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आंखो में आसूं भर आए जब सिंदूर जमीन पर जा बिखरा...

    • श्वेत कुमार सिन्हा
    • Updated: 25 अक्टूबर, 2022 08:17 PM
  • 25 अक्टूबर, 2022 08:17 PM
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महिला चाहे मॉडर्न हो या रूढ़िवादी पति की मौत गम का पहाड़ होती है. पति के जाने के बाद एक महिला के सामने कौन कौन से संकट होते हैं उसे बताती है ये खूबसूरत कहानी.

अभी थोड़ी देर हुए आंख लगी थी कि पतिदेव ने मुझे जगाया और मुस्कुराकर माथे को चूम लिया. शादी के इतने साल बीत गए. पर आजतक इन्होंने ऐसा नहीं किया था. फिर अचानक ऐसी क्या बात हुई जो आज इतना प्यार उमड़ रहा है? क्या बात है? बुढ़ापे में यूं जवानी सूझ रही है आज तुम्हें?' - आंखों को मलते हुए मैंने भी पूछ ही लिया. मुस्कुराते हुए पतिदेव मेरे करीब आए और धीरे से कानों में कहा- 'आज हमदोनों की शादी की चालीसवीं सालगिरह है न! सोचा तुम्हे थोड़ा सरप्राईज दूं, वो भी अपने अंदाज में!  सालगिरह मुबारक हो बीवी साहिबा!'

अब मैं ठहरी थोड़ी पुराने ख्यालों वाली महिला. आजकल की भांति अपनी भावनाओं का इजहार करना नहीं आता मुझे. झेंपते हुए इनकी बाहों से निकलकर मैं बिस्तर से उतरी. इनके चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया फिर ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर सिंदूर की डिबिया से चुटकी भर सिंदूर निकाल माथे पे लगाने को हाथ आगे बढ़ाया.

पति के जाने का गम वही महिला समझ सकती है जिसने इस दुःख को भोगा है

पर ये क्या... सिंदूर लगाने के लिए आंगुलियां अभी मेरी मांग तक पहुंची भी नहीं थी कि सिंदूर की डिबिया नीचे फर्श पर गिर गई और सारा सिंदूर कमरे में बिखर गया. यह दृश्य देखकर हृदय तार–तार हो गया. बड़बड़ाती हुई अभी खुद को कोस ही रही थी कि किसी ने मुझे जोर से झकझोरा. आंखें खुली तो पाया कि मैं बिस्तर पर पड़ी थी और बेटी मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही है.

'क्या हुआ मां? सपने में क्या अनाप–शनाप बड़बड़ा रही थी? किसे कोस रही थी, मां? चलो उठ जाओ अब!'- बेटी ने कहा. मैं तो सीधे आसमान से मानो जमीन पर ही आ गिरी.

अपनी मांग में सिंदूर को टटोला तो बेटी की आंखें नम होती दिखी. ऐसा महसूस हुआ जैसे दिल पे किसी ने जोर से पत्थर मारा हो और वो चकनाचूर हो गया. याद...

अभी थोड़ी देर हुए आंख लगी थी कि पतिदेव ने मुझे जगाया और मुस्कुराकर माथे को चूम लिया. शादी के इतने साल बीत गए. पर आजतक इन्होंने ऐसा नहीं किया था. फिर अचानक ऐसी क्या बात हुई जो आज इतना प्यार उमड़ रहा है? क्या बात है? बुढ़ापे में यूं जवानी सूझ रही है आज तुम्हें?' - आंखों को मलते हुए मैंने भी पूछ ही लिया. मुस्कुराते हुए पतिदेव मेरे करीब आए और धीरे से कानों में कहा- 'आज हमदोनों की शादी की चालीसवीं सालगिरह है न! सोचा तुम्हे थोड़ा सरप्राईज दूं, वो भी अपने अंदाज में!  सालगिरह मुबारक हो बीवी साहिबा!'

अब मैं ठहरी थोड़ी पुराने ख्यालों वाली महिला. आजकल की भांति अपनी भावनाओं का इजहार करना नहीं आता मुझे. झेंपते हुए इनकी बाहों से निकलकर मैं बिस्तर से उतरी. इनके चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया फिर ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर सिंदूर की डिबिया से चुटकी भर सिंदूर निकाल माथे पे लगाने को हाथ आगे बढ़ाया.

पति के जाने का गम वही महिला समझ सकती है जिसने इस दुःख को भोगा है

पर ये क्या... सिंदूर लगाने के लिए आंगुलियां अभी मेरी मांग तक पहुंची भी नहीं थी कि सिंदूर की डिबिया नीचे फर्श पर गिर गई और सारा सिंदूर कमरे में बिखर गया. यह दृश्य देखकर हृदय तार–तार हो गया. बड़बड़ाती हुई अभी खुद को कोस ही रही थी कि किसी ने मुझे जोर से झकझोरा. आंखें खुली तो पाया कि मैं बिस्तर पर पड़ी थी और बेटी मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही है.

'क्या हुआ मां? सपने में क्या अनाप–शनाप बड़बड़ा रही थी? किसे कोस रही थी, मां? चलो उठ जाओ अब!'- बेटी ने कहा. मैं तो सीधे आसमान से मानो जमीन पर ही आ गिरी.

अपनी मांग में सिंदूर को टटोला तो बेटी की आंखें नम होती दिखी. ऐसा महसूस हुआ जैसे दिल पे किसी ने जोर से पत्थर मारा हो और वो चकनाचूर हो गया. याद आया कि आज हमारे शादी की चालीसवी सालगिरह थी और कितनी अजीब बात है कि इनके इस दुनिया से गए आज पूरे चालीस दिन होने को आए. दिल तड़प कर रह गया. समझ में आ गया कि जो कुछ भी देखा वो तो सपना मात्र था और इनसे मिलना अब कभी संभव न होगा.

अब वो तो नहीं है पर उनकी ढेर सारी यादें साथ है. मन ही मन सपने की बात याद कर सामने दीवार पर टंगी उनकी हार से सजी तस्वीर देख उन्हे सालगिरह का मुबारकबाद दिया और खुद को शांत करने का असफल प्रयत्न करती रही. वे जहां कहीं भी होंगे मेरी बातें उन तक अवश्य पहुंच रहीं होंगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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