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बेटियों के पहनावे को पिता ही जज करे, तो समाज क्यों न करे!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 17 मार्च, 2021 12:45 PM
  • 17 मार्च, 2021 12:45 PM
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क्या वाकई महिलाओं के कपड़े उनके साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं या यह सिर्फ लोगों की गलत मानसिकता है, जवाब आप खुद तय कीजिए.

लड़कियों को लेकर हमेशा यह बात उठती रहती है कि उनकी मॉडर्न और वेस्टर्न ड्रेस उनके साथ होने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है. क्या वाकई महिलाओं के कपड़े उनके साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं या यह सिर्फ लोगों की गलत मानसिकता है, जवाब आप खुद तय कीजिए.

सड़क पर अगर कोई लड़की जाती हुई दिख जाए लोगों को सिर्फ दो मिनट लगता है यह बताने में कि लड़की का कैरेक्टर क्या है. अगर लड़की ने लोगों की सोच के हिसाब से कपड़े पहने हों तब तो ठीक है वरना उसी दो मिनट में उसके कैरेक्टर का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है. लोग लड़कियों को उनके पहने गए कपड़ों के हिसाब से जज करते हैं. जबकि सूट या साड़ी पहनने वाली महिलाएं भी अपराध कर सकती हैं. कोई इंसान कैसा है इसका पता उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से लगता है. हो सकता है कि जींस पहनने वाली लड़की अच्छी हो और साड़ी, सूट पहनने वाली नहीं. जो लोग यह समझते हैं कि लड़कियों का रेप उनके पहनावे की वजह से होता है यह उनकी छोटी मानसिकता है. गांव की ज्यादातर लड़कियां तो सूट और सलवार पहनती हैं फिर उनके साथ ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं.

लड़कियों के कैरेक्टर को उनके पहनावे की वजह से क्यों जज किया जाता है

समाज की इसी सोच की वजह से कई मां-बाप अपने बच्चियों को उनके मन मुताबिक कपड़े नहीं पहनने देते. मेरे ख्याल से महिलाओं को वे परिधान पहनने चाहिए जिसमें वे कंफर्टेबल हों. किसी ऑफिस में कोई महिला जितना कंफर्टेबल जींस-कुर्ता, सूट में होगी उतना साड़ी में नहीं. यहां तो सूट भी पहनो तो भी लोगों की नजर दुपट्टे पर होती है. दुपट्टा लगाया की नहीं और अगर लगाया भी है तो गले में है या पूरे शरीर पर लपेटा हुआ. जैसे महिलाएं बस कोई जीच हैं, जीव नहीं.

अब जाने-माने एक्टर धर्मेंद्र पाजी को ही ले लीजिए, इनको...

लड़कियों को लेकर हमेशा यह बात उठती रहती है कि उनकी मॉडर्न और वेस्टर्न ड्रेस उनके साथ होने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है. क्या वाकई महिलाओं के कपड़े उनके साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं या यह सिर्फ लोगों की गलत मानसिकता है, जवाब आप खुद तय कीजिए.

सड़क पर अगर कोई लड़की जाती हुई दिख जाए लोगों को सिर्फ दो मिनट लगता है यह बताने में कि लड़की का कैरेक्टर क्या है. अगर लड़की ने लोगों की सोच के हिसाब से कपड़े पहने हों तब तो ठीक है वरना उसी दो मिनट में उसके कैरेक्टर का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है. लोग लड़कियों को उनके पहने गए कपड़ों के हिसाब से जज करते हैं. जबकि सूट या साड़ी पहनने वाली महिलाएं भी अपराध कर सकती हैं. कोई इंसान कैसा है इसका पता उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से लगता है. हो सकता है कि जींस पहनने वाली लड़की अच्छी हो और साड़ी, सूट पहनने वाली नहीं. जो लोग यह समझते हैं कि लड़कियों का रेप उनके पहनावे की वजह से होता है यह उनकी छोटी मानसिकता है. गांव की ज्यादातर लड़कियां तो सूट और सलवार पहनती हैं फिर उनके साथ ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं.

लड़कियों के कैरेक्टर को उनके पहनावे की वजह से क्यों जज किया जाता है

समाज की इसी सोच की वजह से कई मां-बाप अपने बच्चियों को उनके मन मुताबिक कपड़े नहीं पहनने देते. मेरे ख्याल से महिलाओं को वे परिधान पहनने चाहिए जिसमें वे कंफर्टेबल हों. किसी ऑफिस में कोई महिला जितना कंफर्टेबल जींस-कुर्ता, सूट में होगी उतना साड़ी में नहीं. यहां तो सूट भी पहनो तो भी लोगों की नजर दुपट्टे पर होती है. दुपट्टा लगाया की नहीं और अगर लगाया भी है तो गले में है या पूरे शरीर पर लपेटा हुआ. जैसे महिलाएं बस कोई जीच हैं, जीव नहीं.

अब जाने-माने एक्टर धर्मेंद्र पाजी को ही ले लीजिए, इनको देखकर कहां लगता है कि ये अपनी बेटियों को सलवार सूट में देखना पसंद करते होंगे. हेमा मालीनी की Biography Beyond The Dream Girl में एक चैप्टर पूरा ईशा देओल के उपर है. इसमें ईशा ने कुछ ऐसी बताई हैं जो अभी तक दुनिया को पता नहीं थीं. ईशा के अनुसार धर्मेंद्र रोज हेमा मालिनी और बेटियों से मिलने जाते थे और एक टाइम का खाना भी साथ खाते थे, लेकिन उनका रुकना बहुत कम हो पाता था. धर्मेंद्र रात में बहुत कम रूकते थे. साथ ही ईशा ने इस बात को भी स्वीकारा है कि उनकी परवरिश में कोई कमी नहीं रही.

वहीं हेमा मालिनी के अनुसार, धर्मेंद्र को अपनी बेटियों को वेस्टर्न ड्रेस में देखना खास पसंद नहीं था. यही वजह थी कि जब भी धर्मेंद्र हेमा मालिनी और दोनों बेटियों ईशा और अहाना से मिलने घर आते थे तो दोनों उनके डर की वजह से सूट पहन लेती थीं. भले ही धर्मेंद्र को वेस्टर्न ड्रेस से बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं थी लेकिन पिता की पसंद और नापसंद को तो लड़कियां समझ गईं थीं.

आज भी घरों में लोग भले ही कितने मॉडर्न होने का दिखावा करें लेकिन लड़कियों के मामले में उनकी सोच दोहरी होती है. लड़के भी तो उल्टे-सीधे कपड़े पहनते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं बोलता लेकिन घर की बेटी क्या पहन रही है इस पर सबको टोकना होता है. शादी के बाद बहू बनते ही उस लड़की के पहनावे पर उसका छोड़कर बाकी पूरे ससुराल वालों का हक होता है. कहा यह जाता है कि यह रिवाज है करना तो पड़ेगा.

धर्मेंद्र नहीं चाहते थे कि ईशा फिल्मों में काम करें, इसलिए उन्होंने ईशा से 6 महीने तक बात भी नहीं की थी. अब इस बारे में क्या ही कह सकते हैं, क्योंकि उनके दोनों बेटे सनी और बॉबी देओल तो पहले से ही फिल्म के हीरो थे. हालांकि ईशा को अभिनय करते देखने के बाद उन्होंने बाद में तारीफ की थी.

कितनी ऊंची हो ड्रेस

कई बार तो ऐसा भी देखने को मिलता है कि ठीक है तुम्हारा मन है तो पहनो हो जो तुम चाहती हो, लेकिन कुछ हुआ तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. ऐसे लोग फिर यह मापते हैं कि स्कर्ट की लंबाई घुटने से कितनी छोटी होनी चाहिए. अगर मॉडर्न ड्रेस है तो वह घुटने के कितना उपर है. मतलब यह है कि अगर कोई महिला मॉडर्न ड्रेस पहनती भी है तो नियम और शर्तों के साथ. स्लीवलेस ड्रेस है तो बाजू की लंबाई कितनी बड़ी है और गला कितना गहरा है. कई पति तो पत्नियों को पहवाने के मामले में इतना डरा कर रखते हैं कि वे चाहते हुए भी अपने हिसाब से कपड़े नहीं खरीदतीं, क्योंकि हमारे यहां कपड़ों की ऊंचाई से कैरेक्टर मापा जाता है.

हमेशा इसी बात को लेकर विवाद होता है कि लड़कियों को किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए. छेड़खानी और बलात्कार के लिए अक्सर लड़कियों की ड्रेस को जिम्मेदार माना जाता है. लोगों को यब बात समझनी चाहिए कि हर किसी का अपना स्टाइल होता है, अपना कंफर्ट होता है. आज भी भारत में ही की ऐसी जगहें हैं जहां जींस और वेस्टर्न ड्रेस पर बैन है. लड़कियों को दब्बू और शालीन बनाने से कहीं बेहतर है बोल्ड और स्ट्रांग बनाना ताकि जब उन्हें कोई छेड़ने की सोचे तो उसी रूप में जवाब भी पाए. और हां, फैशनेबल ड्रेस का मतलब खराब चरित्र नहीं होता.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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