं पर लागू होता है. भारत विभिन्नताओं का देश है. यहां प्रत्येक 5 से 10 कोस में पहनावा, खानपान और बोली में अंतर देखने को मिलता है. लेकिन, अधिकतर (जिसमे मुख्यतः उत्तर भारत के प्रदेश शामिल हैं) हिंदी भाषा के द्वारा ही एकजुट और समानता पाते हैं. बारहवीं में अंग्रेजी भाषा की किताब में एक पाठ है जिसका हिंदी अनुवाद नाम 'अंतिम पाठ' है. उस पाठ की एक पंक्ति भाषा पर सबसे सटीक बैठती है 'यदि किसी भी राज्य या देश को गुलाम बना दिया जाता है और उस राज्य या देश के लोग अपनी मातृभाषा से जुड़े रहते है तो इसका अर्थ यह होता है कि आपने उन्हें पिंजरे में बंद तो कर दिया है लेकिन उस पिंजरे की चाभी उनके हाथ मे है.'

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी यह सटीक बैठता है. क्योंकि, जब जुगल किशोर शुक्ल जी ने उदंत मार्त्तण्ड के रूप में हिंदी का प्रथम अखबार निकाला. तो, उसके पीछे भी यही सोच रही होगी. और, लगभग सभी चर्चित क्रांतिकारियों द्वारा हिंदी में समाचार पत्र निकाल उसे एक संवाद का माध्यम भी इसलिए ही बनाया गया होगा. खैर, यह तो अब पुरानी बातें हो चुकी हैं. वर्तमान जो कर रहा है अब भविष्य उस पर ही निर्भर करेगा.

सरलीकरण और आधुनिकता के नाम पर 'हिंग्लिश' की ओर बढ़ना हिंदी के साथ न्याय नजर नहीं आता है.

आजकल हिंदी लेखन में एक नया रुझान पैदा हो चुका है इसे 'हिंग्लिश' के रूप में बदलने का. अगर हम किताबों और समाचार पत्रों से हटकर शिक्षा पद्धति पर जाएं. तो, आज सिर्फ कुछ सरकारी विद्यालयों में ही हिंदी माध्यम की पढ़ाई सिमट कर रह गयी है. अन्य विद्यालयों में तो सिर्फ दसवीं तक की एक विषय बनकर सिर्फ एक औपचारिकता बना दी गयी है. एक तरफ हम अन्य...

कहा जाता है कि किसी भी भाषा का अस्तित्व उसकी शुद्ध वर्तनी और व्याकरण में निहित होता है. यह हिंदी से लेकर सभी भाषाओं पर लागू होता है. भारत विभिन्नताओं का देश है. यहां प्रत्येक 5 से 10 कोस में पहनावा, खानपान और बोली में अंतर देखने को मिलता है. लेकिन, अधिकतर (जिसमे मुख्यतः उत्तर भारत के प्रदेश शामिल हैं) हिंदी भाषा के द्वारा ही एकजुट और समानता पाते हैं. बारहवीं में अंग्रेजी भाषा की किताब में एक पाठ है जिसका हिंदी अनुवाद नाम 'अंतिम पाठ' है. उस पाठ की एक पंक्ति भाषा पर सबसे सटीक बैठती है 'यदि किसी भी राज्य या देश को गुलाम बना दिया जाता है और उस राज्य या देश के लोग अपनी मातृभाषा से जुड़े रहते है तो इसका अर्थ यह होता है कि आपने उन्हें पिंजरे में बंद तो कर दिया है लेकिन उस पिंजरे की चाभी उनके हाथ मे है.'

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी यह सटीक बैठता है. क्योंकि, जब जुगल किशोर शुक्ल जी ने उदंत मार्त्तण्ड के रूप में हिंदी का प्रथम अखबार निकाला. तो, उसके पीछे भी यही सोच रही होगी. और, लगभग सभी चर्चित क्रांतिकारियों द्वारा हिंदी में समाचार पत्र निकाल उसे एक संवाद का माध्यम भी इसलिए ही बनाया गया होगा. खैर, यह तो अब पुरानी बातें हो चुकी हैं. वर्तमान जो कर रहा है अब भविष्य उस पर ही निर्भर करेगा.

सरलीकरण और आधुनिकता के नाम पर 'हिंग्लिश' की ओर बढ़ना हिंदी के साथ न्याय नजर नहीं आता है.

आजकल हिंदी लेखन में एक नया रुझान पैदा हो चुका है इसे 'हिंग्लिश' के रूप में बदलने का. अगर हम किताबों और समाचार पत्रों से हटकर शिक्षा पद्धति पर जाएं. तो, आज सिर्फ कुछ सरकारी विद्यालयों में ही हिंदी माध्यम की पढ़ाई सिमट कर रह गयी है. अन्य विद्यालयों में तो सिर्फ दसवीं तक की एक विषय बनकर सिर्फ एक औपचारिकता बना दी गयी है. एक तरफ हम अन्य भाषाओं मुख्यतः अंग्रेजी में पाते है कि नए-नए कठिन शब्दों को लाकर भाषा को नए आयामों तक ले जाया जा रहा है. दूसरी तरफ हिंदी के सरलीकरण के नाम पर उसके मूल को नष्ट किया जा रहा है.

वर्तमान में आप किसी भी समाचार पत्र से लेकर बड़े से बड़े साहित्यकार की किताबो में 'हिंग्लिश' शब्दों को देख सकते हैं. और, हिंदी के शब्दों को सरलीकृत होते भी देख सकते हैं. वर्तमान के इस रुझान से भविष्य का अंदाजा लगाना कुछ कठिन नही है कि हिंदी का भविष्य किस तरफ जा रहा है. लेकिन, अभी भी समय है. यदि अभी इस रुझान को नही बदला गया. तो, वो दिन भी नजदीक ही है. जब हमारी पीढ़ियां हिंदी के अधिकतर शब्दों का ज्ञान नही रखेंगी. और, हिंदी भाषा पौराणिक भाषाओं में संस्कृत के साथ स्थापित हो जाएगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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