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हेतल से सीखो, कैसे दी जाती है मर्दों के दबदबे वाली दुनिया को चुनौती

    • सिमर कौर
    • Updated: 06 मार्च, 2018 08:41 PM
  • 06 मार्च, 2018 08:41 PM
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अगर कुछ महिलाएं तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने लिए विशिष्ट स्थान बनाती हैं, लीक से हटकर सोचती हैं, काम करती हैं तो उनके जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए.

भारत समेत दुनिया भर में महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है. परंपरा निभाने को इस साल भी मनाया जा रहा है. मातृ शक्ति को शब्दों में तो बहुत मान-सम्मान दिया जाता है. लेकिन जमीनी हकीकत को देखें तो कुछ और ही देखने को मिलता है. क्या वाकई हमारे देश में महिलाओं को उन्हें अपनी पसंद के क्षेत्र में वैसे ही बढ़ने के मौके मिल पाते हैं जैसे कि पुरुषों को मिलते हैं. इस संदर्भ में राजनीति की बात सबसे पहले की जाए? अगर हमारा पुरुष प्रधान समाज दिल से महिलाओं को अपने बराबर खड़ा होते देखना चाहता तो महिला आरक्षण बिल क्या यूहीं बरसों से संसद में लटका रहता?

पुरुषप्रधान समाज में कुछ महिलाएं तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी अलग पहचान बनाती हैं

बातें कितनी भी कर ली जाएं लेकिन महिलाओं को लेकर इस पुरुष प्रधान समाज के बड़े हिस्से का माइंडसेट है- वो उन्हें घर में ही दिन-रात जी-हुजूरी करते देखना चाहता है. कोई महिला लीक से हट कर कुछ करना चाहती है तो पुरुषों के अहम को चोट लगती है. अधिकतर पुरुष कैसे नारी को लेकर एक सेट इमेज दिमाग में बिठाए रखते हैं, इसकी जीती-जागती मिसाल अभी हाल में फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज से पहले देश के कुछ हिस्सों में घटी घटनाओं से मिली. फिल्म को बिना देखे ही एक संगठन विशेष ने ये तय कर लिया कि इसमें ‘रानी पद्मावती’ के ऐतिहासिक पात्र से छेड़छाड़ की गई है और फिल्म में ऐसा कुछ दिखाया गया है जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर सकते. हालांकि फिल्म में ऐसा-वैसा कुछ नहीं था. फिल्म की रिलीज के बाद ही विरोधियों का गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने फिल्म की फिर उलटे तारीफ की.

ऐसे हालात में भी अगर कुछ महिलाएं तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने लिए विशिष्ट स्थान बनाती हैं, लीक से हटकर सोचती हैं, काम करती हैं तो उनके जज्बे को सलाम...

भारत समेत दुनिया भर में महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है. परंपरा निभाने को इस साल भी मनाया जा रहा है. मातृ शक्ति को शब्दों में तो बहुत मान-सम्मान दिया जाता है. लेकिन जमीनी हकीकत को देखें तो कुछ और ही देखने को मिलता है. क्या वाकई हमारे देश में महिलाओं को उन्हें अपनी पसंद के क्षेत्र में वैसे ही बढ़ने के मौके मिल पाते हैं जैसे कि पुरुषों को मिलते हैं. इस संदर्भ में राजनीति की बात सबसे पहले की जाए? अगर हमारा पुरुष प्रधान समाज दिल से महिलाओं को अपने बराबर खड़ा होते देखना चाहता तो महिला आरक्षण बिल क्या यूहीं बरसों से संसद में लटका रहता?

पुरुषप्रधान समाज में कुछ महिलाएं तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी अलग पहचान बनाती हैं

बातें कितनी भी कर ली जाएं लेकिन महिलाओं को लेकर इस पुरुष प्रधान समाज के बड़े हिस्से का माइंडसेट है- वो उन्हें घर में ही दिन-रात जी-हुजूरी करते देखना चाहता है. कोई महिला लीक से हट कर कुछ करना चाहती है तो पुरुषों के अहम को चोट लगती है. अधिकतर पुरुष कैसे नारी को लेकर एक सेट इमेज दिमाग में बिठाए रखते हैं, इसकी जीती-जागती मिसाल अभी हाल में फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज से पहले देश के कुछ हिस्सों में घटी घटनाओं से मिली. फिल्म को बिना देखे ही एक संगठन विशेष ने ये तय कर लिया कि इसमें ‘रानी पद्मावती’ के ऐतिहासिक पात्र से छेड़छाड़ की गई है और फिल्म में ऐसा कुछ दिखाया गया है जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर सकते. हालांकि फिल्म में ऐसा-वैसा कुछ नहीं था. फिल्म की रिलीज के बाद ही विरोधियों का गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने फिल्म की फिर उलटे तारीफ की.

ऐसे हालात में भी अगर कुछ महिलाएं तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने लिए विशिष्ट स्थान बनाती हैं, लीक से हटकर सोचती हैं, काम करती हैं तो उनके जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए. ऐसी ही एक महिला के बारे में मैंने हाल ही में पढ़ा. इस महिला ने दुनिया को दिखा दिया कि इंसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है बस सपनों की उड़ान लंबी होनी चाहिए. इस महिला का नाम है हेतल देधिया.

बॉलीवुड में हेतल अकेली गैफर हैं

हेतल बॉलीवुड की पहली और इकलौती महिला गैफर है. दूसरे शब्दों में गैफर को चीफ लाइटिंग टेक्निशियन भी कहा जाता है. आप शायद कम जानते हो लेकिन फिल्म कैमरामैन के लिए गैफर बेहद अहम होता है क्योंकि वो सभी तरह की लाइटिंग के काम को देखता है और हर तरह की लाइटिंग को मैनेज करता है. गैफर बनना वाकई आसान नहीं है. इसके लिए आपको लाइटिंग से जुड़ी तकनीक के साथ दिमागी तौर पर किएटिव होना भी जरुरी है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रोफेशन पर अभी तक पुरुषों का ही एकाधिकार माना जाता था. तर्क दिया जाता था कि बड़ी-बड़ी लाइट्स को उठाने में पुरुष ही सक्षम होते हैं और इंडस्ट्री के शुरुआती दौर से ही इस काम को करते आ रहे हैं.

हेतल आज बॉलीवुड का जानामाना नाम हैं

असलियत में भी देखें तो लाइटिंग के क्षेत्र में फिल्म इंडस्ट्री में पुरुषों का ही वर्चस्व नजर आता है. फिल्म का सेट हो या किसी सीरियल का, आपको अक्सर कैमरामैन के साथ लाइटिंग करते हुए पुरुष ही दिखेंगे. ऐसे में हेतल देधिया ने वाकई बहुत हिम्मत का काम किया है. वो फिल्मों के सेट पर अकेली महिला गैफर के तौर पर पूरी मेहनत, आत्मविश्वास और दृढ़ता से अपने काम को अंजाम देती हैं.

दरअसल हेतल देधिया के पिता मूलचंद देधिया भी बॉलीवुड इंडस्ट्री के जाने-माने गैफर हैं, जो अब अपना बिजनेस करते हैं. हेतल ने 19 साल की उम्र में गैफर बनने की ट्रेनिंग लेने की शुरुआत की थी. हेतल ‘कार्तिक कॉलिंग कार्तिक’, ‘लक बाय चांस’, गुजारिश जैसी हिंदी फिल्मों में गैफर के तौर पर काम करने के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रोडक्शन ‘ईट-प्रे-लव’ और ‘एमआई 4–द गोस्ट प्रोटोकॉल’ में भी काम कर चुकी हैं.

हेतल के रास्ते में भी कम चुनौतियां नहीं थीं

हेतल ने खुद अपने शब्दों में कहा है कि उनके लिए गैफर बनने का सफर बहुत चुनौतियों से भरा रहा लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर मजबूती के साथ हमेशा बढ़ती रहीं. एक इंटरव्यू में हेतल ने ये भी बताया कि जब वो अपने पिता की कंपनी में लाइटिंग का काम करती थीं तो उन्हीं की कंपनी के लाइटबॉय उनका मजाक उड़ाते थे. हेतल के मुताबिक जितना उन्होंने अपना उपहास देखा, उतना ही उनका इरादा इस क्षेत्र में बड़ा नाम बन कर दिखाने के लिए पक्का होता गया. इसी का नतीजा है कि जो कभी हेतल पर कटाक्ष करते थे वही अब उसकी तारीफ करते नहीं थकते.

हेतल जैसे उदाहरण जितने ज्यादा सामने आएंगे उतनी ही महिलाओं की स्थिति देश में खुद-ब-खुद मजबूत होती जाएगी. ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को कुछ अलग करके दिखाने के लिए प्रेरणा मिलेगी. आखिर में इतना ही कहना चाहूंगी कि लड़कियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के मौके देना कोई उन पर एहसान करना नहीं हैं बल्कि ये उनका जन्मसिद्ध अधिकार है. उनके रास्ते में बेशक कोई लाख दुश्वारियां खड़ी करे, लेकिन वो जो ठान लें उसे अब हासिल करके ही छोड़ेंगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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